17/03/2022
रोजगार एवं वर्तमान शिक्षा प्रणाली।।।
जब कभी हम अस्वस्थ होते हैं तो चिकित्सक को दिखाने के समय चिकित्सक हमारी कुछ टेस्टिंग कराने की सलाह देते हैं एवं पैथोलॉजी रिपोर्ट तथा क्लीनिकल टेस्टिंग के पश्चात ही चिकित्सक हमें कोई दवाई अथवा निराकरण की व्यवस्था बताते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि पैथोलॉजिकल या टेस्टिंग रिपोर्ट के आंकड़े मरीज की वास्तविक स्थिति से भिन्न होते हैं, तो उस परिस्थिति में चिकित्सक द्वारा दिया गया निवारण एवं दवाई कारगर साबित नहीं होती कई कई केसेज में मरीज की मृत्यु हो जाती है अथवा उसे ज्यादा पीड़ा, ज्यादा दिनों तक सहन करनी पड़ती है। इसी पहलू को मैंने शिक्षा व्यवस्था से जोड़कर रखने का प्रयास किया है।
हमारी शिक्षा प्रणाली में केवल और केवल प्रमाण पत्र को ज्यादा महत्व दिया जाता है। छात्रों की सोच है कि ज्यादा प्रमाण पत्र होंगे तो जल्दी सफल हो पाएंगे, ज्यादा नंबरों के प्रमाण पत्र होंगे तो वह जल्दी सफल हो पाएंगे। परंतु चिंतनीय विषय यह है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में मूल्यांकन पद्धति अथवा प्रमाणीकरण पद्धति क्या छात्र के संबंधित विषय ज्ञान अथवा विषयों के ज्ञान की वास्तविक स्थिति से परिचय कराती है? शायद नहीं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विषयों के नंबर भरपूर तक आ जाते हैं। यह मूल्यांकन पद्धति जो छात्र का मूल्यांकन परीक्षण करती है क्या वास्तविकता में छात्र के विषय ज्ञान की वास्तविकता दर्शाती है? मेरा मानना है कि शायद नहीं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विषय मूल्यांकन की व्यवस्था इतनी स्वस्थ नहीं है, कि छात्र को विषय ज्ञान के वास्तविक मूल्यांकन के आधार पर प्राप्तांक दिए जाते हों।
अब बात आती है रोजगार प्राप्त करने की। चूंकि अस्वस्थ मूल्यांकन व्यवस्था के आधार पर छात्र को उसके प्राप्त ज्ञान से ज्यादा प्राप्तांक दिए जाते हैं, एवं इस आधार पर प्रतिवर्ष उच्च शिक्षित, रोजगार अनुपयोगी बेरोजगारों की बहुत बड़ी संख्या तैयार होती है एवं अधिकांश उच्च शिक्षित छात्र केवल सरकारी जॉब की ही तैयारी में जुट जाते हैं। एवं यह कहीं ग़लत भी नहीं है। परन्तु जैसे मुझे याद आता है कि कुछ वर्षों पूर्व सचिवालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की जॉब निकाली गई जिसमें अर्हता आठवीं पास थी परंतु यह चिंतनीय विषय है इन पदों हेतु लगभग 23 लाख आवेदन प्राप्त हुए। जिनमें अधिकतर उच्च शिक्षित छात्र शामिल थे। जिनमें कुछ मानद उपाधि धारक, स्नातक, स्नातकोत्तर, इंजीनियर की पढ़ाई किए हुए अथवा मैनेजमेंट की पढ़ाई किए हुए आदि शामिल थे। इतनी बड़ी संख्या में आवेदनों को देखकर विभाग ने उस रिक्त स्थान को नहीं भर पाया एवं उस जॉब को निरस्त किया गया।
मेरा व्यक्तिगत मानना है कि सरकारी नौकरी हेतु तैयारी करना ग़लत नहीं है परन्तु छात्रों को अपनी उच्च शिक्षा के साथ-साथ किसी ना किसी स्किल पर भी ध्यान देना चाहिए जिस स्किल में उसका स्वत रुझान हो, उस स्किल से संबंधित, विद्यार्थी को कोई ना कोई कोर्स कर ही लेना चाहिए। शिक्षा ग्रहण करने के बाद यदि किसी कारण से विद्यार्थी की सरकारी जॉब नहीं लग पाती है तो उस स्थिति में वह अपना स्वरोजगार शुरू करने अथवा प्राइवेट जॉब सेक्टर में जाने के लिए तैयार होता है। क्योंकि कोई भी सरकार शत प्रतिशत युवाओं को सरकारी नौकरी दे पाने में सक्षम नहीं हो सकती है, अतः उस स्थिति में विद्यार्थियों को अपने लिए एक प्लान बी की तैयारी भी करनी चाहिए। वर्तमान में काफी योजनाएं भी शुरू की हुई है। जिनमें विद्यार्थी अपने रुझान के मुताबिक अपने किसी स्किल को सीखने एवं उससे संबंधित स्वरोजगार शुरू करने अथवा प्राइवेट जॉब के लिए प्रयास करते हुए सफल हो सकते हैं एवं निश्चित ही एक कहावत चरितार्थ होती है कि "जहां चाह है, वहां राह है"। अन्यथा की स्थिति में हम किसी को भी अपनी बेरोजगारी के लिए, अपनी स्थिति के लिए दोषारोपण करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
मैं एक औसत स्तर का छात्र रहते हुए, आज अपनी जीविका कम्प्यूटर के क्षेत्र में केवल इसी तथ्य के आधार पर चला पा रहा हूं। मेरी यह व्यक्तिगत सोच किसी विधार्थी के लिए कुछ सकारात्मक परिणाम दे, इस भावना के साथ इसे आपसे शेयर किया गया है। भारत अधिकांस युवाओं का देश है, एवं ये बिना सशक्त युवाओं के कभी भी सशक्त नहीं बन सकेगा।
धन्यवाद
जय हिंद, जय भारत, जय जिनेंद्र
@ज्ञानेंद्र
( सरकार द्वारा प्रमाणित )
( आई.टी. एवं सॉफ्ट स्किल्स ट्रेनर )
( 23 वर्षों से कम्प्यूटर के क्षेत्र में सेवारत )