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🌹 शहीद-ए-आज़म भगत सिंह जयंती पर नमन 🌹
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह : आज के भारत के लिए उनकी प्रासंगिकता

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले वीर क्रांतिकारी ही नहीं थे, बल्कि वे भारत की उस नई पीढ़ी के अग्रदूत थे, जिन्होंने स्वतंत्रता को केवल अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्ति तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने स्वतंत्रता को एक ऐसे समाज की स्थापना से जोड़ा जिसमें शोषण, असमानता और अन्याय की कोई जगह न हो।

भगत सिंह ने बहुत कम उम्र में गहराई से अध्ययन किया। उन्होंने मार्क्स, लेनिन और समाजवादी विचारधारा को समझा और भारतीय परिस्थितियों के साथ जोड़कर देखा। उनका सपना केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का नहीं था, बल्कि सामाजिक-आर्थिक समानता पर आधारित एक समाजवादी भारत का था।
उनकी प्रसिद्ध उक्ति “क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है” इस बात को स्पष्ट करती है कि असली लड़ाई केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विचारों और जनचेतना से जीती जाती है।

आज भारत में राजनीतिक स्वतंत्रता तो है, लेकिन आर्थिक-सामाजिक स्वतंत्रता पर सवाल बने हुए हैं।

मज़दूर और किसान अभी भी पूँजी और कॉरपोरेट के शोषण का शिकार हैं।

बेरोज़गारी और महँगाई ने युवाओं की संभावनाओं को कुचल रखा है।

साम्प्रदायिकता, जातिवाद और अंधराष्ट्रवाद को हथियार बनाकर जनता को बाँटने की कोशिशें हो रही हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी ज़रूरतें बाज़ार के हवाले की जा रही हैं।

ऐसी स्थिति में भगत सिंह का विचार और भी प्रासंगिक हो जाता है। उन्होंने चेताया था कि अगर स्वतंत्र भारत में भी पूँजीपति और ज़मींदार ही सत्ता पर हावी रहेंगे, तो जनता के लिए स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं होगा।

आज के समय में लोगों को उनसे क्या सीखने की आवश्यकता है?

1. वैज्ञानिक सोच और तार्किकता – भगत सिंह अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरता के सख़्त विरोधी थे। आज जब अंधभक्ति और फेक न्यूज़ समाज को बाँट रही है, तब उनसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की सीख मिलती है।

2. साम्प्रदायिक एकता – उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को क्रांति की मूल शर्त माना। आज साम्प्रदायिक राजनीति को मात देने के लिए यही एकता सबसे बड़ा हथियार है।

3. त्याग और संघर्ष की भावना – भगत सिंह ने व्यक्तिगत सुख-समृद्धि की बजाय जनता के लिए जीवन बलिदान किया। आज युवाओं को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर जनहित के संघर्ष में भाग लेना चाहिए।

4. क्रांति का व्यापक अर्थ – उन्होंने क्रांति को केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन का माध्यम बताया।

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह जी से प्रेरणा लेने हुए आज हमें उनके सपनों का भारत बनाना होगा –

जहाँ मेहनतकश वर्ग (मज़दूर-किसान) को सत्ता और नीति-निर्माण में वास्तविक हिस्सा मिले।

जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और आवास सभी के लिए मौलिक अधिकार हों, न कि बिकाऊ माल।

जहाँ जाति, धर्म, लिंग के आधार पर भेदभाव ख़त्म हो और सभी बराबरी से जीवन जी सकें।

जहाँ उत्पादन और संसाधनों पर जनता का लोकतांत्रिक नियंत्रण हो, ताकि पूँजीपतियों के मुनाफ़े नहीं बल्कि समाज की ज़रूरतें पूरी हों।

भगत सिंह का सपना आज भी अधूरा है, और उसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी आज की पीढ़ी पर है।
भारत के लोग अगर सचमुच उनकी जयंती पर उन्हें याद करना चाहते हैं, तो केवल फूलमालाएँ चढ़ाने से नहीं, बल्कि उनकी वैचारिक विरासत को आगे बढ़ाकर एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और समानतापूर्ण भारत बनाने के संघर्ष में जुटना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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