04/09/2025
क्या सचमुच तबाह हो रहा है हिमाचल..?
"अनसुलझा सच"
देश के उच्चतम न्यायालय नें अपने निर्णय में संकेत दिए थे कि अगर अब भी नहीं संभले तो हिमाचल सिर्फ किताबों में रह जाएगा।
एमएस प्रिस्टीन होटल्स एंड रिजार्ट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा, यदि हिमाचल में निर्माण कार्य और विकास योजनाएं इसी तरह बिना वैज्ञानिक दृष्टिकोण के चलती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हिमाचल देश के नक्शे से गायब हो जाएगा। कोर्ट ने कहा, भगवान करें कि ऐसा न हो।
ये लोग तारादेवी पहाड़ पर जंगलों के बीच एक रिजॉर्ट बनाना चाहते थे। पहले सरकार ने मना किया, फिर उच्च न्यायालय ने मना, किया और बाद में उच्चतम न्यायालय ने भी मना कर दिया। पर क्या ये रूक पाएगा..?
शायद अगली सरकार में ये लोग फिर प्रयास करें कि हम तो आपकी पार्टी के थे, इसलिए पिछली सरकार ने हमारा काम अटका दिया था। यही होता आया है, यही होता रहेगा।
118 में हर बार सैंकड़ों नहीं हजारों अनुमतियां दी जाती हैं, कौन होते हैं ये लोग..?
शिमला में शोघी से लेकर कुफरी तक जमीन का इंच इंच व्यापारिक हो चुका है। बेतहाशा होटल, रेस्तरां और रिजॉर्ट बन चुके हैं और बन रहे हैं।
सोलन के बड़ोग, धर्मपुर, कसौली में अधिकांश संपत्तियां बाहरी राज्यों के लोगों की हैं । किसी न किसी बहाने अनुमति ली होगी।
कुल्लू से लेकर मनाली के सोलांग तक होटलों की लंबी लाइनें लगी हैं, पर अधिकतर बाहरी हैं ।
लाहौल स्पीति का सिस्सू, गोंदला ,जिस्पा और केलांग जहां की मिट्टी अधिक बजन उठा ही नहीं सकती, बहां बड़े-बड़े होटल बन रहे हैं।
जमीन पर अत्यधिक दबाव पड़ने से जमीन खिसक रही है, जिससे पहाड़ जख्मी हो रहे हैं। जंगलों के बीच में रिजॉर्ट बनाने की अनुमति ले ली जाती है, फिर धीरे-धीरे उसी जंगल की करोड़ों रुपए की वन संपदा काट कर होटल में लगा ली जाती है।
इतनी अधिक इमारतों से न सिर्फ मौसम चक्र गड़बड़ हो रहा, बल्कि पैसे के जोर पर ये लोग नदी के बीच ही कब्जा करके, नदी के प्रवाह को ही बदल देते हैं। इसी अत्यधिक निर्माण का मलवा, नदियों में भर दिया जाता है, जो वारिश होने पर तबाही मचा देता है।
अगर सरकार ने तुरंत बेतहाशा होटलों और घरों के निर्माण को न रोका, तो सच में प्रदेश के पहाड़ इतना बजन उठाने से इनकार कर देंगे।