
19/03/2025
जीवन से संसार से परिवार से व्यापार से धर्म अलग हुआ तो धर्म एक बोझिल ड्यूटी मात्र रह जाती है और उसका पालन कुछ अनहोनी क्षति का भय या सामाजिक भय या झूठा दिखावा या आंतरिक लोभ के कारण किया जाता है।
निष्कर्ष__ धर्म आनंदित प्रेमपूर्ण जीवन की विशुद्ध कला ही है जो inbuilt रहती है , वैसा जीवन जिसमें ज्ञान बोध युक्त होना प्रमुख होता है इसका श्रोत__ सद्गुरु की वाणी शास्त्र आत्मचिंतन एवं आचरण अभ्यास है इसी को धार्मिक आध्यात्मिक जीवन होना समझें और इसका परिणाम प्रेम शांति आनंद से भरपूर जीवन है।
अतः अन्य कार्यों की तरह धर्म को भी एक extra कार्य न बनाएं नहीं तो जीवन से धर्म की मृत्यु हो जाएगी मतलब आपका जीवन निरस बोझ बन जाएगा।
समझ गए कि पूरा एक एपिसोड का प्रवचन ही करना होगा???,😊🙏
"दास ऋतेश्वर"