Kaku Ram

Kaku Ram Thakur Kaku Ram is Senior Ph.D Scholar in the Department of Political Science, HPU. He has qualified six times For NET, SET and also For JRF.

Currently working as an SRF Fellow.

27/07/2025

प्रोफेसर नागेश ठाकुर गुरुजी के स्वावलंबन अभियान, स्वदेशी पर प्रेरणादाई विचार।।

27/05/2024

मेरी कलम से (काकू राम)

इस ब्लॉग में मैने ऑनलाइन या फोन पर गेम खेलने के प्रभाव की बात की है।

ऑनलाइन गेमिंग/फोन गेमिंग से बिगड़ता और बर्बाद होता युवा।।

पारंपरिक खेल गोली डंडा, छिपा छिपी, गुटलियां खेलना, पिट्ठू खेलना, कंचे खेलना, क्रिकेट खेलना, कब्बड़ी खेलना, खो खो खेलना शामिल है। ये खेल युवाओं में सामाजिक एकता, समरसता, सहिष्णुता, सहयोग की भावना, सामूहिकता की भावना उत्पन करती है ।
लेकिन वर्तमान में इन खेलों को श्रीधांजली देने का काम किया जा रहा है। ये खेल अब धीरे धीरे खतम होते जा रहे है।

अब कुछ इस तकनीकी युग में नए खेलों का जन्म हुआ जिनका स्वागत हैप्पी बर्थडे मनाने से भी ज्यादा किया गया।। आजकल डिजिटल का युग है और इन पारंपरिक खेलों को भी अब डिजिटलाइज्ड किया गया है । अब इन खेलों का स्थान लुड्डो, पपजी, फ्री फायर और ना जाने कितने ही प्रकार के ये ऑनलाइन गेमिंग वेरिएट्स आ गए है। जो आजकल के बच्चो, युवाओं को शारीरिक,मानसिक, और भावनात्मक हर तरह से नुकसान पहुंचा रहे है।

गांव देहात से लेकर छोटे बड़े शहरों तक आजकल ऑनलाइन गेमिंग महामारी की तरह फैल गया है। कोरोना ने ऑनलाइन गेमिंग में आग में घी डालने का काम किया। कोरिना महामारी के समय लोग घर पर ही रहे और बच्चो की पढ़ाई लिखाई सब अब फोन से ही होने लगी वही से ही ऑनलाइन गेमिंग महामारी की तरह फैल गया। अब बच्चे भी फोन के आदी हो गए।
जो युवा ग्राउंड में खेलने जाते थे अब वो भी घर पर ही फोन से ही खेलने लगे।।

पहले युवाओं के खेल मैदानों में हुआ करते थे और उसमे बहुत सारे खिलाड़ियों की जरूरत होती थी।।और बच्चे खेलने के लिए एक दूसरे से मिलते थे, एक दूसरे को सहयोग करते थे। कितनी ही आपकी लड़ाई होने के बाबजूद भी बच्चे और युवा मनमुटाव को जल्दी भूल जाते थे क्योंकि उनको सभी खिलाड़ियों की जरूरत पड़ती थी।
किसी के पास अच्छी गंद होती थी तो किसी के पास अच्छा बेट, किसी के पास अच्छा आंगन या ग्राउंड होता था तो किसी के पास अच्छा खिलाड़ी होने का ठप्पा, जिससे कि बाकी युवा प्रेरणा लेते थे।।

लेकिन आजकल ऐसी ऑनलाइन गेम्स आ गई है जिसने ये सब को किनारे कर दिया है
आजकल लोग ऑनलाइन गेमिंग को टाइम पास का अच्छा साधन मानते है।।

हो सकता है शुरू शुरू में टाइम पास के लिये इसकी शुरुआत की गई हो लेकिन धीरे धीरे इसकी लत लग जाती है और फिर लोग इस पर पैसा लगाना भी शुरू करते है। जोकि आर्थिक तौर पर बहुत बड़ी हानि पहुंचाता हैं
आजकल गांव देहात से लेकर शहरों तक बच्चो और युवाओं में ऑनलाइन गैनिंग की बूरी लत लगी है। इसमें काफी गेम्स आती है जैसे फ्री फायर, पपजी, लूडो और भी कई गेम है जिनके हमने नाम भी नी सुने।
हालांकि ड्रीम इलेवन भी एक बहुत बड़ी लत है लेकिन इस ब्लॉग में उसके बारे में बात नही करेंगे।। उसके लिए अलग से ब्लॉग होगा।।
इन खेलों का खामियाजा ये हुआ कि बच्चो में अलेकेपन का भाव, अलगाव की भावना उत्पन हो गए है जिसे लोग नाम इंट्रोवर्ट देते है ।। वैसे वो अलगाव भी हो सकता है

ऑनलाइन गेमिंग की वजह से बच्चे आजकल मेंटल डिसऑर्डर के शिकार हो रहे है उनमें स्ट्रेस, और डिप्रेशन जैसे समस्या उत्पन हो गई है। उनके व्यवहार में काफी बदलाव हो जाता है जैसे गुस्सा, जल्दी नाराज होना, अलगाव, चिड़चिड़ापन, ईर्षा आदि ।।। आजकल युवाओं में बड़ते सुसाइड के मामले, धोखाधड़ी, आदि प्रवृत्तियां आम हो गए है।

क्या करें:-

बच्चो को बहुत कम फोन दें।।
अगर फोन दें तो इस बाद का ध्यान रखें कि बचा उसमे क्या कर रहा है। एक्टिविटीज जरूर नोट करें।।

बचे के पास अपना एटीएम पासवर्ड और किसी भी कार्ड की जानकारी ध्यान पूर्वक और अतिअवशक हो तो ही दे।
बच्चे को परंपरागत खेलों के लिए प्रेरित करे ।जिससे उसका शारीरिक व्यायाम भी होगा और मानसिक तनाव भी कम होगा साथ ही सामाजिक जुड़ाव का मूल्य भी बच्चे मे जिंदा रहेगा।
ध्यान दें कि अगर बच्चे मे अलगाव, चिड़चिड़ापन, व्यवहार में suddly कोई चेंज, कोई खास वजह ना होने पर स्ट्रेस और डिप्रेस्ड आदि हो तो चितित्सक काउसलिंग करवाएं क्योंकि हो सकता है बच्चा ऑनलाइन गेम का आदी हो गया हों।

काकू राम
I think I can

26/05/2024

मेरी कलम से(काकू राम)

इस ब्लॉग में मैने बताने का प्रयास किया है कि किस तरह इंसान अपने सामाजिक मूल्यों को भूल रहा है।

तकनीकी और समाजिक मूल्यों की होती हत्या।।

आज का युग तकनीकी युग है और इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि तकनीकी के विकास ने मानव जीवन को सुगम और सरल बनाया है। लेकिन इसके बहुत सारे नुकसान और कुप्रभाव हमें देखने को मिलते है।।
सामाजिक मूल्यों का अर्थ समाज में मौजूद नेतिकताओ, मान्यताओं और आदर्शो से है। जिनके आधार पर समाज चलता है। आज के युग में हमारे नैतिक मूल्यों और समाजिक मूल्यों का दिन प्रतिदिन पतन होता जा रहा है।

तकनीकी: मैं सबसे ज्यादा जिम्मेदार तकनीकी को मानता हूं क्योंकि तकनीकी ने सामाजिक मूल्यों का खात्मा किया है। मोबाइल आने और अनलिमिटेड नेट मिलने से लोगों की आदत बिगड़ी है गांव देहात से नगर शहर तक अब लोग फोन से इतने ज्यादा एडिक्ट है कि अगर एक दो दिन फोन ना हो तो मानो जैसे सांस निकल गई हो जान चली गई हों।।
आजकल हम साथ रहकर भी साथ नहीं होते ।। हम फोन पर लगे रहते है और हमारे पास बैठा व्यक्ति हमारे से बात करने के लिए इंतजार कर रहा होता है जब घर में खाना खाते हों तक भी लोग फोन पर लगे रहते है। जिसका असर ये होता है कि हमारी अपने परिवार वालों के साथ भी अच्छे से बात नही हो पाती है।

आजकल सयुक्त परिवार की प्रथा को तो मानों जैसे ग्रहण ही लग गया हों अब तो बिरले ही सयुक्त परिवार देखने को मिलते है।
नैतिक मूल्य और अच्छे संस्कार परिवार से मिलते है लेकिन जब घर में पति पत्नी और उनके बच्चे हों तो इस दौड़ भरी और उथल पुथल भरी दुनियां मे कहां किसी के पास इतना टाइम होता है कि वो अपने बच्चो को अच्छे संस्कार दे पाए। देखा जाए तो सयुक्त परिवार में दादा दादी ताऊ ताई या फिर चाचा चाची कोई न कोई तो होता ही है जो कि बच्चो का ध्यान रखते है उन्हे अच्छे संस्कार देते है।
ज्यादातर लोग आजकल बच्चों के लिए खिलोने कम और मोबाइल्स ज्यादा दे रहे है। और क्योंकि आजकल सोशल मीडिया में अच्छे मैटीरियल कम और अश्लीय वीडियो और सामग्री ज्यादा परोसी जा रही है।
हम आजकल अज्ञान के पर्दे मे जी रहे हैं।

बच्चा जब जन्म लेता है तो हम उसको खिलाने के लिए लोहोरियां,और गीत कम ही सुना रहे है अब बच्चे को चुप कराने का साधन मात्र फोन हो गया है। बच्चा रोए तो फोन थमा दिया जाता है जन्म से ही आजकल से फोन एडिक्ट शुरू हो रही है
फोन अब लोग अपने बच्चो को ऐसे देते है जैसे मानों बस यही संजीवनी बूटी है।।

आपसी सहयोग समर्थन, सेवाभाव और सहिष्णुता,

समाजिक मूल्यों में ये भी आता है कि हम एक दूसरे का सहयोग करें, एक दूसरे की मदद करें, एक दूसरे के सुखदुख में शामिल हों, एक दूसरे के दर्द को समझे।। लेकिन आजकल ये सब सामाजिक अंतर्संबंध खत्म होते जा रहे है।।
बस किसी को कोई दर्द हो तो एक दिखावी सांत्वना देने के लिए एक कॉल की जाती है ।
और किसी को कोई खुशी हो तो उनको बधाई संदेश व्हाट्सएप, फेसबुक या किसी और माध्यम से प्रेषित किया जाता है।। जिसके कारण जो एक दूसरे के साथ प्रेमतत्व था वो खतम होने लगता हैं।
आजकल एक ट्रेंड और चला है और वो है

फोटू ट्रेंड(फोटो ट्रेंड)
मान लो कि कोई किसी की थोड़ी बहुत बदद कर रहा है या फिर किसी तरह का दान दे रहा है तो उसके लिए फोटो लेने की होड़ लगी होती है
एक बात और कि मान लो कि कोई किसी पर हमला कर रहा है तो वहां पर फोटो लेने के लिए और वीडियो बनाने के लिए लोगों में प्रतिभा होती है कंपटीशन होता है उनकी अंतरात्मा उनको उस आदमी को बचाने के लिए नहीं कहती है उनके लिए आदमी को बचाने से महत्वपूर्ण फोटो लेना और वीडियो बनाना जुरूरी होता है। उदाहरण तो बहुत है मेरे पास पर ये ब्लॉग बड़ा हो जायेगा

सामाजिक मूल्यों और नैतिक मूल्यों का पतन हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तर पर हो रहा है।आजकल हम सब की नैतिकता धरातल से भी नीचे गिरती जा रही है

प्रभाव
इसका प्रभाव , अविश्वास, असमानता, असहिष्णता, असहयोग, अशांति, अराजकता, चौरी डकैती की बढ़ती समस्याएं,भ्रष्टाचार, अत्याचार, हत्या के बड़ते मामले, आदि के रूप में देखा जा सकता है।।।।।।।

काकू राम
I think I can

25/05/2024

2024 Big democratic Experiment of the planet

साल 2024 इस प्लेनेट के सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं में चुनाव हो रहे है। इस साल लगभग 64 देशों के आम चुनाव होने की संभावना है भारत के साथ साथ इस साल अमेरिका और ब्रिटेन में भी चुनाव होने है। ये तीन शक्तियां इस प्लेनेट के सबसे बड़े लोकतांत्रिक प्रयोग है( democratic Experiment) वैसे तो इन तीनों ही देशों में बहु दलीय प्रणालियां है लेकिन व्यवहारिक तौर पर अमेरिका और ब्रिटेन में द्विदलीय प्रणाली देखने को मिलती है। दलीय प्रणाली की शुरुआत भी वैसे इंग्लैंड और अमेरिका में ही हुई थी। और आज तो लोकतंत्र और दलीयतंत्र समानार्थ और पूरक बन गए है।

इस साल इन तीनो देशों में जो लोकतांत्रिक प्रयोग हो रहा है इस पर विश्व की नजर है। क्योंकि ये तीनो देश इस प्लेनेट पर अपना अच्छाखासा प्रभाव रखते है।

अमेरिका- विश्व की सबसे बड़ी शक्ति है

इंग्लैंड-इसके पास सबसे बड़ी Colonial legacy

भारत- विश्व की उभरती अर्थव्यवस्था, सबसे बड़ा विश्व बाजार, और सबसे बड़ी सांस्कृतिक धरोहर का स्वामित्व।

ये तीनो शक्तियां इस ग्रह(planet) की दशा और दिशा को बदलने की ताकत रखते है। और इसलिए इन देशों में हो रहे चुनावो को Transnational Communities काफी प्रभावित करती है।

अमेरका और इंग्लैंड
इन दोनों देशों में विदेशी काफी सख्या में रहते है तो वो वहां के वोटिंग बिहेवियर को काफी प्रभावित करते है।
भारत: भारत बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है और Transnational cultural Communities भारत के बोटिंग बिहेवियर पर अपना प्रभाव रखते हैं।

आज इस दौर में क्लाइमेट चेंज, आतंकवाद, सुरक्षा, और गृह युद्ध, और साथ ही रूस यूक्रेन युद्ध, इजराइल फिलिस्तीन विवाद, रिलीजियस फंडामेंटलिज्म (Fundamentalism) आदि प्रमुख मुद्दे है जो भारत, इंग्लैंड और अमेरिका के चुनावो को काफी प्रभावित करेंगे।।
इंटरनेशनल कम्यूनिटी जरूर इन देशों में हो रहे चुनावो को प्रभावित करेगी।

काकू राम
I think I can

24/05/2024

फिलिस्तीन का बढ़ता कद:

हाल ही में तीन यूरोपीय देशों स्पेन, नार्वे और आयरलैंड ने फिलिस्तीन को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की घोषणा की है। और हालांकि इसके संकेत यूरोपियन यूनियन भी दे चुका है कि इजराइल फिलिस्तीन के स्थाई समाधान के लिए और एक क्षेत्र में शांति कायम रखने के लिए फिलिस्तीन को संप्रभु के तौर पर मान्यता देना जरूरी है सबसे पहले नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनास गहर स्टोरे ने फिलिस्तीन को मान्यता देने की घोषणा की। और नॉर्वे के प्रधानमंत्री ने ओस्लो शांति समझौता 1993 का हवाला देते हुए कहा कि इस क्षेत्र में शांति के लिए इन दोनो देशों की संप्रभुता को मान्यता देना जरूर है।इसके साथ ही स्पेन और आयरलैंड ने भी फिलिस्तीन को मान्यता देने की घोषणा की और दो संप्रभु राज्यों फिलिस्तीन और इजराइल को स्वीकारने की बात की। दोनो देशों ने कहा कि जब तक फिलिस्तीन को संप्रभु के तौर पर मान्यता नही मिलती तब तक इस क्षेत्र में शांति कायम नही हो सकती। और ओस्लो शांति समेलन में भी दोनो देशों को संप्रभु के रूप में मान्यता को ही शांति स्थापित करने का एक व्यवहारिक तरीका माना है। अल्जीरिया ऐसा पहला देश था जिसने सबसे पहले फिलिस्तीन को मान्यता दी और वर्तमान में सयुक्त राष्ट्र संघ के 193 देशों में से लगभग 142 देश फिलिस्तीन को एक संप्रभु राष्ट्र के तौर मान्यता दे चुके है भारत भी 1988 में फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दे चुका है।।। नॉर्वे, स्पेन और आयरलैंड के मान्यता की घोषणा के बाद इजराइल आग बबूला हो गया और तुरंत अपने राजदूत इन देशों से वापिस बुला लिए गए और इन देशों को चेतावनी दी गई कि इसके गंभीर परिणाम होंगे। इजराइल तो मानों जैसे लोहुलुहान बाघ हो गया हों।

आगे की राह
इजराइल फिलिस्तीन के बीच विवाद काफी पुराना है और इस विवाद का समाधान सिर्फ मान्यता देना नही है बल्कि जब तक विश्व की महान शक्तियां और राष्ट्र इसके स्थाई समाधान के लिए प्रयास नही करेंगे, जब तक सयुक्त राष्ट्र संघ कोई व्यवहारिक कदम नहीं उठाता, जब तक सीमाओं का सीमांकन सही तरीके से नहीं किया जायेगा, तब तक इस मुद्दे का समाधान होता नही दिख रहा है। सयुक्त राष्ट्र संघ तो अब दंतहीन हो गया है। वो अपना वजूद ही भूल गया हों एक उस राही की तरह हो गया है जोकि अपना रास्ता ही भूल गया हों।।।

काकू राम।।।

हिमाचल प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा जुलाई और अगस्त में होने वाली परीक्षाओं की तिथियां निम्न प्रकार से है।।।
15/05/2024

हिमाचल प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा जुलाई और अगस्त में होने वाली परीक्षाओं की तिथियां निम्न प्रकार से है।।।

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