21/10/2025
*मेरे दोस्त ने पूछा — "कैसी होती है तुम्हारे गांव की दीवाली?"**
मैंने मुस्कुराकर कहा:
कुछ पुराने मित्र, कुछ पुरानी यादें, और कुछ वो पल... जो हमने बेफिक्री से जिए थे। उन्हीं को चंद पलों में याद करना और कुछ देर के लिए फिर से जी लेना — बस, यही है हमारे गांव की दीवाली।*
लेकिन ये तो थी हमारी बात...”*
कल गांव में हर वर्ष की तरह बेलों का पारंपरिक जुलूस निकला। पहले जहां लगभग 250 जोड़ी बैल निकलते थे, वहीं इस बार मात्र एक बैल निकला। यह देखकर मन दुखी हुआ। यह साफ़ दर्शाता है कि हम **गौधन** की रक्षा करने में असफल हो रहे हैं।
इसका एक बड़ा कारण अधूरा आधुनिकरण भी है। ट्रैक्टर ने बैलों का स्थान ले लिया और महंगाई ने किसानों को बैल पालने से पीछे हटा दिया।
*लेकिन सवाल यह है*
क्या हमारी सरकार बैलों को प्रोत्साहित करने और उन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकती?
क्या हम ऐसी कोई मशीन नहीं बना सकते जिसमें बैल अपनी पूरी क्षमता के साथ ट्रैक्टर जितनी उत्पादकता दे सकें?
क्या हमारे वैज्ञानिक और कंपनियां ऐसी रिसर्च नहीं कर सकतीं, जिससे बैलों की उपयोगिता और महत्व फिर से स्थापित हो सके?
**हम चाहते हैं कि गौधन का महत्व हमारी ज़िंदगी में बना रहे।
हालांकि, बाजार प्रकोष्ठ के सहयोग से कल पशुपालकों और बैलों का फूलों से स्वागत कर धन्यवाद व्यक्त किया। यह हमारा गौधन के प्रति आभार प्रकट करने का एक छोटा सा प्रयास था।
गांव वाले मिल-जुलकर नृत्य करते नज़र आए। यही हमारी सांस्कृतिक विरासत है और हम यही चाहते हैं कि ये परंपरा बनी रहे।
**हम चाहते हैं कि गौधन का महत्व हमारी जिंदगी में बने रहे।
हालाँकि, बाज़ार बाज़ार विरासत है और हम यही चाहते हैं कि ये परंपरा बनी रहे।
साथ ही, ऐसी सोच भी विकसित हो जिससे हम फिर से गौधन क निकट जा सकें।
इसी भावना के साथ, आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।**