Jai Bhim Force

Jai Bhim Force समता मूलक समाज निर्माण

अब दुनिया को कौन बताए कि भारत में भी कुछ लोग मुंह से पैदा होते हैं।मुँह से तो मेंढक पैदा होते हैं 🤣बाक़ी नार्मल लोग शूद्...
08/03/2025

अब दुनिया को कौन बताए कि भारत में भी कुछ लोग मुंह से पैदा होते हैं।
मुँह से तो मेंढक पैदा होते हैं 🤣
बाक़ी नार्मल लोग शूद्र ही हैं ।

05/03/2025

सुवर्ण है ये लोग

राजस्थान जातिवाद का गढ़ है इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए।यहां सबसे ज्यादा छुआछूत है।इसके लिए आज तक किसी ने कोई बड...
05/03/2025

राजस्थान जातिवाद का गढ़ है इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए।
यहां सबसे ज्यादा छुआछूत है।
इसके लिए आज तक किसी ने कोई बड़ा संघर्ष नहीं किया है।
राजस्थान को कांग्रेस और बीजेपी ने बर्बाद कर दिया है।

01/03/2025

शर्मनाक, चून से पेट नहीं भरा तो आदिवासियों का हक खा गए

कड़वा है पर सच है
01/03/2025

कड़वा है पर सच है

24/12/2024

Follow me Tweeter (X)

20/11/2024

पुण्यतिथि :: ओमप्रकाश वाल्मीकि

20/11/2024

नमन है भारतीय वैज्ञानिको को

19/11/2024

यही हमारा समाज है। धर्म की राजनीति ऐसे ही लोगों को स्वीकृत करने का वैचारिक और सांस्कृतिक आधार बनाती है।

रामदेव जी के काल्पनिक चित्रों पर एक नजर –जैसा की हम सब जानते है कि बाबा रामदेव जी की तत्कालीन कोई वास्तविक मूर्ति या चित...
12/10/2024

रामदेव जी के काल्पनिक चित्रों पर एक नजर –

जैसा की हम सब जानते है कि बाबा रामदेव जी की तत्कालीन कोई वास्तविक मूर्ति या चित्र देखने को नही मिलता. वे उस वक़्त तक कोई राजे-महाराजे जैसे प्रतिष्ठित नही थे कि कोई दरबारी मूर्तिकार, चित्रकार उनकी मूर्ति या छवि बनाता. शताब्दियों से केवल उनके पदचिन्ह (पगल्यों) की पूजा होती रही है. पगल्यों की पूजा रामदेव जी से भी पहले समण परम्परा में होती रही है और रामदेव जी ने भी उसी परम्परा को आगे बढाया था. उसी परम्परा को उनके परम अनुयायी रिखिये (मेघवाल) चाँदी-सोने के लोकेट (फूल) के रूप में अपने गले में धारण करते आये है और वही पगल्ये मेघ रिखों की बस्ती में बाबा रामदेव जी के प्राचीन थान या देवरे में मुख्य आस्था के केंद्र के रूप में रहे. उसके अलावा शताब्दियों से उनकी कोई मूर्ति, घोडा या अन्य चीज़ें कहीं अस्तित्व में नही रही.

बाबा रामदेव जी के मंदिर कालांतर में तब से बनने लगे जब पहली बार बाबा रामदेव जी की समाधि (मज़ार) के तीन सौ बरसों के बाद एक भक्त कवि आया – हरजी भाटी. हरजी भाटी ने पहले-पहल खुद ही बाबा रामदेव जी के भजन बनाकर गाने शुरू किये कि उन्हें बाबा रामदेव जी ने साक्षात् दर्शन दिए और उन्हें बाबा रामदेव जी का ब्यावला गाने का हुक्म हुआ है. उन्होंने ही ऐसे भजन रचे जिसमें सिर्फ बाबा रामदेव जी के चमत्कारपपूर्ण पर्चे थे. उससे पूर्व सिर्फ बाबा रामदेव जी की चौबीस प्रमाण बाणियों का गायन लोकपरम्परा में बाबे के रिखिये जम्मा-जागरण में अलख उपासना के तौर पर करते थे. हरजी भाटी के बाद बाबे के दर्शन करने वाले और चमत्कारपूर्ण पर्चे लेने वाले भक्तों की बाढ़ सी आ गई जिससे बाबे की अलख उपासना का गुप्त मार्ग पाखंड में बदल गया.

हरजी भाटी के बाद रिख परम्परा के निज़ारी नेजाधारी अलख संत पुरुष अचानक से अलौकिक रूप से बिना जन्म लिए अजमल घर पालने में प्रकट हो गए और वे अजमल घर अवतारी, रामा कंवर, रणुचे के राजा और तरह-तरह के चमत्कार दिखाने वाले बन गये. साधारण से लोगों के बीच साधारण रूप में अपनी अलख सदवाणी और जम्मा जागरण जगाने वाले बाबा ओझल हो गए. हरजी भाटी के ब्यावले मशहूर होने के बाद से ही बाबा रामदेव की मोर-मुकुट धारी दुल्हे रूप की छवियाँ हर जगह बनने लगी. साधारण से लोगों के बीच से उठकर साधारण से वस्त्र पहनने वाले और साधारण से क्रियाकलाप करने वाले बाबा रामदेव पीर अचानक से संत-सद्गुरु से कृष्ण के अवतार बना दिए गए और सदियों से साधारण जन की लोक आस्था के प्राचीन थान-देवरे विशाल मंदिर में तब्दील हो गए.

बाबा रामदेव जी के समय से रिखियों द्वारा मौखिक परम्परागत वाणी व चौबीस प्रमाण बाणियों को अपदस्थ कर हरजी भाटी के बनाये ब्यावले भजनों का असर ये हुआ कि कालान्तर में मूर्तिकारों और चित्रकारों ने बाबा रामदेव जी को सामंती दूल्हे के रूप में बनाना शुरू किया. उनके चित्रों में सर पर मोर-मुकुट, कलंगी, तुर्रे, गले में वरमाला, हाथ में भाला, ढाल, दायें-बाये हरजी भाटी और लाछा-सुगना आरती करते हुए काल्पनिक चित्र खूब धडल्ले से छपने लगे. बाबा का घोडा भी पूर्ण श्रृंगार और सोने-चाँदी, मोती से लक-दक दर्शाया जाने लगा. हरजी भाटी खुद हर की आरती उतारते हुए चित्रों में विराजमान हो गए. अतिश्योक्ति पूर्ण दोहे बन गए – केशरियो बागे बणीयों/तुर्रे तार हजार/ दिल्ली हंदा बादशाह/ज्यो रामो राज कुंवार. रामदेवजी की मूल चौबीस प्रमाण वनियों में भी मनमाने ढंग से फेरबदल कर कर कहीं-कहीं उन्हें ‘राजा रामदे’ भी लिखा जाने लगा.

यह तथ्य भी गौर करने योग्य है कि बाबा रामदेव जी के समय के राजे, महाराजे और जागीरदारों आदि किसी ने किसी भी तरह से उनकी संगत नही की थी. उलटे उनके द्वारा अछूत माने जाने लोगों के बीच ज्ञान-ध्यान की बातें करने और उनके बीच रहने-खाने के कारण उन्हें अछूतों का देव, रामो तम्बूरियों आदि अपमान जनक ओखानों से पुकारा जाने लगा था. हरजी भाटी द्वारा उन्हें अजमल घर अवतार घोषित किये जाने और चमत्कारी पर्चे भजनों में गए जाने के बाद कई बड़ी रियासतों के राजाओं ने अपनी छबियाँ बाबा रामदेव जी के चित्रों के साथ छपवा कर साधारणजन में पूजवा दी. कई लोगों के घरों में ये छबियाँ मौजूद है लेकिन साधारण जन इस बात से वाकिफ ही नही थे. हरजी भाटी के बाद बाबा रामदेव जी की उपासना में पद्धति में आये बदलाव को आप चित्रों में भी देख सकते हो.

बाबा रामदेव जी की आध्यात्मिक लोकधारा को दृष्टिगत रखते हुए हमें एक बार फिर से इन चित्रों को ध्यान से देखने-समझने की जरूरत है. क्या बाबा रामदेव जी की आध्यात्मिक लोक परम्परा और चौबीस प्रमाण वानियाँ पढने-सुनने के बाद भी हम इन चित्रों पर यकीन कर सकते है. वास्तव में बाबा रामदेव जी के अल्प जीवन दर्शन को देखा जाय तो वे बिलकुल एक साधारण से सूफी-संत सद्गुरु थे. ऐसे ही जैसे साधारण लोगों के बीच ज्ञान मार्ग की बानियाँ गाने वाले कबीर, रैदास, नानक, गोरखनाथ आदि थे. आखिर वे भी तो उसी परम्परा के थे. वे साधारण पगड़ी, साधारण कुर्ता, धोतिया, पगरखी पहने और वीणा हाथ में रखे महामानव थे. वे न तो कोई रजवाडी ढाल, तलवार, भाला लेकर सामंतों की भांति सिंहासन पर बैठते थे और न ही ऐसे सज्जित होकर घोड़े पर घूमते रहते थे.

अब अपने घर में टंगी बाबा रामदेव जी की प्रचलित तस्वीर को एक बार ज़रा गौर से दिखिए. चित्रकारों ने रामदेवजी पीर के लगभग तीन सौ साल बाद पैदा हुए हरजी भाटी द्वारा रामदे पीर के विवाहादी प्रसंग काव्य-भजनों (ब्यावला) को आधार मानकर क्या-क्या नहीं दर्शा दिया है –

1/ बाबा रामदेव से एक दिन पहले डालीबाई ने समाधि ले ली थी फिर चित्र में उन्होंने बाबा रामदेव की समाधि पर झालर कैसे बजाय होगा?

2/ डालीबाई और रामदेव जी के समाधि लेने के तीन शताब्दियों बाद जन्में सवर्ण भक्त कवि हरजी भाटी, डाली बाई के साथ कैसे चंवर ढुला सकते है?

3/ इस चित्र में बाबा रामदेव पीर के चित्र/मज़ार के दोनों और गोलाकार घेरे में दो-दो (कुल चार) जिन राजाओं के फोटो उकेरे गए है उबका बाबा रामदेव जी के जीवन दर्शन के साथ क्या संबंध है? आदि-आदि.

इस तरह गौर से देखे तो आज तक प्रचलित चित्रों का बाबा रामदेव जी के तत्कालीन व्यक्तित्व व कृतित्व से सीधा कोई संबंध नही लगता. बाबा रामदेव पीर के संबध में तत्कालीन रिख समुदाय द्वारा परम्परागत रूप से गाई जाने वाली चौबीस प्रमाण वाणी और मौखिक गायन को थोडा बहुत प्रमाण माना भी जा सकता है लेकिन बाबा रामदेव पीर के निर्वाण पश्चात लगभग तीन सदी के अंतराल बाद हुए भक्त कवियों की बाढ़ से अचानक उनकी परम्परागत वाणियों को छोड़कर सिर्फ बाबा रामदेव जी का गुणगान, अतार्किक, अतिश्योक्तिपूर्ण व अप्राकृतिक चमत्कार से भरी गाथाएं बिलकुल अविश्वासनीय लगती है. लेकिन जिन्हें हर बात में सत्य की बजाय केवल और केवल आस्था व वर्चस्ववाद को ही पोषित करना है उनके लिए सदियों से वह रहेगा और उसका प्रचार-प्रसार भी ज्यादा होगा, जो डोमिनेंट होगा वह साम, दाम, दंड, भेद से अपने मनोरथ पूरा करता है.

खैर जो भी हो, मगर आज तक बाबा रामदेव पीर के संबंध में तत्कालीन मौखिक रिखी परम्परागत से जो चला आ रहा है और उसके बाद जितना भी गाया या लिखा गया हैं उसके आधार पर बाबा रामदेव के जन्म, समुदाय, समाधि के संबंध में कोई भी ठोस और सत्य पता नही चलता है. सिर्फ अपनी मति अपने मत ही चलते आ रहे है. इससे कुछ और साबित हो न हो लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वे सच्चे मायने में लोकमान्य प्रचेता थे. लोकमान्य महामानव वही हो सकता है जो किसी समुदाय विशेष से संबंधित न हो, जैसे ही किसी को जाति-समुदाय में कैद किया जाता है उनकी मूल शिक्षाएं खत्म हो जाती है और वह एक जाति विशेष के अभिमान और कमाई का जरिया बन जाता है. फिर भी आज तक जितना उन्हें जाति, माता-पिता, जन्म-समाधि और पर्चे-चमत्कार के रूप में भिन्न-भिन्न रूप में दर्शाया गया वे अगर किसी न किसी रूप में ठीक भी हैं और गलत भी; तो इसके लिए कोई हठाग्रह नही किया जा सकता.

इन सभी को ध्यान में रखकर, इस आधार पर उनके प्रचलित मत और चित्रों की जगह बाबा रामदेव पीर के संबंध में मेघ रिख समुदाय के मत और बाबा रामदेव पीर के परम उपासक रामचन्द्र कडेला मेघवंशी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक बाबा रामदेव और रिखिया : इतिहास, साहित्य एवं परम्परा के आधार पर कुछ रेंडमली चित्र बनाकर आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रहा हूँ. इन्हें देखिये, परखिये और आलोचना कीजिये ताकि इसके आधार पर एक बेहतरीन बड़ा चित्र बनाया जा सके जो बाबा रामदेव पीर के व्यक्तित्व-कृतित्व को अब तक के प्रचलित मत-मतान्तरों से जुदा एक और मत को दर्शा सके. ताकि जो लोग इसे फ़ॉलो करते है कम से कम उनके घरों में तो ये चित्र शोभायमान हो सके. पिछली बार जो स्केचेज बनाये थे वे सराहे भी गए थे और आलोच्य भी रहे, लेकिन वे बाबा रामदेव पीर की आध्यात्मिक लोकक्रांति की जगह किसी सामंती व्यक्तिव को दर्शा रहे थे. आगे की कुछ पोस्ट नये स्केचेज के लिए.

(जारी ...)

Pura Ram

(चित्र सौजन्य - गूगल इमेज)

बाबा साहेब आंबेडकर के द्वारा "अलग निर्वाचक मंडल" (कम्युनल अवर्ड) की मांग को ब्रिटिश सरकार ने मान लिया था. लेकिन रूढ़ीवाद...
12/08/2024

बाबा साहेब आंबेडकर के द्वारा "अलग निर्वाचक मंडल" (कम्युनल अवर्ड) की मांग को ब्रिटिश सरकार ने मान लिया था. लेकिन रूढ़ीवादी एमके गांधी ने अलग निर्वाचक मंडल का कड़ा विरोध किया.

डॉ आंबेडकर को हातोत्सहित करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने दलित वर्ग से उस वक़्त के महान क्रिकेटर बालू पालवानकर को कम्युनल अवर्ड का विरोध करने के लिए राजनीति के मैदान में उतारा.

◆◆
कांग्रेस पार्टी के ब्राह्मण नेताओं ने कहा अलग निर्वाचक मंडल अधिकार देशहीत में नही है. इसी कारण बालू पालवानकर इसके विरोध में हैं. बालू पालवानकर ने मुखर होकर गांधी का साथ दिया. और गांधी के आमरण अनशन को सही ठहराया.

जिस व्यक्ति को डॉ आंबेडकर का साथ देना चाहिए था, वह उनका प्रतिद्वंदी बनकर ब्राह्मण समूह के पक्ष में लड़ रहा था. दलित नेता एम.सी राजा और बालू पालवानकार ने डॉ आंबेडकर पर भारी दबाव बनाकर समझौता करने पर विवाश किया.

◆◆
1932 में "अलग निर्वाचक मंडल" अधिकार की हत्या कर डॉ आंबेडकर और गांधी के बीच पूना पैक्ट साइन हुआ. ब्राह्मण पक्ष के तरफ से साइन करने वालों में मदन मोहन मालवीय तो थे ही, साथ में बालू पालवानकार के भी हस्ताक्षर किया था.

इस तरह जबरन "अलग निर्वाचक मंडल" अधिकार छीनकर आरक्षण थमा दिया गया. और आरक्षण को भी अब छीनना चाहते हैं.

◆◆
डॉ आंबेडकर, ब्राह्मणों के कारण नही हारे. उन दलित वर्ग के नेताओं के कारण हारे जो ब्राह्मण समूह के पक्ष में खड़े होकर डॉ आंबेडकर के प्रतिद्वंदी बन गए.

BSP, SP और RJD ने नेता - ब्राह्मण ठाकुर वोटों के कारण ना जीतते हैं ना हारते हैं. यह दल ओबीसी एससी एसटी समाज में मौजूद बालू पालवानकर जैसे ग़द्दारों के कारण हारते हैं.

Address

Sikar

Telephone

+918739847186

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Jai Bhim Force posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Jai Bhim Force:

Share