29/11/2025
एक थी बुढ़िया। उसका एक पोता था। पोता रोज रात में सोने से पहले दादी से कहानी सुनता। दादी रोज उसे तरह-तरह की कहानियाँ सुनाती।
एक दिन मूसलाधार बारिश हुई। ऐसी बारिश पहले कभी नहीं हुई थी। सारा गाँव बारिश से परेशान था। बुढ़िया की झोंपड़ी में पानी जगह-जगह से टपक रहा था टिपटिप-टिपटिप। इस बात से बेखबर पोता दादी की गोद में लेटा कहानी सुनने के लिए मचल रहा था। बुढ़िया खीझकर बोली अरे बचवा, का कहानी सुनाएँ? ई टिपटिपवा से जान बचे तब न!
पोता उठकर बैठ गया।
उसने पूछा- दादी, ये टिपटिपवा कौन है? टिपटिपवा क्या शेर-बाघ से भी बड़ा होता है?
दादी छत से टपकते हाँ हुए पानी की तरफ़ देखकर बोली बचवा, न शेरवा के डर, न बघवा के डर। डर त डर, टिपटिपवा के डर
संयोग से मुसीबत का मारा एक बाघ बारिश से बचने के लिए झोंपड़ी के पीछे बैठा था। बेचारा 'बाघ बारिश से घबराया हुआ था। बुढ़िया की बात सुनते ही वह और डर गया।
अब यह टिपटिपवा कौन-सी बला है? जरूर यह कोई बड़ा जानवर है। तभी तो बुढ़िया शेर-बाघ से ज्यादा टिपटिपवा से डरती है। इससे पहले कि बाहर आकर वह मुझ पर हमला करे, मुझे ही यहाँ से भाग जाना चाहिए।
बाघ ने ऐसा सोचा और झटपट वहाँ से दुम दबाकर भाग चला।
उसी गाँव में एक धोबी रहता था। वह भी बारिश से परेशान था। आज सुबह से उसका गधा गायब था। सारा दिन वह बारिश में भीगता रहा और जगह-जगह गधे को ढूँढ़ता रहा लेकिन वह कहीं नहीं मिला।
धोबी की पत्नी बोली- जाकर गाँव के पंडित जी से क्यों नहीं पूछते ? वे बड़े ज्ञानी हैं। आगे-पीछे, सबके हाल की उन्हें खबर रहती है।
पत्नी की बात धोबी को जँच गई। अपना मोटा लट्ठ उठाकर वह पंडित जी के घर की तरफ चल पड़ा। उसने देखा कि पंडित जी घर में जमा बारिश का पानी उलीच-उलीचकर फेंक रहे थे ।
धोबी ने बेसब्री से पूछा-महाराज, मेरा गधा सुबह से नहीं मिल रहा है। जरा पोथी बाँचकर बताइए तो वह कहाँ है?
सुबह से पानी उलीचते-उलीचते पंडित जी थक गए थे। धोबी की बात सुनी तो झुंझला पड़े और बोले मेरी पोथी में तेरे गधे का पता ठिकाना लिखा है क्या, जो आ गया पूछने? अरे, जाकर ढूँढ़ उसे किसी गढ़ई-पोखर में।
और पंडित जी लगे फिर पानी उलीचने। धोबी वहाँ से चल दिया। चलते-चलते वह एक तालाब के पास पहुँचा। तालाब के किनारे ऊँची-ऊँची घास उग रही थी। धोबी घास में गधे को ढूँढ़ने लगा। किस्मत का मारा बेचारा बाघ टिपटिपवा के डर से वहीं घास में छिपा बैठा था। धोबी को लगा कि बाघ ही उसका गधा है। उसने आव देरता न ताव और लगा बाघ पर मोटा लट्ठ बरसाने। बेचारा बाघ इस अचानक हमले से एकदम घबरा गया।
बाघ ने मन ही मन सोचा लगता है यही टिपटिपवा है। आखिर इसने मुझे ढूँढ़ ही लिया। अब अपनी जान बचानी है तो यह जो कहे, चुपचाप करते जाओ।
आज तूने बहुत परेशानं किया है। मार-मारकर मैं तेरा कचूमर निकाल दूँगा - ऐसा कहकर धोबी ने बाघ का कान पकड़ा और उसे
खींचता हुआ घर की तरफ़ चल दिया। बाघ बिना चूँ-चपड़ किए भीगी बिल्ली बना धोबी के पीछे-पीछे चल दिया। घर पहुँचकर धोबी ने बाघ को खूँटे से बाँध दिया और सो गया।
सुबह जब गाँव वालों ने धोबी के घर के बाहर खूँटे से एक बाघ को बँधे देखा तो उनकी आँखें खुली की खुली रह गईं।