26/10/2025
किस्त-1
मुख्यमंत्री के महकमे में विज्ञापन की "नायाब'लूट
सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग के अद््भुत कारनामे, एक बानगी सिरसा की
- अखबार छपता है 500, सरकार से लिया 3 करोड़ से भी अधिक का विज्ञापन
- अखबार छपता है 300, सरकार से लिया अब तक 1.5 से 2 करोड़ तक का विज्ञापन
- साप्ताहिक फाईल पेपर को मिला 10 लाख से अधिक का विज्ञापन, न छपने वाले अखबार को भी दिया 15 लाख से अधिक का विज्ञापन
- भाजपा नेता भी हुए जागरूक, कालांवाली से प्रकाशित होने वाले अखबार की शिकायत, सिरसा वाले भी रडार पर, जांच एवं रिकवरी की मांग
सिरसा।
हरियाणा के मुख्यमंत्री के अधीन आने वाले सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग में विज्ञापन की "नायाब" लूट चल रही है। इस लूट काे रोकने के लिए न तो सत्तापक्ष कुछ कर रहा है और न ही विपक्ष आवाज उठा रहा है। फाईल पेपर एवं फर्जी सरकूलेशन के आधार पर जिन्हें विज्ञापन दिए जा रहे हैं उनसे पक्ष-विपक्ष दोनों की सांठगांठ दिख रही है। अगर जांच की जाए तो इस लूट के मास्टर माइंड सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग में बैठे उच्च पदस्थ अधिकारी बेनकाब होंगे। वैसे सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग भाजपा सरकार में अरबों रूपए के विज्ञापन प्रदेश एवं प्रदेश से बाहर के विभिन्न नियमित प्रकाशित होने व न होने वाले समाचार पत्रों को बांट चुका है। इतना ही नहीं ज्यादातर विज्ञापन ऐसे अखबारों को दिए गए हैं जो कागजों में हकीकत से 20 से 30 गुणा अधिक प्रकाशित एवं प्रसारित हो रहे हैं। यानि हकीकत में प्रकाशित होते हैं 500 से 1000 और कागजों में दिखा रखे हैं 20 से 30 हजार। हरियाणा में एक अखबार तो ऐसा है जो हरियाणा में ही 14 जगह से प्रकाशित दिखाया हुआ है। अगर जांच कर ली जाए तो हकीकत में उसकी प्रसार संख्या पूरे हरियाणा में 5 से 10 हजार मिलेगी लेकिन कागजों में उसने 4 से 5 लाख दर्शा रखी है जिसकी एवज में उसने सरकार से 250/- रूपए प्रति स्कवेयर सेंटीमीटर रेट निर्धारित करवा रखा है। इतनी सरकूलेशन तो वास्तव में हरियाणा में सबसे ज्यादा प्रसारित होने वाले अखबार की भी नहीं है। उक्त अखबार एक भाजपा विधायक के बेटे का है और वह भाजपा सरकार में करोड़ों-करोड़ रूपए के विज्ञापन ले चुका है। ये तो एक अखबार की बात है, ऐसे अनेकों अखबार हैं जिनकी प्रसार संख्या वास्तव में ना के बराबर है लेकिन सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग उन पर पूरी तरह से मेहरबान है। एेसा नहीं है कि विभाग, सत्तापक्ष एवं विपक्ष को इस बात की जानकारी नहीं है उन्हें सबकुछ पता होते हुए प्रदेश का खजाना लूटाने में लगे हुए हैं।
खैर आज हम बात करते हैं सिरसा से प्रकाशित होने वाले अखबारों की जिन्हें भाजपा सरकार में सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग द्वारा करोड़ों के विज्ञापन दिए गए हैं। सरकार को जगाने व सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग, हरियाणा को बेनकाब करने के लिए ये सिलसिला हम सिरसा से शुरू कर रहे हैं और यह निरंतर जारी रहेगा जब तक सरकार गलत ढंग से दिए गए विज्ञापन की राशि की रिकवरी नहीं कर लेती। सिरसा के बाद फतेहाबाद, हिसार, जींद, भिवानी, रोहतक, कैथल सहित प्रदेश व प्रदेश से बाहर जिन्हें सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग,हरियाणा विज्ञापन दे रहा है उनकी पोल खोलने का काम करेंगे। इतना ही नहीं सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग हरियाणा द्वारा गैर पत्रकारों के किए गए एक्रीडेशन का भी भंडाफोड़ करने का काम करेंगे। विभाग द्वारा फर्जी कागजों के सहारे एक्रीडेशन करवाने वाले अखबार संचालकों के साथ मिलकर एेसे लोगों के एक्रीडेशन किए गए हैं जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं है।
बात सिरसा की : हरियाणा सरकार के सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। विभाग की ओर से सिरसा जिले में प्रकाशित होने वाले कई छोटे, सीमित प्रसार वाले समाचार पत्रों को करोड़ों रुपये के सरकारी विज्ञापन दिए जाने के चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं। विज्ञापन नीति की पारदर्शिता और जवाबदेही पर अब गंभीर प्रश्नचिह्न लग गया है।
सूत्रों के अनुसार, सिरसा जिले में एक ऐसा अखबार है जिसकी वास्तव में छपाई मात्र 500 प्रतियों की बताई जा रही है, लेकिन उसे विभाग द्वारा तीन करोड़ रुपये से अधिक के विज्ञापन जारी किए गए। ये अलग बात है कि कागजों में उसने अपनी प्रसार संख्या 20 हजार से भी अधिक दिखाई हुई है। यही नहीं, एक अन्य प्रकाशन, जिसकी दैनिक छपाई वास्तव में केवल 300 प्रतियाँ बताई जाती है, उसे भी अब तक डेढ़ से दो करोड़ रुपये तक के विज्ञापन आवंटित किए जा चुके हैं। मजेदार बात तो यह है कि कुछ वर्ष पूर्व इन दोनांे अखबारों ने एक-दूसरे की िशकायत विभाग से की। बताया जा रहा है कि उस समय एक ने तो विभाग को लिखकर भी दे दिया था कि मुझे सरकरी विज्ञापन नहीं चाहिए। एक बारगी उक्त अखबार का विज्ञापन बंद भी कर दिया गया लेकिन मामला शांत एवं सेटिंग हाेने के बाद एक-दो साल बाद फिर दोबारा विज्ञापन शुरू करवा लिया गया।
"सच" की बात करने वाले डेरे भी इस लूट से अछूते नहीं है। डेरे के अखबारों को भी भाजपा सरकार में हरियाणा के सूचना, जनसम्पर्क एवं भाषा विभाग द्वारा करोड़ों के विज्ञापन दिए जा चुके हैं।
मामला यहीं समाप्त नहीं होता। जानकारी के मुताबिक, एक साप्ताहिक फाइल पेपर (जो विज्ञापन वाले दिन छपता है रिकॉर्ड कॉपी, कागजों में दिखाई हुई है हजारों में प्रसार संख्या) को भी एक-डेढ़ साल की अवधि में 10 लाख रुपये से अधिक का सरकारी विज्ञापन दिया गया, जबकि न छपने वाले अखबार को 15 लाख रुपये से अधिक का विज्ञापन जारी किया जा चुका है। यह सब उस समय हुआ जब विभाग के पास विज्ञापन जारी करने से पहले अखबारों की सत्यापित प्रसार संख्या की व्यवस्था मौजूद है और जिले में विभाग को जिला अधिकारी तैनात है।
भाजपा नेताओं ने भी उठाई आवाज
मामले के तूल पकड़ने के बाद अब सत्तारूढ़ दल के कुछ भाजपा नेताओं ने भी इस पर आपत्ति जताई है। जानकारी के अनुसार, कालांवाली से प्रकाशित होने वाले एक अखबार के खिलाफ भाजपा नेता ने सोशल मीडिया पर खुलकर लिखा है कि छपती नहीं है एक कॉपी, 5000 दिखाकर ले रहे हैं करोड़ों के विज्ञापन और साथ ही कहा है कि वे सरकार को शिकायत दर्ज करवायेंगे। नेताओं ने कहा कि कुछ “कागज़ी अखबारों” ने विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी धन का दुरुपयोग किया है।
जांच और रिकवरी की मांग तेज
इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग भी उठनी लाजिमी है। सरकार को चाहिए कि जिन प्रकाशनों ने अपने प्रसार के झूठे आंकड़े देकर विज्ञापन प्राप्त किए हैं, उनसे संपूर्ण राशि की रिकवरी की जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ विजिलेंस जांच कराई जाए। हालांकि सूत्र बताते हैं कि यह केवल सिरसा तक सीमित नहीं, बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों में भी जांच करने में ऐसे कई उदाहरण मिल सकते हैं, जहाँ नाममात्र के अखबारों को लाखों रुपये के विज्ञापन जारी किए गए। अपनी इस सीरीज़ में नगर यात्रा ऐसे अखबारों को बेनकाब करने का काम करेगा।
जानकारों का कहना है कि सरकारी विज्ञापन का उद्देश्य आम जनता तक सरकारी योजनाओं की जानकारी पहुँचाना होता है, लेकिन यदि विज्ञापन ऐसे प्रकाशनों को दिए जाएँ जो वास्तविक रूप से जनता तक पहुँच ही नहीं पाते, तो यह न केवल नीति के खिलाफ है, बल्कि जनता के कर के पैसों की खुली लूट भी है।
यह मामला हरियाणा में सरकारी विज्ञापन वितरण प्रणाली की पारदर्शिता, जवाबदेही और मीडिया नीति की वास्तविकता पर एक गहरा सवाल खड़ा करता है। अब देखना यह है कि सरकार इस पर क्या कार्रवाई करती है? क्या दोषियों पर गाज गिरेगी या फिर यह मामला भी अन्य कई मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा?