09/11/2025
रिपोर्ट कार्ड:- सीतामढ़ी विधानसभा प्रत्याशी सुनील कुमार पिंटू
सीतामढ़ी विधानसभा और पिंटू परिवार की कहानी
आजादी के कुछ ही साल बाद 1962 में सीतामढ़ी विधानसभा सीट पर सुनील कुमार पिंटू के दादा किशोरी लाल शाह ने जीत दर्ज की थी। वे उस समय कांग्रेस के नेता हुआ करते थे और 1967 तक सीतामढ़ी का प्रतिनिधित्व किया। 1967 में जब कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो परिवार की राजनीतिक विरासत कुछ समय के लिए थम गई।
फिर 1990 में पिंटू के पिता हरिशंकर प्रसाद ने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के शहीद अली खान से करीब छह हजार वोटों से हार गए। 1995 में उन्हें बीजेपी से टिकट मिला और वे 1533 वोटों के अंतर से विधानसभा पहुँचे। 2000 के चुनाव में राजद के शहीद अली खान ने हरिशंकर प्रसाद को केवल 35 वोटों से हराया। मामला कोर्ट में गया और 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने हरिशंकर प्रसाद को विजेता घोषित किया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनका निधन हो गया।
इसके बाद परिवारवाद के विरोध की राजनीति करने वाली बीजेपी ने 2005 में हरिशंकर प्रसाद के बेटे सुनील कुमार पिंटू को टिकट दिया। पिंटू ने 2005 के दोनों चुनावों में जीत दर्ज की और 2010 में भी विधायक बने। इस बार उन्हें पर्यटन मंत्री भी बनाया गया। 2015 के चुनाव में उन्हें राजद उम्मीदवार सुनील कुशवाहा ने हरा दिया। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह के इशारे पर पिंटू को जदयू की सदस्यता लिए बिना ही टिकट दे दिया गया। बाद में उन्होंने जदयू जॉइन किया और मोदी लहर के सहारे जनता ने उन्हें संसद भेज दिया।
सीतामढ़ी की जनता ने पिंटू और उनके परिवार पर लगातार भरोसा किया। लेकिन सवाल यह है कि बदले में सीतामढ़ी को आखिर क्या मिला।
2009 में जिस ओवरब्रिज का शिलान्यास हुआ था वह आज तक अधूरा है। उसी जाम में फंसकर कितने लोगों ने अपने अपने करीबी को खो दिया क्योंकि वे समय पर अस्पताल नहीं पहुँच पाए।
शहर में दिनभर जाम लगा रहता है। निकलना किसी मुसीबत से कम नहीं। सार्वजनिक शौचालय नहीं हैं, लोगों को सड़क किनारे खड़ा होना पड़ता है। महिलाओं के लिए यह और बड़ी समस्या है।
अस्पतालों की हालत बदतर है। पीएचसी से लेकर जिला अस्पताल तक डॉक्टरों की भारी कमी है। इलाज के नाम पर बस खानापूर्ति है।
कॉलेजों में प्रोफेसर नहीं हैं और कई स्कूलों के पास अपनी बिल्डिंग तक नहीं है। छात्र पेड़ों की छांव में या खुले में बैठकर पढ़ते हैं। यहां एक यूनिवर्सिटी की सख्त जरूरत है लेकिन न सत्ताधारी और न विपक्ष किसी के लिए यह मुद्दा नहीं है। छात्रों को 70 से 80 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर या दरभंगा जाना पड़ता है।
सड़कें टूटी हुई हैं और शहर के बीचोंबीच रिंग रोड पर चलना भी मुश्किल है। हत्या की घटनाएं अब यहां आम बात हो चुकी हैं। लगभग हर दूसरे या तीसरे दिन कोई न कोई मारा जा रहा है।
इतने मौके देने के बाद भी क्या मिला?
शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, सफाई हर मोर्चे पर नाकामी है। फिर भी लोग जात और पहचान के नाम पर वोट दे रहे हैं। सोचिए इतने सालों में पिंटू ने आखिर सीतामढ़ी को क्या दिया।
आप उसी गंदगी से भरे शहर में रह रहे हैं जहां घर से निकलते ही जाम शुरू हो जाता है। नालों का पानी सड़कों पर बहता है, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं, कॉलेजों में शिक्षक नहीं।
वो नेता आपके सुख-दुख में शामिल नहीं होता। जीतने के बाद गांव तक में नहीं आता। उल्टे अमेरिका में रहता है।
अबकी बार सोचिए
जो आदमी इतने मौके मिलने के बाद भी कुछ नहीं कर पाया उसे बार-बार क्यों जिताना। उसके परिवार का पेट राजनीति से भर रहा है लेकिन आपको ढंग की शिक्षा, सड़क या अस्पताल तक नहीं मिला।
11 तारीख को वोट देने से पहले एक बार जरूर सोचिए कि इस आदमी की जीत से आपका क्या भला होने वाला है या फिर वही पुराने वादे, वही पुराना जाम और वही दर्द मिलने वाला है।
अगर आप उसे हराते हैं तो आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा बल्कि शायद सीतामढ़ी की कहानी बदलने की शुरुआत वहीं से होगी।
मतदाता व सीतामढ़ी का शुभचिंतक🤦🏻