14/06/2025
यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने अपने लालच के जाल में पहले अपने भाइयों को, फिर गाँव वालों को, और अब उसके बेटे अपनी बहन की शादी के बहाने अपने दोस्तों को फँसा रहे हैं। खास तौर पर यह कहानी उसके दूसरे बेटे की है।
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यह एक real स्टोरी है.
**लालच का जाल**
किसी गाँव में रामू नाम का एक व्यक्ति रहता था। रामू कभी गरीब था, उसकी सारी ज़मीन गिरवी थी। उसके तीन बेटों—मोहन, सोहन, और रोहन—के पास अच्छे कपड़े तक नहीं थे। रामू कोई साहूकार नहीं था, बल्कि गाँव के साधारण लोगों जैसा ही था। लेकिन उसके मन में पैसों का लालच इस कदर घर कर गया था कि वह उल्टे-सीधे तरीकों से धन कमाने लगा।
रामू ने पहले अपने तीनों भाइयों—श्याम, घनश्याम, और बलराम—को अपने लालच का शिकार बनाया। वह उनसे उधार लेता, छोटी-मोटी मदद माँगता, और फिर हिसाब में ऐसी चालाकी करता कि ब्याज के नाम पर उनकी ज़मीन और संपत्ति हड़प लेता। धीरे-धीरे उसने अपने भाइयों को कंगाल कर दिया। गाँव वाले हैरान थे कि रामू, जो कभी गरीब था, अब इतना मालामाल कैसे हो गया? लेकिन उसका लालच यहीं नहीं रुका।
रामू ने गाँव के हर व्यक्ति को अपने जाल में फँसाना शुरू किया। वह पहले लोगों का भरोसा जीतता—कभी किसी को थोड़ा उधार देता, कभी किसी की छोटी मदद करता। फिर समय बीतने पर वह हिसाब में ऐसी हेराफेरी करता कि लोग उसका कर्ज़ चुकाने के लिए अपनी ज़मीन, गहने, या सामान तक गँवा बैठते। गाँव वाले उससे डरने लगे, लेकिन रामू का लालच बढ़ता ही गया।
अब रामू के तीनों बेटों ने भी अपने पिता का रास्ता अपनाया। वे अपनी बहन की शादी के बहाने अपने दोस्तों को शिकार बनाने लगे। यह कहानी खास तौर पर रामू के दूसरे बेटे, सोहन, की है।
सोहन बड़ा चालाक था। वह अपने दोस्तों का भरोसा जीतने में माहिर था। वह अपने दोस्तों की ज़रूरत के समय उनकी मदद करता—कभी 500 रुपये, कभी 1000 रुपये उधार देता। उसके दोस्त वो रकम लौटा भी देते फिर भी वो अपने बही खाते से उनका हिसाब नहीं काटता दोस्तों को उसकी मक्कारी का पता नहीं था। इस लिए दोस्त समझते की मदद कर रहा है और एक अच्छा दोस्त है और कहते भाई तूने हमारी बुरे वक्त में मदद की है हमारी कभी जरूरत हो तो बताना जान हाजिर है तेरे लिए तो वह दोस्तों से कहता, "तुम मेरी बहन की शादी में मदद करना।" दोस्त उसकी बात मानते और शादी के लिए सामान—कपड़े, बर्तन, या गहने—लाकर दे देते। सोहन बड़े प्यार से सामान ले लेता और दोस्तों को भरोसा दिलाता कि वह इसका हिसाब रखेगा।
लेकिन कुछ समय बाद, जब दोस्त उससे अपना सामान या उसकी कीमत माँगने आते, सोहन अपनी चाल चलता। वह कहता, "अरे, तुमने जो सामान दिया था, उसकी कीमत तो बहुत ज्यादा हो गई है। अब ब्याज के साथ इतना देना होगा!" वह इतनी बड़ी रकम माँगता कि दोस्त हैरान रह जाते। कोई सामान वापस लेने की हिम्मत नहीं करता, क्योंकि सोहन की माँगी रकम सामान की कीमत से कहीं ज्यादा होती। लोग सोचते कि सामान छोड़ देना ही बेहतर है। इस तरह सोहन अपने दोस्तों को ठगता और अपनी बहन की शादी के नाम पर धन बटोरता।
सोहन के भाई, मोहन और रोहन, भी यही काम करते। तीनों भाइयों ने मिलकर अपने दोस्तों को एक-एक करके अपने लालच का शिकार बनाया। गाँव में अब लोग रामू और उसके बेटों से दूरी बनाने लगे, लेकिन जो नए लोग उनके जाल में फँसते, वे भी ठगे जाते।
रामू और उसके बेटों का लालच दिन-ब-दिन बढ़ता गया। लेकिन कहते हैं न, लालच का फल कभी अच्छा नहीं होता। एक दिन गाँव वालों ने मिलकर ठान लिया कि अब वे रामू और उसके बेटों की चालाकी को बेनकाब करेंगे। क्या हुआ, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन यह कहानी हमें सिखाती है कि लालच का रास्ता भले ही शुरू में चमकदार लगे, लेकिन वह हमेशा अंधेरे की ओर ले जाता है।
यह एक सच्ची कहानी है
और ये कहानी उस व्यक्ति की कहानी से काफी मेल खाती है
हालांकि इस कहानी को लिखा तो मैने ही है,पर थोड़ा मोडिफाई कर दिया है
समझने वाले समझ सकते हैं
आप लोग बताइए ऐसे व्यक्तियों को कैसे सुधारा जा सकता है?
या समय के भरोसे छोड़ना बेहतर होगा?
धन्यवाद!