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🌹"वंदे मातरम्" - भारत की आत्मा का स्वर🙏💥 भारत के राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम्” का इतिहास केवल एक गीत की रचना नहीं, बल्कि र...
07/11/2025

🌹"वंदे मातरम्" - भारत की आत्मा का स्वर🙏

💥 भारत के राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम्” का इतिहास केवल एक गीत की रचना नहीं, बल्कि राष्ट्रजागरण की एक अमर गाथा है। 7 नवम्बर 1875 को बंगाल के कांतलपाड़ा गाँव में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इस गीत की रचना की थी। वह समय भारत के इतिहास का अत्यंत संघर्षपूर्ण काल था।

अंग्रेजी दासता ने जनमानस को निराशा, भय और गुलामी की जंजीरों में जकड़ रखा था। ऐसे युग में “वंदे मातरम्” मातृभूमि को देवी के रूप में वंदन करते हुए आत्मगौरव, श्रद्धा और देशभक्ति की अद्भुत ज्वाला बनकर प्रकट हुआ।

1882 में यह गीत बंकिमचन्द्र के प्रसिद्ध उपन्यास “आनंद मठ” में सम्मिलित हुआ। इसके प्रारंभिक दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बांग्ला भाषा में हैं, जो भारत की भाषाई और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक हैं। “वंदे मातरम्” का अंग्रेजी अनुवाद सर्वप्रथम श्री अरविन्द घोष ने किया, जिन्होंने इसे भारतीय राष्ट्र-चेतना की आत्मा कहा।

1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में संगीत सम्राट पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने पहली बार राष्ट्रीय मंच से “वंदे मातरम्” का गायन किया। यह क्षण भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक प्रेरक मोड़ बना। समूचा सभागार राष्ट्रभक्ति से भर उठा, और यह गीत राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बन गया।

1905 के बंग-भंग आंदोलन के दौरान “वंदे मातरम्” ने नारे का रूप धारण किया— यह केवल गीत नहीं, बल्कि स्वतंत्रता का घोष बन गया। 1906 में रविन्द्रनाथ ठाकुर ने इसका संशोधित रूप कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में प्रस्तुत किया।

इसके बाद 1923 के काकीनाड़ा कांग्रेस अधिवेशन में (अध्यक्ष: मौलाना मोहम्मद अली जौहर) पहली बार विरोध के स्वर उठे। जब पुनः “वंदे मातरम्” का गायन प्रारंभ हुआ, तो मौलाना मोहम्मद अली ने इसे “इस्लाम-विरुद्ध” कहकर बीच में रोकने का प्रयास किया। उस समय मंच पर उपस्थित पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने अत्यंत दृढ़ता से उत्तर दिया- “मैं ईश्वर के सामने गा रहा हूँ, किसी व्यक्ति के लिए नहीं।”💥

उन्होंने किसी का अपमान किए बिना गीत का सम्पूर्ण गायन किया, और पूरा सभागार मौन श्रद्धा में खड़ा रहा। यह क्षण “वंदे मातरम्” के गौरव की रक्षा का अमर अध्याय बन गया।

बाद में 1937 में नेहरू, मौलाना आज़ाद, सुभाषचन्द्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव की समिति ने निर्णय लिया कि इसके केवल दो प्रारंभिक पदों का ही राष्ट्रगीत के रूप में गायन किया जाए।

14 अगस्त 1947 की रात्रि को स्वतंत्र भारत की संविधान सभा की पहली बैठक “वंदे मातरम्” से आरंभ और “जन गण मन” से समाप्त हुई। 1950 में इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा मिला, और 2002 में बीबीसी सर्वेक्षण में इसे विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत घोषित किया गया।

👉 वह गीत जिसने स्वतंत्रता आंदोलन की ज्योति को प्रज्वलित किया। जिसने पराधीन भारत को माँ भारती के रूप में देखा- “सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्”— और जिसने असंख्य क्रांतिकारियों को मातृभूमि के लिए प्राण देने की प्रेरणा दी। अंग्रेज़ी सत्ता के कोप और प्रतिबंधों के बावजूद, हमारे पूर्वजों ने वंदे मातरम् का जयघोष बंद नहीं किया। वे गोलियों से मारे गए, फाँसी पर झूले, पर “वंदे मातरम्” की वाणी कभी मौन नहीं हुई।

किन्तु स्वतंत्र भारत में वही गीत राजनीतिक तुष्टिकरण की बलिवेदी पर चढ़ा दिया गया। भारत की जनभावना विरोधी सरकारों ने वंदे मातरम् के केवल दो पदों को ही मान्यता दी जबकि पूरा गीत राष्ट्र की चेतना का प्रतीक था। प्रश्न उठता है कि --

👉 क्या आज भी तथाकथित सेकुलरिज़्म के नाम पर इसकी कीमत राष्ट्र के स्वाभिमान से वसूली जानी चाहिए..?

👉 जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद नहीं कर सका, वह स्वतंत्र भारत की सरकारों ने क्यों किया..?

👉 क्या यह भारतीय संस्कृति और स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्शों के प्रति द्रोह नहीं था..?

👉 क्या आज भी भारत के जन जन के मन मन को स्पर्श करने वाली सरकारें इसको अनुभूत कर पा रही है..?

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का उपन्यास ‘आनंदमठ’ किसी राजनीतिक आग्रह से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण से उपजा था। उसमें वंदे मातरम् वह संजीवनी थी जिसने भारत के संन्यासियों, युवाओं, स्त्रियों— सबमें क्रांति का तेज भर दिया। वही गीत स्वतंत्र भारत में आधा कर दिया गया, जैसे हमारी आत्मसम्मान को आधा करने का प्रयास हो।

अब प्रश्न यह है— “आख़िर किसने हमारे प्रतीकों, हमारी प्रेरणाओं और हमारे हुतात्माओं के सम्मान को नेपथ्य में धकेलने का प्रयास किया?”

वंदे मातरम् केवल एक गीत मात्र नहीं। वह भारत की आत्मा के मूल स्वरों में एक स्वर है। इसे फिर से पूर्ण रूप में गाना, केवल परंपरा नहीं। यह राष्ट्र-निष्ठा का उद्घोष है।

“वंदे मातरम्” केवल शब्दों का संयोजन नहीं। यह भारत के जन जन के मन मन में रमा एक स्वर है, जो हर युग में स्वतंत्रता, आत्मगौरव और मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण की प्रेरणा देता रहेगा।

वंदे मातरम्!🌹🙏
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07/11/2025

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नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डा. चन्द्रशेखर वेंकटरामन - जन्म दिवस 7 नवम्बरबात 1903 की है। मद्रास के प्रेसिडेन्सी कालेज में...
07/11/2025

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डा. चन्द्रशेखर वेंकटरामन - जन्म दिवस 7 नवम्बर

बात 1903 की है। मद्रास के प्रेसिडेन्सी कालेज में बी.ए. में पढ़ाते समय प्रोफेसर इलियट ने एक छोटे छात्र को देखा। उन्हें लगा कि यह शायद भूल से यहाँ आ गया है। उन्होंने पूछा, तो उस 14 वर्षीय छात्र चन्द्रशेखर वेंकटरामन ने सगर्व बताया कि वह इसी कक्षा का छात्र है। इतना ही नहीं, तो आगे चलकर उसने यह परीक्षा भौतिकी में स्वर्ण पदक लेकर उत्तीर्ण की।

वेंकटरामन का जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में 7 नवम्बर, 1888 को हुआ था। उसके पिता श्री चन्द्रशेखर अय्यर भौतिक शास्त्र के अध्यापक तथा प्रख्यात ज्योतिषी थे। माता पार्वती अम्मल भी एक धर्मपरायण तथा संगीतप्रेमी महिला थीं। इस प्रकार उनके घर में विज्ञान, संस्कृत और संगीत का मिलाजुला वातावरण था। उनकी बुद्धि की तीव्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जिस समय अन्य छात्र खेलकूद में ही व्यस्त होते हैं, उस समय वेंकटरामन का एक शोधपत्र प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित हो चुका था।

शिक्षा पूर्ण कर वेंकटरामन ने कोलकाता में लेखाकार की नौकरी कर ली। यह बड़े आराम की नौकरी थी; पर उनका मन तो भौतिक शास्त्र के अध्ययन और शोध में ही लगता था। अतः इस नौकरी को छोड़कर वे कोलकाता विश्वविद्यालय के साइंस कालेज में प्राध्यापक बन गये। इस दौरान उन्हें शोध का पर्याप्त समय मिला और उनके अनेक शोधपत्र विदेशी विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। वे काम के प्रति इतने समर्पित रहते थे कि पढ़ाने के बाद वे प्रयोगशाला में आ जाते थे और कई बार तो वहीं सो भी जाते थे।

किसी भी पुस्तक को पढ़ते समय जो बात समझ में नहीं आती थी, उसे चिन्हित कर वे हाशिये पर क्यों या कैसे लिख देते थे। इसके बाद वे उसकी खोज में जुट जाते थे। इसी जिज्ञासा ने उन्हें महान वैज्ञानिक बना दिया। एक बार इंग्लैण्ड से लौटते समय पानी के जहाज की डेक पर बैठे हुए उन्होंने सोचा कि समुद्र का जल नीला क्यों है ? उस समय यह धारणा थी कि नीले आकाश के प्रतिबिम्ब के कारण ऐसा है; पर उन्हें इससे सन्तुष्टि नहीं हुई। अपने स्वभाव के अनुसार वे इस सम्बन्ध में गहन शोध में लग गये।

सात वर्ष के लगातार शोध के बाद उन्होंने जो निष्कर्ष निकाले उसेे आगे चलकर प्रकाश और उसके रंगों पर ‘रमन प्रभाव’ कहा गया। 28 फरवरी, 1928 को उन्होंने अपनी इस खोज की घोषणा की। इससे विश्व भर के वैज्ञानिकों में तहलका मच गया। इससे ऊर्जा के भीतर परमाणुओं की स्थिति को समझने में बहुत सहायता मिली। इसके लिए 1930 में उन्हें भौतिकी का विश्व प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

1954 में भारत सरकार ने देश के प्रति उनकी सेवाओं को देखकर उन्हें ‘भारत रत्न’ प्रदान किया। यह कैसा आश्चर्य है कि जिस उपकरण की सहायता से उन्होंने यह खोज की, उसे बनाने में केवल 300 रु. खर्च हुए थे। नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद भी डा. रामन ने विदेशों की सेवा के बदले बंगलौर स्थित ‘इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ साइंस’ में निदेशक के पद पर काम करना पसंद किया। इसके बाद वे ‘रमन रिसर्च इन्स्टीट्यूट’ के निदेशक बने। जीवन भर विज्ञान की सेवा करने वाले डा. चन्द्रशेखर वेंकटरामन ने

21 नवम्बर, 1970 को जीवन से ही पूर्णावकाश ले लिया। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ घोषित किया है।
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07/11/2025
  कलकत्ता के टाउन हॉल में 7 अगस्त 1905 को बंग भंग के इस निर्णय के विरुद्ध हजारों लोग एकत्र हुए और सभी के कंठ बोल रहे थे ...
07/11/2025


कलकत्ता के टाउन हॉल में 7 अगस्त 1905 को बंग भंग के इस निर्णय के विरुद्ध हजारों लोग एकत्र हुए और सभी के कंठ बोल रहे थे वंदेमातरम्। बंग-भंग आंदोलन से वंदेमातरम् जन-जन का जयघोष बन गया। और यह जयघोष केवल बंगाल ही नहीं भारत व भारत से बाहर सभी के लिए जयघोष मंत्र बना। स्वतंत्रता आंदोलन की प्रत्येक छोटी बड़ी सभा में वन्देमातरम गीत व जयघोष के रूप में गूंजता था। क्रांतिकारियों का आपसी अभिवादन वंदेमातरम् से होने लगा। स्वतंत्रता के प्रयास का प्रायः बन गया वन्देमातरम।
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भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के स्थापना दिवस की सभी वर्तमान और पूर्व स्काउट्स एंड गाइड्स  को हार्दिक बधाई!शिक्षा, स्वास्थ्य,...
07/11/2025

भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के स्थापना दिवस की सभी वर्तमान और पूर्व स्काउट्स एंड गाइड्स को हार्दिक बधाई!

शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण के साथ ही सांस्कृतिक जागरूकता में समर्पित हमारे स्काउट्स एंड गाइड्स की निस्वार्थ सेवा भावना एवं अनुशासित जीवन प्रत्येक भारतवासी के लिए एक प्रेरणा है।
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शिक्षक, पत्रकार एवं लेखक क्रान्तिकारी बिपिन चन्द्र पाल जी की जयन्ती पर कोटि-कोटि नमन || 07 नवम्बर 1858 ||भारत के विश्व प...
07/11/2025

शिक्षक, पत्रकार एवं लेखक क्रान्तिकारी बिपिन चन्द्र पाल जी की जयन्ती पर कोटि-कोटि नमन || 07 नवम्बर 1858 ||

भारत के विश्व प्रसिद्द वैज्ञानिक नोबेल पुरुस्कार विजेता सर सी.वी. रमन जी की जयन्ती पर कोटि-कोटि नमन || 07 नवम्बर 1888 ||

स्वतन्त्रता सेनानी, शिक्षाविद् एवं समाजसेवी अश्विनी कुमार दत्त जी की पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन || 07 नवम्बर 1923 ||

स्वतन्त्रता सेनानी डॉ. जीवराज नारायण मेहता जी की पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन || 07 नवम्बर 1978 ||
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वंदे मातरम् सिर्फ़ एक गीत नहीं, भारत की आत्मा और राष्ट्रभाव का शाश्वत मंत्र है।स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक कई पीढ़ि...
07/11/2025

वंदे मातरम् सिर्फ़ एक गीत नहीं, भारत की आत्मा और राष्ट्रभाव का शाश्वत मंत्र है।

स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक कई पीढ़ियों ने इससे देशभक्ति की प्रेरणा पाई है।

वंदेमातरम् के 150 गौरवशाली वर्षों के इस ऐतिहासिक अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई।

वंदे मातरम् 🇮🇳
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बिहार के दरौंदा विधानसभा क्षेत्र में दैनिक हिन्दुस्तान समाचार पत्र के सिवान ब्यूरो प्रभारी नीरज कुमार पाठक ने विकसित बिह...
06/11/2025

बिहार के दरौंदा विधानसभा क्षेत्र में दैनिक हिन्दुस्तान समाचार पत्र के सिवान ब्यूरो प्रभारी नीरज कुमार पाठक ने विकसित बिहार के लिए अपने परिवार के साथ किया मतदान
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महावीरी सरस्वती विद्या मंदिर,बरहन गोपाल के संगणक आचार्य धनंजय कुमार ने अपनी धर्मपत्नी के साथ राष्ट्रहित एवं विकसित बिहार...
06/11/2025

महावीरी सरस्वती विद्या मंदिर,बरहन गोपाल के संगणक आचार्य धनंजय कुमार ने अपनी धर्मपत्नी के साथ राष्ट्रहित एवं विकसित बिहार के लिए सिवान विधानसभा क्षेत्र के कबीर मुनीश्वर बालक उच्च विद्यालय सह इंटर कॉलेज, धनौती के मतदान केन्द्र पर किया मतदान
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