17/03/2025
माँ का आखिरी तोहफा
सुमित्रा एक साधारण माँ थी, जिसकी दुनिया उसके बेटे आरव में बसती थी। पति का देहांत हो चुका था, और उसने दिन-रात मेहनत कर अपने बेटे को पाल-पोस कर बड़ा किया। छोटी-छोटी खुशियों से ही उसका संसार संवर जाता था। आरव जब भी माँ को "माँ, तुम दुनिया की सबसे अच्छी माँ हो!" कहता, सुमित्रा की सारी थकान मिट जाती।
समय बीतता गया। आरव बड़ा हुआ, पढ़-लिखकर एक बड़ी कंपनी में नौकरी करने लगा। धीरे-धीरे उसका रहन-सहन बदलने लगा। उसे अपनी माँ का पुराना तरीका अब पुराना लगने लगा। माँ के प्यार भरे स्पर्श में भी उसे संकोच होने लगा। माँ के पुराने कपड़े, उनकी ममता भरी बातें, सब उसे अब बोझ लगने लगे थे।
एक दिन आरव ने फैसला किया कि वह माँ को वृद्धाश्रम छोड़ देगा। माँ कुछ नहीं बोली, बस अपनी धुंधली आँखों से बेटे को देखती रही। जाते समय उसने आरव को एक छोटी सी गठरी पकड़ा दी, जिसमें उसके बचपन के खिलौने और वो पहला पत्र था, जो उसने माँ को लिखा था— "माँ, तुम दुनिया की सबसे अच्छी माँ हो!"
वृद्धाश्रम में रहने के कुछ ही महीनों बाद सुमित्रा बीमार पड़ गई। आरव को खबर दी गई, लेकिन वह व्यस्त था। जब तक वह वहाँ पहुँचा, माँ जा चुकी थी।
उसकी चारपाई पर एक पुराना कंबल और एक पत्र रखा था। काँपते हाथों से उसने वह पत्र खोला—
"बेटा, मुझे दुख नहीं कि तुमने मुझे यहाँ छोड़ दिया। मुझे खुशी है कि तू खुश है। पर कभी जब तुझे मेरी याद आए, तो इस कंबल को ओढ़ लेना, इसमें मेरी ममता की गर्माहट महसूस होगी।"
आरव फूट-फूटकर रो पड़ा। लेकिन अब माँ की ममता को महसूस करने के लिए सिर्फ वही पुराना कंबल था… और उसके आँसू।