12/07/2025
तेरी बुराइयों को हर अखबार कहता है,
और तू मेरे गांव को गवार कहता है।।
ऐ शहर मुझे तेरी औकात पता है,
तू चुल्लू भर पानी को वाटर पार्क कहता है।।
थक गया है हर शख्स काम करते करते,
तू इसे अमीरी का बजार कहता है।।
गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,
तेरी सारी फुरसत तेरा इतवार करता है।।
मौन हो कर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे है,
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।।
जिनकी सेवा में खपा देते है जीवन सारा,
तू उन मां बाप को भार कहता है।।
वो मिलने आते थे तो दिल साथ लाते थे,
तू दस्तुर निभाने को रिश्तेदार कहता है।।
बड़े बड़े मसले हल करती थीं पंचायतें,
तू अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है।।
बैठ जाते थे अपने पराए सब बैलगाड़ी में,
पूरा परिवार भी न बैठ पाए उसे तू कार कहता है।।
अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे है,
तू इस नए दौर को संस्कार कहता है।।
!!अनुज कुमार सिंह!!