हुसैनगंज सिवान

हुसैनगंज सिवान Hussainganj is a Community development block and a town in district of Siwan,in Bihar state of India [email protected]

भाजपा से आए हुए सहनी आज सबसे बड़े सेकुलर नेता हैं आबादी ना के बराबर है दावा डिप्टी सीएम का है आपकी आबादी उसकी आबादी से प...
06/09/2025

भाजपा से आए हुए सहनी आज सबसे बड़े सेकुलर नेता हैं आबादी ना के बराबर है दावा डिप्टी सीएम का है
आपकी आबादी उसकी आबादी से पाँच गुना अधिक है लेकिन आपकी ज़िम्मेदारी भाजपा को रोकने की है ,

05/09/2025

बंगाल की गर्भवती महिला को बांग्लादेश भेजा गया, परिवार के पास पांच पीढ़ियों के ज़मीनी रिकॉर्ड

दिल्ली में घरेलू काम करने वाली पश्चिम बंगाल की 25 वर्षीया गर्भवती महिला सुनाली खातून को उसके पति और आठ साल के बेटे के साथ पुलिस ने हिरासत में लेकर ज़बरदस्ती बांग्लादेश भेज दिया.

स्क्रोल के मुताबिक यह कार्रवाई तब की गई जब उसके परिवार के पास पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले में पांच पीढ़ियों पुराने ज़मीन के दस्तावेज़ और अन्य भारतीय नागरिकता के प्रमाण मौजूद हैं.

यह कहानी नागरिकता सत्यापन अभियान के मानवीय संकट को उजागर करती है, जो ख़ासकर बंगाली भाषी प्रवासियों को निशाना बना रहा है. यह दिखाती है कि कैसे प्रक्रियात्मक खामियों और पुलिस की कथित ज़्यादती के कारण भारतीय नागरिकों को ग़लत तरीक़े से विदेशी घोषित कर देश से निकाला जा सकता है, जिससे परिवार बिखर रहे हैं.

सुनाली, उसके पति दानिश और बेटे साबिर को 20 जून को दिल्ली के रोहिणी की बंगाली बस्ती से हिरासत में लिया गया था. मई से, बीजेपी शासित राज्यों में हज़ारों बंगाली भाषी प्रवासी मज़दूरों को पकड़कर उनसे भारतीय नागरिक होने का सबूत मांगा जा रहा है. सुनाली के परिवार ने पुलिस को आधार कार्ड और राशन कार्ड दिखाए, लेकिन पुलिस ने जन्म प्रमाण पत्र मांगा, जो उनके पास नहीं था. कुछ हफ़्ते पहले झुग्गी में लगी आग में उनके बेटे का जन्म प्रमाण पत्र जल गया था. छह दिन बाद, उन्हें विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) के एक आदेश के आधार पर बांग्लादेश भेज दिया गया.

दिल्ली पुलिस के रिकॉर्ड में कहा गया है कि परिवार ने ख़ुद को बांग्लादेश के बागेरहाट का निवासी कबूल किया था, लेकिन सुनाली का परिवार इस आरोप को सख़्ती से ख़ारिज करता है.

परिवार का आरोप है कि पुलिस ने रिश्वत न दे पाने के कारण सुनाली से ज़बरदस्ती यह कबूलनामा लिखवाया.

बीरभूम में स्थानीय पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि दिल्ली पुलिस ने सुनाली को देश से निकालने से पहले उनसे कोई सत्यापन नहीं किया था, जो कि गृह मंत्रालय के निर्देशों का उल्लंघन है.

स्क्रॉल की जांच में पाया गया कि सुनाली के दादा-दादी का नाम 2002 की मतदाता सूची में है. सूचना के अधिकार (RTI) के तहत निकाले गए ज़मीन के दस्तावेज़ दिखाते हैं कि परिवार 1956 से उसी गांव में रह रहा है, जो सुनाली के पर-पर-परदादा के समय का है. गांव की दाई ने भी पुष्टि की कि उसने ही सुनाली को जन्म दिया था.

यह मामला सिर्फ़ दस्तावेज़ों का नहीं, बल्कि एक समुदाय के प्रति गहरे पूर्वग्रह का भी है.

आभार: हरकारा

कोविड का दौर याद कीजिये - लगभग रोज़ अरविंद केजरीवाल कोरोना वायरस के अपडेट की प्रेस कॉन्फ्रेंस तब्लीगी जमात से करते थे. जम...
04/09/2025

कोविड का दौर याद कीजिये - लगभग रोज़ अरविंद केजरीवाल कोरोना वायरस के अपडेट की प्रेस कॉन्फ्रेंस तब्लीगी जमात से करते थे. जमात प्रमुख मुहम्मद साद बीजेपी\आम आदमी पार्टी और गोदी मीडिया में कोरोना के विलेन बना दिये गये. अब पांच साल पुलिस की जांच में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला.
झूठे आरोप लगाने, बदनाम करने और अफवाह फैलाने के मुकदमे कायम होने चाहिये शामिल लोगों के खिलाफ़.

04/09/2025

बिहार में NDA का जो भी वोट मिलने वाला था ओ भी गया बिहार बन्द करवा कर 😂

बिहार बंद का ऐलान बीजेपी के दिल्ली वाले सलाहकारों ने करके पड़ी लड़की उठा कर तशरीफ़ में ले ली है। इसी पे एक शेर पढ़ा है द...
04/09/2025

बिहार बंद का ऐलान बीजेपी के दिल्ली वाले सलाहकारों ने करके पड़ी लड़की उठा कर तशरीफ़ में ले ली है।
इसी पे एक शेर पढ़ा है दिलीप जायसवाल जी ने.

"ए पड़ी लकड़ी क्यूं पड़ी है झार में
आ के समा जा न मेरी G@@& में"

राहुल गांधी के धन्यवाद ज्ञापन में दरी बिछाने वालों का नाम छूट गया है या छोड़ दिया गया है ???🤔 🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔
01/09/2025

राहुल गांधी के धन्यवाद ज्ञापन में दरी बिछाने वालों का नाम छूट गया है या छोड़ दिया गया है ???
🤔 🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔

01/09/2025

सीवान में 'हिन्दुस्तान' के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या 13 मई 2016 की शाम गोली मारकर कर दी गई

राजदेव रंजन को एक गोली उनकी आंखों के बीच में और दूसरी गोली गर्दन में लगी, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई

राजदेव की पत्नी आशा रंजन के बयान पर सीवान टाउन थाने में FIR दर्ज कराई गई

इस हत्याकांड में सीवान के पूर्व सांसद डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन उर्फ साहेब का नाम मीडिया ने खूब उछाला…

भारतीय मीडिया में ट्रायल ऐसे किया गया जैसे कल छोड़ो आज ही डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन उर्फ साहेब को नोएडा मीडिया के दफ्तर में फांसी पर चढ़ा दिया जाए

खैर, डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन उर्फ साहेब की 2021 में कोरोना काल में दिल्ली में मृत्यु हो गई
परिवार व समर्थकों ने डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन उर्फ साहेब की मौत को सांस्थानिक "हत्या" बताया

उस समय केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री थे, लेकिन डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन की मैय्यत को उनके पैतृक गांव नहीं ले जाने दिया गया और दिल्ली में ही उन्हें दफनाया गया

डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन RJD के संस्थापक सदस्यों में से थे और पूरी जिंदगी राजद की सेवा की

लेकिन जब डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन की मृत्यु दिल्ली में हुई, तो लालू प्रसाद यादव, लालू पुत्र तेजस्वी यादव समेत पूरा लालू परिवार दिल्ली में मौजूद था, लेकिन कुछ सहयोग करना तो दूर की बात है, डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन की मैय्यत को उनके पैतृक गांव में दफनाने की इजाज़त मांग रहे लोगों को ढाढस तक नहीं दिया, एक शब्द भी नहीं बोला

केजरीवाल सरकार ने साफ कहा कि डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन साहेब को दिल्ली में ही दफनाना होगा और कुछ लोग ही जनाजे में शामिल हो सकेंगेकेजरीवाल सरकार ने साफ कहा कि डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन साहेब को दिल्ली में ही दफनाना होगा और कुछ लोग ही जनाजे में शामिल हो सकेंगे

खैर, डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन का कफ़न-दफ़न आज से 4 वर्ष पहले दिल्ली में ही कर दिया गया

अब 9 वर्ष बाद CBI की अदालत से राजदेव रंजन हत्याकांड का फैसला आया है,जिसमें डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन उर्फ साहेब की किसी भी प्रकार की इन्वॉल्वमेंट से इनकार किया गया है और अजहरुद्दीन उर्फ लड्डन मियां समेत 3 लोग निर्दोष साबित हुए हैं
वहीं विजय गुप्ता, रोहित कुमार सोनी और सोनी कुमार गुप्ता को अदालत ने हत्याकांड का दोषी माना है…

सजा का ऐलान 10 सितंबर को अदालत करेगी।

कोई बताएगा कि किस क़ानून के तहत बैनर उतरवाया गया है? कोई बताए क्या ये धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला नहीं है? कोई भी ऐरा गैर...
31/08/2025

कोई बताएगा कि किस क़ानून के तहत बैनर उतरवाया गया है? कोई बताए क्या ये धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला नहीं है? कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा अनर्गल विरोध करेगा और पुलिस उसके सामने सरेंडर कर देगी? मैं अलल-एलान इस्लाम ज़िंदाबाद कह रहा हूँ, मप्र पुलिस और मोहन यादव की सरकार मेरी ज़बान रोककर दिखाए।

इस्लाम ज़िंदाबाद
इस्लाम ज़िंदाबाद
इस्लाम ज़िंदाबाद

29/08/2025

जी भर कर लाडो
समाप्त कर दो
एक दूसरे को 😛

28/08/2025

गुलाम नबी आजाद को तो जानते होंगे आप लोग। 50 साल तक कांग्रेस से सियासत करते रहे ।विधायक, लोकसभा राज्यसभा सांसद,यूनियन मिनिस्टर,चीफ मिनिस्टर और 2005 से 2021 तक नेता विपक्ष रहे। कांग्रेस अक्सर इन्हे चुनाव प्रभारी भी बनाती थी यहां तक की बाबरी शहादत के वक्त भी ये नरसिम्हा राव के हुकूमत में मंत्री थे।
तीन साल पहले इन्होंने बयान दिया की कांग्रेस के चुनावी सभा में वोट कटने के डर से इन्हे नही ले जाया जाता यानी जो कांग्रेसी वोटर है वो भी गुलाम नबी के वजह से वोट नही देंगे ,2022 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी बना ली।
फिर भी कांग्रेस के दिहाड़ी मजदूरों को अक्ल नही आती ये अभी भी हमसे संविधान बचाने की कसमें खा रहे है।

इस मुल्क मेंदलितों की पार्टी (BSP) मौजूद है और हुकूमत भी कर चुकी है lयादवों/OBC की पार्टी (SP/RJD) मौजूद है और हुकूमत भी...
27/08/2025

इस मुल्क में
दलितों की पार्टी (BSP) मौजूद है और हुकूमत भी कर चुकी है l
यादवों/OBC की पार्टी (SP/RJD) मौजूद है और हुकूमत भी कर चुकी है l
जाटों की पार्टी (RLD) मौजूद है और हुकूमत भी कर चुकी है l
सिखों की पार्टी (अकाली दल) मौजूद है और हुकूमत भी कर चुकी है l
मराठा की पार्टी (ShivSena/NCP) मौजूद है और हुकूमत कर रही/चुकी है l
द्रविड़ों की पार्टी (AIADMK/DMK) मौजूद है और हुकूमत कर रही/चुकी है l
बोडो की पार्टी (AGP) मौजूद है और हुकूमत भी कर चुकी है l
नागा की पार्टी (NPF) मौजूद है और हुकूमत भी कर चुकी है l
आदिवासियों की पार्टी (JMM) मौजूद है और हुकूमत भी कर रही/चुकी है l
बनियों की पार्टी (AAP) मौजूद है और हुकूमत कर रही है l
ब्राह्मणों की पार्टी (Congress/BJP) मौजूद है और हुकूमत कर रही है l

तो फिर मुसलमानों की अलग पार्टी होने में क्या बुराई है ??

असल सवाल यही है। जब हर जाति, हर बिरादरी, हर तबक़ा अपनी सियासी जमात बनाकर सत्ता में हिस्सेदारी ले सकता है, तो मुसलमान अगर अपनी नुमाइंदगी की ख़ातिर अपनी सियासी जमात बनाएँ, तो अचानक "सांप्रदायिकता" का ठप्पा क्यों लगा दिया जाता है?

यह मुल्क एक मोज़ेक की तरह है — जहां का हर हिस्सा अपनी पहचान और अपनी तहज़ीब के साथ जीता है। दलितों ने सदियों की ज़ुल्मत से निकलकर BSP खड़ी की और सत्ता तक पहुँचे। पिछड़े वर्गों ने SP और RJD जैसी पार्टियों से अपनी आवाज़ बुलंद की। द्रविड़ पार्टियाँ तो पूरी की पूरी राजनीति को बदलकर दिल्ली में राज चुनौती देने लगीं। झारखंड के आदिवासी अपनी जड़ों की पहचान बचाने JMM लेकर खड़े हुए। और इसी तरह, बाक़ी तमाम कौमें भी अपनी सियासी ताक़त बनाकर मैदान में आईं।

लेकिन मुसलमान, जो इस मुल्क की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक क़ौम हैं, जो 15–20% आबादी रखते हैं, उनके लिए हमेशा यही दलील दी जाती है कि "आपको अपनी पार्टी नहीं बनानी चाहिए, वरना समाज बंट जाएगा, सांप्रदायिकता बढ़ जाएगी।"

यह दोहरा मापदंड क्यों? double standard क्यों?

क्या दलित जब पार्टी बनाते हैं तो समाज नहीं बंटता?
क्या द्रविड़ जब अपनी पार्टी बनाते हैं तो मुल्क नहीं बंटता?
क्या मराठा, जाट, बोडो, नागा और आदिवासी जब अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं तो मुल्क कमज़ोर हो जाता है?
नहीं! बल्कि इससे यह मुल्क मज़बूत होता है, क्योंकि हर तबक़े को यक़ीन होता है कि उनका भी हिस्सा है, उनकी भी आवाज़ है।

तो फिर मुसलमानों को सियासी जमात बनाने से डराना क्यों?
असल में यह डर सिर्फ़ इसलिए पैदा किया जाता है क्योंकि अगर मुसलमान अपनी एकजुट सियासी ताक़त बना लें तो सियासत का "गेम" बदल जाएगा। जो आज "vote bank" बनाकर मुसलमानों को सिर्फ़ इस्तेमाल करते हैं, कल उन्हें उनके सामने जवाबदेह होना पड़ेगा।

समाज के हर तबक़े की सियासी नुमाइन्दगी ज़रूरी है। यही सोशल जस्टिस है। यही असली लोकतंत्र है। और यही पहचान की सियासत (identity politics) का मक़सद भी है — कि किसी की आवाज़ दब न जाए, कोई तबक़ा हाशिए पर न रहे।

जो लोग मुसलमानों की पार्टी बनाने का विरोध करते हैं, वो दो तरह के हैं — या तो वो सियासत की बुनियाद ही नहीं समझते, नासमझ हैं,
या फिर वो बहुत चालाक और मक्कार सोच के लोग हैं, जो चाहते हैं कि मुसलमान हमेशा दूसरों की बैसाखियों पर टिका रहे और अपनी खुद की ताक़त कभी न बनाए।

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