13/09/2025
# # # आग का पाठ
रिया एक साधारण सी लड़की थी, दिल्ली की एक छोटी सी आईटी कंपनी में काम करती। दिनभर कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठी, कोड लिखती, लेकिन उसके दिल में एक आग सुलग रही थी—एक ऐसी आग जो कभी बुझने का नाम न लेती। बचपन से ही माता-पिता ने उसे सिखाया था कि इच्छाएँ दबानी पड़ती हैं, शादी से पहले सब कुछ संयमित रखना चाहिए। लेकिन रातें? रातें तो उसके लिए एक गुप्त जंगल थीं, जहाँ वो अकेले में अपनी कल्पनाओं को उड़ान देती।
एक शाम, ऑफिस पार्टी में वो मिली आरव से। आरव वो नहीं था जो दिखता था—लंबा, काला कोट पहने, आँखों में एक शरारत भरी चमक। वो एक फ्रीलांस फोटोग्राफर था, जो दुनिया घूम-घूम कर लोगों की अनकही कहानियाँ कैद करता। "तुम्हारी आँखें कुछ कह रही हैं," उसने रिया से कहा, जब वो कॉफी मशीन के पास खड़ी थी। रिया हँसी, लेकिन उसके गाल लाल हो गए। बातें बढ़ीं, हँसी-मज़ाक में शाम ढल गई, और फिर नंबर एक्सचेंज हो गया।
अगले हफ्ते, आरव ने उसे कॉल किया। "चलो, नदी किनारे वॉक पर। बस, कोई प्लान नहीं।" रिया हिचकिचाई, लेकिन गई। यमुना के किनारे, सूरज डूबते हुए, हवा में ठंडक घुली हुई। आरव ने अपना कैमरा निकाला और कहा, "तुम्हें फोटो खींचूँ? लेकिन एक शर्त—तुम्हें अपनी एक इच्छा बतानी होगी।" रिया ने मना किया, लेकिन आरव ने जोर दिया। "इच्छाएँ छुपाने से जलती हैं, रिया। उन्हें बाहर लाओ, तो आग बन जाती है—गर्म, लेकिन नियंत्रित।"
धीरे-धीरे, बातें खुलने लगीं। रिया ने बताया कैसे वो हमेशा डरती रही अपनी भावनाओं से। आरव ने सुना, बिना जज किए। फिर वो दोनों एक छोटे से कैफे में पहुँचे। वहाँ, मंद रोशनी में, आरव का हाथ उसके हाथ पर रखा। "क्या तुम्हें लगता है कि इच्छा सिर्फ़ शारीरिक होती है?" उसने पूछा। रिया का दिल धड़का। "नहीं... लेकिन..." वो रुकी। आरव ने कहा, "तो बताओ। आज रात, हम बस बात करेंगे। कोई जल्दबाज़ी नहीं।"
रात गहराई। आरव का फ्लैट पुरानी दिल्ली की गलियों में था—पुरानी किताबों की महक, दीवारों पर कला के पोस्टर। वो दोनों सोफे पर बैठे। बातें गहरी हुईं। रिया ने अपना राज़ खोला—कैसे वो हमेशा सोचती कि प्यार में सब कुछ सहज हो जाता है, लेकिन कभी बोल नहीं पाई। आरव ने मुस्कुराया। "प्यार आग है, रिया। लेकिन बिना बात के वो जंगल की आग बन जाती है—नष्ट कर देती है। बात करो, तो वो मोमबत्ती बन जाती है—गर्माहट देती है।"
फिर, वो पल आया। आरव ने धीरे से उसका चेहरा छुआ। "क्या ये ठीक है?" उसने पूछा। रिया ने सिर हिलाया, आँखें बंद कीं। उसके होंठ उसके होंठों से मिले—धीमे, नरम, जैसे कोई पुरानी धुन। रिया का शरीर काँप उठा। आरव का हाथ उसकी पीठ पर फिसला, कमर को सहलाया। वो साँसें तेज़ हो गईं। रिया ने पहली बार महसूस किया वो उष्णता—जो सिर्फ़ त्वचा की नहीं, आत्मा की थी। वो दोनों बिस्तर पर पहुँचे, कपड़े धीरे-धीरे उतरते हुए। आरव का स्पर्श हर जगह आग की तरह फैल गया—उसकी गर्दन पर, छाती पर, जाँघों पर। रिया ने कराह ली, जब उसके अंदर वो प्रवेश किया—धीमे, गहराई से। हर धक्के में एक लय थी, जैसे कोई नदी बह रही हो। पसीना, साँसें, चीखें—सब मिश्रित। रिया ने अपनी उँगलियाँ उसकी पीठ में गाड़ दीं, आनंद की लहरों में डूबते हुए। वो चरम पर पहुँची, जैसे कोई तूफान शांत हो गया हो।
सुबह, जब रिया जागी, आरव चाय बना रहा था। "कल रात..." वो शरमाई। आरव ने कहा, "वो सिर्फ़ शुरुआत थी। लेकिन याद रखना—आग को काबू में रखने के लिए बात ज़रूरी है। अपनी इच्छाएँ छुपाओ मत। बोलो, तो रिश्ते मजबूत होते हैं। वरना, जल जाते हैं।"
रिया ने मुस्कुराया। वो समझ गई थी। इच्छाएँ दबाने से दर्द होता है, लेकिन उन्हें साझा करने से प्यार खिलता है। आज से, वो अपनी आग को छुपाएगी नहीं—बल्कि, उसे सिखाएगी उड़ान भरना।
**सीख:** प्यार और इच्छाओं में संवाद ही वो चाबी है जो तालों को खोलती है। बिना बोले सब कुछ सहज नहीं होता—बोलो, तो आग गर्माहट बनेगी, न कि तबाही।