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हमारा उद्देश्य केवल समस्याओं को गिनाना नहीं, बल्कि समाधान की ओर बढ़ना है। इसलिए, सभ्यता और संतुलित विचारों के साथ चर्चा करें, ताकि हम अपने महापुरुषों के सपनों का सिवान बना सकें—एक ऐसा सिवान,जो ईमानदारी, न्याय और सद्भाव की मिसाल बने! जय हिंद जय भारत

  #लालूजी_बड़का_बेटवा_को_6_साल_का_वनवासी_बना_दिए! #कोई_बात_नहीं_तेज_भैया_थोड़ा_समय_सनातन_में_समय_दीजिए. ईश्वर की कृपा बर...
25/05/2025


#लालूजी_बड़का_बेटवा_को_6_साल_का_वनवासी_बना_दिए!
#कोई_बात_नहीं_तेज_भैया_थोड़ा_समय_सनातन_में_समय_दीजिए. ईश्वर की कृपा बरसेगी उसके बाद!🙏

10/05/2025

ुद्ध_विराम_लागू_भारत_और_पाकिस्तान_के_बीच.

 ेंद्रीय_गृह_मंत्री_अमित_शाह_ने_पूरे_राज्य_में_मॉक_ड्रिल_का_आयोजन_करने_को_कहा_जिससे_ किसी भी  #आपात स्थिति में निपटने मे...
05/05/2025

ेंद्रीय_गृह_मंत्री_अमित_शाह_ने_पूरे_राज्य_में_मॉक_ड्रिल_का_आयोजन_करने_को_कहा_जिससे_ किसी भी #आपात स्थिति में निपटने में मदद मिलेगी.

05/05/2025

ूछता_है_भारत, कब तक ये जुबानी और ट्विटर वार चलेगा आतंकिस्तान से? कब न्याय मिलेगा उन मजबूर परिवार को जिसने अपनों को खोया है, और आपसे आश लगाए बैठा है?

 ेशरत्न_सिवान_के_माटी के लाल  ार्शल_नर्मदेश्वर_तिवारी बने  #भारतीय  #वायुसेना के  ्रमुख | आपकी इस उपलब्धि से पूरा बिहार ...
01/05/2025

ेशरत्न_सिवान_के_माटी के लाल ार्शल_नर्मदेश्वर_तिवारी बने #भारतीय #वायुसेना के ्रमुख | आपकी इस उपलब्धि से पूरा बिहार गौरवान्वित महसूस कर रहा है | आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें |

जय हिंद, जय भारत, जय सिवान , जय बिहार !

 ारत_सरकार_का_बड़ा_फैसला_पाकिस्तान_के_ऊपर!
23/04/2025

ारत_सरकार_का_बड़ा_फैसला_पाकिस्तान_के_ऊपर!

 ुलगांव_की_चीखें — कब जागेगा यह मौन बहुसंख्यक समाज?आज फिर कश्मीर की घाटियों से चीखें आईं। पुलगांव के उस निरीह गाँव में, ...
22/04/2025

ुलगांव_की_चीखें — कब जागेगा यह मौन बहुसंख्यक समाज?

आज फिर कश्मीर की घाटियों से चीखें आईं। पुलगांव के उस निरीह गाँव में, जहाँ एक समय शांति की सरगम सुनाई देती थी, आज फिर मानवता को दरिंदगी ने रौंद डाला। और यह कोई पहली बार नहीं हुआ — यह एक सिलसिला है, जो हर बार हमें खून से सने सबक देता है, और हर बार हम उसे भूल जाते हैं।

धर्म के नाम पर जो यह हैवानियत हुई, वह किसी एक मजहब की कट्टरता नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के गाल पर तमाचा है। निर्दोषों को मारना, मासूमों के जीवन से खेलना, यह कैसी अल्लाह की राह है? अगर यह "जिहाद" है, तो यह इंसानियत के खिलाफ युद्ध है। और जो लोग इस क्रूरता पर चुप हैं — चाहे वो देश के भीतर हों या बाहर — उनकी चुप्पी भी इस अपराध में शामिल है।

जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, जो "हर धर्म एक है" की लोरी गाते हैं, उनसे आज सवाल पूछा जाना चाहिए — क्या यह भी एक ही धर्म है जो मंदिरों को जलाता है, साधुओं का कत्ल करता है, और 'काफिर' कहकर हत्या को जायज़ ठहराता है? क्या अब भी आप 'सहानुभूति' के आवरण में उन दरिंदों के लिए आँसू बहाएंगे, जिन्होंने मासूमों का खून बहाया?

हिंदुओं से सवाल — कब तक सहेंगे?

इतिहास गवाह है — कश्मीरी पंडितों का पलायन, मंदिरों का विध्वंस, और अब पुलगांव की ये बर्बरता — यह सब एक एजेंडा है। यह महज़ उन्माद नहीं, योजनाबद्ध 'धार्मिक सफ़ाया' है। और सवाल यह है कि बहुसंख्यक होते हुए भी हिंदू समाज कब तक मौन रहेगा? क्या हमें एक और कंधमाल, एक और पलायन का इंतज़ार है?

क्या करना चाहिए जिससे ये कुकृत्य रुके?

1. राजनीतिक दबाव बनाएं: हर हिंदू को अब वोट की ताकत को समझना होगा। जो नेता आतंक के खिलाफ बोलने से डरते हैं, उन्हें हटाइए।

2. सांस्कृतिक जागरण: अपने बच्चों को अपने धर्म का गर्व सिखाइए। मंदिरों, परंपराओं, और इतिहास की रक्षा सिर्फ किताबों से नहीं, कर्म से होती है।

3. मीडिया का पर्दाफाश करें: जो मीडिया "एक और पक्ष" की बात करता है, और आतंक के खिलाफ खड़ा नहीं होता, उन्हें बेनकाब करना होगा।

4. एकता ही अस्त्र है: जाति, भाषा, और क्षेत्र के नाम पर बँटवारा बंद कीजिए। हिंदू पहले, बाकी बाद में।

पुलगांव की राख से हमें फिर उठना होगा। यह सिर्फ एक गाँव नहीं जला — यह हमारी चेतना थी, जिसे खामोशी ने जला डाला। अब अगर नहीं जगे, तो अगली आग हमारे घर की दीवारों को छू सकती है।

जय हिंद! जय भारत! जय सिवान! जय बिहार!
Bihar - बिहार Siwan, Bihar आदर्श भारतीय

20/04/2025

्ण_व्यवस्था_भारत_की_प्राचीन_सामाजिक_संरचना थी, जिसमें समाज को चार प्रमुख वर्गों (वर्णों) में विभाजित किया गया था —

1. ब्राह्मण – शिक्षा, वेदों का अध्ययन और अध्यापन (ज्ञान-व्यवस्था)
2. क्षत्रिय – शासन, युद्ध और सुरक्षा (राजनीतिक व सैन्य व्यवस्था)
3. वैश्य – व्यापार, कृषि और अर्थव्यवस्था (आर्थिक व्यवस्था)
4. शूद्र – सेवा, श्रम और सहायक कार्य (सामाजिक व्यवस्था को सहारा देने वाला वर्ग)

प्रारंभिक दृष्टिकोण:
यह विभाजन ‘कर्म आधारित’ था — अर्थात् व्यक्ति का वर्ग उसके कार्य पर निर्भर करता था, न कि जन्म पर।

2. पहली बार इसकी व्याख्या किसने की और क्यों?
वर्ण व्यवस्था की सबसे पुरानी व्याख्या ऋग्वेद (लगभग 1500–1200 ईसा पूर्व) के पुरुष सूक्त में मिलती है, जिसमें समाज के चारों वर्णों की उत्पत्ति ब्रह्मा के शरीर के अलग-अलग अंगों से बताई गई है:

ब्राह्मण — मुख से (ज्ञान)
क्षत्रिय — भुजाओं से (शक्ति)
वैश्य — जंघाओं से (अर्थ)
शूद्र — पैरों से (सेवा)
इसके बाद मनु स्मृति (लगभग 200 ईसा पूर्व–200 ईस्वी) में इसे एक जन्म आधारित व्यवस्था के रूप में व्यवस्थित और कठोर रूप में प्रस्तुत किया गया।

व्याख्या का उद्देश्य:
समाज को सुव्यवस्थित और संतुलित बनाए रखने के लिए, ताकि हर वर्ग अपना उत्तरदायित्व निभाए और समाज में कोई कार्य उपेक्षित न रहे।

3. इसके पीछे का मूल उद्देश्य क्या था?
- सामाजिक कार्य विभाजन: हर व्यक्ति एक विशिष्ट कार्य करेगा, जिससे दक्षता बढ़ेगी।
- सह-अस्तित्व और पारस्परिक निर्भरता: सभी वर्ग एक-दूसरे पर निर्भर थे — कोई वर्ग संपूर्ण नहीं था।
- सामूहिक स्थिरता: हर वर्ग को अपनी भूमिका स्पष्ट रूप से ज्ञात थी, जिससे अस्थिरता या टकराव की गुंजाइश कम होती।

4. वर्ण व्यवस्था के लाभ:
- स्पष्ट सामाजिक ढांचा: कौन क्या कार्य करेगा, यह तय होने से कार्यक्षमता में वृद्धि।
- ज्ञान का संरक्षण: ब्राह्मण वर्ग ने वेदों और ज्ञान परंपराओं को पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित किया।
- सहयोग की भावना: वर्गों में एक प्रकार की परस्पर सेवा और आदान-प्रदान की भावना थी।
- कौशल विशेषज्ञता: एक ही वर्ग में रहते हुए पीढ़ियों तक विशेष कार्य में दक्षता हासिल हुई।

5. वर्ण व्यवस्था के दुष्परिणाम (जैसे-जैसे यह जन्म आधारित हुई):

- जन्म आधारित भेदभाव: कर्म के बजाय जन्म से वर्ग निर्धारित होने लगा।
- अवसर की असमानता: निचले वर्णों को शिक्षा, ज्ञान, पूजा आदि से वंचित किया गया।
- अस्पृश्यता और सामाजिक बहिष्कार: शूद्रों और तथाकथित अछूतों के साथ अमानवीय व्यवहार।
- सामाजिक गतिशीलता की समाप्ति: कोई भी व्यक्ति अपने वर्ग से ऊपर नहीं उठ सकता था — योग्यता का दमन।
- सामाजिक विघटन: समाज में ऊँच-नीच की भावना बढ़ी, जिससे एकता और सहयोग की भावना कमजोर पड़ी।

6. निष्कर्ष:
वर्ण व्यवस्था का मूल विचार सामाजिक समन्वय और कार्य विभाजन था — जो उस युग में एक व्यावहारिक सामाजिक ढांचा था। परंतु जब यह जन्म आधारित जाति व्यवस्था में परिवर्तित हुई, तो यह शोषण, असमानता और सामाजिक जड़ता का कारण बन गई।

आज की जरूरत:
हमें वर्ण व्यवस्था के सकारात्मक पक्ष — जैसे कर्म के आधार पर भूमिका, सह-अस्तित्व की भावना, और सामाजिक जिम्मेदारी — को अपनाना चाहिए, लेकिन जन्म आधारित भेदभाव को पूरी तरह नकारना चाहिए।

इसका एक सुंदर उदाहरण श्री रामायण में वर्णित है प्रभु राम के मित्र निषाद राज, और दूसरा वर्णन महाभारत में अंग राज कर्ण के साथ हुआ भेदभाव🙏

जय हिंद! जय भारत! जय सिवान! जय बिहार!
Bihar - बिहार Siwan, Bihar

19/04/2025


सुनने में आ रहा है कि बंगाल में सत्ताधारी दल (TMC) ममता बनर्जी के अपने विधायक के परिवार भी सुरक्षित नहीं है बंगाल में इन बांग्लादेशी अतिथियों ? कोई बताएगा सही क्या? ये सही समाचार है ? और अगर है तो अब इससे कैसे निपटना चाहिए ?

16/04/2025

ेजस्वी_यादव_राहुल_गांधी_और_खड़गेजी की मुलाकात!

जय हिंद !जय भारत! जय सिवान! जय बिहार!
Bihar - बिहार #सिवान

15/04/2025

ीतीश_कुमारजी_के_पुत्र

जय हिंद! जय भारत! जय सिवान! जय बिहार!
Bihar - बिहार सिवान और आसपास

13/04/2025

िवान_जिले_का_इतिहास_और_परिस्थिति_मुगल_काल_में!

मुगल काल (16वीं से 18वीं शताब्दी) में सिवान क्षेत्र बंगाल और अवध सूबों की सीमाओं के समीप स्थित था, जिसे रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता था। यह इलाका तत्कालीन बिहार प्रांत का हिस्सा था और प्रशासनिक रूप से पटना के अधीन रहा करता था। मुगल शासन के दौरान सिवान मुख्यतः कृषि प्रधान क्षेत्र था, जहाँ ज़मींदारी व्यवस्था प्रचलित थी।

प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य से, मुगलों ने यहाँ परगनों और ज़िलों की व्यवस्था की। सिवान उस समय सराय, रघुनाथपुर, गुठनी जैसे परगनों में विभाजित था। ये परगने मुगल दीवानों और अमीनों के अधीन रहे, जो कर वसूली और कानून-व्यवस्था संभालते थे।

आर्थिक दृष्टि से, सिवान क्षेत्र अनाज, गन्ना, और तिलहन की खेती के लिए जाना जाता था। मुगलों के अधीन व्यापार और खेती को प्रोत्साहन मिला, खासकर नदियों के निकटवर्ती क्षेत्रों में। यहाँ की उपज पास के बाज़ारों—जैसे आरा, छपरा और पटना—तक भेजी जाती थी।

सांस्कृतिक रूप से, इस काल में इस्लामी प्रभाव बढ़ा, मस्जिदें और मदरसे स्थापित हुए, लेकिन हिंदू धार्मिक गतिविधियाँ भी साथ-साथ चलती रहीं। सिवान में आज भी कई प्राचीन मस्जिदें मिलती हैं, जो मुगल स्थापत्य की झलक देती हैं।

एविडेंस:

1. अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी में बिहार के परगनों का उल्लेख मिलता है।

2. पुरानी ज़मींदारी दस्तावेज़ों और स्थानीय राजवंशों की वंशावली से मुगल प्रभाव के प्रमाण मिलते हैं।

3. क्षेत्र में स्थित कुछ प्राचीन मस्जिदें जैसे मीर अली मस्जिद मुगलों की स्थापत्य शैली को दर्शाती हैं।

इस प्रकार, सिवान मुगल काल में एक कृषि और प्रशासनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र था, जिसकी संस्कृति हिन्दू-मुस्लिम साझा विरासत की मिसाल रही।

जय हिंद! जय भारत! जय सिवान! जय बिहार!
Bihar - बिहार Siwan, Bihar

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