20/08/2022
क्षणभंगुर - जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली।
मलयाचल की शुचि शीतल मन्द
सुगन्ध समीर मिली न मिली।
कलि काल कुठार लिए फिरता,
तन नम्र से चोट झिली न झिली।
कहले हरिनाम अरी रसना,
फिर अन्त समय में हिली न हिली।
मुख सूख गया रोते रोते,
फिर अमृत ही बरसाया तो क्या।
जब भव सागर में डूब चुके,
तब नाविक को लाया तो क्या।
युगलोचन बन्द हमारे हुए,
तब निष्ठुर तू मुस्काया तो क्या।
जब जीवन ही न रहा जग मे,
तब आकर दरश दिखाया तो क्या।
बळी जाऊँ सदा इन नैनत की,
बलिहारी छटा पे में होता रहूँ।
मुझे भूले न नाम तुम्हारा प्रभु,
चाहे जागृत या स्वप्न में सोता रहूँ।
हरे कृष्ण ही कृष्ण पुकारू सदा,
मुख आँसुओ से नित धोता रहूँ।
बृजराज तुम्हारे बियोग में मैं,
बस यूँ ही निरन्तर रोता रहूँ।
शाम भयी पर श्याम न आये,
श्याम बिना क्यों शाम सुहाये।
व्याकुल मन हर शाम से पूछे,
शाम बता क्यों श्याम न आये।
शाम ने श्याम का राज बताया,
शाम ने क्योंकर श्याम को पाया।
शाम ने श्याम के रंग में रंग कर,
अपने आप को श्याम बनाया।
वह पायेगा क्या रस का चस्का,
नहीं कृष्ण से प्रीत लगायेगा जो।
हरे कृष्ण उसे समझेगा वही,
रसिको के समाज में जायेगा जो।
ब्रज धूरी लपेट कलेवर में,
गुण नित्य किशोर के गायेगा जो।
हँसता हुआ श्याम मिलेगा उसे,
निज प्राणों की बाजी लगायेगा जो।
मन में बसी बस चाह यही,
प्रिय नाम तुम्हारा उचाना करूँ।
बिठला के तुम्हें मन मन्दिर में,
मनमोहिनी रूप निहारा करू।
भर के दृग पात्र में प्रेम का जल,
पद पंकज नाथ पखारा करू।
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभो,
नित आरती भव्य उतारा करू।
जिनके मन में नन्दलाल बसे,
तिन और नाम लियो न लियो।
जिसने बृंदावन धाम कियो,
तिन औनहु धाम कियो न कियो।
🙏🙏 श्री कृष्णा श्री कृष्णा 🙏🙏