Ashwani KUMAR G

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31/12/2024

7 दिन एक भूमिगत शहर की खोज.mp4

30/12/2024
30/12/2024

लड़की ने करी बैटिंग

I have reached 700 followers! Thank you for your continued support. I could not have done it without each of you. 🙏🤗🎉
11/10/2024

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केले लेकर अपने रिश्तेदारों के घर पहुँचने वाली आख़री पीढ़ी भी अब समाप्ति के कगार पर है शायद अब तो रिश्तेदारों की ऐसी स्थिति...
08/07/2023

केले लेकर अपने रिश्तेदारों के घर पहुँचने वाली आख़री पीढ़ी भी अब समाप्ति के कगार पर है शायद अब तो रिश्तेदारों की ऐसी स्थिति हो गई है कि ख़ाली हाथ हिलाते हुए पहुँचते हैं औऱ घर में घुसते ही कराह उठते हैं...." बुआ इस फोन का चार्जर है क्या ?"
जब 2 रूपए प्रति मिनट काल लगती थी और किसी किसी के पास फोन होते थे सब एक दूसरे को फोन करते थे।आज प्रत्येक व्यक्ति के पास फोन है सबकी काल फ्री है फिर भी कोई किसी को फोन नहीं करता सिवाय जरुरत पड़ने के अलावा।जब इतने साधन नहीं थे रिश्तेदारों के घर पर कई कई दिन रहते थे। आज लगभग सभी के पास मोटरसाइकिल है सिर्फ एक दो घण्टे के लिए रुकते हैं।
वो भी क्या दिन थे बड़ी ख़ुशी होती थी जब कोई रिश्तेदार घर पर आता है इस टेक्नोलॉजी के दौर में भले ही हम बहुत आगे निकल आएं हो परन्तु रिश्तों को बहुत पीछे छोड़ आएं हैं।

जेठ दुपहरी की चिलचिलाती धूप मे....मैंने घर आकर जैसे ही फ्रिज खोला, इसमें से उठती भभक ने मेरे दिमाग को भभका दिया...."इसे ...
04/07/2023

जेठ दुपहरी की चिलचिलाती धूप मे....
मैंने घर आकर जैसे ही फ्रिज खोला, इसमें से उठती भभक ने मेरे दिमाग को भभका दिया....
"इसे भी अभी खराब होना था...मै तिलमिलाया....
पानी की बोतल, जूस पैकेट सब उबल रहे थे....
मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ गया....
प्यास बुझाने के लिए किचन में से नोरमल पानी का गिलास उठा, होठों से सटाया...
"छी..... कोई कैसे पी सकता है ऐसा गर्म पानी...
मुंह में भरा पानी बाहर पलट मैंने, गिलास पानी समेत सिंक में फेंका और दनदनाते हुए मैं लाले की दुकान के लिए निकल पड़ा ....
"अंकल.... एक चिल्ड पानी की बोतल और एक चिल्ड कोल्ड्रिंक.. ... मैंने सौ का नोट दुकानदार की ओर बढ़ाया।
"ठंडी नहीं है.... दरअसल इस एरिया में कल से बिजली बंद है.. नोरमल चलेगी क्या....
आगबबूला सा मैंने नोट वापस जेब में डाला और आगे बढ़ गया....
पसीने से लथपथ शायद मुझे आज ठंडे तरल पदार्थ की जिद सी मची हुई थी। दूसरे एरिया में जाने के लिए एक खुले मैदान से होकर जाना पड़ता था। चारों ओर से आती गर्म हवाएं मुझे भट्टी में झोंक देने जैसी प्रतीत हो रही थी।
नन्हे-नन्हे हाथों में कई खाली केन उठाए एक मासूम बच्ची को अपने नजदीक से निकलते देख, मेरे पूरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई ।
"इतनी जानलेवा गर्मी में कहाँ जा रही हो....
मैंने तुनककर पूछा ।
"पानी भरने .... सड़क के उस पार...
" जवाब देते हुए वह सहज थी।
"घर में कोई बड़ा नहीं है !"
"मां है.. बीमार है....
"तो तुम स्कूल नहीं जाती..."मैं अपने कदम उसके नन्हे कदमों से मिलाकर चलने लगा।
"जाती हूँ ....
"रोज लाती हो पानी....
"पानी तो रोज ही चाहिए होता है ना...
" मुझे बेवजह सिंक में उलटाया पानी याद आया।
"गुस्सा नहीं आता...." गर्म हवाएं अब सामान्य हो रही थीं।
" किस पर .....
"किस्मत पर..... इतनी सड़ी गर्मी में घर से पानी के लिए इतनी दूर जो जाना पड़ता है....
"आधा दिन स्कूल में निकल जाता है.. फिर घर के काम में माँ का हाथ बटांती हूँ.. पानी भर कर लाना होता है.. पढ़ना होता है.. छोटे भाई की देखभाल करनी होती है.. फिर वक्त ही नहीं मिलता....
"किसके लिए .....
"गुस्से के लिए..... उसकी खिलखिलाती हंसी ने मेरे गुस्से को फुर्र कर दिया और चिलचिलाती गर्म हवाएं, ठंडे झोंके बन, मुझे सहलाने लगे थे....
दोस्तों आपके दोस्त दीप की पोस्ट करके बस यही बताने की कोशिश है इंसान जो है उसमें संतोष से जीना सीख ले तो जीवन सचमुच आसान और सुखमय बन जाता है हमारे पास जो ईश्वर ने दिया है कुछ को वो भी नसीब नहीं होता ....मेरे पिताजी कहते है ....
हमेशा अपने से कमतर वाले व्यक्ति को देखो उसके संतोष को देखो फिर अपनी उससे तुलना करो ईश्वर ने तुम्हें कितना कुछ दिया है वही अपने से अधिकतम वाले व्यक्तियों को देखोगे तो उससे तुममें ईर्ष्या होगी जीवन से ...फिर कभी सुखद और संतोषजनक जीवन नही जी पाओगे....

भूख उम्र नहीं देखती साहब 😭😭😭दोस्तों इस उम्र में भी कोई काम करता दिखाई दे तो उनके पास रुके और उनसे बात करें अक्सर ऐसे लोग...
04/07/2023

भूख उम्र नहीं देखती साहब 😭😭😭
दोस्तों इस उम्र में भी कोई काम करता दिखाई दे तो उनके पास रुके और उनसे बात करें अक्सर ऐसे लोगों का कोई अपना नहीं होता है और जब हम अपनापन दिखाते हैं तो यह बहुत प्रसन्न होते हैं जब भी मिलो तो इनकी खुद्दारी को नमन करना और इनसे जरूर कुछ ना कुछ लेना ऐसे लोग बस दो वक्त की रोटी के लिए मेहनत करते हैं,😭😭😭 दोस्तों भूख उम्र नहीं देखते..!

एक पिता पुत्र साथ-साथ टहलने निकले, वे दूर खेतों की तरफ निकल आये, तभी पुत्र ने देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़...
30/06/2023

एक पिता पुत्र साथ-साथ टहलने निकले, वे दूर खेतों की तरफ निकल आये, तभी पुत्र ने देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं, जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे।

पुत्र लक्ष्मी कांत को मजाक सूझा उसने पिता से कहा - क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार बनायें, आखिर मस्ती ही तो आनन्द का सही स्रोत है। पिता ने असमंजस से बेटे की ओर देखा।

पुत्र बोला - हम ये जूते कहीं छुपा कर झाड़ियों के पीछे छुप जाएं। जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा। उसकी तलब देखने लायक होगी, और इसका आनन्द मैं जीवन भर याद रखूंगा।

पिता, पुत्र की बात को सुन गम्भीर हुये और बोले - बेटा !

किसी गरीब और कमजोर के साथ उसकी जरूरत की वस्तु के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना।

जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं, वो उस गरीब के लिये बेशकीमती हैं। तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है, तो आओ आज हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छुप कर देखें कि इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है।

पिता ने ऐसा ही किया और दोनों पास की ऊँची झाड़ियों में छुप गए।

मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया। उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ, उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा कि अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें देखने लगा।

फिर वह इधर-उधर देखने लगा कि उसका मददगार शख्स कौन है ? दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आया, तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए। अब उसने दूसरा जूता उठाया, उसमें भी सिक्के पड़े थे। मजदूर भाव विभोर हो गया।

वो घुटनो के बल जमीन पर बैठ आसमान की तरफ देख फूट-फूट कर रोने लगा। वह हाथ जोड़ बोला - हे भगवान् ! आज आप ही किसी रूप में यहाँ आये थे,

समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके माध्यम से जिसने भी ये मदद दी, उसका लाख- लाख धन्यवाद। आपकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दवा और भूखे बच्चों को रोटी मिल सकेगी। तुम बहुत दयालु हो प्रभु ! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।

मजदूर की बातें सुन, बेटे की आँखें भर आयीं। पिता ने पुत्र को सीने से लगाते हुयेे कहा - क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता उसकी तुलना में इस गरीब के आँसू और दिए हुये आशीर्वाद तुम्हें जीवन पर्यंत जो आनन्द देंगे वो उससे कम है, क्या ?

पिताजी.. आज आपसे मुझे जो सीखने को मिला है, उसके आनंद को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ। अंदर में एक अजीब सा सुकून है। आज के प्राप्त सुख और आनन्द को मैं जीवन भर नहीं भूलूँगा।

आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया, जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था। आज तक मैं मजा और मस्ती-मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था, पर आज मैं समझ गया हूँ कि, लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है।

"आत्मसन्तुष्टि...दो दिनों से उसके पेट में अन्न का एक दाना भी नही गया था... जिस भी हलवाई की दूकान के सामने जाता सब उसे दु...
29/06/2023

"आत्मसन्तुष्टि...

दो दिनों से उसके पेट में अन्न का एक दाना भी नही गया था... जिस भी हलवाई की दूकान के सामने जाता सब उसे दुत्कार देते...
जब ज्यादा भूख सताती तो म्यूनिसपैलिटी के नल से अधिक से अधिक पानी पीकर अपनी भूख शान्त कर लेता था रात होते ही खुले आसमान के नीचे पेट से पैर सटा धरती माँ की गोद में दुबक कर सो जाता
दूसरे दिन सुबह होते ही सूरज की सुनहरी किरणें जब उसकी पलकों को चूमने लगीं तब धीरे से उसने अपनी अलसाई नजरों को इधर-उधर घुमा कर देखा अचानक पास पड़ी दो रोटियों पर उसकी नजर पड़ी...
पता नही किस भले आदमी ने या फिर स्वयं भगवान ने ही इन दो रोटियों को देकर उसके भूखे पेट को सहला दिया था....
रोटियों को देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गई उसने सूखे पपड़िया गये होंठ पर जीभ फिराया तो लगा पपड़ियां पिघल रही हो...
वह झट उठ बैठा...रोटियों को हांथ में कुछ क्षण ले निहारता रहा फिर दोनों हांथों से जल्दी - जल्दी कौर तोड़ अभी अपने मुंह में डालने ही जा रहा था कि सामने खड़े सात- आठ साल के बालक पर उसकी निगाहें थम गई
बालक कातर निगाहों से अपलक उन रोटियों को देख रहा था...
वह रह- रह कर अपने पेट पर हांथ फिराता और होंठो पर जीभ ....बालक को देखते ही उसे अपने छोटे भाई की याद हो आई जिसने भूख से तड़पते हुए उसकी बाहों में दम तोड़ा था।
उसके हांथ एकदम से रूक गये...
तोड़ी गई रोटियों को दोनों हांथों में समटते हुए लगभग दौड़ता हुआ सा उस बालक के पास पहुंचा उसकी पेशानी को प्यार से चूमा,फिर धीरे-धीरे एक-एक टुकड़े को बालक के मुंह में डालता गया...
बालक बिना कुछ बोले शान्त भाव से रोटियां खाता रहा। आखिरी टुकड़ा खत्म होते ही उसे महसूस हुआ मानो उसका अपना पेट भर गया है आत्मसन्तुष्टि से पूर्ण हो ,फिर से बालक को चूम वह अपने पीछे वाले नल से पानी पीने के लिए घूम गया.... ..🙏🙏🙏

मैं अश्विनी कुमार आप लोगो से एक विनम्र विनती करता हुं की जब भी आप सड़क या आस पास किसी भूखे को ”महसूस” करें 🙁 तो उसको कुछ खाने को अवश्य दें। आपको परम सुख की अनुभूति होगी।

मैंने महसूस इसलिए लिखा क्योंकि किसी पर नज़र जाते ही पता चल जाता है की वो सच में भूखा हैं। 🙏

मैं तुम्हारी माँ के बंधन मे और नहीं रह सकती, मुझे अलग घर चाहिए जहाँ मैं खुल के साँस ले सकूँ। पलक रवि को देखते ही ज़ोर से ...
29/06/2023

मैं तुम्हारी माँ के बंधन मे और नहीं रह सकती, मुझे अलग घर चाहिए जहाँ मैं खुल के साँस ले सकूँ।
पलक रवि को देखते ही ज़ोर से चिल्ला उठी।
बात बस इतनी थी कि सुलभा जी ने रवि और पलक को पार्टी मे जाता देख कर इतना भर कहा था कि वो रात दस बजे तक घर वापस आ जाए। बस पलक ने इसी बात को तूल दे दिया और दो दिन बाद ही उसने किरण के घर किटी मे उसे मकान ढूंढने की बात भी कह दी।
मुझे मम्मी जी की गुलामी मे रहना पसंद नहीं है ।
पलक, तुम्हारी तरह एक दिन मैं भी यही सोच कर अपनी सास से अलग हो गई थी। किटी ख़तम होते ही किरण पलक से मुख़ातिब थी।
तभी तो आप आज़ाद हो। पलक ने चहक कर कहा तो किरण का स्वर उदासी से भर गया, किरण पलक से दस वर्ष बड़ी थी।
नहीं,बल्कि तभी से मैं गुलाम हो गई, जिसको मैं गुलामी समझ रही थी वास्तव मे आज़ादी तो वही थी।
वो कैसे,
पलक.. जब मैं ससुराल मे थी दरवाज़े पर कौन आया, मुझे मतलब नहीं था क्योंकि मैं वहाँ की बहू थी। घर मे क्या चीज़ है क्या नहीं इससे भी मैं आज़ाद थी, दोनों बच्चे दादा-दादी से हिले थे। मुझे कहीं आने-जाने पर पाबंदी नहीं थी, पर कुछ नियमों के साथ, जो सही भी थे, पर जवानी के जोश मे मैं अपने आगे कोई सीमा रेखा नहीं चाहती थी। मुझे ये भी नहीं पसंद था कि मेरा पति आफिस से आकर सीधा पहले माँ के पास जाए।
तो!! फिर पलक की उत्सुकता बढ़ गई।
मैंने दिनेश को हर तरह से मना कर अलग घर ले लिया और फिर मैं दरवाज़े की घंटीं, महरी, बच्चों, धोबी, दिनेश सबके वक्त की गुलाम हो गई।
अपनी मरज़ी से मेरे आने-जाने पर भी रोक लग गई क्योंकि कभी बच्चों का होमवर्क कराना है, तो कभी उनकी तबीयत खराब है। हर जगह बच्चों को ले नहीं जा सकते। अकेले भी नहीं छोड़ सकते। तो मजबूरन पार्टियां भी छोड़नी पड़ती जबकि ससुराल मे रहने पर ये सब बंदिश नहीं थीं।
ऊपर से मकान का किराया और फालतू के खर्चे अलग, फिर दिनेश भी अब उतने खुश नहीं रहते।किरण की आँखें नम हो उठीं।
फिर आप वापस क्यों नहीं चली गयीं,
किस मुँह से वापस लौटती,
इन्होंने एक बार मम्मी से कहा भी था, पर पापा ने ये कह कर साफ़ मना कर दिया कि, एक बार हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला है अब दूसरा झटका खाने की हिम्मत नहीं है, बेहतर है अब तुम वहीं रहो।
ओह!
पलक घर से बाहर क़दम रखना बहुत आसान है पर जब तक आप माँ-बाप के आश्रय मे रहते हैं आपको बाहर के थपेड़ों का तनिक भी अहसास नहीं होता, माँ-बाप के साथ बंदिश से ज़्यादा आज़ादी होती है पर हमें वो पसंद नहीं होती। एक बार बाहर निकलने के बाद आपको पता चलता है कि आज़ादी के नाम पर ख़ुद अपने पाँव मे जंज़ीरें डाल लीं। बड़ी होने के नाते तुमसे यही कहूंगी सोच-समझ कर ही ये क़दम उठाना।
मन ही मन ये गणित दोहराते हुए पलक एक क्षण मे निर्णय ले चुकी थी-उसे किरण जैसी गुलामी नहीं चाहिए। घर की ओर चलते बढ़ते कदमों के साथ साथ ही वो मन ही मन बुदबुदा रही थी, की घर पहुंचते ही सासू मां के पैर छूकर क्षमा मांग लूंगी और सदा उनके साथ ही रहूँगी।
मां बाप को साथ नही रखा जाता, मां बाप के साथ रहना होता है...

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21/04/2023

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16/02/2023

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