
23/09/2025
उत्तराखंड के श्रीनगर की शांत वादियों में पली-बढ़ी एक बच्ची, स्नेहा नेगी, कम उम्र में ही अपने पिता को खो बैठी। यह ऐसा पल था, जब किसी भी बच्चे का जीवन बिखर सकता था, लेकिन स्नेहा ने हार नहीं मानी । उसने अपने ग़म को हौसले में बदला, आँसुओं को संकल्प में ढाला और अपनी खामोशी को अनुशासन में बदल दिया।
जहाँ ज़्यादातर लोग दुःख के सामने झुक जाते हैं, वहीं स्नेहा ने अपने दुःख को अपनी ताक़त बना लिया। पढ़ाई और मेहनत को अपना साथी बनाया और आगे बढ़ते-बढ़ते उस ऊँचाई तक पहुँच गई, जहाँ पहुँचना बहुतों का सपना होता है ।
आज स्नेहा नेगी इसरो (ISRO) में वैज्ञानिक हैं उस संस्था में, जो न केवल भारत का गर्व है बल्कि पूरी दुनिया के सबसे बड़े और सम्मानित अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनों में से एक है। उनकी यह उपलब्धि केवल उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि हर उस बेटी की जीत है जो कठिन हालात में भी अपने सपनों को सच करने का साहस रखती है।
स्नेहा की यात्रा हमें यह सिखाती है कि मुश्किलें रास्ता रोकने नहीं, बल्कि और मज़बूती से आगे बढ़ाने के लिए आती हैं। वह आज लाखों युवाओं की प्रेरणा बन चुकी हैं।