06/01/2025
Jagdamba Jyoti Newspaper Ganganagar “कर भला तो हो भला” को जीवन में उतार लीजिए* स्वामी ब्रह्मदेव जी महाराज Swami Brahmdev Ji Maharaj (Founder) Jagdamba Andhvidhyalya Institution Sri Ganganagar के प्रवचनों पर आधारित आलेख. :- जब हम किसी के लिए सहानुभूति और उदारता का भाव रखते हैं, तो समय अपनी झोली में उस सहानुभूति और उदारता का कुछ हिस्सा हमारे लिए सहेजता जाता है, बचपन में सिखाई गई यह कहानी हमें सीख देती है कि संसार में हम लोगों के साथ जैसा व्यवहार करते हैं, बिल्कुल वही व्यवहार हमारे पास लौट कर आता है। यह भी स्पष्ट है कि कोई कितना ही संपन्न या समृद्ध हो, मुसीबत सबके जीवन में आती हैं। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारे संकट के समय में हमें उचित सहायता मिले, तो पहले हमें यह रवैया अपनाना होगा और किसी मुसीबत में फँसे लोगों और अन्य प्राणियों की निःस्वार्थ भाव से सहायता करना होगी। जीवन अनगिनत सफलताओं और अवसादों का सफर है, और इस सफर में हमें अनगिनत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जब समय मुश्किल राह से गुजर रहा होता है और सफलता के रास्ते धुँधले नज़र आते हैं, तो “कर भला तो हो भला” कहावत ही हमारे सामने सच्ची मार्गदर्शक बनकर सामने आती है। यह कहावत अपने में जीवन का सबसे बड़ा सबक लिए है, जो हमें यह सिखाती है कि यदि हमारे भीतर दूसरों का भला करने की प्रवृत्ति है, तो यह किसी न किसी रूप में हमारे लिए भी भला ही लेकर आएगी। इस उक्ति का मतलब यह नहीं है कि हमें अपने स्वार्थ के लिए ही कार्य करते रहना चाहिए, बल्कि यह बताती है कि यदि हम दूसरों की मदद करते हैं, तो इससे सिर्फ दूसरों का ही नहीं, बल्कि हमारा भी भला होता है। एक सही कार्य करने से न सिर्फ हमारी आत्मा पवित्र होती है, बल्कि यह हमें समर्पण की भावना का उपहार भी देता है। किसी जरूरतमंद व्यक्ति या अन्य किसी प्राणी की एक छोटी-सी मदद एक व्यक्ति के जीवन में क्राँति लाने की शक्ति रखती है, और जब भी हम किसी की मदद करते हैं, तो इससे हमें भी आत्मतृप्ति और संतुष्टि का अहसास होता है। कहावत का महत्व इस बात में है कि जब हम किसी के लिए सहानुभूति और उदारता का भाव रखते हैं, तो समय अपनी झोली में उस सहानुभूति और उदारता का कुछ हिस्सा हमारे लिए सहेजता जाता है। सकारात्मक सोच को अपनाना और बड़ा दिल रखना। जब हम अपने आसपास के लोगों के लिए सकारात्मक सोचते हैं और हमेशा उनकी भलाई के बारे में विचार करते हैं, तो हमारा मानसिक स्वास्थ्य हमें खुश रखने की पुरजोर कोशिश में लग जाता है। सिर्फ भलाई की उम्मीद के साथ ही लोगों का भला नहीं करते रहना चाहिए। यदि किसी ने हमारे साथ बुरा किया है, तो इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि हम भी उसके साथ बुरा ही करें। हमें भला करने पर ही ध्यान देना है। हम किसी से दुश्मनी या असहमति का सामना कर रहे हैं, तो भी उस व्यक्ति का भला करने का कोई भी मौका हमें नहीं छोड़ना है, क्योंकि यही वह समय होगा, जो उस शख्स को आपके करीब लाएगा, सिर्फ कहने के लिए ही नहीं, बल्कि अंतर-आत्मा से भी उसे आपके साथ जोड़ देगा। Edior - Gurlal Singh Athwal