26/11/2025
बाड़मेर के पत्रकार विवेक जी ने रात कि घटना का उल्लेख किया
आज पचपदरा गाँव में डांगरी रात में शामिल होना था, इसलिए जयपुर से जोधपुर जाने के लिए रोडवेज की बस पकड़ी। संयोग से मैं ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर बैठा था। बर–जैतारण के बीच अचानक ड्राइवर के फोन की घंटी बजी। उन्होंने फोन उठाया, उधर से कुछ सुना और बस इतना कहा “क्या…?”
अगले ही पल बस की रफ़्तार धीमी हो गई।
मैंने झुककर देखा तो ड्राइवर साहब की आँखों से आँसू बह रहे थे, होंठ काँप रहे थे। घबराकर पूछा
“अंकल, क्या हुआ?”
धीमे स्वर में उन्होंने टूटी हुई आवाज़ में कहा -
“मेरे बड़े भाई… हार्ट अटैक से… चले गए…”
क्षणभर के लिए मैं स्तब्ध रह गया। एक तरफ़ परिवार का अचानक उजड़ जाना… और दूसरी तरफ़ कई यात्रियों की जिंदगियों की ज़िम्मेदारी संभालते हुए स्टेयरिंग पर बैठे ये इंसान।
मैंने कंडक्टर को जगाया, हाल बताया और ड्राइवर साहब से कहा “गाड़ी रोक दीजिए, दस मिनट संभल लीजिए…”
पर उन्होंने आँसू पोंछते हुए सिर्फ इतना कहा—
“नहीं बेटा… सबको सुरक्षित जोधपुर छोड़ दूँ। फिर अंतिम बस से जयपुर लौटूँगा… सुबह दौसा पहुँचना है।”
रास्ते भर उनकी आँखों से आँसू चुपचाप टपकते रहे,
पर हाथ स्टेयरिंग पर डटकर, जिम्मेदारी निभाते रहे।
इतना बड़ा दुख… और इतनी भारी ड्यूटी…
और वे दोनों मोर्चे एक साथ लड़ते रहे बिना किसी शिकायत, बिना किसी हल्ले, बिना बाकी यात्रियों को बताए।
जोधपुर पहुँचने तक किसी को एहसास तक नहीं हुआ कि एक व्यक्ति भीतर से कितना टूटकर भी हम सबको सुरक्षित मंज़िल तक पहुँचा रहा था।
भगवान दिवंगत आत्मा को शांति दें, परिवार को शक्ति दें।
और इस कर्तव्यनिष्ठा, धैर्य और मानवीय साहस को मेरा शत-शत नमन।
बस नंबर — RJ 14 PD 6758
राजस्थान रोडवेज के इस चालक के लिए सिर्फ सम्मान ही सम्मान है।
मंत्री जी, यदि संभव हो तो ऐसे कर्मयोगी का अवश्य सम्मान किया जाए।