30/10/2025
ट्रैवल एजेंसियों का पत्र — लाचार सत्ता का दस्तावेज़!
राजस्थान की सत्ता के सामने खड़ी यह स्थिति लोकतांत्रिक ढांचे पर सवाल खड़ा करती है। हाल ही में ट्रैवल एजेंसियों द्वारा लिखा गया पत्र न केवल एक प्रशासनिक मुद्दा है, बल्कि यह सत्ता की कमजोरी का प्रतीक भी बनकर सामने आया है। यह पत्र बताता है कि जब निजी संस्थाएं राज्य सरकार की व्यवस्थाओं को चुनौती देने लगें और सरकार केवल “अनुरोध” की मुद्रा में दिखे, तो यह जनता के लिए चिंता का विषय बन जाता है।
पत्र की भाषा और उसका लहजा यह स्पष्ट कर देता है कि एजेंसी मालिकों को सत्ता से कोई भय नहीं। उन्होंने मुख्यमंत्री को सीधे शब्दों में कह दिया कि “हम बस नहीं चला रहे, आप अपनी व्यवस्था देख लीजिए।” यह बात केवल एक ट्रैवल विवाद नहीं, बल्कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति की परीक्षा है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए यह अवसर है कि वे साबित करें कि वे जनता के हित में किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेंगे।
हर मुख्यमंत्री को ऐसे अवसरों पर अपनी ईगो यानी आत्मसम्मान को जागृत करना चाहिए, खासकर जब बात जनता की सुरक्षा, सुविधा और प्रदेश के मान-सम्मान की हो। यदि निजी हित जनता के हितों से बड़े हो जाएं, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। सवाल उठता है — क्या ट्रैवल एजेंसियों की हनक राजस्थान की जनता की जान से ज्यादा बड़ी है? क्या मुख्यमंत्री को यह बर्दाश्त करना चाहिए कि कुछ सेठ प्रदेश के सामूहिक हितों के आगे अपनी शर्तें थोपें?
इस तरह की घटनाओं में इतिहास से सबक लिया जा सकता है। 2019 का वाकया याद कीजिए — जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी की थी। उस समय विज्ञापन कंपनियों ने कम रेट का हवाला देकर विज्ञापन करने से मना कर दिया था। लेकिन नायडू ने इस चुनौती को पर्सनल ईगो पर ले लिया। उन्होंने सख्त शब्दों में कहा — “आज आप आंध्र प्रदेश के साथ नहीं हैं, तो कल से आंध्र प्रदेश भी आपके साथ नहीं होगा।”
उन्होंने तत्काल आदेश दिया कि इन कंपनियों के सभी टेंडर रद्द कर दिए जाएं। परिणाम यह हुआ कि वही कंपनियां अगले दिन नायडू के दरवाजे पर गिड़गिड़ाने लगीं, किसी भी रेट पर काम करने को तैयार हो गईं। यह थी एक सशक्त नेतृत्व की पहचान — जो जनता और राज्य के सम्मान के लिए किसी भी व्यापारी दबाव के आगे नहीं झुकता।
भजनलाल शर्मा के लिए भी यह क्षण उसी तरह की परख का है। अगर वे ट्रैवल एजेंसियों के इस दबाव के आगे झुकते हैं, तो जनता यह मानने को मजबूर हो जाएगी कि उनका मुख्यमंत्री कमजोर है और निजी पूंजी के प्रभाव में काम करता है। लेकिन अगर वे सख्त रुख अपनाते हैं — और यह दिखा देते हैं कि प्रदेश का प्रशासन निजी व्यवसायियों की शर्तों पर नहीं चलेगा — तो यह राजस्थान की राजनीति में एक नया संदेश देगा कि जनता सर्वोपरि है।
राज्य सरकार के लिए यह केवल बसों की उपलब्धता का मामला नहीं, बल्कि प्रशासनिक साख का प्रश्न है। सरकार को यह दिखाना होगा कि उसकी नीतियां किसी के दबाव में नहीं बदलेंगी। जनता यह देख रही है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा इस स्थिति को कैसे हैंडल करते हैं — क्या वे समझौता करेंगे या नायडू की तरह निर्णायक रुख अपनाएंगे।
राज्य की जनता चाहती है एक ऐसा नेतृत्व जो निडर हो, न्यायप्रिय हो, और जनता की सुरक्षा को सर्वोपरि रखे। जब कोई व्यापारी समूह या निजी संस्था सार्वजनिक व्यवस्थाओं को बंधक बनाने की कोशिश करे, तो सरकार का कर्तव्य है कि वह उन्हें उनकी औकात याद दिलाए। यही प्रशासन की असली परीक्षा होती है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि भजनलाल शर्मा की सरकार इस पत्र को किस नजर से देखती है — क्या इसे एक मामूली शिकायत मानकर नजरअंदाज किया जाएगा, या इसे “राज्य की गरिमा” पर हमला समझकर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
राजस्थान की जनता अब यही इंतजार कर रही है कि उनका मुख्यमंत्री दिखाए कि वह लाचार सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि एक निर्णायक नेता है — जो अपने प्रदेश की गरिमा के लिए हर हनक और घमंड को तोड़ सकता है।