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कुचामन सिटी के बुड़सू रोड, जसराना स्थित आस्था स्कूल एंड स्पोर्ट्स एकेडमी की प्रतिभाशाली छात्रा हर्षिता चौधरी ने भरतपुर म...
01/11/2025

कुचामन सिटी के बुड़सू रोड, जसराना स्थित आस्था स्कूल एंड स्पोर्ट्स एकेडमी की प्रतिभाशाली छात्रा हर्षिता चौधरी ने भरतपुर में आयोजित U-14 राजस्थान एथलेटिक्स प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करते हुए सिल्वर मेडल जीतकर नेशनल स्तर के लिए क्वालीफाई किया है। यह उपलब्धि न केवल विद्यालय के लिए गर्व का विषय है बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणादायक भी है। हर्षिता की मेहनत, लगन और खेल के प्रति समर्पण ने सफलता की नई मिसाल कायम की है। उन्हें हार्दिक बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य के लिए अनंत शुभकामनाएं। 🌟🏅

जब ड्रेस में ढूंढा जाने लगा सम्मान!अब सरकार ने शिक्षा व्यवस्था का असली “मूल कारण” पकड़ लिया — बच्चों की ड्रेस! ज्ञान, शि...
01/11/2025

जब ड्रेस में ढूंढा जाने लगा सम्मान!

अब सरकार ने शिक्षा व्यवस्था का असली “मूल कारण” पकड़ लिया — बच्चों की ड्रेस! ज्ञान, शिक्षक, संसाधन सब बाद में, पहले सम्मान का ड्रेस कोड ज़रूरी है।

सरकारी स्कूलों की हालत यह है कि कहीं एक शिक्षिका आठ कक्षाओं को संभाल रही हैं, कहीं एक कमरे में पाँच क्लासें भरी हैं। शिक्षकों को खुद पीटीएम की खबर नहीं। लेकिन अफसरों की निगाह कपड़ों पर है — मानो सम्मान कपड़े से टपकता हो और नालियों में बहती शिक्षा से कोई मतलब ही नहीं।

वहीं दूसरी तरफ़ प्राइवेट स्कूलों की बात करें तो वहाँ ड्रेस कोड कोई “नया नियम” नहीं, बल्कि अनुशासन की पहचान है। वहाँ बच्चा समय पर आता है, शिक्षक उपस्थित रहते हैं, क्लासें व्यवस्थित चलती हैं। ड्रेस वहाँ पढ़ाई की गंभीरता का प्रतीक है, दिखावे का नहीं।

सरकारी स्कूलों में समस्या कपड़ों की नहीं, सिस्टम की है। वहाँ अगर सम्मान चाहिए तो पहले सुविधाएँ दीजिए — पर्याप्त शिक्षक, सही भवन, साफ़ वातावरण। तभी बच्चों के कपड़ों से पहले उनके भविष्य में “सम्मान” दिखेगा।

दरअसल, फर्क इतना है कि प्राइवेट स्कूल ड्रेस को अनुशासन का हिस्सा मानते हैं, जबकि सरकारी सिस्टम ने उसे शिक्षा का विकल्प बना दिया है।

कपड़े बदलने से नहीं, नीयत बदलने से स्कूलों का स्तर ऊँचा होता है — चाहे वो सरकारी हों या प्राइवेट।

31/10/2025

🙏

आज़ादी के बाद से इस देश की सत्ता पर मुख्यतः दो राजनीतिक दलों—कांग्रेस और भाजपा—का ही वर्चस्व रहा है। लेकिन उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल जैसे कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने भी अपनी गहरी जड़ें जमाईं। इन राज्यों की बहुसंख्यक जातियों ने राष्ट्रीय दलों को किनारे रखकर अपने समाज के नेतृत्व को आगे बढ़ाया। बिहार और यूपी में यादव समाज की संख्या अधिक थी, उन्होंने जातीय एकजुटता दिखाते हुए लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं को मछली की आंख मानकर राजनीति की दिशा तय की। उन्होंने कभी उम्मीदवार की जाति नहीं देखी, बस अपने नेता का झंडा देखा और वोट उसी को दिया जो उनके मुखिया का सिपाही था।

लेकिन अफसोस, राजस्थान में तस्वीर उलटी है। यहां भी मछली की आंख तो मौजूद है—वो हैं हनुमान बेनीवाल, पर हमारा समाज अब भी मछली की आंख छोड़कर तालाब की गंदगी में उलझा हुआ है। हर जगह “हमारे समाज का उम्मीदवार” देखने की आदत ने हनुमान की ताकत को सीमित कर दिया है। अगर आप सच में चाहते हैं कि कोई जाट मुख्यमंत्री बने, तो हनुमान को मुखिया मानते हुए RLP के उम्मीदवार को 36 कौमों से ऊपर रखकर समर्थन दें।

अन्यथा पंचायत से लेकर संसद तक हर पद पर “जाट उम्मीदवार” तो होगा, लेकिन सत्ता किसी और के हाथों में रहेगी। फिर शिकायत मत करना कि हमारी आवाज़ नहीं सुनी गई।
समय आ गया है—मछली नहीं, मछली की आंख देखने का।
जागो सरदारों, अब एकता ही शक्ति है, बिखराव नहीं! 🙏✊

राजस्थान की राजनीति में एक ऐतिहासिक वाकया हमेशा याद किया जाता है—जब हनुमान बेनीवाल जेल में थे और रात के 2 बजे ताले टूट ग...
31/10/2025

राजस्थान की राजनीति में एक ऐतिहासिक वाकया हमेशा याद किया जाता है—जब हनुमान बेनीवाल जेल में थे और रात के 2 बजे ताले टूट गए थे। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री थे भैरोसिंह शेखावत। जब उन्हें खबर मिली कि हनुमान बेनीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में पूरे राजस्थान में जनसैलाब उमड़ पड़ा है और लोग सड़कों पर उतर आए हैं, तब उन्होंने महसूस किया कि अब हालात सरकार के नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। बताया जाता है कि इसी डर से तुरंत आदेश हुआ कि हनुमान बेनीवाल को रिहा किया जाए। उस घटना के बाद से बेनीवाल का राजनीतिक सफर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा और उन्होंने जननेता के रूप में अपनी पहचान मजबूत की। दिलचस्प बात यह रही कि भले ही उस दौर में हालात टकराव वाले थे, लेकिन राजनीति से परे जाकर भैरोसिंह शेखावत और हनुमान बेनीवाल के बीच आपसी सम्मान और मित्रता का रिश्ता हमेशा कायम रहा। यही रिश्ता दर्शाता है कि सच्चे नेता मतभेदों से ऊपर उठकर भी एक-दूसरे के प्रति सम्मान बनाए रख सकते हैं। 🙏

30/10/2025

एक्सीडेंटल नेता बनाम जननेता — फर्क समझिए साहब! 😏

राजनीति में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो गलती से नेता बन जाते हैं — जैसे किसी का फोन जेब से अपने आप डायल हो जाए। बस, वही हैं एक्सीडेंटल नेता! पद तो मिल गया, पर जनता से कनेक्शन “नो नेटवर्क” जैसा है। न जमीन पर पकड़, न जनता में पहचान — लेकिन हाँ, सेल्फी और सुर्खियों में रहना खूब आता है।

दूसरी तरफ़ होते हैं जननेता — जिनकी पहचान पद से नहीं, जनता से होती है। जिनकी आवाज़ सड़कों से लेकर सदन तक गूंजती है। वो नेता नहीं, आंदोलन का चेहरा होते हैं।

अब दिक्कत ये है कि एक्सीडेंटल नेता सोचते हैं कि कुछ चापलूसों की टोली और कुछ मीडिया की हेडलाइनें उन्हें “जनता का मसीहा” बना देंगी। ऐसे में ज़रूरी है कि जनता थोड़ा होश में रहे — हर माइक पकड़ने वाला नेता नहीं होता, और हर बयान में दम नहीं होता।

इसलिए साहब, चपड़गंजुओं को ज़्यादा भाव देने की जरूरत नहीं।
वो कल तक सेल्फी नेता थे, आज सोशल मीडिया जननेता बन बैठे हैं — फर्क बस इतना है कि जननेता जनता के बीच होते हैं, और ये लोग सिर्फ़ कैमरे के बीच। 🎭

ट्रैवल एजेंसियों का पत्र — लाचार सत्ता का दस्तावेज़!राजस्थान की सत्ता के सामने खड़ी यह स्थिति लोकतांत्रिक ढांचे पर सवाल ...
30/10/2025

ट्रैवल एजेंसियों का पत्र — लाचार सत्ता का दस्तावेज़!

राजस्थान की सत्ता के सामने खड़ी यह स्थिति लोकतांत्रिक ढांचे पर सवाल खड़ा करती है। हाल ही में ट्रैवल एजेंसियों द्वारा लिखा गया पत्र न केवल एक प्रशासनिक मुद्दा है, बल्कि यह सत्ता की कमजोरी का प्रतीक भी बनकर सामने आया है। यह पत्र बताता है कि जब निजी संस्थाएं राज्य सरकार की व्यवस्थाओं को चुनौती देने लगें और सरकार केवल “अनुरोध” की मुद्रा में दिखे, तो यह जनता के लिए चिंता का विषय बन जाता है।

पत्र की भाषा और उसका लहजा यह स्पष्ट कर देता है कि एजेंसी मालिकों को सत्ता से कोई भय नहीं। उन्होंने मुख्यमंत्री को सीधे शब्दों में कह दिया कि “हम बस नहीं चला रहे, आप अपनी व्यवस्था देख लीजिए।” यह बात केवल एक ट्रैवल विवाद नहीं, बल्कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति की परीक्षा है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए यह अवसर है कि वे साबित करें कि वे जनता के हित में किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेंगे।

हर मुख्यमंत्री को ऐसे अवसरों पर अपनी ईगो यानी आत्मसम्मान को जागृत करना चाहिए, खासकर जब बात जनता की सुरक्षा, सुविधा और प्रदेश के मान-सम्मान की हो। यदि निजी हित जनता के हितों से बड़े हो जाएं, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। सवाल उठता है — क्या ट्रैवल एजेंसियों की हनक राजस्थान की जनता की जान से ज्यादा बड़ी है? क्या मुख्यमंत्री को यह बर्दाश्त करना चाहिए कि कुछ सेठ प्रदेश के सामूहिक हितों के आगे अपनी शर्तें थोपें?

इस तरह की घटनाओं में इतिहास से सबक लिया जा सकता है। 2019 का वाकया याद कीजिए — जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी की थी। उस समय विज्ञापन कंपनियों ने कम रेट का हवाला देकर विज्ञापन करने से मना कर दिया था। लेकिन नायडू ने इस चुनौती को पर्सनल ईगो पर ले लिया। उन्होंने सख्त शब्दों में कहा — “आज आप आंध्र प्रदेश के साथ नहीं हैं, तो कल से आंध्र प्रदेश भी आपके साथ नहीं होगा।”
उन्होंने तत्काल आदेश दिया कि इन कंपनियों के सभी टेंडर रद्द कर दिए जाएं। परिणाम यह हुआ कि वही कंपनियां अगले दिन नायडू के दरवाजे पर गिड़गिड़ाने लगीं, किसी भी रेट पर काम करने को तैयार हो गईं। यह थी एक सशक्त नेतृत्व की पहचान — जो जनता और राज्य के सम्मान के लिए किसी भी व्यापारी दबाव के आगे नहीं झुकता।

भजनलाल शर्मा के लिए भी यह क्षण उसी तरह की परख का है। अगर वे ट्रैवल एजेंसियों के इस दबाव के आगे झुकते हैं, तो जनता यह मानने को मजबूर हो जाएगी कि उनका मुख्यमंत्री कमजोर है और निजी पूंजी के प्रभाव में काम करता है। लेकिन अगर वे सख्त रुख अपनाते हैं — और यह दिखा देते हैं कि प्रदेश का प्रशासन निजी व्यवसायियों की शर्तों पर नहीं चलेगा — तो यह राजस्थान की राजनीति में एक नया संदेश देगा कि जनता सर्वोपरि है।

राज्य सरकार के लिए यह केवल बसों की उपलब्धता का मामला नहीं, बल्कि प्रशासनिक साख का प्रश्न है। सरकार को यह दिखाना होगा कि उसकी नीतियां किसी के दबाव में नहीं बदलेंगी। जनता यह देख रही है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा इस स्थिति को कैसे हैंडल करते हैं — क्या वे समझौता करेंगे या नायडू की तरह निर्णायक रुख अपनाएंगे।

राज्य की जनता चाहती है एक ऐसा नेतृत्व जो निडर हो, न्यायप्रिय हो, और जनता की सुरक्षा को सर्वोपरि रखे। जब कोई व्यापारी समूह या निजी संस्था सार्वजनिक व्यवस्थाओं को बंधक बनाने की कोशिश करे, तो सरकार का कर्तव्य है कि वह उन्हें उनकी औकात याद दिलाए। यही प्रशासन की असली परीक्षा होती है।

अब देखना दिलचस्प होगा कि भजनलाल शर्मा की सरकार इस पत्र को किस नजर से देखती है — क्या इसे एक मामूली शिकायत मानकर नजरअंदाज किया जाएगा, या इसे “राज्य की गरिमा” पर हमला समझकर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
राजस्थान की जनता अब यही इंतजार कर रही है कि उनका मुख्यमंत्री दिखाए कि वह लाचार सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि एक निर्णायक नेता है — जो अपने प्रदेश की गरिमा के लिए हर हनक और घमंड को तोड़ सकता है।

News update
30/10/2025

News update

बहुत ही कम समय में 14 तबादले वाले ईमानदार और सरकार से न डरने वाले SDM प्रभाती लाल जी का RLP में आना इस बात का सबूत है कि...
29/10/2025

बहुत ही कम समय में 14 तबादले वाले ईमानदार और सरकार से न डरने वाले SDM प्रभाती लाल जी का RLP में आना इस बात का सबूत है कि, RLP का नेतृत्व ईमानदार हाथों में है ।

एक रोज़ ऐसा वक़्त ज़रूर आएगा जब लोग डर के साए से थक जाएंगे, तब उन्हें एहसास होगा कि वो दरअसल ज़ंजीरों से नहीं, बल्कि अपन...
29/10/2025

एक रोज़ ऐसा वक़्त ज़रूर आएगा जब लोग डर के साए से थक जाएंगे, तब उन्हें एहसास होगा कि वो दरअसल ज़ंजीरों से नहीं, बल्कि अपने ही ज़ेहन से क़ैद थे। डर ने उनके सोचने और बोलने की आज़ादी छीन ली थी। जब हिम्मत जागेगी, तो ये क़ैद भी टूट जाएगी और हर इंसान सच बोलने का साहस करेगा। ✊♥️
ी_आवाज़ #हिम्मत #आजादी #ज़ेहन_से_क़ैद

29/10/2025

भोपालगढ़ विधानसभा क्षेत्र कि सबसे बड़ी पंचायत सालवा कल्ला के पूर्व सरपंच , पूर्व जिला परिषद सदस्य , वर्तमान में पंचायत समिति सदस्य , वरिष्ठ और 21 जाट खेड़ा अध्यक्ष पूर्व कांग्रेस नेता घेवर राम जी ढाका का RLP परिवार हार्दिक स्वागत ।

🚨 राजस्थान सरकार को झटका — डीएसपी भूराराम खिलेरी को हाईकोर्ट से मिली राहत! 🚨भाजपा पदाधिकारी की गिरफ्तारी मामले में चर्चि...
29/10/2025

🚨 राजस्थान सरकार को झटका — डीएसपी भूराराम खिलेरी को हाईकोर्ट से मिली राहत! 🚨

भाजपा पदाधिकारी की गिरफ्तारी मामले में चर्चित भोपालगढ़ के डीएसपी भूराराम खिलेरी को सरकार ने एपीओ (Awaiting Posting Order) कर बड़ी कार्रवाई की थी। लेकिन अब इस मामले में राजस्थान सरकार को बड़ा झटका लगा है। डीएसपी भूराराम खिलेरी ने राजस्थान हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर प्राप्त कर लिया है।

जानकारी के अनुसार, कुछ दिन पहले डीएसपी खिलेरी ने एक भाजपा पदाधिकारी को कानून व्यवस्था बनाए रखने के तहत गिरफ्तार किया था। इसके बाद राजनीतिक दबाव में आकर सरकार ने उन्हें एपीओ कर दिया था। परंतु खिलेरी ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

हाईकोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई के बाद राज्य सरकार की कार्रवाई पर स्टे आदेश जारी कर दिया, जिससे सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।

इस घटनाक्रम से भजनलाल शर्मा सरकार की छवि पर असर पड़ा है और पुलिस प्रशासन में भी हलचल मच गई है।
राजस्थान में यह मामला कानून बनाम राजनीति की नई बहस छेड़ गया है।

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