12/08/2025
भारतीय राजनीति में कभी-कभी कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो किसी किताब के सबसे प्रेरक अध्याय की तरह होते हैं, और भरतपुर की कांग्रेस सांसद संजना जाटव उसी अध्याय की नायिका हैं। राजनीति के ऊँचे-ऊँचे मंचों पर जहाँ अक्सर वंशवाद और बड़े घरानों की चमक दिखती है, वहीं संजना जाटव उस सच्चाई की मिसाल हैं कि मेहनत, संघर्ष और जज़्बा ही असली पूँजी है।
संजना का जन्म एक बेहद ग़रीब परिवार में हुआ, जहाँ सपनों का आसमान तो था, लेकिन उड़ान के लिए पंख नहीं थे। बचपन से ही संघर्ष उनकी परछाई की तरह साथ रहा। शादी के बाद भी हालात आसान नहीं हुए—पति राजस्थान पुलिस में एक साधारण कांस्टेबल, घर की जिम्मेदारियाँ, और खुद का सपना। लेकिन संजना ने ठान लिया कि ज़िंदगी का पन्ना पलटना है। उन्होंने पढ़ाई जारी रखी, सरकारी नौकरी की तैयारी की, और तभी पति और परिवार ने उनका साथ पकड़ लिया—जैसे एक नाव को तट तक पहुँचाने के लिए हवा का झोंका मिल जाए।
यहीं से राजनीति की राह खुली। कांग्रेस पार्टी ने उनमें एक जननेता की सच्ची झलक देखी और बिना किसी राजनीतिक खानदान के नाम या बड़े रसूख के, उन्हें आगे बढ़ाया। नतीजा—एक साधारण लड़की सांसद की कुर्सी तक पहुँची, जो आज किसी भी मुद्दे पर, चाहे वह महिला अधिकार हो, ग़रीब का हक़ हो या जनता की समस्याएँ, डटकर खड़ी हो जाती हैं।
संजना जाटव इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं कि अगर राजनीति में सच्चे ज़मीनी लोग आएँ, तो वे सिर्फ़ कुर्सी नहीं, बल्कि पूरे समाज का चेहरा बदल सकते हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि भारतीय लोकतंत्र में आज भी सपनों को हक़ीक़त बनाने की ताक़त मौजूद है—बस ज़रूरत है, उस सपने को देखने और उसे जिद की तरह जीने की।
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