Kailash Mehala

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12/08/2025

जब हनुमान बेनीवाल कोई मुद्दा पकड़ते हैं, तो जैसे बाकी नेताओं के दिल में अचानक देशभक्ति का ज्वार उमड़ पड़ता है। सबको लगता है, “हमें भी फोटो खिंचवानी है, हमें भी आगे दिखना है।” अरे भाई, इतने सालों से ये सब आपकी आंखों के सामने हो रहा था, तब तो आप जैसे मौन व्रत में थे। अब जैसे ही बेनीवाल मैदान में उतरते हैं, आपको भी भीड़ में अपना चेहरा चमकाने की जल्दी मच जाती है। थान सिंह डोली तो बस ट्रेलर हैं, जिनके संघर्ष ने इस मुद्दे को जिलाए रखा। असली पिक्चर तो 14 अगस्त को चलेगी, जब नेताजी मंच से सीधा जवाब देंगे—ऐसा जवाब, जो पूरे राजस्थान में गूंजेगा और उन नेताओं के चेहरे पर नकली मुस्कानें चिपका देगा, जो अभी-अभी मुद्दा याद कर रहे हैं। राजनीति में टाइमिंग सब कुछ है, और यहां टाइमिंग बेनीवाल की है।

12/08/2025

राजस्थान में कौन-कौन से विधानसभा क्षेत्र हैं जहाँ हारे हुए प्रत्याशी का प्रभाव जीते हुए विधायक से अधिक है?

भारतीय राजनीति में कभी-कभी कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो किसी किताब के सबसे प्रेरक अध्याय की तरह होते हैं, और भरतपुर की कांग...
12/08/2025

भारतीय राजनीति में कभी-कभी कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो किसी किताब के सबसे प्रेरक अध्याय की तरह होते हैं, और भरतपुर की कांग्रेस सांसद संजना जाटव उसी अध्याय की नायिका हैं। राजनीति के ऊँचे-ऊँचे मंचों पर जहाँ अक्सर वंशवाद और बड़े घरानों की चमक दिखती है, वहीं संजना जाटव उस सच्चाई की मिसाल हैं कि मेहनत, संघर्ष और जज़्बा ही असली पूँजी है।

संजना का जन्म एक बेहद ग़रीब परिवार में हुआ, जहाँ सपनों का आसमान तो था, लेकिन उड़ान के लिए पंख नहीं थे। बचपन से ही संघर्ष उनकी परछाई की तरह साथ रहा। शादी के बाद भी हालात आसान नहीं हुए—पति राजस्थान पुलिस में एक साधारण कांस्टेबल, घर की जिम्मेदारियाँ, और खुद का सपना। लेकिन संजना ने ठान लिया कि ज़िंदगी का पन्ना पलटना है। उन्होंने पढ़ाई जारी रखी, सरकारी नौकरी की तैयारी की, और तभी पति और परिवार ने उनका साथ पकड़ लिया—जैसे एक नाव को तट तक पहुँचाने के लिए हवा का झोंका मिल जाए।

यहीं से राजनीति की राह खुली। कांग्रेस पार्टी ने उनमें एक जननेता की सच्ची झलक देखी और बिना किसी राजनीतिक खानदान के नाम या बड़े रसूख के, उन्हें आगे बढ़ाया। नतीजा—एक साधारण लड़की सांसद की कुर्सी तक पहुँची, जो आज किसी भी मुद्दे पर, चाहे वह महिला अधिकार हो, ग़रीब का हक़ हो या जनता की समस्याएँ, डटकर खड़ी हो जाती हैं।

संजना जाटव इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं कि अगर राजनीति में सच्चे ज़मीनी लोग आएँ, तो वे सिर्फ़ कुर्सी नहीं, बल्कि पूरे समाज का चेहरा बदल सकते हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि भारतीय लोकतंत्र में आज भी सपनों को हक़ीक़त बनाने की ताक़त मौजूद है—बस ज़रूरत है, उस सपने को देखने और उसे जिद की तरह जीने की।

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12/08/2025

कांग्रेस में गहलोत ही मुख्या है
गहलोत ही कांग्रेस है
#जादुगर

निर्दलीय विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने एक बेहद तीखी और सटीक टिप्पणी करते हुए कहा – “हमारा सिस्टम तो कटप्पा है, उसे न भल्ल...
12/08/2025

निर्दलीय विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने एक बेहद तीखी और सटीक टिप्पणी करते हुए कहा – “हमारा सिस्टम तो कटप्पा है, उसे न भल्लालदेव से मतलब है, न बाहुबली से।”
इस एक पंक्ति में उन्होंने पूरे तंत्र की निष्प्रभावी और सत्ता-परस्त मानसिकता को उजागर कर दिया। उनका इशारा साफ था कि आज का प्रशासनिक सिस्टम आम जनता के हितों से या सत्ता में बैठे नेताओं के व्यक्तिगत एजेंडे से कोई मतलब नहीं रखता, बल्कि वह अपने स्वार्थ और सुरक्षित स्थिति के हिसाब से ही कदम उठाता है।
कटप्पा का उदाहरण देकर उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि जैसे फिल्म ‘बाहुबली’ में कटप्पा का मुख्य काम राजा के आदेश का पालन करना था, चाहे वह भल्लालदेव हो या बाहुबली, ठीक वैसे ही हमारा सिस्टम भी किसी व्यक्ति विशेष के प्रति वफादार नहीं, बल्कि केवल अपनी कुर्सी और नियमों के प्रति कठोरता से बंधा है।
भाटी ने यह भी संकेत दिया कि जब तक इस मानसिकता में बदलाव नहीं आता और सिस्टम जनता के प्रति जवाबदेह नहीं बनता, तब तक न तो सही न्याय हो सकता है और न ही ईमानदार कामकाज। उनका यह बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।

12/08/2025

आज सरकार क़े द्वारा कोर्ट मे कहाँ गया पेपर कुछ ही चिन्हित लोगों क़े पास गया और उन्हे पकड़कर कार्यवाही की जा रही है, सुनवाई कल भी जारी रहेगी।
परसो फैसला रिजर्व हो सकता है...

कुछ लोग समय और परिस्थितियों के साँचे में ढल जाते हैं, पर कुछ ऐसे भी होते हैं जो खुद समय का साँचा बदल देते हैं। शिक्षा नग...
12/08/2025

कुछ लोग समय और परिस्थितियों के साँचे में ढल जाते हैं,
पर कुछ ऐसे भी होते हैं जो खुद समय का साँचा बदल देते हैं।

शिक्षा नगरी सीकर की पहचान को नई ऊँचाइयों तक ले जाने वाले, दूरदर्शी सोच और अद्भुत नेतृत्व क्षमता के धनी, प्रिंस परिवार के मुखिया जोगेन्द्र सुण्डा सर उन्हीं में से एक हैं।
आपने शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और गुणवत्ता को प्राथमिकता देते हुए सीकर की साख को सम्पूर्ण भारत में स्थापित किया।
आपकी मेहनत, समर्पण और सकारात्मक दृष्टिकोण ने हजारों विद्यार्थियों के जीवन को नई दिशा दी है।
आप न केवल एक सफल शिक्षा-प्रशासक हैं, बल्कि प्रेरणा के स्रोत भी हैं।
आपके अवतरण दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ, ईश्वर आपको दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और निरंतर सफलता प्रदान करे, ताकि शिक्षा के इस पावन यज्ञ में आपकी लौ सदैव प्रज्वलित रहे।

जो बड़े गर्व से कहते थे कि अगर घर वापसी करनी हो तो धोरे आली ढाणी के चक्कर लगाने पड़ेंगे,उनसे अब पूछना चाहिए – कै हाल है?...
12/08/2025

जो बड़े गर्व से कहते थे कि अगर घर वापसी करनी हो तो धोरे आली ढाणी के चक्कर लगाने पड़ेंगे,
उनसे अब पूछना चाहिए – कै हाल है?
खान साहब दिल्ली से घर वापसी करके सीधे तुम्हारे ही क्षेत्र में उतर गए हैं,
और अब तो तुम्हारी छाती पर मूंग भी ऐसे दल रहे हैं जैसे यही उनका पुश्तैनी खेत हो।
दिल्ली में बैठकर जिनको “दूर का खतरा” समझते थे,
अब वही पास आकर रोज सुबह-शाम सियासी पुश-अप्स कर रहे हैं।
तुम सोच रहे थे कि रेगिस्तान की रेत में उनकी चाल थम जाएगी,
लेकिन यहां तो उन्होंने अपना तंबू गाड़ दिया है और चूल्हा भी जला दिया है।
कहावत सच हो गई – “राजनीति में दुश्मन की घर वापसी, दोस्त की शादी से भी भारी पड़ती है!”

12/08/2025

समेटा ने किस किस को समेटा है..?
्ती_2021

12/08/2025

सोचिए ज़रा, अगर यही जहरीला रासायनिक पानी जोधपुर के सरदारपुरा या बालोतरा शहर की गलियों में बह रहा होता, तो हड़कंप मच जाता।
मंत्री जी से लेकर कलेक्टर साहब तक, सब हेलीकॉप्टर से उतर-उतरकर “आपदा प्रबंधन” के फोटोशूट करवाते,
टीवी डिबेट में मानवाधिकार की बातें होतीं और पांच सितारा होटलों में मीटिंग का दौर चलता।
लेकिन अफसोस, ये पानी गांव और गरीबों तक सीमित है,
जहां लोकतंत्र का मतलब सिर्फ वोट बैंक है और मानवाधिकार कुछ नेताओं और अधिकारियों की फाइलों व लिफाफों में कैद हैं।
यहां कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं होती, कोई हेलीकॉप्टर लैंड नहीं करता,
बस लोग चुपचाप जहर पीते रहते हैं और सरकार “जांच जारी है” का राग अलापती रहती है।
शायद लोकतंत्र का नक्शा भी अब वीआईपी इलाकों तक ही सीमित है।

12/08/2025

चुनावी सभाओं में मोदीजी भावुक होकर कहते थे – "बीजेपी को वोट नहीं दिया तो आपका मंगलसूत्र छीन लिया जाएगा!"
अब देखिए, राजस्थान में आपकी भजनलाल सरकार ने महिलाओं के हाथ से पानी की बोतल ही छीन ली।
लगता है, वादों का अपग्रेड हो गया है – मंगलसूत्र से सीधे पानी तक!
जनता सोच रही है, क्या इसी दिन के लिए बीजेपी को जिताया था, कि अब प्यास बुझाने तक पर राजनीति हो?
शायद अगली बार चुनावी वादा होगा – “वोट दो, वरना सांस भी छीन लेंगे!”

12/08/2025

भारत में आज पहली कृत्रिम वर्षा कहां करवाई जाएगी? सफलता की स्थिति में यह एक नया इतिहास बनेगा।

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