29/10/2024
#राघवेन्द्र_नारायण_के_गीत
---------------
#हुई_रोशन है यह धरती
-------
हुई रोशन है यह धरती, प्रफुल्लित हो रहा हर मन
नहीं कहीं भी अंधेरा है,नहीं दुख का कहीं क्रंदन --१
जिधर भी देखिए,दीपों की लड़ियां,कर रहीं जगमग
कहीं पर प्रार्थना का स्वर, बनाता दिव्यतम यह क्षण --२
निकलकर गलियों में युवा, जलाते खूब फुलझड़ियां
कोई एकाकी बैठा कर रहा, कायनात पर चिंतन --३
सभी के मन हैं उत्साहित,सभी में जोश की धारा
प्रकृति। ने कर दिया ऐसा, अचानक ऐसा परिवर्तन --४
बाजारों की बढ़ी रौनक, प्रदर्शित हो रही चीजें
कोई सोने पर है लट्टू, खरीदे कोई सिर्फ बर्तन --५
जिसकी जैसी जरूरत है, वह वैसी लेकर उम्मीदें
निकल आया घर से बाहर,अमीर हो चाहे हो निर्धन --६
दीपोत्सव की है यह सुषमा,सुशोभित हो रहा हर घर
नदी के तट से लेकर के, बागों तक दीपों का दर्शन --७
हुआ यदि आज भी नहीं आदमी, खुशियों का संवाहक
समझ यह लीजिए उसके भीतर, है व्यर्थ की उलझन --८
जिसने खुलकर जीना सीखा, वही इंसान हैं अव्वल
नहीं तो धरती पर उसका जीवन, पीड़ाओं का बन्धन --९
ऐसे पल मुश्किल से मिलते,किसी को अपने जीवन में
जब धरती पर लिखा हो ,सत्यम् शिवम् और सुंदरम्!--१०
© राघवेन्द्र नारायण २९/१०/२०२४