SAHITYAM COMPETITION CLASSES

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24/01/2025
20/12/2024

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केन्द्र में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्रारम्भ है, जिसमें न कोई उम्र बाध्यता, न ही संस्कृत विषय की अनिवार्यता...
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20/11/2024

#राघवेन्द्र_नारायण_के_गीत
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#रहेगा_दायरा_जितना
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रहेगा दायरा जितना,वह उतना ही तो सोचेगा
जितनी क्षमता होगी वह व्यक्ति,उतना ही खंरोंचेगा --१

नहीं करनी अपेक्षा चाहिए, हमें मूषक से ज्यादा
बहुत कोशिश करेगा तो ,थोड़ा गहरा बिल खोदेगा --२

क्यों उसको दोष दें जिसकी समझ है,पेट तक सीमित
दावत में जायेगा यदि वह ,भोजन ही पहले खोजेगा --३

हम क्यों यह मान लेते हैं, मनुष्य होता है आध्यात्मिक
लकड़हारा काटेगा वृक्ष, क्यों पौधे श्रम से रोपेगा --४

वे होते और माटी के,जो लेते हैं सुधि औरों की
ख़ुदग़र्ज़ तो अपने वास्ते ही , सुखों की खेप भोगेगा --५

जिसकी मानसिकता जैसी है, वह करता कर्म भी वैसा
वधिक नहीं रिश्तों की बातें,सोचकर खंजर रोकेगा --६

जो होता हृदय से निर्मल, वही उपकार रत रहता
भूखे खुद रहकर भी भोजन,वह औरों को परोसेगा --७

कोयल गायेगी गीत अपना, मधुर आकर के बगिया में
मगर श्वान कितना भी चाहे,भौं -भौं करके ही भौंकेगा --८

जिसमें होगी मानवता बेमिसाल, वह ही तो रातों में
किसी भटके अजनबी के लिए, द्वार अपने खोलेगा !--९

© राघवेन्द्र नारायण १९/११/२०२४

11/11/2024

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन में भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई. वह भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में छह महीने का कार्यकाल पूरा करेंगे. सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को मुख्य न्यायाधीश की भूमिका के लिए निवर्तमान सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने प्रस्तावित किया था.

29/10/2024

#राघवेन्द्र_नारायण_के_गीत
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#हुई_रोशन है यह धरती
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हुई रोशन है यह धरती, प्रफुल्लित हो रहा हर मन
नहीं कहीं भी अंधेरा है,नहीं दुख का कहीं क्रंदन --१

जिधर भी देखिए,दीपों की लड़ियां,कर रहीं जगमग
कहीं पर प्रार्थना का स्वर, बनाता दिव्यतम यह क्षण --२

निकलकर गलियों में युवा, जलाते खूब फुलझड़ियां
कोई एकाकी बैठा कर रहा, कायनात पर चिंतन --३

सभी के मन हैं उत्साहित,सभी में जोश की धारा
प्रकृति। ने कर दिया ऐसा, अचानक ऐसा परिवर्तन --४

बाजारों की बढ़ी रौनक, प्रदर्शित हो रही चीजें
कोई सोने पर है लट्टू, खरीदे कोई सिर्फ बर्तन --५

जिसकी जैसी जरूरत है, वह वैसी लेकर उम्मीदें
निकल आया घर से बाहर,अमीर हो चाहे हो निर्धन --६

दीपोत्सव की है यह सुषमा,सुशोभित हो रहा हर घर
नदी के तट से लेकर के, बागों तक दीपों का दर्शन --७

हुआ यदि आज भी नहीं आदमी, खुशियों का संवाहक
समझ यह लीजिए उसके भीतर, है व्यर्थ की उलझन --८

जिसने खुलकर जीना सीखा, वही इंसान हैं अव्वल
नहीं तो धरती पर उसका जीवन, पीड़ाओं का बन्धन --९

ऐसे पल मुश्किल से मिलते,किसी को अपने जीवन में
जब धरती पर लिखा हो ,सत्यम् शिवम् और सुंदरम्!--१०

© राघवेन्द्र नारायण २९/१०/२०२४

29/10/2024

#राघवेन्द्र_नारायण_के_झील_गीत
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ें_झील_तक
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उस शहर में झील तक जाकर , पथिक वह लौट आया
झील तो अब भी वही थी, पहले सी उसकी थी काया--१

पर अचानक क्या हुआ,वह नहीं आगे जा सका था
अपने इस आचरण पर , मन ही मन वह मुस्कुराया--२

झील से मिले बिना वह , क्यों अचानक मुड़ा पीछे
बहुत समझा फिर भी वह,कारण कोई नहीं समझ पाया--३

जिससे मिलकर वह हुआ, करता था,चिन्ताओं से दूर
आज क्यों वह नहीं उससे, मिला बन इतना पराया --४

क्यों नहीं वह बढ़कर आगे,रुका कुछ पल उसके तट पर
कौन सी वह वर्जना थी, जिसने आकर डाली छाया--५

सोचता हुआ लौटता था, भारी कदमों से वह वापस
तभी कोई आकर उसके, कानों में था फुसफुसाया--६

कहां जाते हो बिना, उस झील से मिले हुए तुम
देख लो मुड़कर के तो तुम, झील ने तुम्हें है बुलाया --७

आज भी वह मुंतजिर है, राह तेरी देखकर के
नहीं उसने आज तक, किसी और को तट पर बसाया --८

मुड़ पड़ा था वह पथिक, उसके कदम थे झील तट पर
आकर बाहर झील ने , उस पथिक को गले लगाया --९

मिट गयी सब दूरियां थीं, प्रेम का सैलाब उमड़ा
झील के उर में पथिक वह, भूलकर जग को समाया!--१०

© राघवेन्द्र नारायण २६/१०/२०२४

21/10/2024

#राघवेन्द्र_नारायण_के_गीत
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#कहां_अब_आदमी कोई
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कहां अब आदमी कोई, किसी की कद्र करता है
स्वयं को धरती का सर्वश्रेष्ठ अब,वह रत्न कहता है --१

नहीं किसी की है वह सुनता,अहंकार इस तरह पाले
किसी को मान नहीं देता, अहं पाले वह उड़ता है--२

कभी जब फंसता है तूफानों में,वह चीखता लेकिन
नहीं उसको मदद मिलती, नहीं कोई चीख सुनता है--३

सदा जो रहता है मशगूल, उल्लू सीधा करने में
उसे नहीं दुनिया में, कहीं भी जरा भी ठौर मिलता है --४

ऐसे लोगों से ही अब भर गई,यह धरती लगती है
जिनकी खुदगर्जियों का सिलसिला,बेअंत रहता है --५

जिन्होंने होम कर दी जिंदगी, लोगों की खुशियों में
उन्हें कहां याद कर कोई कभी, पल भर ठिठकता है--६

कहां उनके जनाजे में कोई, जाता ही अब दिखता
भलाई के लिए जिनमें , अमित सागर उमड़ता है --७

जो सबकुछ त्यागकर जाते, सभी के लिए दुनिया से
कहां उनके प्रति सम्मान हित, शिलापट्ट लगता है--८

उन्हें भूल जाते हैं कुछ दिन में ही,धरती के वासिन्दे
नहीं उनका किसी लब पर कभी भी,ज़िक्र चलता है!--९

© राघवेन्द्र नारायण २१/१०/२०२४

19/10/2024

#राघवेन्द्र_नारायण_के_गीत
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ीजिए_सच_तो
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कह दीजिए सच तो, वे बुरा मान जाएंगे
पर हरकतों से अपनी, नहीं बाज आएंगे --१

पहले निमंत्रण देते हैं,घर लाइए तशरीफ़
घर जाइए तो आपसे, नजरें चुराएंगे --२

ऐसे लोगों से दोस्ती, ना दुश्मनी भली
सटिए तो मुश्किलें, हटें तो तमतमाएंगे--३

कब आपको ले जाकर,डाल दें वे खड्ड में
वे रास्ते भर आपसे , नजरें लड़ाएंगे --४

हर बार हम ठगे गये,उनकी सलाह पर
हम जब ठगे गये ,खुद को ,बेकसूर बताएंगे--५

ये सिलसिला थमता नहीं,ऐसे हैं वे कातिल
जो काटते जाएंगे, फिर भी मुस्कराएंगे--६

इतनी मासूमियत उनके,चेहरे और आंखों में
फ़रिश्ते भी देख उन्हें, बेशक शर्म खाएंगे--७

उनकी अदाएं ऐसी,लोग होते उनपर कुर्बान
इक बार उनसे मिलिए, खुद प्रमाण पाएंगे--८

कहां जाइएगा बचकर,सबसे उनकी सांठगांठ
हर घर में देख आपको, वे मुस्कराएंगे--९

खुद कत्ल करेंगे, मातमपुर्सी व में भी शरीक
वे आपकी हुई मौत पर, खबरें चलाएंगे!--१०

© राघवेन्द्र नारायण १५/१०/२०२४

09/10/2024

#राघवेन्द्र_नारायण_के_गीत
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#जीवन_संग्राम_जटिल है पर
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जीवन संग्राम जटिल है पर, हमको इसमें लड़ना ही है
जीतें या हारें फिक्र नहीं, निस्वार्थ युद्ध करना ही है--१

नहीं और विकल्प बचा कोई,जीना यदि है इज्जत से तो
यदि वार अकारण हो हम पर, हुंकार हमें भरना ही है--२

नहीं जीवित कौमें चुप रहतीं,सुन अपशब्द स्वयं के प्रति
सौगंध उन्हें लेनी पड़ती,सिर भूमि पर गिर पड़ना ही है--३

कायर की मौत मरे कोई, उससे अच्छा लड़कर मरना
अधिकारों हेतु हमें रण में, हिम्मत भरकर बढ़ना ही है--४

वे ग्रंथ जिन्हें लिक्खा था गया, अपने महान ऋषियों द्वारा
उनमें छिपे गूढ़ रहस्यों को, हमें ध्यान लगा पढ़ना ही है--५

साबित करना है अपने को, करके वध अत्याचारी का
एक बार हमें नभ तक जाकर,इन पंखों पर उड़ना ही है--६

जिन्होंने सोचा कर देंगे, अस्तित्व हमारा वे समाप्त
अपनी सोच अवश्य उन्हें ,आमूल बदल चलना ही है--७

हो गईं मूर्तियां जो खंडित, जिनमें अब नहीं रही ऊर्जा
नव संदर्भों में फिर उनको, इन हाथों से गढ़ना ही है!--८

© राघवेन्द्र नारायण ४/१०/२०२४

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