06/07/2025
जंजीर टूट सकती है...
पता है आपको जिंदगी में सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना कब करना पड़ता है? जब आप समाज के बनाए हुए ढांचे में फिट नहीं बैठ पाते हैं, इसका मतलब ये नहीं है कि आप अनुशासनहीन हो गए हैं, इसका मतलब ये है कि लोग ये चाहते हैं कि नई नस्लें उनके मुताबिक सोचें, जैसा वो चाहते हैं वैसा बनें आप, जैसा लोग चाह रहे हैं वैसा काम करें आप. एक पल के लिए हम मान भी लें कि वो जो कह रहे हैं वो सही है लेकिन जो वो कह रहे हैं वही सही है इसका निष्कर्ष कैसे निकलेगा? हमारे घर- गांव समाज के जेहन में कुछ ऐसे विचार बैठ चुके हैं जो हमको उस दायरे से बाहर ही नहीं जाने देते हैं, ऐसा नहीं है कि आप उससे आगे निकल नहीं सकते हैं, लेकिन आपके मस्तिष्क ये बातें कूट- कूट कर भर दी जाती है कि ये रास्ता सही नहीं है, ये चीज सही नहीं है, जब आपके सामने कभी ऐसी विवशताएं आए तो याद करिएगा राम से मर्यादापुरुषोत्तम राम बनने की उस यात्रा को और निकल जाइएगा, ऐसे रास्ते पर, जंगल, झील, पहाड़ पर जहां आपका मन करता हो, जिस सपने को देखने के बाद ये लगे कि अगर मैं इसे हासिल कर लिया तो सबका नाम रोशन हो जाएगा. भगवान राम को अगर उस वक्त राजसिंहासन मिल भी गया होता तो प्रभु राम का दायरा छोटा हो जाता, जैसे लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न का है, प्रभु राम को त्रैलोक्य का स्वामी बनना था, इसलिए उनके जीवन में तमाम कठिनाइयां आईं, पहले राजसिंहासन नहीं मिला, फिर अयोध्या नगरी छूटी, फिर माता सीता का हरण हुआ, उनके भाई लक्ष्मण को शक्ति लगी लेकिन इसके बावजूद भी प्रभु राम डटे रहे, लड़ते रहे, जूझते रहे अपने सामने आ रही तमाम विपत्तियों से, यद्यपि उन्हें सब कुछ पता था कि जो हो रहा है वो भी मैं जान रहा हूं और जो होगा वो भी मैं जान रहा हूं, परिणाम जानने के बावजूद भी सामान्य मनुष्यों की तरह अपने कर्तव्यों को निर्वहन करना ही आपको उदाहरण बनवाता है, इसलिए जब भी आप किसी रास्ते पर जाना चाहें तो निकल जाइए बिना ये सोचे कि लोग क्या कहेंगे, यकीन मानिए आप अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहे तो दुनिया की कोई ताकत आपको नहीं हरा सकती है, इसके बावजूद भी अगर मन न लगे तो रश्मिरथी की ये लाईनें पढ़ लेना जिसमें लिखा है न
वसुधा का नेता कौन हुआ, भूखंड विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ, नव धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर काम किया.
राजेश राही को पढ़ लीजिएगा
न हम सल्फास खाते हैं,न हम फांसी लगाते हैं
जरूरत हो तो फिर हम जान की बाजी लगाते हैं,
विचारों को कहां दुनिया ने आखिर कैद कर पाया
वो पागल हैं जो हवाओं पर पाबंदी लगाते हैं।
लेख - अभिनव त्रिपाठी✍️