Abhinaw k Tripathi

Abhinaw k Tripathi कई दास्तां मुकम्मल करनी है मुझे,
कई मुश्किलात मेरी बारी में है।।
Abhi @✍️

जब युद्ध धर्म और अधर्म का हो तो अर्जुन को गांडीव उठाना पड़ता है, जब आपका गुरु ये जानते हुए भी कि मैं जिसके लिए लड़ रहा ह...
10/07/2025

जब युद्ध धर्म और अधर्म का हो तो अर्जुन को गांडीव उठाना पड़ता है, जब आपका गुरु ये जानते हुए भी कि मैं जिसके लिए लड़ रहा हूं वो अधर्म कर रहे हैं तो ऐसे शिष्य होने चाहिए जो अपने धनुष पर तीर चढ़ा लें और उस गुरु को ये याद दिलाएं कि आपका गुरुत्व तब कहां गया था जब पांचाली का चीर हरण हो रहा था, आपका गुरुत्व तब कहां गया था जब बिना किसी गलती के पांडवों को अज्ञातवास भेज दिया गया, जब लाक्षागृह में पांडवों को जलाने की कोशिश की गई तब आप चुप क्यों थे, जब पांच गांव मांगे गए तब आपने गुरु का फर्ज क्यों नहीं निभाया, याद रखना गुरु का दर्जा हमारे समाज में पूजने योग्य है, लेकिन जब - जब गुरु अधर्म के साथ खड़ा हो, तब - तब आपको अर्जुन बनने में संकोच नहीं करना चाहिए ।।

आप सभी गुरुजनों को गुरुपूर्णिमा की ढेरों शुभकामनाएं एवं बधाई।💐🙏

08/07/2025

मिलकर बैठे हैं महफिल में जुगनू सारे,
ऐलान ये है कि सूरज को हटाया जाए।

- अज्ञात

जंजीर टूट सकती है...पता है आपको जिंदगी में सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना कब करना पड़ता है? जब आप समाज के बनाए हुए ढांचे ...
06/07/2025

जंजीर टूट सकती है...

पता है आपको जिंदगी में सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना कब करना पड़ता है? जब आप समाज के बनाए हुए ढांचे में फिट नहीं बैठ पाते हैं, इसका मतलब ये नहीं है कि आप अनुशासनहीन हो गए हैं, इसका मतलब ये है कि लोग ये चाहते हैं कि नई नस्लें उनके मुताबिक सोचें, जैसा वो चाहते हैं वैसा बनें आप, जैसा लोग चाह रहे हैं वैसा काम करें आप. एक पल के लिए हम मान भी लें कि वो जो कह रहे हैं वो सही है लेकिन जो वो कह रहे हैं वही सही है इसका निष्कर्ष कैसे निकलेगा? हमारे घर- गांव समाज के जेहन में कुछ ऐसे विचार बैठ चुके हैं जो हमको उस दायरे से बाहर ही नहीं जाने देते हैं, ऐसा नहीं है कि आप उससे आगे निकल नहीं सकते हैं, लेकिन आपके मस्तिष्क ये बातें कूट- कूट कर भर दी जाती है कि ये रास्ता सही नहीं है, ये चीज सही नहीं है, जब आपके सामने कभी ऐसी विवशताएं आए तो याद करिएगा राम से मर्यादापुरुषोत्तम राम बनने की उस यात्रा को और निकल जाइएगा, ऐसे रास्ते पर, जंगल, झील, पहाड़ पर जहां आपका मन करता हो, जिस सपने को देखने के बाद ये लगे कि अगर मैं इसे हासिल कर लिया तो सबका नाम रोशन हो जाएगा. भगवान राम को अगर उस वक्त राजसिंहासन मिल भी गया होता तो प्रभु राम का दायरा छोटा हो जाता, जैसे लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न का है, प्रभु राम को त्रैलोक्य का स्वामी बनना था, इसलिए उनके जीवन में तमाम कठिनाइयां आईं, पहले राजसिंहासन नहीं मिला, फिर अयोध्या नगरी छूटी, फिर माता सीता का हरण हुआ, उनके भाई लक्ष्मण को शक्ति लगी लेकिन इसके बावजूद भी प्रभु राम डटे रहे, लड़ते रहे, जूझते रहे अपने सामने आ रही तमाम विपत्तियों से, यद्यपि उन्हें सब कुछ पता था कि जो हो रहा है वो भी मैं जान रहा हूं और जो होगा वो भी मैं जान रहा हूं, परिणाम जानने के बावजूद भी सामान्य मनुष्यों की तरह अपने कर्तव्यों को निर्वहन करना ही आपको उदाहरण बनवाता है, इसलिए जब भी आप किसी रास्ते पर जाना चाहें तो निकल जाइए बिना ये सोचे कि लोग क्या कहेंगे, यकीन मानिए आप अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहे तो दुनिया की कोई ताकत आपको नहीं हरा सकती है, इसके बावजूद भी अगर मन न लगे तो रश्मिरथी की ये लाईनें पढ़ लेना जिसमें लिखा है न
वसुधा का नेता कौन हुआ, भूखंड विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ, नव धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर काम किया.

राजेश राही को पढ़ लीजिएगा

न हम सल्फास खाते हैं,न हम फांसी लगाते हैं
जरूरत हो तो फिर हम जान की बाजी लगाते हैं,

विचारों को कहां दुनिया ने आखिर कैद कर पाया
वो पागल हैं जो हवाओं पर पाबंदी लगाते हैं।

लेख - अभिनव त्रिपाठी✍️

03/07/2025

जय बाबा नीम करोली धाम �


#जय श्री राम �

कैंपस नहीं 'काबिलियत' बनाती है बड़ाबात वही 2021 जनवरी की है, तारीख शायद 10 जनवरी थी कोरोना की पहली लहर के बाद हम अपने कै...
16/08/2023

कैंपस नहीं 'काबिलियत' बनाती है बड़ा

बात वही 2021 जनवरी की है, तारीख शायद 10 जनवरी थी कोरोना की पहली लहर के बाद हम अपने कैंपस ' महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ पहुंचे थे, क्लास का पहला दिन था, पहले ही दिन दिमाग में ये बातें डालने की कोशिश की गई कि यहां से पत्रकारिता की पढ़ाई करके कुछ नहीं होने वाला, मन में थोड़ा सा डर लगा, फिर सोचा कि कभी सुना है अंधेरों ने सवेरा न होने दिया, कोरोना काल में हमारी पढ़ाई पूरी हुई(2020 - 2022). पढ़ाई के दौरान हमारे तमाम साथी घूमने टहलने का प्लान बनाते थे, मगर तत्कालिक परिस्थितियां विपरीत होने की वजह हर बार मैं मना कर देता था, तमाम शिकायतों के बाद आखिर कर हम आखिरी दिन प्रैक्टिकल देने के बाद अपने अपने रास्तों की ओर लौट गए, आखिरी दिन पहली बार लगा था कि ये दिन और बढ़ जाएं मगर ये संभव नहीं था, फिर वहां से बेमन निकल गया और क्लास के साथियों ने फिर ये यहां से पढ़ कर पत्रकारिता में कुछ नहीं कर पाने की नाकामयाब कोशिश की. कभी कभी लगता था क्या ये सही बात है ?
मगर फिर खुद से जिद और ये कलंक अपने सिर से हटाने की कोशिश शुरू हुई, सुबह जब साढ़े चार बजे कैब ड्राइवर की घंटियों के साथ उठना पड़ता था तो लगता था कि कि क्या इतना त्याग देना पड़ेगा ?
तब आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त का संवाद याद आ जाता था,
जब चंद्रगुप्त ने चाणक्य से कहा आचार्य इस सिंहासन के लिए इतना त्याग करना होगा अगर ये न करना पड़े तो, तब चाणक्य ने कहा तब हर कोई इस सिंहासन पर बैठ जाता.
लेकिन कभी कभी डर जब और बढ़ जाता था तो फिर हर बार की तरह रश्मिरथी पढ़ लेता था, उसमें लिखा है, वसुधा का नेता कौन हुआ, भूखंड विजेता कौन हुआ, जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर काम किया, सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, कांटों में राह बनाते हैं.

फिर ऐसी बातों से खुद को मोटिवेट करने लगता था, फिर सुबह से शाम कब हो गई ये पता ही नहीं चलता था, हमारा संघर्ष इसलिए भी जरूरी था कि हम अपनी जिद से पत्रकारिता में आए थे, सो सारी मुसीबतों को हमें झेलना था, हमारा संघर्ष इसलिए भी जरूरी था, कि हमारे क्लास के लड़के ये स्टेट्स डालने लगे थे कि डिग्री ऐसी लो कि जॉब ही न मिले, हमारा संघर्ष इसलिए भी जरूरी था कि, हमारे बाद हमारे जूनियर जो इस क्षेत्र में आना चाहे और कुछ करना चाहे तो वो ये देखे कि हमारा कोई सीनियर है किसी नेशनल न्यूज चैनल में.

हमारा संघर्ष इसलिए भी जरूरी था कि ताकि कल का कोई ये न कहे कि पत्रकारिता में पढ़ाई करने के लिए बहुत फेमस और बड़ा कॉलेज जरूरी है. हमेशा याद रखिएगा अगर आपके अंदर काबिलियत है तो आपके भविष्य के द्वार खुलते जाएंगे. क्योंकि कैंपस नहीं काबिलियत बनाती है बड़ा ।

लेख- अभिनव त्रिपाठी✍🏻

नोट- ये मेरे निजी विचार हैं, हमारा मकसद तुलना करना नहीं है ।।

अगले दिन राजा बनने के उत्सव में लगे राजकुमार राम को जब उनके पिता दशरथ ने बुलाया तो राम को भी लगा होगा कि कुछ राज सिंघासन...
11/08/2023

अगले दिन राजा बनने के उत्सव में लगे राजकुमार राम को जब उनके पिता दशरथ ने बुलाया तो राम को भी लगा होगा कि कुछ राज सिंघासन चलाने के बारे में पिता जी ने शायद याद किया हो, लेकिन तब तक विधना ने राम की हस्तरेखाओं में कुछ और लिख दिया था, हालांकि राम को राजा बनने की भी जिज्ञासा नहीं थी, उन्होंने अपनी माता से कहा भी था कि मां हम सब भाई साथ पढ़े लिखे खेले, लेकिन अकेले मेरा ही राज तिलक क्यों होगा, सिंघासन पर तो चारों भाईयो का अधिकार है, मगर राम की किस्मत में राजतिलक तो दूर की बात है राज पोशाक भी नहीं थी, रात में सिसकते होठों से राजा दशरथ ने जब कहा कि कल राज सिंघासन नहीं होगा तुम्हें वन जाना है तो राम ने कहा जो आज्ञा पिता जी. उस समय राम से राज पोशाक, राज सिंघासन, राज सुख, राज घराना, राजमहल सब छीनने का षड्यंत्र किया गया लेकिन इन सब के बावजूद भी राम के पास राम के साथ रह गया तो उनका धैर्य, रह गई उनकी धनुर्विद्या, रह गया उनका कौशल, रह गया उनका स्नेह, रह गया मां के प्रति लगाव और भाइयों के प्रति दुलार, रह गया पिता के प्रति आदर और गुरु के प्रति सम्मान, रह गई छूटती सिसकती अयोध्या की आहें और प्रजा का कर्ज, इन सबको लेकर राजकुमार राम वन गए और जब चौदह वर्षों के बाद लौटे तो अयोध्या के राजा और मर्यादा पुरुषोत्तम राम बने. यानि की जब - जब आपसे कुछ छीना जा रहा हो, जब जब आपके साथ षड्यंत्र किया जा रहा हो, जब आपके जेहन में अपनों के प्रति विष घोला जा रहा हो, जब जब आपसे घर परिवार सब कुछ छूट जाए तब भी अपने धैर्य को बचाकर रखिएगा, याद रखना इसी धैर्य से आपके भविष्य का मार्ग निकलेगा और न जाने कितनों का भाग्य संवरेगा, जैसे राम को पाकर संवर गई थी अयोध्या ।।

राम और धैर्य दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ।।

हमारे राम 🚩
लेख - अभिनव त्रिपाठी
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

23/06/2023

मंथरा जब कैकेयी के पास राम के राजा बनने की खबर और राम और भरत के बीच के अंतर को समझाने गई तो रानी कैकेयी पहले उसको खूब भला बुरा कहती हैं, उसकी बातों का खंडन कर देती हैं और कहती हैं कि अगर भरत मेरी आंखे हैं तो राम आंखो की रोशनी हैं. फिर कहती हैं की दासी तुमने बहुत अच्छी सूचना दी है तुम्हें मैं मुंह मांगा वरदान दूंगी, यानि की कैकेयी को राम के राजा बनने की खबर सुनकर अपार प्रसन्नता हुई, लेकिन मंथरा लगातार उनसे संवाद करती रही और आख़िर कार अपने मायाजाल में कैकेई को फंसा पाने में कामयाब हुई, जिसका परिणाम ये हुआ कि वो रानी कैकेयी के दिमाग में राम और भरत के बीच के अंतर को समझा कर जहर घोल दी और जिसका नतीजा ये हुआ कि जिस राम का राज तिलक होना था उन्हें वनवास हो गया... जिंदगी का यही गणित है.. आपके आस पास मंथरा के रूप में कई लोग मौजूद होते हैं जो लगातार आपके जेहन में आपके सगे, संबंधी, भाई बहन के खिलाफ बुरे विचारों से भरते रहते हैं और कहते हैं कि मैं तेरे साथ हूं. आखिरकार आप उनके झांसे में आ जाते हैं. याद रखिएगा वो आपके साथ नहीं आपकी हानि के साथ खड़े हैं, आपकी बर्बादी के साथ खड़े हैं. आपके अपयश के साथ खड़े हैं, कभी उनकी बातों में आकर अपने रिश्तों को खराब मत करना, बस यही एक छोटी सी चूक भगवान राम को सबसे ज्यादा प्रेम करने वाली उनकी मां कैकेयी से हो गई थी. जिसका परिणाम ये हुआ की आज कोई भी पिता अपनी बेटी का नाम कैकेयी नहीं रखना चाहता, कोई भाई अपनी बहन को कैकेई नहीं कहना चाहता, कलेजे पर हाथ रख कर सोचिएगा कहीं आप उनके झांसे में तो नहीं आ रहे हैं? अगर आपको लग रहा है कि नहीं तो समझिए आप सही रास्तों पर हैं।

लेख - अभिनव त्रिपाठी ✍🏻
मेरा राम ❣️🙏🏻

मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ, तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ,राम पर लिख पाना मेरे बस की बात नहीं है ...
03/06/2023

मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ,
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ,

राम पर लिख पाना मेरे बस की बात नहीं है मगर बीते कई दिनों से राम पर लिखने का विचार आ रहा है, भगवान राम का किरदार ऐसा रहा जिससे हर उम्र में सीखने को मिलता है, राम पर बहुत सी बातें लिखी जा चुकी है, बहुत सी बातें लिखी जाएंगी, मेरी दिली ईच्छा राम और रावण के युद्ध पर लिखने की है, राम की जीत और रावण की हार की वजह में बहुत से लेखकों की अलग - अलग विचार धारा है, कोई लिखता है भगवान राम का भाई उनके साथ था इस वजह से उन्होंने युद्ध जीता, कोई लिखता है भगवान राम सत्य की राह पे थे इसलिए उन्होंने इस युद्ध में विजय हासिल की, मैं किसी भी लेख से असहमत नहीं हूं. लेकिन मेरा मानना है की राम और रावण में वर्चस्व और सामंजस्य की लड़ाई थी, रावण को अपने वर्चस्व पर गुमान था और भगवान राम को अपने सामंजस्य पर भरोसा था, इसलिए राम रावण के युद्ध में वर्चस्व हारा और सामंजस्य जीता, सोच के देखिए जिसकी पत्नी का हरण हो गया हो, जिसका घर बार छूट गया हो, जिसकी प्राणों से प्यारी नगरी अयोध्या छूट गई हो इसके बाद भी राम घबड़ाए नहीं और सामंजस्य की बदौलत उन्होंने लंका पर विजय हासिल, सामंजस्य भी कैसा, जो सुग्रीव को प्यार से गले लगा ले, सामंजस्य कैसा जो जामवंत से कुछ भी कहने से संकोच न करे, सामंजस्य ऐसा जिसके लिए भक्त हनुमान जान देने के लिए भी तैयार रहे और सोचिए राम के जीवन में ये भी समय आया जब उन्हें पेड़ पक्षियों से भी मदद मांगने में कोई संकोच नहीं हुआ और सामंजस्य ऐसा जो खुद को ही सही न कहे, कोई भी काम करने से पहले राम ने रामादल में शामिल हर छोटे बड़े सैनिकों से भी सलाह ली, कहा जाता है की जब पुल बन रहा था तो राम ने भी पत्थर समंदर में डालकर पुल बनाने की कोशिश की लेकिन उनका पत्थर तैरने लगा, तो उन्होंने रामादल में शामिल सबसे छोटे सिपाही नील से पूछा कि मेरा पत्थर तैर रहा है, लेकिन आपका पत्थर पुल बनाने का काम कर रहा है तो नील ने कहा इस पत्थर पर राम का नाम लिखा है प्रभु और ये पत्थर समंदर के इस किनारे से लेकर उस किनारे तक ही आपको पार करने के लिए पुल बना सकता है लेकिन आपके हाथों में भव से पार लगाने वाला पुल बनता है इसलिए पत्थर ये पत्थर तैर रहा है.
यानि की राम हर किसी से जानकारी लेते हुए आगे बढ़े, हर किसी से सामंजस्य बैठा कर चलने वाले राम तब जाकर मर्यादा पुरुषोत्तम बने.
याद रखिएगा जिन्हें अपने वर्चस्व पर अभिमान है उन पर हमेशा सामंजस्य विजयी होगा.

इस लेख का उद्देश्य वर्चस्व और सामंजस्य के बीच का अंतर समझाना है.

जय श्री राम 🙏🏻

लेख - Abhinaw Tripathi ✍🏻🙏🏻

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