तू ही

तू ही जब तू है तो मैं नहीं जब मै हूँ तू नाहि।
तू ही निरंकार-धननिरन्कारजी।

13/07/2025

तूहीनिरन्कार
__________________दर्पण______________

गुरु वह होता है जो सद्गुरु की संगति से इस शरीर और मन में स्थित निराकार प्रभु को जान लेता है और निरंकार से हमेशा डरता रहता है। सद्गुरु के वचनों को अपने जीवन में सत्य मानकर चलता है, नियमित सत्संग में आता है और अहंकार का त्याग करता है, संतों और महापुरुषों के चरणों की धूल बन जाता है, कभी किसी से विश्वासघात नहीं करता, किसी को धोखा नहीं देता या परेशान नहीं करता, किसी महापुरुष का अनादर नहीं करता, बैठे-बैठे निरंकार को याद करता रहता है और अपनी गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगता रहता है। वास्तव में ऐसा व्यक्ति ही गुरुमुख होता है।

--- सद्गुरु बाबा हरदेवसिंहजी महाराज

धन निरंकार जी 🙏दर्पण भाग-1

तू ही निरंकार `सही समय की प्रतीक्षा करना मूर्खता है`  *गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं* ```कि किसी चीज़ को ...
07/07/2025

तू ही निरंकार
`सही समय की प्रतीक्षा करना मूर्खता है`

*गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं* ```कि किसी चीज़ को शुरू करने के लिए कभी कोई सही समय नहीं होता। मनुष्य जब कोई चीज़ शुरू करता है, वही उसके लिए सही समय होता है।
जो मनुष्य सही समय के इंतज़ार में रहता है, उसके लिए सही समय कभी नहीं आता और वह कभी भी अपने काम को शुरू नहीं कर पाता।
ऐसे मनुष्य जीवन भर सही समय का इंतज़ार करते ही रह जाते हैं और कभी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।
धननिरंकारजी 🙏

तू ही निरंकार कितने प्रकार के भक्त होते हैं?    पहले प्रकार के भक्त वे होते हैं जो हमेशा मांगते रहते हैं, ‘भगवान मुझे ये...
07/07/2025

तू ही निरंकार

कितने प्रकार के भक्त होते हैं?

पहले प्रकार के भक्त वे होते हैं जो हमेशा मांगते रहते हैं, ‘भगवान मुझे ये दे दीजिए’, ‘भगवान मुझे वो दे दीजिए’

दूसरे प्रकार के भक्त वे हैं, जो हमेशा कृतज्ञ रहते हैं, ‘धन्यवाद भगवान, आपने मुझे यह दिया, और आपने मुझे वह दिया’, एक ऐसा भक्त जो भावुक है, प्रार्थनापूर्ण है और कृतज्ञता में आँसू बहाता है
तीसरे प्रकार का भक्त वह है, जो हमेशा खुश रहता है, मुस्कुराता रहता है, झूमता और गाता रहता है, ‘आनंदपूर्ण भक्त’

ये सभी तीन अलग अलग तरह के भक्त हैं, यद्यपि ये सभी श्रेष्ठ हैं ऐसा नहीं है, कि इन में से कोई एक बाकी से बेहतर है एक रोता हुआ भक्त, एक हँसता हुआ भक्त, और एक भक्त जो हमेशा मांगते रहता है, तो आप इनमें से किस श्रेणी में हैं, वह आप खुद देखिये

ऐसा हो सकता है, कि आपके अंदर इन सबका थोड़ा थोड़ा अंश हो वह भी ठीक है तब वह चौथे प्रकार का भक्त हो जाएगा, जिसके अंदर इन तीनों का कुछ कुछ अंश विद्यमान है

वह, जो हंसी-मजाक में ही उलझ कर रह जाता है, उसे गंभीरता प्राप्त नहीं होती, और गंभीरता (अथवा गहराई) आवश्यक है इसीलिये संत कबीर ने कहा है,

‘कबीरा हंसना दूर कर, रोने से कर प्रीत, बिन रोये कित पाईये, प्रेम पियारा मीत'

लेकिन जिस रोने के बारे में कबीर बात कर रहें हैं, वह अलग प्रकार का रोना है, वह रोना है, जो प्रशंसा के कारण आता है, कृपा और तृष्णा के कारण आता है यह उस तरह का रोना नहीं है,

जिसमें किसी को लगता है, कि उसके पास इस चीज़ की कमी है, उस चीज़ की कमी है, यह नहीं हुआ, वह नहीं हुआ वे (कबीर) इस तरह के रोने की बात नहीं कर रहें हैं, जो सांसारिक कारणों या माया के कारण हैं वे उन लोगों के बारे में चर्चा कर रहें हैं जो आनंद और भक्ति के कारण रो रहें हैं तो वह भी आवश्यक है

लेकिन जो भक्त आनंदित रहते हैं, कहते हैं, कि वे ज्ञानी होते हैं, क्योंकि वे जानते हैं, कि भगवान यहीं हैं, वे मेरे अंदर हैं, और वे इसी क्षण में मौजूद हैं

अक्सर लोग सोचते हैं, कि भगवान कहीं और हैं; उनका अस्तित्व अतीत में कभी था, या भविष्य में कभी आयेंगे वे भूल जाते हैं, कि भगवान यहीं है, इसी पल, हर एक के अंदर विद्यमान, मेरे अंदर विद्यमान है|

सिर्फ यही एक विश्वास चाहिये बस इसी के लिए, आप ये सब कसरत कर रहें हैं, ये सब अभ्यास नहीं तो इन सब व्यायामों, जैसे प्राणायाम करना, आसन, कीर्तन, भजन के करने का क्या फायदा, इन सबका क्या उद्देश्य है ?

यह जानना, कि भगवान मेरे भीतर हैं, इसी जगह और इसी पल "भगवान यहाँ हैं, इसी पल हैं, अपने भीतर हैं, सबके भीतर हैं|'
धननिरंकारजी महापुरुषों जी।🙏

अपने दिल के आस- पास अक्सर हम खुद ही ऐसी दीवारें बना लेते है जिनमें खुद ही घुट कर रह जाते है अपना खुद का दायरा ही छोटा कर...
07/07/2025

अपने दिल के आस- पास अक्सर हम खुद ही ऐसी दीवारें बना लेते है जिनमें खुद ही घुट कर रह जाते है अपना खुद का दायरा ही छोटा कर लेते है , वही अगर दिल से दिल तक प्यार के पुल बनेंगे तो ये जीवन कितना सुंदर और अलग हो जाएगा ll

हमारी मन की लिव इस निरंकार के संग जुड़ी रहे ,जब निरंकार का अहसास बन जाता है तब यह जरूरी नहीं कि शब्द मुँह से निकले, इसका अहसास ही सुमिरन है।

हमने दूसरों की खामियों को नहीं ,अपने खामियों में सुधार लाना है, सत्संग में विचार सुनते है उन पर चलने का प्रयास करें।
ll सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ll 🙏
धन निरंकार जी 🙏

07/07/2025

*भरी तिजोरी नफ़रत से जिसकी, वो प्यार कहाँ से बांटेगा|*
*बोया बीज बबूल का जब, फिर आम कहाँ से खायेगा|*
*बोते जायें बीज खुशी के, घर खुशियों से भर जायेगा|*
*गुरु की आंख से देखोगे, कोई गैर नज़र न आयेगा|*

*अमन चैन हो इस धरती पर, हम सतगुरु से अरदास करें*
*प्रेम भाईचारा कायम हो जग में,हम सतगुरु से अरदास करें*
*सुखों से झोली भर जाये सब की, दुःख नजर ना आये कहीं*
*हे सतगुरु ऐसी कृपा करना,तेरे दर से दूर ना जायें कभी*

**आप जी के पावन पवित्र चरणों में दास का प्यार भरा धन निरंकार स्वीकार हो जी**

बहुत बहुत शुकराना हुज़ूर आप के पावन चरणों में कोटि कोटि धन निरंकार जी👏

तू ही निरंकार जीवन में कभी संत के संग का भाग्य मिल जाए तो वो आपके दुर्गुणों को आपसे दूर करने में सहायक ही होते हैं।एक बा...
07/07/2025

तू ही निरंकार
जीवन में कभी संत के संग का भाग्य मिल जाए तो वो आपके दुर्गुणों को आपसे दूर करने में सहायक ही होते हैं।
एक बार एक मानव एक सन्त के पास गया और बोला आप मुझे दीक्षा देकर मेरा उद्धार कीजिये परन्तु मेरी कुछ मांगों को पूरा करके मुझ पर कृपा करें आशा है कि आप मुझे निराश नही लौटायँगे सन्त उसके भाव पर रीझकर बोले ठीक है मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा तुम अपनी माँग रखो भक्त चरण स्पर्श करके बोला कि मै शराब नही छोड़ सकता और भजन भी करना चाहता है सन्त ने मुस्कुराकर कहा और कोई समस्या भक्त ने झिझकते हुये कहा मैं चोटी भी नही रखना चाहता ! सन्त ने फिर कहा कोई और इच्छा तो बाकी नही रह गई उसने प्रसन्न होकर कहा नही प्रभु और कोई इच्छा नहीं है।
सन्त ने भुकुटी पर तिलक छाप देकर गले में कण्ठी पहना दी और कानों में गुरु मंत्र दे दिया और बोले आज से तुम्हे वैष्णव जीवन जीना है अर्थात मिथ्याचार और व्यभिचार त्यागकर दिन में कम से कम 40 मिनट हरि भजन करना है तथा जब भी तुम शराब का सेवन करो तो उसका दुष्परिणाम और दुष्प्रभाव मुझे समर्पण कर देना अर्थात तुम्हारे द्वारा किये गये दुष्कर्म का दंड मै भोगूँगा तुम नही।
शिष्य बड़े भारी मन से उठकर घर आ गया घर पहुंचा तो मस्तक पर तिलक छाप व गले मे कण्ठी देखकर घर के लोग सम्मान की दृष्टि से देखने लगे जो लोग सीधे मुंह बात भी नही करते थे वह अब रुक रुक कर बात करना चाहते थे वह अच्छा महसूस करने लगा तथा उसके मुंह से जो भी बात निकलती उसकी बात का घर परिवार व समाज मे वजन बढ़ने लगा।
अब अंदर से तो शराब पीने की इच्छा होती नही परन्तु दिमाग मे रह रह *कर शराब की याद आती कि बहुत दिन हो गये आज पिऊँगा और एक दिन वह शराब की बोतल खोलकर बैठ गया जैसे ही गिलास मुंह से लगाया तुरन्त गुरुदेव की स्मृति हो आई कि मेरे द्वारा किये गये पापों का दंड उन्हें भोगना होगा।
गिलास छूट गया और आँखों से अविरल अश्रु धारा बहने लगी।
अगले ही दिन सन्त दर्शन के लिए गया और दण्डवत प्रणाम करके रोने लगा सन्त ने पूछा क्या हुआ क्या मैने कोई ज्यादा कठिनाइयों भर जीवन दे दिया।
शिष्य बोला नही भगवन जीवन तो मैने आपका संकट में डाल दिया है मेरे पाप कर्मों का दण्ड आप क्यों भोगेंगे मुझसे घोर अपराध हुआ है अपने मुझे शरणागति प्रदान कर मेरा उद्धार किया और मैने आपका ही जीवन संकट में डाल दिया ।
महापुरुषों जी,
सन्त इत्र की तरह होते हैं जो पास से भी गुजर जाएं तो शख्सियत सँवर जाती है और भाग्य वश यदि कोई सिद्ध सन्त जीवन मे आ जाये तो जीवन एक सुंदर झील के समान हो जाता है अतः जितना हो सके सन्तो का संग करें..अपने संगी साथी चुनने में सतर्क रहें।
धननिरंकारजी महापुरुषों जी।🙏

06/07/2025

साध संगत जी
प्यार और सत्कार से कहना जी
🙏धन निरंकार जी🙏
भक्त हर रंग में इस प्रभु को ही देखता हैं। बाग में चाहे फूल देखने में अलग-अलग हों, उनकी खुशबू भी अलग-अलग हो, फिर भी वो सुन्दरता बढ़ाने का ही कारण बनते हैं।
कई बार यह भी अनुभव होता है कि फूल के साथ-साथ काँटे भी होते हैं। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम फूल देख रहे हैं या हमारा ध्यान उस फूल के काँटों पर है। अगर हमारा ध्यान फूल की कोमल-कोमल पंखुड़ियों पर जाएगा तो किसी भी चीज़ में कोई कमी नहीं दिखेगी, पर अगर काँटों पर ध्यान देंगे तो....,ध्यान रहे की, तब तो फूल के बाकी गुण दीखलाई नही परेंगें। अंग-अंग कांटों से घिरे होकर भी फूल अपनी कोमलता और खुशबू नहीं छोड़ते। इतना ही नहीं, जो कोई उस फूल को अपने हाथ में पकड़ ले, उसके हाथों से भी फूल की खुशबू आने लगती है। येही है स्वभाव फूल का, क्योकि अपनी आचरण, खुश्बू बिखरने की,
शायर कहता है कि---
'फूल कर लें निबाह कांटों से, आदमी ही न आदमी से मिले।'
जिस तरह फूल के कांटे और उसकी पंखुड़ियां साथ-साथ रह लेते हैं; उसी तरह हमारा जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए कि अगर कोई चुभन देने वाली बातें हैं, कोई कांटों की तरह के स्वभाव वाले भी हैं तो भी हमें उन्हें भी स्वीकार करना है, उन्हें भी अपनाना है। हम यह भी जानते हैं कि सबके स्वभाव भिन्न-भिन्न होते है, उस खूबसूरत गुलदस्ते की तरह जहां भिन्न-भिन्न फूल होते हैं और उनकी भिन्न-भिन्न खुशबू होते है। फिर भी हमें अनेकता में एकता का प्रतीक बनकर बच्चे, नौजवान, बुजुर्ग सभी को साथ लेकर चलना है। हम अपने को और बेहतर करने की कोरशीश जारी रखें। हमने भी खुशबू की तरह जीवन ब्यतीत करना है। मन से सबको स्वीकार करके, सबके अंदर, इस परमात्मा को देखकर, ही आगे बढ़ते रहना चाहिए है।
साध संगत जी,
🙏धन निरंकार जी🙏

04/07/2025

गुरु कृपा
यादें
बाबाजी
तू ही निरंकार -धननिरंकारजी महापुरुषों जी।🙏

02/07/2025

सतगुरु बाबाजी के आशीर्वचन।
तूं ही निरंकार -धननिरंकारजी 🙏

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