17/10/2025
जरूर! यह कहानी एक ऐसे गाँव और एक अनोखी दोस्ती के बारे में है।
---
पहाड़ और पक्षी की दोस्ती
एक घने जंगल के बीचों-बीच सुंदरपुर नाम का एक छोटा-सा गाँव बसा था। इस गाँव के ठीक पीछे एक विशाल पहाड़ था, जिसे लोग 'मेरु' कहते थे। मेरु पहाड़ बहुत पुराना और शांत था। वह सैकड़ों साल से वहाँ खड़ा था और गाँव वालों को हर मुसीबत में सहारा देता था। उसकी ढलानों से झरने बहते, जिनसे पूरे गाँव की प्यास बुझती, और उसकी छाया में लोग आराम करते।
एक बार की बात है, भीषण गर्मी पड़ी। महीनों बारिश नहीं हुई। धीरे-धीरे झरने सूखने लगे, पेड़ों के पत्ते मुरझाने लगे और जमीन फटने लगी। गाँव वाले बहुत परेशान हो गए। उनके पास पीने के लिए पानी नहीं बचा था। बच्चे रोते, बड़े चिंतित रहते।
मेरु पहाड़ अपने सामने यह सब देखकर बहुत दुखी होता था, लेकिन वह तो सिर्फ एक पहाड़ था, चल-फिर नहीं सकता था। वह अपने भीतर पानी के स्रोत छिपाए हुए था, लेकिन उन तक कोई पहुँच नहीं सकता था।
उसी जंगल में नीले पंखों वाली एक चिड़िया रहती थी, जिसका नाम था 'नीलकंठ'। वह बहुत चतुर और दयालु थी। उसने देखा कि गाँव वालों का हाल बहुत खराब है और मेरु पहाड़ भी उदास लग रहा है।
एक दिन, नीलकंठ उड़ती हुई मेरु पहाड़ के पास आई और बोली, "हे मेरु! तुम इतने विशाल और समृद्ध हो, फिर भी तुम्हारे पैरों में बसने वाले यह लोग प्यासे क्यों हैं?"
मेरु ने गहरी सांस ली और बोला, "प्रिय चिड़िया, मेरे भीतर तो पानी का एक स्रोत है, लेकिन वह एक बंद गुफा में कैद है। उस गुफा का दरवाज़ा एक बहुत भारी पत्थर से बंद है। मैं उसे हिला नहीं सकता। कोई छोटा प्राणी अंदर जा सकता है, लेकिन वह पत्थर हटा नहीं सकता। इसलिए पानी बाहर नहीं आ पा रहा।"
नीलकंठ ने सोचा, "अगर पत्थर को हिलाया जा सके, तो पानी बाहर आ सकता है। लेकिन मैं अकेली इतने बड़े पत्थर को कैसे हिला पाऊँगी?"
तभी उसके दिमाग में एक विचार आया। वह तेजी से उड़कर गाँव में गई और सभी पक्षियों को इकट्ठा किया। उसने उन्हें सारी बात बताई। उसने कौओं, तोतों, गौरैयों और चीलों सभी को साथ लेने #जरूर! यह कहानी एक ऐसे गाँव और एक अनोखी दोस्ती के बारे में है।
---
पहाड़ और पक्षी की दोस्ती
एक घने जंगल के बीचों-बीच सुंदरपुर नाम का एक छोटा-सा गाँव बसा था। इस गाँव के ठीक पीछे एक विशाल पहाड़ था, जिसे लोग 'मेरु' कहते थे। मेरु पहाड़ बहुत पुराना और शांत था। वह सैकड़ों साल से वहाँ खड़ा था और गाँव वालों को हर मुसीबत में सहारा देता था। उसकी ढलानों से झरने बहते, जिनसे पूरे गाँव की प्यास बुझती, और उसकी छाया में लोग आराम करते।
एक बार की बात है, भीषण गर्मी पड़ी। महीनों बारिश नहीं हुई। धीरे-धीरे झरने सूखने लगे, पेड़ों के पत्ते मुरझाने लगे और जमीन फटने लगी। गाँव वाले बहुत परेशान हो गए। उनके पास पीने के लिए पानी नहीं बचा था। बच्चे रोते, बड़े चिंतित रहते।
मेरु पहाड़ अपने सामने यह सब देखकर बहुत दुखी होता था, लेकिन वह तो सिर्फ एक पहाड़ था, चल-फिर नहीं सकता था। वह अपने भीतर पानी के स्रोत छिपाए हुए था, लेकिन उन तक कोई पहुँच नहीं सकता था।
उसी जंगल में नीले पंखों वाली एक चिड़िया रहती थी, जिसका नाम था 'नीलकंठ'। वह बहुत चतुर और दयालु थी। उसने देखा कि गाँव वालों का हाल बहुत खराब है और मेरु पहाड़ भी उदास लग रहा है।
एक दिन, नीलकंठ उड़ती हुई मेरु पहाड़ के पास आई और बोली, "हे मेरु! तुम इतने विशाल और समृद्ध हो, फिर भी तुम्हारे पैरों में बसने वाले यह लोग प्यासे क्यों हैं?"
मेरु ने गहरी सांस ली और बोला, "प्रिय चिड़िया, मेरे भीतर तो पानी का एक स्रोत है, लेकिन वह एक बंद गुफा में कैद है। उस गुफा का दरवाज़ा एक बहुत भारी पत्थर से बंद है। मैं उसे हिला नहीं सकता। कोई छोटा प्राणी अंदर जा सकता है, लेकिन वह पत्थर हटा नहीं सकता। इसलिए पानी बाहर नहीं आ पा रहा।"
नीलकंठ ने सोचा, "अगर पत्थर को हिलाया जा सके, तो पानी बाहर आ सकता है। लेकिन मैं अकेली इतने बड़े पत्थर को कैसे हिला पाऊँगी?"
तभी उसके दिमाग में एक विचार आया। वह तेजी से उड़कर गाँव में गई और सभी पक्षियों को इकट्ठा किया। उसने उन्हें सारी बात बताई। उसने कौओं, तोतों, गौरैयों और चीलों सभी को साथ लेने का फैसला किया।
अगले दिन, सुबह-सुबह, पक्षियों का एक बड़ा झुंड मेरु पहाड़ की उस गुफा के सामने इकट्ठा हुआ। सभी ने मिलकर उस भारी पत्थर को अपनी चोंच से धक्का देना शुरू किया। एक अकेला पक्षी कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन सैकड़ों पक्षियों के एक साथ धक्का देने से वह भारी पत्थर थोड़ा-थोड़ा करके हिलने लगा।
आखिरकार, बहुत कोशिश के बाद, पत्थर एक ओर लुढ़क गया। जैसे ही पत्थर हटा, गुफा से ठंडे, स्वच्छ पानी की एक धारा फूट निकली। पानी की वह धारा तेजी से नीचे गाँव की ओर बहने लगी।
गाँव वाले यह देखकर हैरान रह गए। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बच्चे नहाने लगे, खेत हरे-भरे हो गए और सारा गाँव एक बार फिर से जीवन से भर गया।
उस दिन सबको समझ आया कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। मेरु पहाड़ के पास ताकत थी, लेकिन वह उसका इस्तेमाल नहीं कर सकता था। नीलकंठ के पास इरादा था, लेकिन अकेले की ताकत कम थी। जब सबने मिलकर कोशिश की, तो असंभव को भी संभव कर दिखाया।
और इस तरह, एक पहाड़ और एक छोटी सी चिड़िया की दोस्ती ने पूरे गाँव की जान बचा ली। आज भी सुंदरपुर में म