05/08/2023
🚩सुपौल जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर मोहनियां गांव में अवस्थित है:- “बाबा हजारी नाथ महादेव” का प्रसिद्ध मंदिर।
यह मंदिर “चौघटिया” के नाम से भी विख्यात है, इस नाम के पीछे यहां की भौगोलिक संरचना है। यह मंदिर एक ऊंचे टीले पर निर्मित है। यह टीला चारों ओर से पानी की विशाल तालाब से घिरा हुआ है। यह विशाल तालाब 53 बीघा भूमि में फ़ैला हुआ है। मंदिर तक जाने के लिए ईट की सड़क बनी हुई है। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि इस तालाब के चारों कोणों पर मंदिर हुआ करता था, जो 1934 में आए भूकंप में यह तबाह हो गया। सिर्फ यह मंदिर ही बचा रह गया।
👉इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग अपने आप में अद्वितीय है, क्योंकि यह भारत का एकमात्र शिवलिंग है; जो 1001 शिवलिंग से बना है और शिवलिंग में मां पार्वती का भी प्रतिमा उकेरा हुआ है। यह मंदिर सड़क से अत्यंत ही आकर्षक दिखाई देता है। टीले पर वृक्षों के बीच बना हुआ मंदिर सकून का एहसास दिलाता है। मैं जब भी अपने गांव जाता हूं तो अपने दोस्तों को मिलने के लिए यहीं बुलाता हूं, यहां के वातावरण मुझे बहुत भाता है।
#इतिहास
इस मंदिर का निर्माण 1894 ईस्वी के आसपास गनवारि राजवंश के बरुआरी के राजा टेकनारायण सिंह के शासनकाल में किया गया था। यहां स्थापित शिवलिंग एवं अन्य प्रतिमाएं कर्नाट कालीन है जो 11वीं 12वीं शताब्दी की है। यह प्रतिमाएं अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है। बरूआरी के राजा शैव एवं शक्ति के उपासक थे। गनवारियों के शासनकाल में सभी गांव में शिवालय का निर्माण किया गया था। बरूआरी के राजा गनवारियों के ही वंशज थे। इन प्रतिमाओं में लक्ष्मी नारायण, ब्रह्मा, दसविद्या की प्रस्तर प्रतिमाएं हैं। बरुआरी के राजा ने सिंघेश्वर धाम आने जाने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए अलग-अलग गांव में मंदिर, कुओं एवं विश्राम स्थलों का निर्माण करवाया था। मध्यकालीन लेखों में दर्ज पूर्व में दरभंगा से पांडिचेरी जाने वाला राजमार्ग इसी मंदिर के सामने से गुजरता था। जिसका साक्ष्यअब भी मिलता है। कहा जाता है कि शिवरात्रि के मौके पर दरभंगा महाराज जब सिंहेश्वर की यात्रा पर निकलते तो यहां उनका विश्राम हुआ करता था। सिंहेश्वर से लौटते वक्त शिवरात्रि के उपरान्त चौठारी की पूजा वे यहीं किया करते थे।
◾अभी इस स्थल की स्थिति संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इसके अधिकांश जमीन पर अतिक्रमण किया जा चुका है। टीले पर लगे पुराने वृक्ष को काटा जा रहा है। तालाब की स्थिति बद से बदतर हो गई है। सिर्फ बरसात के मौसम में ही तालाब पानी से भरा रहता है। यदि इस तालाब का सौंदर्यीकरण किया जाए तो यह एक बेहतरीन पर्यटक स्थल का रूप ले सकता है। मत्स्य पालन भी किया जा सकता है, बोटिंग भी कराया जा सकता है। बस इसे उद्धारक की तलाश है।
🚕🚉 कैसे पहुंचें:-
♦️ आप सहरसा जंक्शन या सुपौल स्टेशन से गढ़ बरुआरी के लिए लोकल ट्रेन ले सकते हैं। फिर गढ़ बरुआरी स्टेशन से ऑटो रिक्शा लेकर आप यहां आ सकते हैं।
♦️ यह स्थल सुपौल, सहरसा, मधेपुरा से अच्छी तरह से सड़क से जुड़ा हुआ है।
✍️📸 राहुल ©️
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