03/11/2025
●सन 1960
◆फ़िल्म मुगले आज़म में नाम के वरयीता को लेकर विवाद था पृथ्वीराज कपूर का नाम दिलीप कुमार और मधुबाला से पहले आता है जिस कारण दिलीप कुमार,मधुबाला नाराज़ थे पृथ्वीराज ने के आसिफ़ को कहा, "क्यों छोटे मोटे झगड़ों में फंसकर फ़िल्म लटका रहे हो,मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता,इन दोनों के नाम मुझसे पहले और बड़े अक्षरों में लिख दो."
आसिफ़ ने कहा-"दीवानजी, मैं मुगले आज़म बना रहा हूं, सलीम-अनारकली नहीं,यह बात इन दोनों को समझ नहीं आती।मेरी इस फ़िल्म का केवल एक हीरो है अक़बर दी ग्रेट."
◆के आसिफ़ अकबर के रोल के लिए कांट्रैक्ट लेके गए और फ़ीस के बारे पूछा पृथ्वीराज कपूर ने कहा -जहां इतना कुछ लिखा है, वहां रक़म भी लिख देते।
आसिफ़ बोले- पहले तो यह बताइए, रक़म कितनी लिखूं.
पृथ्वीराज ने कहा, क्या तुम नहीं जानते?
के.आसिफ़ ने कहा, "जानता तो पूछता नहीं."
पृथ्वीराज-अच्छा तो फिर कोई रक़म लिख लो,मुझे मंज़ूर होगा.
के.आसिफ़ ने कहा, नहीं दीवानजी,ऐसा मत कहिए,दिलीप कुमार, मधुबाला, दुर्गा खोटे सबने अपनी क़ीमत लगाई फिर आप क्यों?
पृथ्वीराज-"नहीं मेरी क़ीमत तुम ख़ुद लगाओगे."
के आसिफ़ -ये धृष्टता मैं नहीं कर सकता,दीवानजी; मैं तो अभी तक अपनी क़ीमत नहीं लगा पाया। आप यह तो बता सकते हैं- राज ने आवारा में आपको क्या दिया ?
पृथ्वीराज-50 हज़ार
के आसिफ़ -तो मैं 75 हज़ार लिख दूं।
पृथ्वीराज -जैसा तुम ठीक समझो।
मेहनताना तय हो गया लेकिन के.आसिफ़ कांट्रैक्ट के बदले में एडवांस रक़म देना चाहते हैं ।के.आसिफ़,पृथ्वीराज को चेक पर एडंवास की रक़म लिखने को चेकबुक आगे बढ़ाते हैं ।पृथ्वीराज कपूर चेकबुक पर 1/-एक रूपये लिख देते हैं ।
के.आसिफ़ भावुक हो कर ‘दीवान जी’
पृथ्वीराज-मैं आदमियों के साथ काम करता हूं,व्यापारियों या मारवाड़ियों के साथ नहीं."
पृथ्वीराज की प्रारंभिक शिक्षा लायलपुर और लाहौरमें हुई थी उनके पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे।बाद में उनके पिता का तबादला पेशावर हो गया और यंही उन्होंने स्नातक किया। एक वर्ष तक क़ानून की पढ़ाई के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ थिएटर की ओर रुख़ किया।और अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।
मुंबई में इंपीरियल फ़िल्म कंपनी से जुडने के बाद 1930 में फ़िल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। इसके कुछ समय पश्चात् एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक में भी उन्होंने अभिनय किया। लगभग दो वर्ष तक फ़िल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद फ़िल्म आलम आरा में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौक़ा मिला। 1933 में कोलकाता के मशहूर न्यू थिएटर के साथ उनका जुड़ाव हुआ। 1934 में देवकी बोस की फ़िल्म 'सीता' की कामयाबी ने उन्हें बतौर अभिनेताअपनी पहचान बनाने में सफल हुए । इसके बाद पृथ्वीराज ने न्यू थिएटर की निर्मित कई फ़िल्मों में अभिनय किया। 1938 में रंजीत मूवीटोन के साथ अनुबंध हुआ और इसके के बैनर तले प्रदर्शित फ़िल्म 'पागल' में एंटी हीरो की भूमिका निभाई। 1941 में सोहराब मोदी की फ़िल्म ‘सिकंदर’ की सफलता पृथ्वीराज को शीर्ष पर बिठा दिया।
1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी पृथ्वी थिएटर शुरू की।पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा इस्तेमाल किया,जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफ़ी अलग था।पृथ्वी थिएटर के प्रति पृथ्वीराज इस क़दर समर्पित थे कि तबीयत ख़राब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे। वह शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते।
आकर्षक व्यक्तित्व व आवाज़ के महारथी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने क़रीब 16 वर्षों में दो हज़ार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां कीं।