Classic melodies collection by Meena Sheth

Classic melodies collection by Meena Sheth music is my life ���

●सन 1960 ◆फ़िल्म मुगले आज़म में नाम के वरयीता को लेकर विवाद था पृथ्वीराज कपूर का नाम दिलीप कुमार और मधुबाला से पहले आता ...
03/11/2025

●सन 1960

◆फ़िल्म मुगले आज़म में नाम के वरयीता को लेकर विवाद था पृथ्वीराज कपूर का नाम दिलीप कुमार और मधुबाला से पहले आता है जिस कारण दिलीप कुमार,मधुबाला नाराज़ थे पृथ्वीराज ने के आसिफ़ को कहा, "क्यों छोटे मोटे झगड़ों में फंसकर फ़िल्म लटका रहे हो,मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता,इन दोनों के नाम मुझसे पहले और बड़े अक्षरों में लिख दो."
आसिफ़ ने कहा-"दीवानजी, मैं मुगले आज़म बना रहा हूं, सलीम-अनारकली नहीं,यह बात इन दोनों को समझ नहीं आती।मेरी इस फ़िल्म का केवल एक हीरो है अक़बर दी ग्रेट."

◆के आसिफ़ अकबर के रोल के लिए कांट्रैक्ट लेके गए और फ़ीस के बारे पूछा पृथ्वीराज कपूर ने कहा -जहां इतना कुछ लिखा है, वहां रक़म भी लिख देते।
आसिफ़ बोले- पहले तो यह बताइए, रक़म कितनी लिखूं.
पृथ्वीराज ने कहा, क्या तुम नहीं जानते?
के.आसिफ़ ने कहा, "जानता तो पूछता नहीं."
पृथ्वीराज-अच्छा तो फिर कोई रक़म लिख लो,मुझे मंज़ूर होगा.
के.आसिफ़ ने कहा, नहीं दीवानजी,ऐसा मत कहिए,दिलीप कुमार, मधुबाला, दुर्गा खोटे सबने अपनी क़ीमत लगाई फिर आप क्यों?
पृथ्वीराज-"नहीं मेरी क़ीमत तुम ख़ुद लगाओगे."
के आसिफ़ -ये धृष्टता मैं नहीं कर सकता,दीवानजी; मैं तो अभी तक अपनी क़ीमत नहीं लगा पाया। आप यह तो बता सकते हैं- राज ने आवारा में आपको क्या दिया ?
पृथ्वीराज-50 हज़ार
के आसिफ़ -तो मैं 75 हज़ार लिख दूं।
पृथ्वीराज -जैसा तुम ठीक समझो।
मेहनताना तय हो गया लेकिन के.आसिफ़ कांट्रैक्ट के बदले में एडवांस रक़म देना चाहते हैं ।के.आसिफ़,पृथ्वीराज को चेक पर एडंवास की रक़म लिखने को चेकबुक आगे बढ़ाते हैं ।पृथ्वीराज कपूर चेकबुक पर 1/-एक रूपये लिख देते हैं ।
के.आसिफ़ भावुक हो कर ‘दीवान जी’
पृथ्वीराज-मैं आदमियों के साथ काम करता हूं,व्यापारियों या मारवाड़ियों के साथ नहीं."
पृथ्वीराज की प्रारंभिक शिक्षा लायलपुर और लाहौरमें हुई थी उनके पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे।बाद में उनके पिता का तबादला पेशावर हो गया और यंही उन्होंने स्नातक किया। एक वर्ष तक क़ानून की पढ़ाई के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ थिएटर की ओर रुख़ किया।और अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।
मुंबई में इंपीरियल फ़िल्म कंपनी से जुडने के बाद 1930 में फ़िल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। इसके कुछ समय पश्चात् एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक में भी उन्होंने अभिनय किया। लगभग दो वर्ष तक फ़िल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद फ़िल्म आलम आरा में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौक़ा मिला। 1933 में कोलकाता के मशहूर न्यू थिएटर के साथ उनका जुड़ाव हुआ। 1934 में देवकी बोस की फ़िल्म 'सीता' की कामयाबी ने उन्हें बतौर अभिनेताअपनी पहचान बनाने में सफल हुए । इसके बाद पृथ्वीराज ने न्यू थिएटर की निर्मित कई फ़िल्मों में अभिनय किया। 1938 में रंजीत मूवीटोन के साथ अनुबंध हुआ और इसके के बैनर तले प्रदर्शित फ़िल्म 'पागल' में एंटी हीरो की भूमिका निभाई। 1941 में सोहराब मोदी की फ़िल्म ‘सिकंदर’ की सफलता पृथ्वीराज को शीर्ष पर बिठा दिया।
1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी पृथ्वी थिएटर शुरू की।पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा इस्तेमाल किया,जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफ़ी अलग था।पृथ्वी थिएटर के प्रति पृथ्वीराज इस क़दर समर्पित थे कि तबीयत ख़राब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे। वह शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते।
आकर्षक व्यक्तित्व व आवाज़ के महारथी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने क़रीब 16 वर्षों में दो हज़ार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां कीं।

रेशमा (निधन: 3 नवंबर)रेशमा सितारा-ए-इम्तियाज़ से सम्मानित पाकिस्तानी लोक गायिका थीं। वो भारत में भी काफ़ी लोकप्रिय थी। र...
03/11/2025

रेशमा (निधन: 3 नवंबर)
रेशमा सितारा-ए-इम्तियाज़ से सम्मानित पाकिस्तानी लोक गायिका थीं। वो भारत में भी काफ़ी लोकप्रिय थी। रेशमा प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक सुभाष घई की फ़िल्म हीरो के ‘लंबी जुदाई’ वाले गाने से भारत में बहुत मशहूर हुई थीं। राजस्थान के बीकानेर में रेशमा का जन्म हुआ था। रेशमा का भारत से भी गहरा रिश्ता रहा है। बंटवारे के बाद रेशमा का परिवार कराची चला गया था। 12 साल की उम्र से ही रेशमा गायकी में मशहूर हो गईं। पाकिस्तान रेडियो पर रेशमा ने अपना पहला सूफ़ी गाना लाल मेरी... गाया। बाद में ये एक बड़ी सूफ़ी गायिका के रूप में जानी गईं।

काश! सचिन दा का सुझाव गुरू ने माना होता 'प्यासा' से गुरुदत्त को बहुत फायदा हुआ था. जनता ने खुले दिल से स्वागत किया ही, इ...
31/10/2025

काश! सचिन दा का सुझाव गुरू ने माना होता

'प्यासा' से गुरुदत्त को बहुत फायदा हुआ था. जनता ने खुले दिल से स्वागत किया ही, इंटरनेशनल ख्याति भी मिली. मगर पर्दे के पीछे के हालात इतने अच्छे नहीं थे. साहिर और सचिन देव बर्मन में अनबन हो चुकी थी. साहिर का कहना था कि उनके लिखे गानों ने धमाल मचाया था जबकि सचिन दा इससे सहमत नहीं थे. वो अपने योगदान की सराहना भी चाहते थे. जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला...के लिए साहिर मो.रफी को चाहते थे और खुद गुरूदत्त भी. लेकिन सचिन दा ने हेमंत कुमार जो बुला लिया था. इसे लेकर भी अनबन चल ही रही थी. इधर गुरू की निजी ज़िंदगी में सब कुछ ठीक नहीं था. वहीदा से गुरू की नज़दीकियां को लेकर पत्नी गीता दत्त से मन-मुटाव पीक पर था. वो अक्सर बच्चों को लेकर अलग रहना शुरू कर देती थीं. उन्हें भी अच्छी गायिका होने का गुरूर था. गुरू ने अपनी ज़िंदगी की उथल-पुथल पर बायो-पिक 'कागज़ के फूल' की योजना बनाई. सचिन दा ने समझाया, अपनी ज़िंदगी को सार्वजनिक मत करो. अभी तुम्हारी ज़िंदगी का पीक नहीं आया है. नाकामी हाथ लगेगी. लेकिन गुरू नहीं माने. सचिन दा नाराज़ होकर उनके अगले प्रोजेक्ट से हट लिए. हालांकि कथ्य और डायरेक्शन और बाकी तमाम लिहाज़ से 'कागज़ के फूल' बेहतरीन थी मगर बॉक्स-ऑफिस पर बुरी तरह नाकाम रही. गुरू अपनी सारी दौलत लुटा चुके थे. उन्होंने क़सम खाई की अब डायरेक्शन कभी नहीं दूंगा. इधर सचिन दा तो गुरू से तौबा कर ही चुके थे. साहिर तो 'प्यासा' के दिनों से ही नाराज़ चल रहे थे. इसीलिए जब शुद्ध कमर्शियल 'चौदहवीं का चाँद' (1960) की घोषणा हुई तो उसमें संगीत के लिए रवि शर्मा आ गए और गीतों के लिए रवि के ही पसंदीदा शकील बदायुनी. डायरेक्शन के लिए उन्होंने मुस्लिम सोशल फिल्मों के एक्सपर्ट माने गए एम्.सादिक़ को चुना. उन दिनों गुरू के आर्थिक हालात इतने ख़राब हो चुके थे कि उन्हें के.आसिफ से दरख्वास्त करनी पड़ी कि 'मुगले आज़म' के कुछ सेट्स इस्तेमाल करने की इजाज़त दी जाए. और आसिफ ने भी दरियादिली दिखाई. एक पैसा भी नहीं लिया. 'चौदहवीं का चाँद' ने बॉक्स ऑफिस पर बेमिसाल कामयाबी हासिल की. गुरू का पिछला घाटा भी पूरा हो गया. मगर निजी ज़िंदगी में उथल-पुथल जारी रही जिसकी परिणीति अंततः उनकी आत्महत्या में हुई.

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(साभार छाबड़ा वीर जी)

October 31 ...... Today is 50th Death Anniversary f S.D. Burman Sachin Dev Sachin Burman music director and singer. He s...
31/10/2025

October 31 ...... Today is 50th Death Anniversary f S.D. Burman

Sachin Dev Sachin Burman music director and singer. He started his career with Bengali films in 1937. Later he began composing for Hindimovies was an Indian, and became one of the most successful Bollywood film music composers. S D Burman composed music for over 100 movies, including Hindi and Bengali films. Apart from being a versatile composer, he also sang songs in light semi-classical and folk style of Bengal. His son Rahul Dev Burman was also a celebrated music composer for Bollywood films.

Burman was born on 1 October 1906, in Comilla, Bengal Presidency to Raj Kumari Nirmala Devi, the royal princess of Manipur and Nabadwipchandra Dev Burman. Sachin was the youngest of the five sons of his parents, who had nine children in all. His mother died when he was just two years of age.

S D Burman's first school was at Kumar Boarding in Agartala, Tripura. Later admitted him at Yusuf School in Comilla, before he was admitted in Class V in Comilla Zilla School. From Comilla Zilla School he completed his Matriculation in 1920 at the age of 14. He then got admitted at Victoria College, Comilla, which is presently Comilla Victoria Government College from where he passed his IA in 1922 and then BA in 1924. S D Burman left for Kolkata to start an MA in Calcutta University, which he did not finish as music got the better of him for good. He started his formal music education by training under the musician K. C. Dey from 1925 to 1930; This was followed by training from Ustad Badal Khan, the sarangi maestro, and Ustad Allauddin Khan, the sarodist.

S D Burman started working as a radio singer on Calcutta Radio Station in the late '20s, when his work as a singer-composer was based on Bengali folk and light Hindustani classical music. In 1934, he attended the All India Music Conference, at the invitation of Allahabad University, where he presented his Bengali Thumri, and was awarded a Gold Medal.

In 1944, Burman moved to Mumbai, at the request of Sasadhar Mukherjee of Filmistan, who asked him to give score for two Ashok Kumar starrers, Shikari (1946) and Aath Din, but his first major breakthrough came the following year with the company's Do Bhai (1947). The song Mera Sundar Sapna Beet Gaya sung by Geeta Dutt was his breakthrough song into the film industry. In 1949 came Shabnam, his biggest hit yet with Filmistan, especially noticeable for its multi-lingual hit song Yeh Duniya Roop ki Chor, by Shamshad Begum, which became a rage in those days.

In 1950s, Burman create musical hits like Taxi Driver, Nau do Gyarah (1957) and Kala Paani (1958). In addition, he gave music for Munimji (1955) and Paying Guest (1957). Afsar (1950) Baazi (1951), He also gave music for the Guru Dutt classics Pyaasa (1957) and Kaagaz Ke Phool (1959). The soundtrack of Devdas (1955) was also composed by him. House No. 44 (1955), Funtoosh (1956), and Solva Saal (1958) were other S. D. Burman hits. In 1959 came Sujata, a masterpiece by Bimal Roy, In 1957, S. D. Burman fell out with Lata Mangeshkar and adopted her younger sister Asha Bhosle as his lead female singer. The team of S. D. Burman, Kishore Kumar, Asha Bhosle and lyricist Majrooh Sultanpuri became popular for their duet songs. Thus, he was responsible along with O. P. Nayyar for shaping Asha Bhosle as a singer of repute, who became his daughter-in-law after she married Rahul Dev Burman.

In 1958, S. D. Burman gave music for Kishore Kumar's house production Chalti Ka Naam Gaadi,

Ill health caused a slump in his career in the early 1960s, but he gave many hit films in the late 1960s. In 1961, S. D. Burman and Lata Mangeshkar came together during the recording of R.D. Burman's first song for the movie Chhote Nawab (1961). They reconciled their differences and started working ag*in in 1962.

The Dev Anand-S. D. Burman partnership, continued to churn out musical hits like Bombai Ka Baboo (1960), Tere Ghar Ke Samne (1963), Teen Devian (1965), Guide (1965) and Jewel Thief (1967). In 1963, he composed songs for Meri Surat Teri Aankhen Other S. D. Burman hits from this period were Bandini (1963) and Ziddi (1964). Guide (1965) starring Dev Anand, was probably the best of his work during the time with all the songs super-hits as well as the film. Aradhana (1969) is considered another landmark score in the Bollywood history.

Tere Mere Sapne (1971), Sharmeelee (1971), Abhimaan (1973), Prem Nagar (1974), Sagina (1974), Chupke Chupke (1975), and Mili (1975) are other classics from this period.

In 2007 A Postage Stamp (Face value Rs 15) released in his memory.

He received 5 filmfare Award for film Taxi Driver, Sujata, Guide, Abhiman and Aradhna.

He died on 31 October 1975 in Mumbai.

Some of his hit songs are:

1. Tum na jane kis jahan main kho g*i (Saza)

2. Aik ghar banaunga terey ghar key samney (Terey Ghar Key Samney)

3. Khilte hain gul yahan khil key bichar jane ko (Sharmeeli)

4. Jaltey hain kis key ley teri ankhon key dye (Sujata)

5. Gata rahe mera dil tu he meri manzil (Guide)

6. Ab key sajan sawan main (Chupkey Chupkey)

7. Tabdeer se bigri hui taqdeer bana ley (Bazi)

8. Na tum hamain jano na ham tumhain janey (Baat Aik Raat Ki)

9. Hay apna dil to awara na janey kis pe ayga (Solvan Saal)

10. Jaien to jaien kahan samjhe ga kaun yahan (Taxi Driver)

11. Likha hai teri ankhon main ye kiska afsana (Teen Devian)

12. Arey yaar meri tum bhi ho ghazab (Teen Devian)

13. Mosey chal keye jaye sayyan be iman (Guide)

14. Tere merey sapney ab aik rang hai (Guide)

15. Pia tosey naina lage rey (Guide)

16. Main sitaron ka tarana main baharon ka khazana (Chalti Ka Naam Gari)

17. Haal kaisa hai janab ka kya khayal hai aap ka (Chalti Ka Naam Gari)

18. Aik larki bhegi bhagi see soti raton main jagi see (Cjhalti Ka Naam Gari)

19. Ye laal rang kab mujhe chorey ga (Prem Nagar)

20. Mana janab ne pukara nahi (Paying Guest)

And many many more…..

1980 के दशक में रातो पॉप स्टार बनी पाकिस्तानी गायिका नाज़िया हसन जिन्होने 15 साल की उम्र में फिल्म फेयर अवार्ड जीता था.1...
28/10/2025

1980 के दशक में रातो पॉप स्टार बनी पाकिस्तानी गायिका नाज़िया हसन जिन्होने 15 साल की उम्र में फिल्म फेयर अवार्ड जीता था.
1981 में आई सुपरहिट फिल्म "कुर्बानी" का गाना "आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आए" इसमें जीनत अमान थीं और यह बहुत बड़ा हिट हुआ था। हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि इस गाने को पाकिस्तान की 15 साल की लड़की नाजिया हसन ने गाया था जिसके लिये उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड मिला था।

सुपरहिट एल्बम – "Disco Deewane": उनका पहला एल्बम "Disco Deewane" (1981) बेहद हिट रहा। यह एल्बम भारत-पाकिस्तान दोनों जगह क्रेज़ बना दिया था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पसंद किया गया था। इसमें नाज़िया की अनोखी आवाज़ और कैची बीट्स ने युवाओं को बहुत प्रभावित किया।

नाज़िया हसन ने अपने संगीतिक करियर में बहुत कम वर्षों में नाम बनाया। लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनका निधन 13 अगस्त 2000 को कैंसर के कारण हो गया। वे सिर्फ 35 साल की थीं।

डिस्को दिलाने 🎤
यह उनका सुपरहिट गाना था जिसने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया।

आज जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए 🎤
बॉलीवुड फ़िल्म Qurbani (1980) का यह गाना भी बेहद हिट रहा।
▶️ बप्पी लाहिड़ी के साथ नाज़िया हसन ने इसे गाया था।
▶️ इस गाने ने उन्हें इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में भी पहचान दिलाई।

🔘Anjaan अनजान अपने समय के हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित गीतकारों में से एक थे, जिन्होंने हमें "पिपरा के पटवा सरीखे डोल...
28/10/2025

🔘Anjaan

अनजान अपने समय के हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित गीतकारों में से एक थे, जिन्होंने हमें "पिपरा के पटवा सरीखे डोले मनवा," "आप के हसीन रुख पे आज नया नूर है," "मानो तो मैं गंगा मां हूं मानों तो बहता पानी," "खइके पान बनारसवाला," "रोते हुए आते हैं सब" और कई अन्य जैसे क्लासिक गीत दिए।

लालजी पांडे का जन्म 28 अक्टूबर, 1930 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में एक साधारण पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ। उन्हें पहला ब्रेक 1953 में प्रेमनाथ प्रोडक्शन की फिल्म "गोलकोंडा का कैदी" से मिला, जहां उन्होंने "लहर ये डोले कोयल बोले" और "शहीदों अमर है तुम्हारी कहानी" गाने लिखे। उन्होंने तन्खा (1956), माई बाप (1957), माया नगरी (1957), हथकड़ी (1958), नाग चंपा (1958), नया पैसा (1958), सैर-ए-परिस्तान (1958), तीर्थ यात्रा (1958), साहिल (1959), जाली नोट (1960), सरोवर की सुंदरी (1960), लंबे हाथ जैसी कई फिल्मों में गीत दिए। (1960), एलिफेंट क्वीन (1961), मिस्टर इंडिया (1961), सारा जहां हमारा (1961), तिलस्मी दुनिया (1962), भूतनाथ (1962), फौलाद (1963) और भी बहुत ।

शुरुआती संघर्ष के बावजूद, अंजान की प्रतिभा निर्विवाद थी और उन्हें सफलता राज कुमार की फिल्म "गोदान" से मिली, जिसने उन्हें सुर्खियों में ला दिया। गोदान में उन्होंने "पिपरा के पटवा सरीखे डोले मनवा," "चली आज गोरी पिया की नगरिया," "हिया जरत रहत दिन रैन," "ओ बेदर्दी क्यों तड़पाए जियारा," और "होली खेलत नंद लाल बिरज में" जैसे प्रतिष्ठित गीत लिखे, जो अब क्लासिक माने जाते हैं।

हालाँकि अंजान को 1960 और 1970 के दशक में काफी सफलता मिली, लेकिन इस दौर में ज्यादातर काम कम बजट की फिल्मों में हुआ। इस अवधि में उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्मों में बहारें फिर भी आएंगी (1966), संगदिल (1967), बंधन (1969), और कब शामिल हैं? क्यों? और कहाँ? (1970), उमंग (1970), एक हसीना दो दीवाने (1971), एक नारी एक ब्रह्मचारी (1971), कंगन (1971), जीवन रेखा (1972), पुतलीबाई (1972), रिवाज (1972), हीरा (1972), आग और तूफान (1972), अपने रंग हजार (1975), हिमालय से ऊंचा (1975), श्याम तेरे कितने नाम (1976), प्रियतमा (1977), विश्वनाथ (1977), अहिंसा (1978), और भी बहुत ।

इस अवधि के उनके कुछ प्रतिष्ठित गीतों में "आप के हसीन रुख पे आज नया नूर है," "आज तुमसे दूर हो कर ऐसा रोया मेरा प्यार" शामिल हैं। "कच्ची काली कचनार" (हमगामा), "उम्र तो प्यार करने की आई (जिंदगी)," "दुनिया ने मुझे तड़पाया (विश्वनाथ)," "मेरी काली कलौटी के नखरे बड़े (अपने रंग हजार)," "मेरी सांसों को जो महका रही है (बदलते रिश्ते)," "हरि ओम हरि (प्यारा दुश्मन)," "लागी" लग जाए लोगों लगई नहीं जाए (पूनम), " "गोरों की ना कलों की।" "मैं एक डिस्को डांसर हूँ।" "जिमी जिमी जिमी आजा आजा आजा," "याद आ रहा है तेरा प्यार" (डिस्को डांसर), "जमाना तो है नौकर बीवी का (नौकर बीवी का)," "झूम झूम झूम बाबा," "कसम पैदा करनेवाले की" (कसम पैदा करनेवाले की), "यार बिना चैन कहां रे (साहब)," "यशोदा का नंदलाला बृज का उजाला है (संजोग),'' ''जानू जानम जानेमन (सल्तनत),'' ''जी ले ले जी ले ले,'' ''मेरे पास आओगे मेरे साथ नाचोगे,'' ''टार्जन माय टार्जन'' (एडवेंचर्स ऑफ टार्जन), ''प्यार किया है प्यार करेंगे (इल्जाम),'' ''मेरे दिल गाये जा ज़ू ज़ूबी ज़ूबी ज़ूबी (डांस डांस),'' ''दाता तेरे काई'' नाम," "बाबुल का ये घर गोरी" (दाता), "आगे सुख है तो पीछे दुख है (ईश्वर)," "डिस्को डांडिया (लव लव लव)," "तोता तोता साजन से कहना (पहला प्रेम पत्र)," "तू पागल प्रेमी आवारा (शोला और शबनम)," "चोरी चोरी मैंने भी तो (दलाल)," और भी बहुत।

1970 और 1980 का दशक अंजान के करियर के चरम पर था, जहां कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आर.डी. बर्मन और बप्पी लाहिड़ी जैसे संगीतकारों के साथ उनके सहयोग ने हिंदी सिनेमा के कुछ सबसे प्रतिष्ठित गीतों का निर्माण किया। काव्यात्मक गीतकारिता के साथ व्यावसायिक गीतों को जोड़ने की उनकी क्षमता ने उन्हें अलग कर दिया और अमिताभ बच्चन की दो अंजाने (1976), हेरा फेरी (1976), डॉन (1977), खून पसीना (1978), गंगा की सौगंध (1978), मुकद्दर का सिकंदर (1978), दो और दो पांच (1980), लावारिस (1981), याराना जैसी फिल्मों में उनका काम किया। (1981), नमक हलाल (1982), महान (1983), शराबी (1984), जादूगर (1989), और आज का अर्जुन (1990) ने एक महान गीतकार के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत किया।

अंजान के सबसे प्रतिष्ठित गीतों में से एक ब्लॉकबस्टर फिल्म "डॉन" का "खइके पान बनारसवाला" है। यह गाना, अपनी आकर्षक धुन और बोलचाल की भाषा के साथ, बनारस शहर के सार को दर्शाता है और तुरंत हिट हो गया। इस गाने की चंचलता, किशोर कुमार के जीवंत गायन और अमिताभ बच्चन की करिश्माई स्क्रीन उपस्थिति के साथ मिलकर इसे एक कालातीत क्लासिक बना दिया।

अंजान की एक और उत्कृष्ट कृति 'मुकद्दर का सिकंदर' का गीत "रोते हुए आते हैं सब" है। यह मार्मिक गीत अंजान की अपने शब्दों के माध्यम से गहरी भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता का प्रमाण है। इस गीत की उदास धुन और किशोर कुमार द्वारा भावपूर्ण गायन, एक ऐसी लालसा और क्षति की भावना जगाता है जो आज भी श्रोताओं के दिलों में गूंजती है।

एक गीतकार के रूप में अंजान की बहुमुखी प्रतिभा संगीत की विभिन्न शैलियों में उनके काम में स्पष्ट दिखाई देती है। रोमांटिक गीतों से लेकर जोशीले डांस नंबरों तक, उनके गीतों ने संगीत को पूरक बनाया है और फिल्मों की कहानी को निखारा है।

"गंगा की सौगंध" का गाना "मानो तो मैं गंगा मां हूं मानों तो बहता पानी" अंजान की काव्य प्रतिभा का एक और उदाहरण है। यह गीत गंगा नदी के प्रति एक भावपूर्ण स्तुति है, जो शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है। गीत अंजान के गहरे सांस्कृतिक मूल्यों और भारत की आध्यात्मिक विरासत से उनके संबंध को दर्शाते हैं।

अमिताभ के साथ उनकी फ़िल्मों के कुछ अन्य गीतों में "लुक छिप लुक छिप जाओ ना," "बरसन पुराना ये याराना," "अरे दीवानो मुझे पहचानो," "जिसका मुझे था इंतज़ार," "खून पसीने की जो मिलेगी तो खायेंगे" शामिल हैं। "दिल तो है दिल," "ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना," "तूने अभी देखा नहीं," "जिसका कोई नहीं," "काहे पैसे पे इतना गुरुर करे है," "कब के बिछड़े हुए," "भोले ओ भोले," "छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा," "सारा जमाना हसीनों का दीवाना," "तेरे जैसा यार कहां," "आज रपट जाएँ तो हमीं ना उठाइयो,'' 'के पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी,' 'जवानी जानेमन हसीन दिलरुबा,' 'रात बाकी बात बाकी।' "थोड़ी सी जो पी ली है," "हर छोरी रानी हियां रानी," "प्यार में दिल पे मार दे गोली, दे दे प्यार दे," "इंतेहा हो गई इंतज़ार की," "जहां चार यार मिल जाएं," "मुझे नौलखा मंगा दे रे," "बहना ओ बहना," "चली आना तू पान की दुकान पे साढ़े तीन बजे," "गोरी है कलाइयां तू ला दे मुझे हरी हरि" चूड़ियाँ," और भी बहुत कुछ।

अंजान की विरासत सिर्फ उनके काम तक ही सीमित नहीं है; यह उनके बेटे समीर के माध्यम से जारी है, जो अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए अपने आप में एक सफल गीतकार बन गया।

हिंदी सिनेमा में अंजान का योगदान केवल गानों के रूप में नहीं था, बल्कि उनके शब्दों का दर्शकों पर सांस्कृतिक प्रभाव भी था। उनकी कविता में भोजपुरी भाषा और उत्तर प्रदेश की संस्कृति का स्वाद बरकरार रहा, जो हिंदी पट्टी के सार को दर्शाता है।

अंजान का जीवन शब्दों की शक्ति और समय और स्थान के पार दिलों को छूने की उनकी क्षमता का प्रमाण था। 3 सितंबर, 1997 को उनके निधन ने हिंदी फ़िल्म संगीत की दुनिया में एक शून्य छोड़ दिया।

Sahir Ludhianvi was one of the most celebrated poets and lyricists of India, who wrote in both Urdu and Hindi languages....
25/10/2025

Sahir Ludhianvi was one of the most celebrated poets and lyricists of India, who wrote in both Urdu and Hindi languages. He was born as Abdul Hayee on 8 March 1921 in Ludhiana, Punjab. His pen name, Sahir Ludhianvi, was derived from his birthplace and his poetic style, which means "magician" or "enchanter" in Urdu.

Sahir was also known for his unconventional and rebellious personality. He was an atheist who questioned the orthodoxies and hypocrisies of religion. He was a feminist who advocated for women's rights and dignity. He was a socialist who opposed capitalism and exploitation. He was also an artist who demanded respect and recognition for his work. He insisted that the music should be composed according to his lyrics, not vice versa. He also asked for one rupee more than Lata Mangeshkar as a symbol of his protest ag*inst the hierarchy in the film industry. He also fought for the rights of lyricists to be credited by All India Radio.

Sahir's childhood was marked by hardship and struggle, as his mother left his father soon after his birth due to domestic abuse and financial disputes. His father remarried and tried to claim custody of Sahir, but his mother fought back and raised him single-handedly. Sahir was deeply attached to his mother and admired her courage and resilience. Sahir's friend poet Ahmad Rahi's words once said "In his entire life, Sahir loved once, and he nurtured one hate. He loved his mother, and he hated his father."

Sahir received his primary education in Urdu and Persian from Maulana Fiyaz Haryanvi, and then attended Khalsa High School in Ludhiana. He developed a passion for poetry and literature at an early age and started writing poems and ghazals. He was also influenced by the progressive writers' movement, which aimed to challenge the social injustices and inequalities in society through literature.

Sahir moved to Lahore in 1943 and joined Dayal Singh College, where he became the president of the student federation. He also published his first collection of poems, Talkhiyaan (Bitterness), in 1944, which received critical acclaim and established him as a prominent poet. He also worked as an editor for various Urdu magazines, such as Shahkaar, Adab-e-Lateef, and Savera.
One of his friend was making a film "Azadi ki Rah par" and asked him to write a song for it, this led to his moving to Bombay, where he meet SD Burman, their first film was Naujawan(1951) and the song was "Thandi Hawayein" which become a chartbuster. This was the start of a long collaboration between two geniuses who gave films like Baazi (1951), Jaal (1952),Taxi Driver (1954), Munimji(1955), Devdas (1955), Funtoosh(1956) & Pyaasa (1957). After Pyaasa they decided not to work any more due to their diferences.

Sahir went on to work with music composers like Ravi, Roshan, Khayyam, N. Datta, OP Nayyar, Laxmikant Pyare, Madan Mohan etc. With N. Datta, Sahir collaborated for films like Milaap (1955), Chandrakanta (1956), Saadhna (1958), Dhool Ka Phool (1959), Dharamputra (1961), Naya Raasta (1970). Ravi and Sahir formed a long working relationship with Chopra brothers B.R and Yash and gave films like Gumrah, Waqt (1965 film), Hamraaz(1967), Aadmi Aur Insaan(1969), Dhund (1973).

Some of Sahir's best work comes in as Naya Daur, Phir Subah Hogi, Hum Dono, Taj Mahal, Chitrlekha, Ghazal, Kajal, Izzat, Neel kamal, Aankhen, Dastan, Daagh, Joshila, Laila Majnu, Kabhi Kabhie, and many more.

Sahir's songs were not only melodious and poetic, but also meaningful and relevant. He wrote about various themes, such as love, romance, patriotism, social issues, humanism, philosophy, and spirituality. He also expressed his views on politics, religion, war, peace, and justice. He used simple yet powerful words to convey his message and touch the hearts of the listeners.
Some of his famous songs are
"Thandi Hawayein Lehrake Aaye"- Naujawan (1951)
"Jayen To Jayen Kahan" - Taxi Driver (1954)
"Saathi Haath Badhana" - Naya Daur (1957)
"Yeh Duniya Agar Mil Bhi Jaye Toh Kya Hai"- Pyaasa (1957)
"Aurat Ne Janam Diya Mardon Ko" - Sadhna (1958)
"Woh Subah Kabhi Toh Aayegi"- Phir Subah Hogi (1959)
"Tu Hindu Banega Na Musalman Banega", - Dhool Ka Phool (1959)
"Yeh Ishq Ishq Hai", "Na To Karvan Ki Talash Hai" - Barsaat Ki Raat (1960)
"Allah Tero Naam Ishwar Tero Naam', "Main Zindagi Ka Sath Nibhata Chala Gaya", "Kabhi Khud Pe Kabhi Haalat Pe Rona Aaya" - Hum Dono (1961)
"Chalo Ek Baar Phir Se Ajnabi Ban Jaye Hum Dono' - Gumrah (1963)
"Laaga Chunri Mein Daag" - Dil Hi To Hai (1963)
"Aye Meri Zoharjabin" - Waqt (1965)
"Babul Ki Duaen Leti Ja"- Neelkamal (1968).
"Man Re Tu Kahe Na Dheer Dhare", "Sansar Se Bhage Phirte Ho" - Chitralekha (1964)
"Tora Mann Darpan Kehlaye"- Kaajal (1965)
"Main Pal Do Pal Ka Shayar Hoon", "Kabhie Kabhie" - Kabhi Kabhi (1976)
"Dil ke tukde tukde karke" - Dada(1980) and many more

Sahir had a turbulent love life as well. He was romantically involved with two famous women Amrita and Sudha Malhotra. Amrita Pritam, a renowned Punjabi poetess, with whom he had a complicated relationship. It was not just some ordinary relationship but a marriage of two great minds, it was their genius which comes in their way along with Sahir's commitment phobia due to his childhood trauma of his parents's bad marriage; and Sudha Malhotra, a celebrated singer.

Even though Sudha chose someone else over Sahir, he didn't hesitate to support her career in the film industry. It was for her that Sahir penned the immensely popular Nazm 'Chalo Ik Baar Phir Hum Ajnabi Ban Jaen.' Sahir remained unmarried till his death.

Sahir died of a cardiac arrest on 25 October 1980 at the age of 59 in Mumbai. He was buried at the Juhu Muslim cemetery. His death was mourned by millions of fans and admirers across India and Pakistan. He was honored with many awards and recognitions during his lifetime and after his death. He received two Filmfare Awards for Best Lyricist for Taj Mahal (1964) and Kabhie Kabhie (1977) and nominated for 7 more. He was also awarded the Padma Shri in 1971 by the Government of India. In 2013, a commemorative stamp was issued in his honor by India Post on his 92nd birth anniversary.

Sahir Ludhianvi was a legend who left behind a rich legacy of poetry and music that continues to inspire generations of writers and artists. He was a magician who enchanted us with his words and wisdom.

आज मन्ना डे (Manna Dey) की पुण्यतिथि🌹(24 अक्टूबर, 2013) पर उनके करोड़ों चाहने वालों की तरफ से नमन और श्रद्धांजलि 🙏🙏जब भी ...
24/10/2025

आज मन्ना डे (Manna Dey) की पुण्यतिथि🌹(24 अक्टूबर, 2013) पर उनके करोड़ों चाहने वालों की तरफ से नमन और श्रद्धांजलि 🙏🙏
जब भी हिंदी फिल्मों के स्वर्ण युग और अमर गीतों की बात होती है, कुछ नाम अपने आप याद आ जाते हैं — मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, और लता मंगेशकर। लेकिन इनके बीच एक ऐसा नाम भी है, जो अपनी शास्त्रीय गहराई, तकनीकी महारत और आत्मीय सुरों से हमेशा अलग नजर आता है — मन्ना डे। उनकी आवाज में वह मिठास थी, जो सीधे दिल में उतर जाती थी। आज 24 अक्टूबर, उनकी पुण्यतिथि पर, आइए जानते हैं उस शख्स के बारे में, जिसकी आवाज सुनकर समय भी ठहर जाता था।

संगीत से रिश्ते की शुरुआत: एक साधारण लड़का, असाधारण आवाज

मन्ना डे का जन्म 1 मई 1919 को कोलकाता में प्रबोध चंद्र डे के रूप में हुआ था। परिवार साधारण था, लेकिन संगीत उनमें जन्मजात था। बचपन से ही सुर और ताल उनका साथी थे। उनके गुरु और चाचा, संगीताचार्य कृष्णा चंद्र डे, ने उन्हें शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सिखाईं। यही वह नींव थी, जिसने मन्ना डे को बाकी गायकों से अलग पहचान दिलाई।

1942 में वे मुंबई आए, जहां उन्होंने सचिन देव बर्मन के सहायक के रूप में काम शुरू किया। उसी दौरान उन्हें पहला मौका मिला — फिल्म ‘तमन्ना’ में सुरैया के साथ गाने का। इसके बाद 1943 में फिल्म ‘राम राज्य’ का गीत ‘गई तू गई सीता सती’ ऐसा गूंजा कि महात्मा गांधी तक ने उसकी तारीफ की।

मुश्किल गीतों के उस्ताद

मन्ना डे की खासियत यह थी कि वे ऐसे गीत भी सहजता से गा लेते थे, जिन्हें दूसरे गायक गाने से डरते थे। संगीतकार जानते थे कि अगर कोई क्लासिकल बेस वाला, या सुरों के जाल में बंधा गीत है — तो बस मन्ना डे ही उसे जीवंत कर सकते हैं।

राज कपूर ने भी उनकी इसी प्रतिभा को पहचाना । ‘चोरी चोरी (1956) का मशहूर गीत ‘ये रात भीगी भीगी’ पहले मुकेश के लिए सोचा गया था, लेकिन राज कपूर ने मन्ना डे और लता मंगेशकर की जोड़ी से इसे रिकॉर्ड कराया — और यही गीत आज भी रोमांस का पर्याय बन गया।

संगीत की दुनिया में उनका साम्राज्य

मन्ना डे ने अपने पांच दशक लंबे करियर में लगभग 3000 से अधिक गीतों को अपनी आवाज दी। उन्होंने न केवल हिंदी और बांग्ला, बल्कि मराठी, गुजराती, मलयालम और पंजाबी जैसी 14 भाषाओं में भी गाया। उनके गीत सिर्फ सुर नहीं थे, बल्कि भावनाओं की अभिव्यक्ति थे — ‘यारी है ईमान मेरा’ (जंजीर), ‘जिंदगी कैसी है पहेली’ (आनंद), ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’ (श्री 420) — हर गाना जैसे आत्मा की आवाज हो।

रफ़ी और लता भी थे उनके प्रशंसक

यह बात शायद कम लोग जानते हैं कि खुद मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर भी मन्ना डे की आवाज से बेहद प्रभावित थे। रफ़ी साहब ने एक बार कहा था — “लोग मेरे गाने सुनते हैं, लेकिन मैं मन्ना डे को सुनता हूं।” वहीं लता मंगेशकर ने ‘उपकार’ फिल्म के गीत ‘कसमें वादे प्यार वफ़ा’ के बाद उनकी तारीफ में कहा था — “उनके सुर में जो गहराई है, वो किसी में नहीं।”

वो गीत जो अमर हो गए

मन्ना डे के कुछ गीत तो भारतीय संगीत का हिस्सा बन चुके हैं।

‘ऐ मेरी ज़ोहरा जबीं’ (वक्त) – प्रेम, सम्मान और उम्र की मिठास का अनोखा संगम।

‘ऐ भाई ज़रा देख के चलो’ (मेरा नाम जोकर) – जीवन की सच्चाई को मस्ती के अंदाज में कहता गीत।

‘लागा चुनरी में दाग’ (दिल ही तो है) – जो आज भी क्लासिकल गायकी की मिसाल है।

‘ऐ मेरे प्यारे वतन’ (काबुलीवाला) – वो गीत जो सुनते ही आंखें नम हो जाती हैं।

‘लागा चुनरी में दाग’ — जब एक गीत बना प्रतीक

1962 की फिल्म ‘दिल ही तो है’ में मन्ना डे द्वारा गाया गया गीत ‘लागा चुनरी में दाग’ सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार था। राज कपूर पर फिल्माया यह गीत आज भी शुद्ध शास्त्रीय गायकी की मिसाल माना जाता है। यही गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि 2007 में इसके नाम पर पूरी फिल्म ‘लागा चुनरी में दाग – जर्नी ऑफ ए वुमन’ बनाई गई।

किशोर कुमार से दिलचस्प टकराव

फिल्म ‘पड़ोसन’ का मशहूर गीत ‘एक चतुर नार’ आज भी लोगों के चेहरों पर मुस्कान ला देता है। लेकिन इस गाने के पीछे एक दिलचस्प किस्सा है। रिकॉर्डिंग के दौरान मन्ना डे और किशोर कुमार में बहस हो गई थी — मन्ना डे चाहते थे कि गाना पूरी तरह शास्त्रीय ढंग से गाया जाए, जबकि किशोर कुमार इसे हल्के-फुल्के हास्य अंदाज में करना चाहते थे। आखिरकार दोनों ने अपने-अपने तरीके से गाया और यही मिश्रण गाने को अमर बना गया।

राजेश खन्ना की जिद और ‘जिंदगी कैसी है पहेली’

फिल्म ‘आनंद’ का गीत ‘जिंदगी कैसी है पहेली हाय’ जीवन के दर्शन को बड़ी सहजता से बयान करता है। दिलचस्प बात यह है कि यह गाना पहले बैकग्राउंड में इस्तेमाल होने वाला था, लेकिन राजेश खन्ना ने जिद की कि इसे उन पर फिल्माया जाए — और यही निर्णय गीत को कालजयी बना गया।

भीमसेन जोशी संग टकराव की घबराहट

फिल्म ‘बसंत बहार’ के गीत ‘केतकी गुलाब जूही’ के दौरान मन्ना डे को पता चला कि उन्हें इस गीत में पंडित भीमसेन जोशी के साथ गाना है। पहले तो वे डर गए, मुंबई छोड़ने तक की सोच ली। लेकिन पत्नी सुलोचना ने उन्हें समझाया — “तुम हीरो के लिए गा रहे हो, भीमसेन जोशी संगीत के लिए।” यही हिम्मत उन्हें रिकॉर्डिंग रूम तक वापस लाई और नतीजा – भारतीय सिनेमा का एक अमर युगल गीत।

अमर आवाज, जो कभी नहीं मिटेगी

साल 24 Oct 2013 में 94 वर्ष की आयु में मन्ना डे इस दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन उनकी आवाज, उनका संगीत, और उनका जादू आज भी उतना ही जीवंत है। वे सिर्फ गायक नहीं, बल्कि एक युग थे। उनकी आवाज में वह जादू था, जो हर सुनने वाले को अपनी

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