22/04/2025
डॉ. बी.आर. अंबेडकर (Babasaheb Ambedkar) की महत्वपूर्ण बातें जो सभी को जाननी चाहिए:
डॉ. भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 – 6 दिसंबर 1956) भारत के संविधान निर्माता, समाज सुधारक, विद्वान और दलितों के अधिकारों के प्रखर प्रवक्ता थे। उनके विचार और योगदान आज भी प्रासंगिक हैं।
1. संविधान निर्माण में योगदान
"भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार" – उन्होंने समानता, स्वतंत्रता और न्याय पर आधारित संविधान बनाया।
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) – धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव खत्म करने का प्रावधान किया।
अनुच्छेद 15-17 – जातिगत भेदभाव को गैरकानूनी घोषित किया।
हिंदू कोड बिल – महिलाओं के अधिकारों (विवाह, संपत्ति, तलाक) को मजबूत किया।
2. सामाजिक न्याय और समानता
"शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो" – उनका प्रसिद्ध नारा, जो दलितों और पिछड़ों को सशक्त बनाता है।
जाति व्यवस्था का विरोध – उन्होंने मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाया (1927) और कहा:
"जाति एक ऐसी दीवार है जो समाज को तोड़ती है, जोड़ती नहीं।"
दलित बौद्ध आंदोलन – 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और लाखों दलितों को प्रेरित किया।
3. शिक्षा और आत्मनिर्भरता
"जीवन लंबा नहीं, महान होना चाहिए" – उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और LSE से पढ़ाई की, जो शिक्षा के महत्व को दिखाता है।
रिजर्वेशन (आरक्षण) की वकालत – उनका मानना था कि सामाजिक न्याय के बिना लोकतंत्र अधूरा है।
4. धर्म और दर्शन
बौद्ध धर्म अपनाया (1956) – उन्होंने हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था को छोड़कर बौद्ध धर्म को चुना, क्योंकि यह समानता सिखाता है।
"धर्म मनुष्य के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं" – उनका यह विचार धार्मिक कट्टरता के खिलाफ था।
5. आर्थिक नीतियाँ
"रुपये की पूजा मत करो, विचारों की पूजा करो" – उन्होंने आर्थिक समानता पर जोर दिया।
कृषि और श्रमिक अधिकार – वे किसानों और मजदूरों के हक के लिए लड़े।
6. प्रेरणादायक विचार
"मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए।"
"कानून और व्यवस्था राजनीति की दासी नहीं, बल्कि समाज की संरक्षक होनी चाहिए।"
"अगर आप सभ्यता के विकास को समझना चाहते हैं, तो औरतों की स्थिति देखें।"
डॉ. अंबेडकर का स्थायी प्रभाव
भारत रत्न (1990) – मरणोपरांत दिया गया।
26 नवंबर – संविधान दिवस (उनके योगदान को सम्मान)।
दिल्ली में अंबेडकर मेमोरियल और देशभर में उनकी मूर्तियाँ।
डॉ. अंबेडकर ने कहा था – "हमें अपना इतिहास खुद लिखना चाहिए।" उनके विचार न सिर्फ दलितों, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा हैं जो न्याय और समानता में विश्वास रखता है।