
07/03/2025
ईद की खरीददारी:-
ईद पर मुसलमान अपने लोगों से खरीददारी करें?
80 के दशक में वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को "कैरेबियन तूफ़ान" कहा जाता था। उसके पास ऐंडी राबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, जोएल गार्नर और मैलकम मार्शल हुआ करते थे जिनके बल पर वेस्टइंडीज की टीम को इतना घमंड था कि उनके गेंदबाज कहते थे कि....
"पिच पर उन्हें ख़ून पसंद है"
आज वही वेस्टइंडीज ICC के किसी भी टूर्नामेट में भाग लेने के लिए तरस रही है....... कहने का अर्थ यह है कि "वक्त का हर शै ग़ुलाम"
और फिर हमने तो "फिरौन" को देखा है , क्रूसेडर को देखा है , अबू जहल को देखा है तो नमरूद को देखा है।
"फिरौन" मिस्र के म्युजिअम में पिछले 3000 साल से पड़ा सड़ रहा है , अबू जहल का अंजाम सभी को पता है तो नमरूद का अंजाम भी जान लीजिए...
नमरूद 5000 साल पहले दुनिया का बेताज बादशाह था , नमरूद की हुकूमत सारी दुनिया पर चलती थी , ज़ालिम नमरूद खुद को खुदा कहता था।
वह दौर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का था , और इब्राहीम अलैहिस्सलाम को इसी नमरूद ने आग में जला कर मारने की कोशिश की थी।
मगर एक लंगड़ा मच्छर ने उसे मार डाला, यह लंगड़ा मच्छर नमरूद की नाक के सहारे उसके दिमाग में घुस गया। लंगड़े मच्छर ने नमरूद के दिमाग की नसों में ठिकाना बना लिया।
मच्छर के काटने से घमंडी नमरूद का सर दर्द से फटने लगता वो दरबारियों और नौकरों से अपने सर पर जूते से पीटने को कहता जिससे उसे सरदर्द में राहत मिले। इस तरह इराक के बाबुल साम्राज्य के स्वघोषित खुदा की उसी के दरबार में सरेआम जूते से पिटाई होती थी।
सर पर जूते खाते खाते नमरूद को जमाना गुजर गया और लंगड़े मच्छर ने उसका जीना हराम कर दिया। आख़िर एक दिन दिमाग की नस फटने से इस काफिर और घमंडी बादशाह का हमेशा के लिए खात्मा हो गया।
यह दौर भी चला जाएगा और वक्त के नमरूद उसी अंजाम को पाएंगे, मगर इस माहौल में अपने किरदार को मत बदलिए, आपका किरदार ही आपका इतिहास लिखेगा।
ईद की शापिंग वहां से करिए जहां से मुनासिब सौदा मिले , हमारा इस्लाम मिल जुलकर साथ में रहने का पैगाम देता है , इसलिए कुछ भी ऐसा ना करें कि समाज में विभाजन हो और आज का नमरूद मज़बूत हो। उनके जैसे मत बनिए जो आए दिन बहिष्कार करते रहते हैं।
धंधे का कोई धर्म नहीं होता...
और जो "ईद की शापिंग अपनों से करें" यह अभियान चला रहे हैं, उनके बारे में भी जान लीजिए, गिरफ्तार हुए थे तो 2 महीने उन्हें कोई "अपना" ज़मानतदार नहीं मिला।
इसलिए ऐसे किसी नफ़रत और विभाजन वाले अभियान का हिस्सा ना बनें। इस्लाम में दारुल हरब देशों में ज़िन्दगी जीने का तरीका बताया गया है उसी के हिसाब से मिल जुलकर रहिए, यही दीन है, यही इस्लाम है।
सादिक अली (अलिफ)