Tajalliya'n -तजल्लियाँ

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बरकतएक शख्स ने एक दफा हज़रत इब्राहिम बिन अदहम से हुज्जत की-उसने कहा कि:           "बरकत ( blessing )  जैसी कोई चीज़ होती ...
13/01/2021

बरकत

एक शख्स ने एक दफा हज़रत इब्राहिम बिन अदहम से हुज्जत की-
उसने कहा कि:
"बरकत ( blessing ) जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं है-"
हज़रत इब्राहिम बिन अदहम ने उसे यह कह कर जवाब दिया कि:
"क्या तुम कुत्तों और भेड़ को जानते हो?"
उस शख्स ने कहा:
"हां"
हज़रत इब्राहीम बिन अदहम ने पूछा:
"इनमे से कौन सा जानवर ज़्यादा बच्चे पैदा करता है ?"
उस शख्स ने बताया:
"एक कुत्ते के सात तक पिल्ले पैदा होते हैं जबकि एक भेड़ तीन बच्चे पैदा करती है-"
हज़रत इब्ने अदहम ने कहा:
"यदि तुम अपने आसपास देखते हो तो इनमें से कौनसी ज़ात तादाद में ज़्यादा दिखाई देती है?"

उस शख्स ने कहा कि:
" मुझे भेड़ ज़्यादा दिखाई देती है-"
हज़रत इब्न अदहम ने सवाल किया:
" लेकिन भेड़ों को तो हम लगातार बरसो से ज़िबह करके खाते आ रहे है..तो इनकी तादाद कभी कम हुई है?"
वो शख्स बोला:
"नहीं......"
हज़रत इब्न अदहम ने फ़रमाया:
"यही बरकत है-"
उस शख्स ने पूछा:
" लेकिन ऐसा क्यूं है ?"
( क्यूं भेड़ें कुत्ते से ज़्यादा *बरकत* पाने की हक़दार है )
हज़रत इब्न अदहम ने कहा:
"भेड़ें जल्दी सो जाती हैं और फजर के पहले नींद से होशियार हो जाती हैं- इससे वे रहमत पाने का वक़्त हासिल कर बरकत की हक़दार हो जाती है- जबकि कुत्ते रातभर भौंकते हैं........ फजर क़रीब आते ही वे सो जाते है- कुत्ते रहमत पाने का वक़्त गवा देते है और इसलिए बरकत से महरूम रह जाते है-"

इस हुज्जत ने मुझे हैरान कर दिया , क्या हम देर रात जागकर और सुबह देरी से उठकर *बरकत* से महरूम होते जा रहे है....???

माइकल हार्ट नाम के यहूदी रायटर ने एक किताब लिखी "एक सौ अहम तरीन शख्सियत " !!इस किताब पर उसने 28 साल रिसर्च किया और दुनिय...
07/11/2019

माइकल हार्ट नाम के यहूदी रायटर ने एक किताब लिखी "एक सौ अहम तरीन शख्सियत " !!

इस किताब पर उसने 28 साल रिसर्च किया और दुनिया की तारीख़ में आने वाले 100 अहम तरीन लोग और लोकप्रिय शख्सियत के बारे में तहरीर किया !!

यहूदी होने के बावजूद इस ने हमारे प्यारे नबी को अहम तरीन शख्सियत की लिस्ट में अव्वल नम्बर पर रखा !!😍😍

इस किताब के पब्लिश होने के बाद एक रोज़ जब वो लंदन में लेक्चर दे रहा था तो लोगों ने सवाल किया और शिकायत की के आपने मुसलमानों के नबी को अव्व्वल नम्बर पर क्यों रखा ??

इस पर माइकल ने कहा :
मुसलमानों के नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सन 611 में मक्का के वस्त में खड़े हो कर लोगों से कहा :
"मैं अल्लाह का रसूल हूँ "
उस वक़्त उन पर सिर्फ़ चार अफ़राद ईमान लाए थे !!

आज 1400 सौ साल बाद मुसलमानों की तादाद 1. 5 अरब से ज़्यादा हो चुकी है और यह सिलसिला यहां रुका नहीं बल्कि इसमें रोज़ ब रोज़ इज़ाफ़ा हो रहा है जिससे साबित होता है के वो झूठे नहीं थे क्योंकि झूट 1400 साल तक नहीं चलता और न ही 1.5 अरब लोगों को बेवक़ूफ़ बना सकता है !!

ग़ौर करने की एक और बात मुसलमान अपने नबी SAW की हुरमत पर अपनी जान क़ुर्बान करने को तैयार रहते हैं 😍😍

इसके बाद पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया किसी के पास कोई सवाल नही था !!

ब्रेन-हेमरेज, ब्रेन-स्ट्रोक (मस्तिष्क आघात) अर्थात दिमाग़ की नस का फटना।मस्तिष्क आघात के मरीज़ को कैसे पहचानें?एक पार्टी ...
06/11/2019

ब्रेन-हेमरेज, ब्रेन-स्ट्रोक (मस्तिष्क आघात) अर्थात दिमाग़ की नस का फटना।
मस्तिष्क आघात के मरीज़ को कैसे पहचानें?
एक पार्टी चल रही थी, एक महिला को थोड़ी ठोकर सी लगी और वह गिरते गिरते संभल गई, मगर उसने अपने आसपास के लोगों को यह कह कर आश्वस्त कर दिया कि -"सब कुछ ठीक है, बस नये बूट की वजह से एक ईंट से थोड़ी ठोकर लग गई थी" ।
(यद्यपि आसपास के लोगों ने ऐम्बुलैंस बुलाने की पेशकश भी की...)
साथ में खड़े मित्रों ने उन्हें साफ़ होने में मदद की और एक नई प्लेट भी आ गई! ऐसा लग रहा था कि महिला थोड़ा अपने आप में सहज नहीं है! उस समय तो वह पूरी शाम पार्टी एन्जॉय करती रहीं, पर बाद में उसके पति का लोगों के पास फोन आया कि उसे अस्पताल में ले जाया गया जहाँ उसने उसी शाम दम तोड़ दिया!!
दरअसल उस पार्टी के दौरान महिला को ब्रेन-हैमरेज हुआ था!
अगर वहाँ पर मौजूद लोगों में से कोई इस अवस्था की पहचान कर पाता तो आज वो महिला हमारे बीच जीवित होती..!!
माना कि ब्रेन-हैमरेज से कुछ लोग मरते नहीं है, लेकिन वे सारी उम्र के लिये अपाहिज़ और बेबसी वाला जीवन जीने पर मजबूर तो हो ही जाते हैं!!
स्ट्रोक की पहचान-
बामुश्किल एक मिनट का समय लगेगा, आईए जानते हैं-
न्यूरोलॉजिस्ट कहते हैं-
अगर कोई व्यक्ति ब्रेन में स्ट्रोक लगने के, तीन घंटे के अंदर, अगर उनके पास पहुँच जाए तो स्ट्रोक के प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त (reverse) किया जा सकता है।
उनका मानना है कि सारी की सारी ट्रिक बस यही है कि कैसे भी स्ट्रोक के लक्षणों की तुरंत पहचान होकर, मरीज़ को जल्द से जल्द (यानि तीन घंटे के अंदर-अंदर) डाक्टरी चिकित्सा मुहैया हो सके, और बस दुःख इस बात का ही है कि अज्ञानतावश यह सब ही execute नहीं हो पाता है!!!
मस्तिष्क के चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रोक के मरीज़ की पहचान के लिए तीन अतिमहत्वपूर्ण बातें जिन्हें वे STR कहते हैं, सदैव ध्यान में रखनी चाहिए। अगर STR नामक ये तीन बातें हमें मालूम हों तो मरीज़ के बहुमूल्य जीवन को बचाया जा सकता है।
ये 3 बातें इस प्रकार हैं-
1) S = Smile अर्थात उस व्यक्ति को मुस्कुराने के लिये कहिए।
2) T = Talk यानि उस व्यक्ति को कोई भी सीधा सा एक वाक्य बोलने के लिये कहें, जैसे- 'आज मौसम बहुत अच्छा है' आदि।
और तीसरा...
3) R = Raise अर्थात उस व्यक्ति को उसके दोनों बाजू ऊपर उठाने के लिए कहें।
अगर उस व्यक्ति को उपरोक्त तीन कामों में से एक भी काम करने में दिक्कत है, तो तुरंत ऐम्बुलैंस बुलाकर उसे न्यूरो-चिकित्सक के अस्पताल में शिफ्ट करें और जो आदमी साथ जा रहा है उसे इन लक्षणों के बारे में बता दें ताकि वह पहले से ही डाक्टर को इस बाबत खुलासा कर सके।
इनके अलावा स्ट्रोक का एक लक्षण यह भी है-
उस आदमी को अपनी जीभ बाहर निकालने को कहें। अगर उसकी जीभ सीधी बाहर नहीं आकर, एक तरफ़ मुड़ सी रही है, तो यह भी ब्रेन-स्ट्रोक का एक प्रमुख लक्षण है।
एक सुप्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट का कहना है कि अगर इस मैसेज़ को पढ़ने वाला, इसे ज्यादा नही तो आगे, कम से कम अगर दस लोगों को भी भेजे, तो निश्चित तौर पर, कुछ न कुछ बेशकीमती "जानें" तो बचाई ही जा सकती हैं!!!
आवश्यक है कि इस जानकारी को अधिकतम शेयर करें।
जी हाँ मित्रों,
समय गूंगा नहीं, बस मौन है!!
ये तो वक्त ही बताता है, कि किसका कौन है??
🙏🌹🤝🌹🙏

क्या मुग़ल लुटेरे थे ????मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के वक़्त पूरे दुनिया की एक चौथाई जीडीपी सिर्फ हिंदुस्तान के पास थी। जो हैसिय...
03/11/2019

क्या मुग़ल लुटेरे थे ????

मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के वक़्त पूरे दुनिया की एक चौथाई जीडीपी सिर्फ हिंदुस्तान के पास थी। जो हैसियत आज विकसित देशों की है उससे कहीं ज़्यादा उस वक़्त हिंदुस्तान की हैसियत पूरे दुनिया में थी।😍

अकबर के शासनकाल में हिंदुस्तान का घरेलू उत्पाद ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के साम्राज्य से कई गुना बेहतर था. आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के मुताबिक, मुगलकालीन भारत का प्रति व्यक्ति उत्पादन (per capita output) उस समय के इंग्लैंड और फ्रांस से बेहतर थी।😍

शाहजहाँ के वक़्त में हिंदुस्तान का आर्किटेक्चर पूरे दुनिया में अपने चरम पर था उस वक़्त हिन्दुस्तान का आर्किटेक्चर उतना ही मशहूर था जितना आज का दुबई। सन 1640 ई. में एक शाहजहानी रुपए की कीमत आज के भारतीय रुपए से लगभग 500 गुना ज्यादा थी।😍

यूरोपियन यात्रियों के ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं उस वक़्त हिंदुस्तान के भव्य मुगल सल्तनत की चकाचौंध को देखकर यूरोपियन लोगों की आंखें फटी की फटी रह जाती थी। उस वक़्त लखनऊ, दिल्ली और हैदराबाद को वो दर्जा हासिल था जो आज पेरिस और न्यूयॉर्क को है।😍

1947 के बाद सिर्फ हैदराबाद रियासत के निज़ाम के पास अपने आखरी वक़्त जबकि सब कुछ लूट चुका था तब भी उनके पास हिंदुस्तान की पूरे जीडीपी चार गुना दौलत थी। अपनी इस दौलत को हैदराबाद के आखरी निज़ाम ने देश हित पाकिस्तान से यु*द्ध के समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को सौंप दी थी। जो कि 5 टन सोना हैदराबाद एयरपोर्ट से प्लेन में भर कर ले जाया गया।😍

लाल किला, जामा मस्जिद, कुतुबमीनार ताजमहल ,आगरे का किला, एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक इमारतें जो आज हिंदुस्तान की शान हैं, मुगलों की देन है 😍

यह वाकया बगदाद शरीफ़ का है,एक लुहार बाजार में घोड़े का नाल बना रहा था।जब नाल बना रहा था लोहे को आग में डालता और उसे अपने ह...
03/11/2019

यह वाकया बगदाद शरीफ़ का है,
एक लुहार बाजार में घोड़े का नाल बना रहा था।जब नाल बना रहा था लोहे को आग में डालता और उसे अपने हाथ से ही निकाल कर हथौड़े से पिटता था।

एक शख्स को इस लुहार की यह हरकत देख कर काफी हैरत हुआ और उनसे पूछने लगा...आप बिना किसी चिमटे की मदद से गर्म लोहे को कैसे पकड़ लेते हो?

लुहार कहने लगा हर दिन काम करके आदत हो गई है इसलिए पकड़ लेता हूँ।

लेकिन यह शख्स इस बात को नहीं माना और फिर पूछा ऐसी बात हरगिज़ नहीं है , इस में कोई राज़ ज़रूर है,जो आप मुझे नहीं बताना चाहते हैं?

लुहार मजबूर होकर अपनी दास्तान सुनाने लगा...
एक खूबसूरत लड़की मेरे पास आई और कहने लगी मुझे कुछ पैसों की बेहद जरूरत हैं आप मेरा मदद करें...?

तो लुहार उनसे कहने लगा...मैं आप की हर जरूरत पूरी करूँगा लेकिन उस के लिए मुझे आप का जिस्म चाहिए।

लड़की बिलखती हुई कहने लगी अल्लाह से डर..,
यह शख्स अब भी अपनी बात पर कायम था।

लड़की यह बात सुनकर वहां से चली गई,लेकिन उसकी परेशानी बहुत बड़ी थी जिसके चलते वह लड़की फिर उनके पास आई और कहने लगी...मैं तैयार हूं मुझे पैसों की सख्त जरूरी है।
लुहार उसको लेकर कमरे में गया और दरवाजे बंद कर दिया लड़की बहुत कांपने लगी जैसे हवा में कोई पत्तियां हिल रही हो।

लुहार कहने लगा अब तो हमें कोई देख भी नहीं रहा है फिर भी तुम इतनी क्यों डरी हुई है क्यों कांप रही हो?

लड़की थर्राती हुई बोली हम इंसान की नजर से तो पर्दा कर चुके हैं लेकिन उस रब से पर्दा नहीं कर सकते इसलिए मुझे अल्लाह का डर है और मुझ में ख़ुदा के खौफ़ से गुनाह की हिम्मत नहीं है😭😭😭लुहार ने ऐसा आलम देख कर अपना मन बदल लिया और उसकी ज़रूरत के लिए उसको पैसे दे दिए।लड़की ने लुहार को बदले में दिल से दुआ दी के तुझे अब आग का शोला कभी न जला सके ,यह बात उस लड़की की माँ को पता चली तो उसकी माँ ने भी अल्लाह से दुआ की, या अल्लाह उस लड़के पर दोज़ख़ की आग और दुनिया की आग हराम कर दे।
और यह दुवा क़ुबूल हुई।

कुछ दिन बाद जब लुहार को आग की तपिश का अहसास नहीं हुआ तो लुहार ने लोहे को आग में से हाथ से निकाल लिया तो उसको मालूम हुआ कि उस लड़की की दुआ मेरे हक़ में कुबूल हो चुकी है।
वह शख्स यह वाकिया सुन कर बहुत हैरत में पड़ गया
और लुहार उस लड़की की मदद करता रहा जब जब भी उस की मजबूरी हुई।
दोस्तों सबक लेना चाहिए इससे
हमें औरतों की मदद करना चाहिए ताकि उनको गलत कदम न उठाना पड़े।

लोग औरतों के पाकीज़गी पर सवाल तो उठाते हैं लेकिन उनकी मज़बूरियों को दूर करने की बात नही कहते।

अल्लाह हम सब भाई बहन को हिदायत दे
, आमीन!!

अगर यह बात आप के हक़ में अच्छी है तो दूसरों तक भी पहुंचाए।पढ़ने के लिए शुक्रिया।🌹🌹

नूह अलैहिस्सलाम खुद हैरान? ? ? हज़रत ए इमाम सजाद अलैहिस्सलाम ने इरशाद फरमाया के जब नूह अलैहिस्सलाम कश्ती बना रहे थे तो ए...
30/10/2019

नूह अलैहिस्सलाम खुद हैरान? ? ?

हज़रत ए इमाम सजाद अलैहिस्सलाम ने इरशाद फरमाया के जब नूह अलैहिस्सलाम कश्ती बना रहे थे तो एक बूढ़ी औरत रोज़ नूह अलैहिस्सलाम के पास अपनी घठरी लेकर आती और कहेती अय अल्लाह के नबी कब कश्ती रवाना होंगी ? हज़रत नूह फरमाते अभी देर है . वो औरत शाम तक़ बैठी रहती और फिर उठ कर चली जाती .
एक दिन नूह अलैहिस्सलाम ने फरमाया के अय मायी जब जाना हुआ तो आपको बता दिया जाएंगा . वो औरत वापस चली गयी और इन्तेज़ार करने लगी के कब नूह अलैहिस्सलाम बुलाएगे .
उस दौरान अज़ाब आगया और कश्ती रवाना होगयी . नूह अलैहिस्सलाम ने उस औरत को नही बुलाया ( जाहीरी तौर पर नूह अलैहिस्सलाम को बुलाना भुला दिया गया था ) जब तूफान थमा तो नूह अलैहिस्सलाम ने अपने शहर को देखना चाहा तो एक झोपड़ी मे दिया जल रहा था . नूह अलैहिस्सलाम ये देख कर हैरान होगये के रूहें ज़मीन पर ये किसका घर है के जिसमे चिराग जल रहा है ? उन्होने वहां तक्बीर बुलंद की तो वो औरत वहां समान लेकर आगयी. और कहेने लगी या नबी अल्लाह क्या कश्ती तयार है ? चले हम ..
तो नूह अलैहिस्सलाम ने कहा अय बुढ़िया क्या तुम्हे कुछ भी पता नही ? के इतना बड़ा सैलाब का कहेर आकर चला गया है ? बुढ़िया कहेने लगी के या नबी अल्लाह बस एक दिन बादल गरजे थे . और कुछ हल्की सी बारीश हुयी थी . नूह अलैहिस्सलाम हैरत मे आकर कहेने लगे अय मेरे अल्लाह ये क्या माजरा है ? अल्लाह पाक ने वही भेजी के मेरे प्यारे नबी उस औरत के दिल मे चूंके तुम्हारी मोहब्बत थी और तुम्हरा उससे वादा भी था के कश्ती मे ले जाऊंगा . जबके तुमने वादा पूरा नही किया लेकिन अय नूह मैं तो तुम्हारे वादे का जुम्मेदार था . इसी लिए मैने इस बुढ़िया तक़ अज़ाब पहुंचने ही नही दिया .
हज़रत ए इमाम सजाद अलैहिस्सलाम ने पास बैठे अपने मोमेनीन से फरमाया
आओ मोमिनों ये हदीस कयामत तक़ मोमेनीन तक़ पहुंचाना तुम पर वाजिब है . इन्हे बता दो के जिस इंसान ने नबी और उसकी आल से मोहब्बत की . कयामत का अज़ाब ज़रूर आयेंगा लेकीन जैसे उस बुढ़िया को पता नही चला . वैसे ही मोमिनों को भी पता नही चलेंगा के कब कयामत आयी और कब चली गयी .

एक सहाबी दरबारे रसूल में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया - या रसूलल्लाह ! मैं ने मन्नत मानी थी कि अगर मेरा फलां काम पुरा हो गया...
30/10/2019

एक सहाबी दरबारे रसूल में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया - या रसूलल्लाह ! मैं ने मन्नत मानी थी कि अगर मेरा फलां काम पुरा हो गया तो मैं जन्नत की ऊपर व नीचे वाली चौखट चूमूंगा।

अल्लाह के फ़ज़्ल से मेरा वह काम पुरा हो गया। अब मैं अपनी मन्नत कैसे पुरी करूं??

सरकार ने फ़रमाया- जाओ, अपनी मां के क़दम और अपने वालिद की पेशानी को चूम लो, तुम्हारी मन्नत पूरी हो जाएगी। मां का पांव जन्नत की निचली चौखट है और वालिद की पोशानी ऊपर वाली चौखट है।

यह फ़रमान सुन कर एक दूसरे सहाबी बोल पड़े - या रसूलल्लाह! अगर मां-बाप इन्तेक़ाल कर चुकें हों तो ऐसी मन्नत कैसे पूरी की जाए??

आक़ा ने फ़रमाया- ऐसी हालत में अपनी मां की क़ब्र क़दमो की तरफ़ से और वालिद की क़ब्र के सिरहाने को चूम लें।

बे'शक़, सुब्हान अल्लाह, अलहमदुलिल्लाह !!!!

18/10/2019
हज़रत उमर रज़ि. के ज़माने में एक इलाक़े का शहज़ादा गिरफ्तार हो कर पेश हुआ, हज़रत उमर रजी. चाहते थे के उसे क़तल ही करवा द...
13/10/2019

हज़रत उमर रज़ि. के ज़माने में एक इलाक़े का शहज़ादा गिरफ्तार हो कर पेश हुआ, हज़रत उमर रजी. चाहते थे के उसे क़तल ही करवा दे क्युंकी उसने मुसलमानों के लिये बहुत सी मुसिबतें खडी कर रखी थी

आख़िर उमर रज़ी. ने उस शहज़ादे को क़्तल करने का फैसला कर लिया और अपने सिपाहियों को इसे क़तल करने का हुक्म दे दिया

शहज़ादे ने कत़ल का फैसला सुनते कहा के क्या आप मेरी आख़री ख़ाहिश पुरी कर सकते हैं

हज़रत उमर रजी. ने पुछा बोलो क्या है तुम्हारी आख़री ख़ाहिश.?

शहज़ादे ने कहा मुझे प्यास लगी हुई है मुझे पानी पिला दिजिये, सिपाहियों ने एक प्याला पानी ला कर शहज़ादे के हांथ में दे दिया

जब उसने पानी का प्याला हांथ में लिया तो कांपना शुरु कर दिया, उमर रज़ी. ने पुछा अब आप इस तरह कांप क्युं रहे हैं.?

शहज़ादा कहने लगा मुझे डर लग रहा है के इधर मैं पानी पियुं और उधर जल्लाद मेरी गर्दन उतार देगा…इस लिये ये पानी मुझसे पिया नही जा रहा है

हज़रत उमर रज़ी. ने फरमाया तु फिकर मत कर जब तक तु ये पानी नही पी लेता तुझे क़त्ल नही किया जायेगा

जैसे उमर रज़ी. ने ये बात कही शहज़ादे ने पानी का प्याला ज़मीन पर गिरा दिया और कहने लगा, आप ज़ुबान दे चुके है के जब तक मैं पानी नही पी लुंगा आप मुझे क़तल नही करेगें, इस लिये अब आप मुझे क़तल नही कर सकते हैं

हज़रत उमर रज़ी. ने फरमाया हां मैं ने ज़ुबान दिया था इस लिये अब मैं तुझे क़तल नही करुंगा

जैसे ही उमर रज़ी. ने ये कहा तो शहज़ादा कहने लगा अच्छा तो एक काम और कर दिजिये मुझे कलमा पढा कर मुसलमान कर दिजिये

हज़रत उमर रज़ी. ने पुछा भाई पहले तो आप मुसलमान नही बने अब क्युं बन रहे हैं.?

शहज़ादे ने कहा पहले आपने मेरे क़तल का हुकम दिया था अगर मैं उस वक़त मुसलमान बन जाता तो लोग कहते के मौत के डर से मुसलमान हो गया इस लिये मैं चाहता था के कोई ऐसा बहाना बनाउं के मौत टल जाए फिर मैं अपनी मरज़ी से इस्लाम क़बुल करुं ताके लोगों को पता चले के मै ने मौत के डर से नही बल्कि अल्लाह की रज़ा के लिये इस्लाम क़बुल किया है

एक हाकिम जिसका नाम बिन उमरू लैस था बीमार पड़ गया! ऐसा बीमार हुआ कि तबीब उसके इलाज से थक गए मगर वह अच्छा ना हो सका!आख़िर ...
13/10/2019

एक हाकिम जिसका नाम बिन उमरू लैस था बीमार पड़ गया! ऐसा बीमार हुआ कि तबीब उसके इलाज से थक गए मगर वह अच्छा ना हो सका!

आख़िर किसी ने कहा कि दवा की इंतिहा हो गई! अब किसी मुस्तजाबुददावात (जिसकी दुआ कुबूल होती हो) से दुआ कराई जाऐ! चुनांचे सबने हज़रत सहल रहमतुल्लाह अलैह का नाम लिया कि वह बड़े बुज़ुर्ग और अल्लाह के वली हैं! उनसे दुआ की दरख़्वास्त की जाऐ! चुनांचे आपको बुलाया गया! आप अल्लाह के फ़रमान (और इताअत करो अपने बादशाह की) के मुताबिक़ तशरीफ़ ले गये!

जब मरीज़ के पास बैठे उससे फ़रमाया दुआ ऐसे शख़्स की कुबूल होती है जो सच्चे दिल से तौबा करे! ख़ुदा के जानिब रुजू करे! और ऐ उमरु! तेरे क़ैदख़ाने में बहुत से बेगुनाह क़ैदी भी हैं पहले उन सब क़ैदियों रिहा कर और तौबा कर! फिर में दुआ करता हूं! उस हाकिम ने ऐसा ही किया! क़ैदियों की रिहाई का हुक्म दिया और तौबा की! फिर हज़रत सहल ने हाथ उठाऐ और कहा :- ऐ ख़ुदावंद! तूने अपनी नाफ़रमानी की ज़िल्लत इसको दिखाई! इसी तरह अपनी इताअत की इज्ज़त भी इसको दिखला दे और जिस तरहाँ की इसके बातिन को लिबासे तौबा पहनाया है! उसी ज़ाहिर को लिबासे आफ़ियत भी पहना दे!
आप दुआ कर ही रहे थे कि हाकिम बिल्कुल अच्छा हो गया! हाकिम ने आपको बहुत सा माल नज़र देने लगा मगर आपने इंकार कर दिया!

(तज़किरतुल औलिया सफ़ा 312)

अमानत मालिक तक कैसे पहुंची- एक हैरत अंगेज़ वाक़या - अबु हुरैरह रज़ि. से रिवायत है के नबी ए करीम (स.अ.व.) ने बनी ईस्राईल ...
12/10/2019

अमानत मालिक तक कैसे पहुंची- एक हैरत अंगेज़ वाक़या -

अबु हुरैरह रज़ि. से रिवायत है के नबी ए करीम (स.अ.व.) ने बनी ईस्राईल के एक शख़्स के वाक़ये का जिक्र किया

वाक़या कुछ युं है के बनी ईस्राईल की किसी शख़्स को एक हज़ार दिनार की ज़रुरत पड गई, वो शख़्स किसी दुसरे आदमी के पास गया और एक हज़ार दिनार बतौर क़र्ज़ मांगा

उस आदमी ने कहा मैं तुझे क़र्ज़ तो दुंगा लेकिन तेरी ज़मानत कौन लेगा.?

क़र्ज़ लेने वाले ने कहा अल्लाह बतौर ज़ामिन काफी है

फिर वो आदमी बोला के जाओ गवाह ले कर आओ

क़र्ज़ लेने वाले शख़्स ने कहा अल्लाह बतौर गवाह काफी है

फिर उस आदमी ने एक मुक़रर वक़्त के लिये उसे एक हज़ार दिनार दे दिया

वो शख़्स एक हज़ार दिनार ले कर समुंदर पार तिजारत के लिये निकल गया, जब क़र्ज़ वापसी का वक़्त क़रीब आया तो उस शख़्स ने वापसी के लिये कशती तलाश की लेकिन उसे कोई कशती न मिली, आख़िर मे थक हार कर उसने एक लकडी उठाई और उसमे सुराख़ कर के एक हज़ार दिनार और जिस आदमी का पैसा था उसके नाम एक ख़त लिख कर उस लकडी के सुराख़ में डाल कर उसे अच्छी तरह बंद कर दिया, और फिर समुंदर के पास गया और ये दुआ की के ऐ अल्लाह तु यक़ीनन जानता है के मैं ने एक शख़्स से एक हज़ार दिनार बतौर क़र्ज़ लिया था, उसने ज़मानत मांगी तो मैं ने कहा था अल्लाह की ज़मानत काफी बस वो राज़ी हो गया था

फिर उसने गवाह मांगा तो मैं ने कहा था अल्लाह बतौर गवाह काफी है बस वो तेरे नाम पर राज़ी हो गया था ऐ अल्लाह अब उसके क़र्ज़ वापसी का वक़्त आया तो मैं ने कशती की तलाश की लेकिन मुझे कोई कशती न मिल सकी, ऐ अल्लाह अब ये क़र्ज़ का पैसा मैं तेरे सपुर्द करता हुं, ये कह कर उसने लकडी दरिया में डाल दी, वो लकडी का टुकरा बहते हुए एक तरफ चल पडा, वो शख़्स वापिस आ गया उसके बाद भी उसने कशती की तलाश जारी रखी

दुसरी तरफ वो आदमी जिसने क़र्ज़ दिया था वो अपने पैसे की तलाश में समुंदर की तरफ निकला के शायद कोई कशती उसके पैसे ले कर आ रही हो

अचानक उसकी नज़र एक लकडी पर पडी जिसे उसने अपने घर में जलाने के लिये ले लिया, घर जा कर जब उस लकडी को चीरा तो उसमें से एक हज़ार दिनार और एक ख़त निकला

फिर कुछ दिनों के बाद वो शख़्स वापिस आया जिसने क़र्ज़ लिया था और एक हज़ार दिनार उसे वापिस करते हुए बोला मैं माफी चाहता हुं आपका क़र्ज़ मुक़रर वक़्त पर वापिस करने के लिये मैं ने कशती की तलाश बहुत की थी लेकिन मुझे आज से पहले कोई कशती नही मिली थी

क़र्ज़ देने वाले आदमी ने कहा अल्लाह ने आपके तरफ से मुझे मेरा माल वापिस कर दिया है,’ आपने जो पैसा और ख़त एक लकडी में बंद करके जो भेजा था वो मुझे मिला गया है, मेरा पैसा मुझे मिल चुका है इस लिये अब आप अपने ये एक हज़ार दिनार वापिस रख लें जो अभी आप अपने साथ लाएं हैं

हवाला—-सहीह बुख़ारी, किताब अलहवालात, बाब अल कफालह फिल क़र्ज़

जमीर फरोश बुरा ,,, या ,,,, जिस्म फरोश???कुछ दिन पहले एक खातून से दोपहर को मुलाकात हुई। जो जिस्मफरोश थीं रात को चूँकि वह ...
10/10/2019

जमीर फरोश बुरा ,,, या ,,,, जिस्म फरोश???

कुछ दिन पहले एक खातून से दोपहर को मुलाकात हुई। जो जिस्मफरोश थीं रात को चूँकि वह रोज़ी कमाने में मशरूफ़ होती हैं, इसलिए दिन में मुलाकात करनी पड़ी वैसे भी एक मुसलमान को यह ज़ेबा नहीं देता कि वह किसी की रोजी कमाने के वक्त मुश्किल में डाले, उन्होंने बहुत इज़्ज़त के साथ ड्राइंग रूम में बिठाया, खातिर मदारत की, उनका हाल पूछने के बाद मैंने सवाल किया कि आप इस बेलज़्ज़त काम में कैसे फंस गईं, एक लम्हे के लिये चेहरे पर उदासी छलकी फिर मुस्कुरा कर बोलें कि इश्क़ हो गया था।

और मुहब्बत में अंधी होकर घर से भाग निकली कुछ दिन महबूब ने चार दीवारी में मेरी चादर उतारकर दिल व जान से मुहब्बत की और उसके बाद न सिर ढांपने को दीवार रही न चादर रही जब वापसी का सफ़र करने का सोचा तो ख़याल आया कि भागने का फैसला तो मेरा था अब अगर घर गई तो जो थोड़ी बहुत वालीदैन की इज़्ज़त बची है वह भी लोग तारतार कर देंगे।

रहने के लिए एक जगह का ठिकाना मिला जहां मुझ जैसी लड़कियां थीं और बस फिर जिस्म ही रोज़ी रोटी का सबब बन गया, सवाल किया कि वालीदैन तो माफ कर ही देते हैं उनका नर्म दिल होता है, तो एक बार चली जातीं तो मुश्कुरा कर बोली माफ़ तो अल्लाह भी कर देता है लेकिन लोग माफ नहीं करते

औरत का मुंह काला हो जाये तो यह दुनिया वाले कभी गोरा होने नहीं देते, मरते दम तक काला ही रहता है, सवाल किया कि चलें भीख माँग लेतीं कम से कम जिस्म फरोशी से तो अच्छा काम है। तो बोलीं यह सब किताबी बातें हैं कोई किसी भीखारन को किराए का कमरा भी नहीं देता झोपड़ी में नहीं रखता इज्ज़त बेचकर कम से कम इज्ज़त से तो रह लेती हूँ,

अपना घर है अपना बिस्तर है इस दुनिया में इसी की इज्ज़त है जिसके पास पैसा है, यह दुनिया तो मुनाफिक लोगों से भरी पड़ी है, जो नेकी का दर्श देते हैं और अंदर से शैतान हैं,

किसी मौलवी को कहें कि तवायफ से शादी करेंगे तो वहीं बोलती बंद हो जाएगी, सवाल किया कि मोहब्बत क्या है तो लम्हे खामोश रहने के बाद बोलें कि मुहब्बत भी एक धंधा है, मर्द अपनी रक़म इन्वेस्ट करता है, और फिर महबूबा के जिस्म से खेलकर सूद समेत वापस लेता है,

अब वह औरत अपने महबूब के रहमोकरम पर होती है, मर्ज़ी है शादी कर ले और मर्ज़ी है छोड़ दें। जो लोग सच में मुहब्बत करते हैं वह निकाह का रास्ता इख्तियार करते हैं, सवाल किया कि गुनाह करते हुए तक़लीफ़ नहीं होती? तो बोलीं कि जब इंसान गंदगी के ढेर में रहने लग जाए तो उसे बदबू का एहसास नहीं होता। बल्कि खुशबू इसके लिए जहर बन जाती है,

बस अपना भी मामला ऐसे ही सवाल किया कि नौकरी कर लेती, कहीं शादी कर लेती तो भी गुनाह से बच सकतीं थी तो बोली कि: जब लोगों को यह मालूम हो जाये कि लड़की अकेली है इसका कोई नहीं तो भेडिये बन जाते हैं, शादीशुदा मर्द हो या कवारा सब ही एक सफ में खड़े हो जाते हैं,

इस दुनिया में अकेली औरत को जीने नहीं देती लेकिन दर्स जितने मर्जी करवा लो ऐसे ऐसे नेकीओ के दर्स देंगे लेकिन शक्ल मोमीनों वाली और करतूत काफिरों वालो करते हैं,

फिर बोलीं शादी कौन करेगा ?आज कल लोग एक दूसरे का झूठा पानी नहीं पीते आप शादी की बात करते हैं अब तो कब्र तक यह गुनाह साथ ही रहेगा, पाँच वक्त की नमाज़ पढ़ती हूँ, जिक्र कर लेती हूं उसका।

अपना मामला अल्लाह पर छोड़ रखा है, उसकी मर्ज़ी है जहन्नम में डाले या जन्नत में डाले, खुदखुशी भी हराम है, जिस्मफरोशी भी हराम है मरने की हिम्मत नहीं थी तो इसलिए यह काम कर रही हूँ। दिलो का हाल तो वह ही जानता है।

दुनिया वाले तो बस फटे कपड़े और चुस्त कपड़े देखकर मज़े लेते हैं। और कुछ नहीं करते कोई अस्तगफार पढ़ पढ़ कर देख रहा होता है, और कोई चस्के लेकर देख रहा होता है।

एक बादशाह ने ये एलान किया के मेरे सलतनत में जो सबसे बडा बेवक़ुफ है उसे मेरे सामने पेश किया जाएबादशाह का हुकुम था सारे दर...
08/10/2019

एक बादशाह ने ये एलान किया के मेरे सलतनत में जो सबसे बडा बेवक़ुफ है उसे मेरे सामने पेश किया जाए

बादशाह का हुकुम था सारे दरबारी लग गए सबसे बडे बेवक़ुफ को ढुंढने में काफी मेहनत के बाद सौ बेवक़ुफों की लिस्ट बादशाह के सामने पेश की गई

बादशाह ने सबका इमतेहान लिया और आख़िर में एक सबसे बडे बेवक़ुफ को चुना गया बदशाह ने अपने गले का क़िमती हार उतार कर उस सबसे बडे बवक़ुफ के गले में डाल दिया बेवक़ुफ अपना इनाम ले कर घर लौट गया
एक अरसे के बाद बेवक़ुफ के दिल में बादशाह से मिलने का ख़्याल आया और वो बादशाह से मिलने चल पडा जब दरबार में पहुंचा तो लोगों ने बताया के बदशाह बहुत बिमार चल रहें हैं शायद उनका आख़री वक़्त चल रहा है बेवक़ुफ आदमी इजाज़त ले कर बादशाह के कमरे में पहुंचा और अरज़ किया बादशाह सलामत आप लेटे हुए क्युं हैं.
बादशाह मुसकुराया और बोला मैं अब उठ नही सकता क्युंकी मैं अब ऐसे सफर पर जा रहा हुं जहां से मेरी वापसी नही होगी. वहां जाने के लिया लेटना ज़रुरी है
बेवक़ुफ हैरत से पुछने लगा वापिस नही आना मतलब क्या हमेशा वहीं रहना है

बादशाह बेबसी से बोला हां हमेशा वहीं रहना है
तो फिर यक़ीनन आपने वहां बहुत बडा महल, बाग़ बग़ीचे, बेगम, ग़ुलाम, नौकरों को बहुत सा सामान के साथ पहले ही वहां रवाना कर दिया होगा बेवक़ुफ ने मासुमियत से पुछा
ये सुन कर बादशाह रोने लगा बेवक़ुफ को समझ नही आ रहा था ये क्या हो गया है बादशाह बडी लाचारगी से बोला नही मैं ने वहां एक झोंपडी भी नही बनाई है
बेवक़ुफ बोला बदाशाह सलामत आप सबसे ज़्यादा अक़लमंद हैं जब आपको पता था के हमेशा वहीं रहना है तो फिर आपने वहां का इंतेज़ाम क्युं नही किया
बादशाह कहने लगा अफसोस मैं ने वहां के लिये कोई इंतेज़ाम नही किया
ये सुनते ही बेवक़ुफ अपनी जगह से उठा और अपने गले का हार निकाल कर बादशाह के पहनाते हुए बोल हुज़ुर फिर तो आप मुझसे ज़्यादा इस हार के हक़दार हैं

हम इस दुनिया ए फानी के लिये तो दिन रात मेहनत करतें हैं लेकिन उस दुनिया का क्या जहां हमें हमेशा रहना है सोचने का मुक़ाम है

आर्थर ऐश अमेरिका के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी थे। वो लोगों के बीच बहुत मक़बूल थें इसकी ख़ास वजह थी के वो एक बेहतरीन खिलाड़ी थे ।...
08/10/2019

आर्थर ऐश अमेरिका के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी थे। वो लोगों के बीच बहुत मक़बूल थें इसकी ख़ास वजह थी के वो एक बेहतरीन खिलाड़ी थे । जब आप अपने फ़ील्ड में बेहतरीन हो जाते है तो आप लोगों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं ।
आर्थर को एक हादसे के बाद इन्तेहाई गफ़लत के साथ एड्स के मरीज़ का ख़ून लगा दिया गया और फ़िर आर्थर भी एड्स के मरीज़ बन गए !!
जब वो बिस्तर पर पड़े इस बिमारी से लड़ रहे थें उस वक़्त दुनियां भर से उनके फ्रेंड्स के ख़त आते थे ।
एक फ्रेंड ने लिखा आख़िर ख़ुदा ने इस खौफ़नाक बीमारी के लिए तुम्हें ही क्यों चुना ??
आर्थर ने बीमारी की हालत में सिर्फ़ इसी एक ख़त का जवाब दिया जो कुछ इस तरह था 👇

दुनियां भर में पांच मिलियन से अधिक बच्चे टेनिस खेलना शुरू करते हैं उसमें से पचास लाख ही टेनिस खेलना सीख पाते हैं उन पचास लाख में से केवल पचास हज़ार घरेलू अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टेनिस सर्कल में दाख़िल हो पाते हैं इन पचास हज़ार में से केवल पांच हज़ार है जो ग्रैंड स्लैम तक पहुँच पाते हैं और उन पांच हज़ार में से पचास ही है जो विंबलडनतक तक पहुँच पाते हैं और उन पचास में से केवल चार ही होते है जो विंबलडन के सेमी फाइनल तक पहुँच पाते हैं और उन चार में से केवल दो ही फाइनल तक पहुँच पाते है और उन दो में से महज एक ही ट्रॉफ़ी उठाता है और वो ट्रॉफ़ी उठाने वाला पांच मिलियन में से चुना जाता है ।

वो ट्रॉफ़ी उठाए मैं ने कभी ख़ुदा से नहीं पूछा आख़िर मैं ही क्यों ?? लिहाज़ा अगर आज दर्द मिल रहा है तो मैं ख़ुदा से शिकवे शुरू कर दूँ ?? के मैं ही क्यों ?? जब हमने अपने अच्छे वक़्तों में ख़ुदा को नहीं पूछा के मैं ही क्यों ??
तो बुरे वक़्तों में क्यों पूछें मैं ही क्यों ??
...........................★★★............................

07/10/2019

ग़ैर मुस्लिम क़ुरान नहीं पढ़ते हदीस नहीं पढ़ते वह आपको पढ़ते हैं..।
लिहाज़ा इस्लाम का अच्छा नुमाइंदा बनिए

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