जय माँ वाराही माता

जय माँ वाराही माता राजपूत (सोलंकियो) की कुलदेवी
जय माता दी

*आपको सपरिवार पांच दिवसीय दीपोत्सव( धनतेरस , रूप चतुर्दशी ,दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज) की हार्दिक शुभकामनाएं के सा...
24/10/2022

*आपको सपरिवार पांच दिवसीय दीपोत्सव( धनतेरस , रूप चतुर्दशी ,दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज) की हार्दिक शुभकामनाएं के साथ हर्ष उल्लास व प्रसन्नता के पर्व दीपावली पर बहुत-बहुत मंगलकामनाएं ! प्रभु श्री राम की कृपा से इस प्रकाश पर्व पर आपको आठो सिद्धियां ,नव निधियां और चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति हो साथ ही सुख समृद्धि ,आरोग्य, यश ,कीर्ति और खुशी की भीअनवरत प्राप्ति हो ,!धन ,वैभव ,यश ,ऐश्वर्य के साथ दीपावली पर मां महालक्ष्मी आपकी सुख संपन्नंता स्वास्थ्य व हर्षोल्लास में वृद्धि करें इन्हीं शुभेच्छाके साथ
🙏⚘️Happy Deepavali⚘️🙏
जय माँ वाराही माता

🌹🌹शुभ दीपावली🌹🌹                   आपको सपरिवार पांच दिवसीय दीपोत्सव (धनतेरस, रूप चौदस,दीपावली,गोवर्धन पूजा और भाई दूज) क...
23/10/2022

🌹🌹शुभ दीपावली🌹🌹 आपको सपरिवार पांच दिवसीय दीपोत्सव (धनतेरस, रूप चौदस,दीपावली,गोवर्धन पूजा और भाई दूज) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ नूतन- वर्ष शुभारंभ " प्रकाश, हर्ष, उल्लास व प्रसन्नत्ता के पर्व दीपावली पर बहुत-बहुत मंगलकामनाएं ! प्रभु श्री की कृपा से इस प्रकाश पर्व पर आपको आठों सिद्धियां, नव - निधियां और चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति हो, साथ ही सुख, समृद्धि, आरोग्य, यश, कीर्ति और खुशी की भी अनवरत प्राप्ति हो , धन, वैभव, यश, ऐश्वर्य, के साथ दीपावली पर माँ महालक्ष्मी आपकी सुख संपन्नता, स्वास्थ्य, हर्षोल्लास में वृद्धि करें, इन्हीं शुभेच्छाओ के साथ दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ✨✨🎇🎆 HAPPY DEEPAWALI✨✨🎆🎇 🙏🙏

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।आप को  #दुर्गा_अष्टमी की हार्दिक बधा...
03/10/2022

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

आप को #दुर्गा_अष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🛕🌺

माँ #महागौरी आप की मनोकामना पूर्ण कर आशीर्वाद प्रदान करें 🌺🛕🛕🙏🏻
#अष्ठमी
#नवरात्रि
#नवरात्रि2022
समस्त प्रदेश वासियों और श्रद्धालुओं को महापर्व 'दुर्गा अष्टमी' की हार्दिक शुभकामनाएं।

माँ दुर्गा की अष्टम स्वरूप, जगज्जननी माँ महागौरी से प्रार्थना है कि हम सभी को अपनी ममतामयी कृपा से आच्छादित करें।

माँ के आशीर्वाद से सभी साधकों के मनोरथ पूर्ण हों।

जगज्जननी माँ अम्बे की उपासना के पावनोत्सव 'शारदीय नवरात्रि' के सप्तम दिवस की पूजनीय शक्ति स्वरूपा माँ कालरात्रि दुष्टों ...
02/10/2022

जगज्जननी माँ अम्बे की उपासना के पावनोत्सव 'शारदीय नवरात्रि' के सप्तम दिवस की पूजनीय शक्ति स्वरूपा माँ कालरात्रि दुष्टों की संहारक और भक्तों को शुभ फल देने वाली हैं।

माँ भगवती से प्रार्थना है कि सकल संसार को अपने पावन आशीर्वाद से अभिसिंचित करें।

🚩🌹🙏जय माँ कालरात्रि!🚩🌹🙏

या देवी सर्वभूतेषु मां कत्यायनी रुपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।,🙏🚩🚩🌹 जय माता  #कात्यायनी 🚩🌹🚩 जय म...
01/10/2022

या देवी सर्वभूतेषु मां कत्यायनी रुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।,🙏🚩
🚩🌹 जय माता #कात्यायनी 🚩🌹🚩 जय माता दी 🌹🚩
🌹🚩 जय माता रानी 🚩🌷
🙏🙏 #सुप्रभात 🙏🙏
#नवरात्रि
#नवरात्रि2022

शरदीय नवरात्र पर विशेष पेशकश-पंचम दिवस स्कंदमाता देवी।आदि शक्ति का पांचवा स्वरूप स्कंदमाता है।स्कंद कुमार यानि कार्तिकेय...
30/09/2022

शरदीय नवरात्र पर विशेष पेशकश-पंचम दिवस स्कंदमाता देवी।
आदि शक्ति का पांचवा स्वरूप स्कंदमाता है।स्कंद कुमार यानि कार्तिकेय की मां होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। देवी मां मोर की सवारी करती हैं। इनकी गोद में बाल स्कंद कुमार बैठे रहते हैं। देवी मां कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। संतान सुख के लिए इनका दर्शन करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि पूजा से मां प्रसन्न होती हैं और भक्त की गोद भर देती हैं। माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।
पंचमी तिथि के दिन देवी को केले का भोग लगाकर दान करना चाहिए। केले का भोग लागाने से व्यक्ति के बुद्धि, विवेक का विकास होता हैं। व्यक्ति के परिवारीकसुख समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
पंचम दिवस बृहस्पति देव को समर्पित है।आज पंचम दिवस के पूजन के बाद बृहस्पति देव का गायत्री मंत्र का जप भी जरूर करें।जिन जातक का जन्म धनु लग्न या मीन राशि मे हुआ हो और जिनका बृहस्पति कमजोर हो वो नवरात्रि के पंचम दिन से उपरोक्त मन्त्र का जप शुरू करके रोज करे।
गुरु गायत्री मंत्र- ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।
सुरेश दुबे
ज्योतिषचार्य।

14/09/2022

जितरा कीड़ा गाय रे शरीर में पडिया लाम्पी बीमारी सू उनसु भी ज़्यादा कीड़ा तो गाय की हाय सू लोगा रे पड़ेला थोड़ा रुको सबरो हिसाब है धर्मराज री पोथी में
फर्जी गौ भक्त सावधान हो जाओ
जय माँ वाराही माता

🔔जल-झुलनी एकादशी🔔"पदमा-परिवर्तिनी" और "जल-झुलनी" के नाम से जानने वाली एकादशी का व्रत वैष्णवों का बुधवार दिनांक ७ सितम्बर...
06/09/2022

🔔जल-झुलनी एकादशी🔔
"पदमा-परिवर्तिनी" और "जल-झुलनी" के नाम से जानने वाली एकादशी का व्रत वैष्णवों का बुधवार दिनांक ७ सितम्बर २०२२ का और स्मार्त्तो का मंगलवार दिनांक ६ सितंबर २०२२ का हैं।
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हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को "जलझूलनी" एकादशी कहते हैं। इसे "परिवर्तिनी", "पदमा" एकादशी, "वामन-एकादशी" एवं "डोल-ग्यारस" आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा की जाती है। कुछ स्थानों पर ये दिन भगवान श्रीकृष्ण की "वरूण-पूजा" "जल-झुलनी" एकादशी (जन्म के बाद होने वाला मांगिलक कार्यक्रम) के रूप में मनाया जाता है।
शिशु के जन्म के बाद जलवा पूजन, सूरज पूजन या कुआं पूजन का विधान है। उसी के बाद अन्य संस्कारों की शुरूआत होती है। यह पर्व उसी का एक रूप माना जा सकता है। शाम के वक्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को झांकी के रूप में मन्दिर के नजदीक किसी पवित्र जलस्रोत पर ले जाया जाता है और वहां उन्हें स्नान कराते है एवं वस्त्र धोते है और फिर वापस आकर उनकी पूजा की जाती है।
इस दिन व्रत किया जाता है। कई जगह भगवान की इस झांकी को देखने के बाद व्रत खोलने की परम्परा है। झांकी में भगवान को पालकी यानि डोली में ले जाया जाता है। इसलिए इसे डोल एकादशी भी कहते है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते है, इस बदलाव के कारण इसे "परिवर्तिनी" एकादशी कहते है। देखा जाए तो यह मौसम में बदलाव का भी सूचक होता है। इस दिन भगवान विष्णु के "वामन-रूप" की पूजा होती है इसलिए "वामन" एकादशी भी कहा जाता है।
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जल झुलनी एकादशी व्रत विधि:-
जल झुलनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से ही शुरू करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें (यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो मानसिक पूजा या किसी योग्य ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं) भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
जलझूलनी एकादशी व्रत का महत्व:-
धर्म ग्रंथों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।
इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि जो इस दिन कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको "परिवर्तिनी" एकादशी भी कहते हैं।
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जलझूलनी एकादशी व्रत की कथा:-
सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए उनके राज्य में सुख संपदा की कोई कमी नहीं थी, प्रजा सुख से जीवन्म व्यतीत कर रही थी परंतु एक समय उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई प्रजा दुख से व्याकुल थी तब महाराज भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और उनसे अपनी प्रजा के दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं। राजा भादों के शुक्लपक्ष की ‘एकादशी’ का व्रत करता है।
इस प्रकार व्रत के प्रभाव स्वरुप राज्य में वर्षा होने लगती है और सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं राज्य में पुन: खुशियों का वातावरण छा जाता है। इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए ‘पदमा एकादशी’ के दिन सामर्थ्य अनुसार दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है, जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गोदान करने के पश्चात मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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वामन अवतार कथा:-
सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।
एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया।
लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा।
बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटा दिया।
🙏ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:🙏
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304505

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