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13/03/2025

पाठकों की मांग पर पढ़ीये अरवा न्यूज़ में होली पर ख़ास वीशेषाकं

'बुरा ना मानो होली है"

दिये गये लिंक्स पर क्लिक करें।

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एक ऐसा विवाह जिसने सामाजिक सरोकार एंव राजस्थानी संस्कृति की मिशाल पेश की।दिऐ गए लिंक पर क्लिक कर के पढ़ें पूरी खबरhttps:...
27/02/2025

एक ऐसा विवाह जिसने सामाजिक सरोकार एंव राजस्थानी संस्कृति की मिशाल पेश की।

दिऐ गए लिंक पर क्लिक कर के पढ़ें पूरी खबर

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संविधान को लागू हुए 75 वर्ष हो गये, लेकिन अभी तक लोगों को अपने अधिकार नहीं मिले |
28/01/2025

संविधान को लागू हुए 75 वर्ष हो गये, लेकिन अभी तक लोगों को अपने अधिकार नहीं मिले |

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नववर्ष मुबारक!  नववर्ष मुबारक! नयी तैयारियों व नयीं उम्मीदों, नयी एकता, व नये संघर्षों के साथ! (@आदिल आलम) शासकवर्ग के द...
01/01/2025

नववर्ष मुबारक!



नववर्ष मुबारक! नयी तैयारियों व नयीं उम्मीदों, नयी एकता, व नये संघर्षों के साथ!

(@आदिल आलम)

शासकवर्ग के द्वारा बढ़ते हमलों (महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार…) नफरती आँधियों, लड़खड़ाती आर्थिक स्थिति, व मुँहबायी महामारी के ख़तरों की घड़ी में भी छोटी-छोटी उम्मीद और उपलब्धियों को सहेजते हुए एक बेहतर भविष्य के लिए लगातार संघर्ष में लगे रहने के साथ आप सभी आभासी दुनिया के मित्रोँ आपको और आपके परिवार वालों को नववर्ष की हार्दिक बधाई! आज इस साल का पहला दिन है, आगे क्या चुनौतियां होंगी उन्हें देखा जायेगा, मगर पिछले साल आपके खिलाफ मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, कालाबाजारी… के रूप में कितने हमले हुए और लगातार ये हमले जारी हैं, कैसे आपने झेला, कितनी दुश्वारियां/परेशानियां हों रहीं हैं, उनको जरूर याद रखियेगा। ये अनुभव काम आयेंगे। अब नये वर्ष पर एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए आप खुद से वादा करिये।

इस नये वर्ष में हम कुछ नया होने की कोशिश करें, वर्गीय पक्षधरता और उच्च मानवीय उसूलों के प्रति प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति के लिए लोगों के अन्दर वर्गीय चेतना के साथ अपने आस-पास के लोगों के सुख-दुख में साझीदार बनें, स्वार्थ से अगर थोड़ा ऊपर उठ सकें, लोगों को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर फेंकना बन्द कर दें, मजहब, नस्ल, भाषा, रंग, लिंग, जाति, धर्म, स्वार्थ और अमीर-गरीब की बुनियाद पर रिश्ते बनाने के बजाय इंसानी बुनियादों पर बनाएं, अपने से कमजोर का शोषण बन्द करें, हर तरह के अन्याय, शोषण, उत्पीड़न और दमन के खिलाफ संघर्ष कर आवाज उठाए। नए वर्ष में स्वंय से प्रण लेकर तय करें कि खुद को उस नफरत से पाक करेंगे और मानव द्वारा मानव के शोषण के विचार को पनपने नहीं देंगे जो शासक वर्ग ने अपने हितों के लिए हमारे दिलों में बोया है और ऐसे समाजवादी समाज का निर्माण करें जहां मानव द्वारा मानव का शोषण, व एक देश द्वारा दूसरे देश का शोषण ना हो, जंहा मानव द्वारा निर्मित समाज की कोई सीमा ना हो, जंहा रंग, लिंग, भाषा, छेत्र, जाति, धर्म… का भेद ना हो, जहां किसी भी तरह के ऊंच-नीच का भेद ना हो, जहां कोई धार्मिक द्वेष ना हो। जंहा धर्म, भोजन व जीवनसाथी चुनने की आजादी हो, जंहा अमीरी-गरीबी की खाई ना हो, जंहा प्रत्येक नागरिक को सस्ती अथवा मुफ्त गुणवत्तापरक शिक्षा, चिकित्सा, भोजन और हर एक व्यक्ति के पास रोजगार उपलब्ध हों यानी उसकी योग्यतानुसार काम और काम के अनुसार दाम आसानी से सुलभ हो।

इस वर्गीय और निजी सम्पति के समाज में झूठ, लूट, फरेब, सूदखोरी, मक्कारी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, कालाबाजारी, जमाखोरी जैसी ढेर सारी अनेक समस्याएं सब वैसे के वैसे ही होते हैं, मुहब्बत, परस्पर सहयोग, और लूट की दुनिया से धर्मान्धिता, जलन, नफरत, अपने से कमजोर वाले का शोषण से जीने लायक कुछ हासिल करने की कोशिशें भी वही रहती हैं कि सब कुछ हमारा हो जाए! जितना है उतना कम है। थोड़ा और थोड़ा और… के निजी सम्पति के चाहत में ये सारी समस्याएं जन्म लेती हैं। इन समस्याओं के खात्मे के लिये नये वर्ष में संकल्प के साथ नव वर्ष मुबारक!

शासकवर्ग द्वारा लगातार बढ़ते हुवे हमले से सबक लेते हुए शासक वर्ग के खिलाफ संघर्ष में लगे रहने की जिद के साथ! नया साल समाज में हर तरह के अन्याय, शोषण, उत्पीड़न और दमन के ख़िलाफ़ संघर्ष को अधिक तीखा और तेज करने करने के साथ! समाजीकरण के सपने को जन-जन तक पहुँचाने के साथ! वैज्ञानिक सोच, वर्गीय पक्षधरता और उच्च मानवीय उसूलों के प्रति प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति के लिए लगातार ख़तरों का सामना करते रहने के साथ, पुरानी भूलों, कमजोरियों और कमियों से लगातार सबक लेते हुए अगर आप ऐसा कुछ भी, थोड़ा भी करने का इरादा रखते हैं तो निश्चित ही यह वर्ष आपके लिये और आपके आने वाली पीढ़ियों के लिये सुख/समृधि लेकर आयेगा। इसी उम्मीद के साथ आईये हम सब मिलकर हमारी इस दुनिया को थोड़ा खूबसूरत बनाते हैं।

इस नव वर्ष पर इस हठी संकल्प के साथ पूंजीवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ हमें लम्बा और कठिन संघर्ष जारी रखना होगा। हमें मिलकर लड़ना होगा, इतिहास का कर्ज उतारने के लिए और भविष्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए। हम लड़ेंगे ताकि आने वाली पीढ़ियाँ सिर उठाकर जी सकें और उन्हें यह शर्मिन्दगी न झेलनी पड़ेंगी कि हमने कुछ नहीं किया।

अरवा न्यूज़ की तरफ से पुनः आप सभी आभासी दुनिया के साथियों को नववर्ष की हार्दिक कामनाएं। इस उम्मीद के साथ हम हमारे वतने अज़ीज़ हिंदुस्तान की आज़ादी में अपनी जानों का नज़राना पेश करने वाले, बलिदान देने वाले वीर शहिदों के सपनों को एक साथ मिलकर पूरा करेंगे।

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बुलडोज़र अन्याय से कमज़ोर होती लोकतंत्र की नींव बुलडोज़र अन्याय से कमज़ोर होती लोकतंत्र की नींवडॉ मुहम्मेमद इकबाल सिद्दीकी ए...
12/09/2024

बुलडोज़र अन्याय से कमज़ोर होती लोकतंत्र की नींव

बुलडोज़र अन्याय से कमज़ोर होती लोकतंत्र की नींव

डॉ मुहम्मेमद इकबाल सिद्दीकी

एक विकलांग बेटी है। रिश्तेदारों ने किसी भी प्रकार की मदद या शरण देने से इंकार कर दिया है, इस डर से कि कहीं इसी तरह उनके घर भी न गिरा दिये जाएं। मुझे नहीं पता किअब कहाँ जाऊं।” ये मार्मिक शब्द उस माँ की पीड़ा को व्यक्त करते हैं, जिसे 20 अगस्त2024 को राजस्थान के उदयपुर में अधिकारियों द्वारा उसका घर गिरा कर बेघर कर दिया गया। उसके 15 वर्षीय बेटे, पर उसके सहपाठी की हत्याकरने का आरोप लगा था और उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। यही नहीं, बिना कोई स्पष्ट कारण बताए उसके पिता, श्रीसलीम शेख़ को भी हिरासत में ले लिया गया। बस्ती में 200 से अधिक घर हैं लेकिन केवल सलीम शेख़ के किराए के मकान को ही चिह्नित कर के बिना किसी उचित प्रक्रिया और ठोस क़ानूनी आधार के बुलडोज़र से गिरा दिया गया, जिससे पूरा परिवार बेघर हो गया है। यही नहीं उस मकान में रहने वाला एक अन्य किरायेदार परिवार भी इसकी ज़द में आ गया।

यह घटना भारत में “बुलडोज़र अन्याय” या “बुलडोज़र संस्कृति” के बढ़ते ख़तरे का खुला प्रमाण है जहां अल्पसंख्यक समुदायों को चुन-चुनकर निशाना बनाया रहा है। इस प्रकार की काररवाइयाँ, जो देश के विभिन्नभागों में हो रही हैं मानवाधिकारों और लोकतंत्र के लिए बड़ा ख़तरा हैं। अभी हाल ही में मध्य प्रदेश के छतरपुर में हाजी शहज़ाद के मकान को महज़ आरोपी होने के कारण बुलडोज़र से ध्वस्तकर दिया गया जिसमें उनका करोड़ों का मकान और 3 महंगी कारें शामिल हैं। शासन और प्रशासन पीड़ितों पर किसी मामले में केवल आरोपित होने मात्र से बिना किसी जयुडीशियल ट्रायल के घरों और संपत्ति को बुलडोज़ कर देते हैं। पीड़ितों को क़ानूनी उपायकरने का मौक़ा ही नहीं मिलता है। उससे पहले ही अपराध के आरोप में कानूनी प्रक्रिया को प्रतीक्षाकिए बगैर फ़ौरन सज़ा देने के लिए बुलडोज़र चलवा देते हैं. हाल ही में एमनेस्टी इंटरनेशनल की इस साल फरवरी में जारी रिपोर्ट में अप्रैल 2022 से जून के बीच दिल्ली, असम, गुजरात, मध्यप्रदेश और यू पी में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बाद बुलडोज़र चलवाकर 128 संपत्ति ढहा दी गई। मध्य प्रदेश सरकार के इस ‘बुलडोज़र अन्याय’ के खिलाफ़ पीड़ित ने सुप्रीम कोर्ट का रुखकिया था। मध्यप्रदेश में एक आरोपी के पिता की सम्पत्ति पर बुलडोज़र चलाया गया तो वहीं राजस्थान में एक अवयस्क छात्र के घर को नेस्तनाबूद कर दिया गया जिस पर अपने सहपाठी को चाकू से गोदने का आरोप था। मानवाधिकारों के इन्हीं उल्लंघन और लोकतंत्र के लिए विडंबना का प्रतीक बन चुकी बुलडोज़र प्रणाली आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर आ ही गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर को ऐसे कैसे गिरा सकते हैं। अगर कोई आरोपी या दोषी भी है, तो भी उसका घर गिराया नहीं जा सकता। अवैध निर्माण गिराने से पहले भी क़ानून का पालन करना ज़रूरी है। कोर्ट ने कहा कि देश भर में निर्माणों में तोड़फोड़ को लेकर गाइडलाइन ज़रूरी है। अदालत ने इसे लेकर सरकार और पक्षकारों से सुझाव मांगे हैं।

विनाश और विस्थापन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
हालांकि बुलडोज़र संस्कृति लोगों को नई बात लग सकती है, लेकिन इसके उदाहरण हमें इतिहास में भी मिलते हैं, 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद इसका चलन बढ़ा है। पार्टी ने अपने एजेंडे के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाते हुए शहरी विकास और अवैध निर्माण हटाने के नाम पर इसका बे-लगाम इस्तैमाल किया है और इसे अपनी विशिष्ट राष्ट्रीयपहचान के रूप में प्रस्तुत किया है। इससे पहले की सरकार ने भी नगर सौंदर्यीकरण और बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) के विकास के नाम पर झुग्गी -झोपड़ियों को हटाने का अभियान चलाया था। 2010 के कॉमनवेल्थगेम्स के दौरान दिल्ली में इस प्रवृत्ति का उदाहरण देखा गया, जब बड़े पैमाने पर शहरी परियोजनाओं के लिए 100,000 से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया गया और विकास के नाम पर ग़रीब एवं वंचित समूहों के अधिकारों का हनन किया गया उपरोक्त मिसालों ने बुलडोज़र न्यायके लिए मंच तैयार किया अब भाजपा सरकार के तहत शहरी ‘नियोजन’, ‘सौंदर्यीकरण’ और ‘अवैध निमार्ण’ गिराने को विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ हथियार के रूप में इस्तैमाल किया जा रहा है।

हालिया घटनाक्रम : बढ़ती चिंताओं का संकेत

हाल के महीनों में, ”बुलडोज़र संस्कृति“ में तेज़ी पकड़ आई है और देशभर में विध्वंस और जबरन बेदख़ली की घटनाएं आम होती जा रही हैं। विशेष रूप से अप्रैल 2022 में, उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने तथाकथित “अवैध” संरचनाओं ,जिसमें घर और व्यवसाय दोनों शामिल थे, को ध्वस्त करने के लिए राज्यव्यापी अभियान शुरू किया, जिसमें न तो उचित प्रक्रिया अपनाई गई और न पर्याप्त चेतावनी ही दी गई। “ऑपरेशन क्लीन ड्राइव” के नाम से मशहूर इस अभियान में बुलडोजरों का व्यापक रूप से उपयोग किया गया, जिससे हज़ारों लोग बेघर हो गए और उनकी आजीविका छिन गई। इसी तरह का एक अभियान जून 2022 में भाजपा- नियंत्रित दिल्लीनगर निगम द्वारा शुरू किया गया था, जिसमें शहर की झुग्गियों कों “अवैध संरचनाओं” का नाम दे कर निशाना बनाया गया। यहां भी, बुलडोज़रों का उपयोग करके घरों और व्यवसायों को ध्वस्तकिया गया, अक्सर प्रभावित लोग बुनियादी आवश्यकताओं जैसे भोजन, पानी, और आश्रय तक से वंचित हो गए।

राजनीतिक मंसूबे और बुलडोज़र की राजनीति

भारत में बुलडोज़र संस्कृति का उदय केवल शहरी नियोजन या कानून एवं व्यवस्था की स्थापना तक सीमित नहीं है; यह सत्तारूढ़ पार्टी के व्यापक राजनीतिक एजेंडे से गहराई से जुड़ा हुआ है। सतही तौर पर, इन कार्यवाइयों को शहरों को “साफ” करने और नए इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए जगह बनाने के आवश्यक उपायों के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। हालांकि, इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुसलमानों और दलितों को हाशिए पर डालना और मुख्य धारा से बाहर करना है। इन दिनों चुनिन्दा ढंग से इन्ही समूहों को बुलडोज़र का शिकार बनाया जाना इस एजेंडे का एक स्पष्ट प्रमाण है।

आधुनिक भारतीय राजनीति में बुलडोज़र एक शक्तिशाली राजनीतिक प्रतीक के रूप में उभरा है, विशेष रूप से भाजपा-शासित राज्यों में, जो राज्य की प्राधिकृति और सत्तारूढ़ पार्टी की शक्ति को स्थापित करने के लिए कानूनी मानदंडों को दरकिनार करने में भी हिचकिचाता नहीं है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ - जिन्हें आजकल “बुलडोज़र बाबा” के नाम से जाना जाने लगा है - ने बुलडोज़र का उपयोग अपनी मज़बूत छवि के प्रतीक के रूप में किया है, यही नहीं इसे चुनावी रैलियों में भी प्रदर्शित किया गया। उन्होंने बुलडोज़र के माध्यम से उनकी सत्ताके विरोधियों को स्पष्ट संदेश दे दिया है। बुलडोज़र का यह प्रतीकात्मक उपयोग केवल क़ानून एवं व्यवस्थाकी बहाली के लिये नहीं है बल्कि यह असहमति रखने वालों और अल्पसंख्यक समुदायों को डराने के लिए एक सोची समझी रणनीतिका हिस्सा है, कि “सरकार को चुनौती दी तो कुचल दिये जाओगे।“ यह दृष्टिकोण, जो कुछ मतदाता वर्गों के लिए शासन की ओर से एक निर्णायक संदेश भी है लोकतांत्रिक मानदंडों और क़ानून के शासन का घोर उल्लंघन है। इस प्रकार, बुलडोज़र संस्कृति सत्तारूढ़ पार्टी के साथ असहमति के स्वरों को दबाने और विपक्ष को कुचलने का कुत्सित प्रयास है, जिससे डर और दमन का एक माहौल बनता है और लोकतंत्र की नींव कमज़ोर होती है।

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून और बुलडोज़र संस्कृति
बुलडोज़र संस्कृति अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनका खुला उल्लंघन है। यह क़ानून किन्हीसमूहों को दंडित और भयभीत करने के लिए मनमाने और भेदभावपूर्णढंग से राज्य शक्तिके उपयोग पर रोक लगाता है। अंतर्राष्ट्रीयनागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर संधि और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृ तिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीयसंधि दोनों जीवन, स्वतंत्रता और व्यक्तिकी सुरक्षा के अधिकारके साथ-साथ मनमानी पाबंदियों और जबरन निष्कासन से मुक्ति के अधिकार की गारंटी देते हैं।

इन अंतर्राष्ट्रीयप्रतिबद्धताओं के बावजू द, देश में इन दिनों बुलडोज़रों का उपयोग, सत्ताविरोधियों और वंचित समूहों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदायको लक्षित करते हुए दंड के एक उपकरण के रूप में किया जा रहा है। ये कार्यवाइयाँ न केवल मानवाधिकार संगठनों की आलोचना का कारण बन रही हैं, बल्किक़ानून के शासन के प्रतिप्रतिबद्ध एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रके रूप में भारत की वैश्विक छविको भी धूमिल कर रही हैं।

अकबर नगर का मामला

लखनऊ के अकबर नगर, जहाँ मुख्य रूप से मुसलमान और दलित निवास करते हैं, की दुर्दशा “बुलडोज़र न्याय” का एक ज्वलंत उदाहरण है। क्षेत्र को ‘स्मार्ट सिटी’ में बदलने के नाम पर, अधिकारियों ने घरों को ख़ाली कराने और गिराने का अभियान चलाया जिससे कई परिवार बेघर हो गए हैं। इन हाशिए पर पड़े समुदायों के आवास और भूमि जैसे अधिकारों को बुलडोज़र तले कुचल दिया गया है। स्वाभाविक रूप से लोगों में व्यापक आक्रोश है, जिसका सरकार पर कितना असर होगा, यह स्पष्ट है।ये अभियान जो शहरी विकास और सौंदर्यीकरण के नाम पर चलाए जा रहे हैं, समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों को प्रभावित कर रहे हैं। इन कार्यवाइयों के पीछे की वास्तविक मंशा पर सवाल उठ रहे हैं जो उचित भी हैं। आलोचकों का कहना है किये अभियान वास्तव में अल्पसंख्यक समुदायों को हाशिए पर डालने और विस्थापित करने की एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा हैं।

मानवाधिकारों पर मंडराता ख़तरा : न्यायिक दृष्टिकोण

भारत में बुलडोज़र संस्कृति का उदय मानवाधिकारों और कानून के शासन के लिए गंभीर खतरा है। इस प्रकार की किसी भी कार्यवाही में प्रशासन की ओर से उचित प्रक्रिया, प्राकृतिक न्यायऔर निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार की पालना नहीं की गई है। बिना उचित नोटिस या सुनवाई के इन कार्रवाइयों को अंजाम देकर, राज्य भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जो शक्ति के मनमाने उपयोग के लिए एक ख़तरनाक मिसाल है। जहाँ इन कार्यवाही के फलस्वरूप वंचित वर्ग के लोग बुरी तरह प्रभावित होते हैं वहीं इनसे विभिन्न समुदायों के बीच तनाव पैदा होता है और परिणामस्वरूप सामाजिक एकता का ताना-बाना कमज़ोर होता है। भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इन कार्यवाही की व्यापक रूप से निंदा की है, और इन्हें मौलिक मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन माना है। इन संगठनों ने भारत सरकार से सभी नागरिकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षाके लिए तत्काल क़दम उठाने की मांग की है

जवाबदेही की ज़रूरत और न्याय की मांग

बुलडोज़र संस्कृ तिका उदयभारत में राज्य शक्तिके प्रयोग का एक चिंताजनक प्रदर्शन है, जिसे सत्तारूढ़ पार्टी ने स्वार्थसिद्धिका साधन बनाया है। इससे उन्हें अपनी विचारधारा को लागू करने और कमज़ोर समुदायों को हाशिये पर रखने में मदद मिलती है। यह प्रवृत्ति भारतीयलोकतंत्र की बुनियाद को कमज़ोर कर रही है और मानवाधिकारों और क़ानून के शासन के लिए एक गंभीर चुनौती है। भारतीयनागरिक एक ऐसी सरकार के हक़दार हैं, जो सभी नागरिकों के लिए निष्पक्षता, समानता और व्यक्तिगत गरिमा की सुरक्षाको प्राथमिकता दे। बुलडोज़र से केवल भौतिक संरचनाएं नहीं गिराई जातीं, बल्किनागरिकों के मन और मस्तिष्कको गहरे और स्थायी मानसिक आघात पहुँचते हैं, समाज में दूरियाँ पैदा होती हैं, आपसी सद्भाव छिन्न-भिन्नहोता है, संविधान का अपमान होता है और फलस्वरूप लोकतंत्र की नींव कमज़ोर होती है। सरकार को इस प्रथा पर तुरंत रोक लगाना चाहिए, सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षाकरनी चाहिए और इन अन्यायपूर्णकार्रवाइयों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराकर क़ानून का शासन बहाल करना चाहिए। बुलडोज़र संस्कृति से उत्पन्न ख़तरों को समय रहते पहचानना और उन्हें रोकना हम सभी की सामूहिक ज़िम्मेदारी है। लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और न्यायके मूल्यों की रक्षा के लिए हमें जागरूक होना होगा। मानवाधिकारों के प्रति सम्मान, सजगता, एकजुटता, और मिल-जुल कर अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठा कर ही हम “बुलडोज़र संस्कृति” को रोक सकते हैं और उन लोगों के लिए न्याय और गरिमा को पुनः स्थापित कर सकते हैं जिनके साथ अन्याय हुआ है। (लेखक जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के सहायक सचिव हैं।)

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09/09/2024

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भौगोलिक व भाषायी दृष्टि से आहत हुए टोडारायसिंह वासियो ने सांकेतिक बंद का आयोजन कर पुनः टोंक जिले में शामिल रहने की की मांग। अधिक जानकारी के लिए दिये गये लिंक या फोटो पर क्लिक करके पढ़े पूरी ख़बर

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एडवोकेट इस्लाम मोहम्मद बने टोडारायसिंह कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष। देर रात तक बधाई देने वालों का लगा रहा तांता https://x.com...
31/08/2024

एडवोकेट इस्लाम मोहम्मद बने टोडारायसिंह कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष। देर रात तक बधाई देने वालों का लगा रहा तांता https://x.com/NewsArwa/status/1829948849093222894
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28/08/2024

उप जिला अस्पताल भवन निर्माण के लिए भूमि आवंटन की माँग को लेकर सर्व समाज टोडारायसिंह ने सौंपा ज्ञापन https://x.com/NewsArwa/status/1828765456552915410
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