Madav Shri Sawliya Seth

Madav Shri Sawliya Seth astrologer

26/03/2024

श्री हनुमत तांडव स्तोत्र
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हनुमत तांडव स्तोत्र का नित्य पाठ अत्यंत लाभकारी है । इसके प्रतिदिन पाठ से श्री हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है साथ ही मंगल, राहु आदि ग्रहों के कष्टों से भी छुटकारा मिलता है। इसके नित्यपाठ करने से भूत प्रेत, रोग , दुर्घटना आदि का भय नहीं भी नहीं रहता और सर्वत्र सुरक्षा होती है।

॥ श्रीहनुमत्ताण्डवस्तोत्रम् ॥

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् । रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।

सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।

इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।

कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।

प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।

विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।

सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।

विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।

सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।

प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे । लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥

॥ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् ॥

26/03/2024

जैसा नाम वैसा ही इस स्तोत्र का काम अर्थात जैसा नाम है वैसा ही फल देता है |
त्रैलोक्य अर्थात तीनो लोको में जो पराजित ना हो ने दे तीनो लोको में जो विजय प्रदान करे ऐसा स्तोत्र त्रैलोक्य विजय अपराजिता स्तोत्र |
इस स्तोत्र के पाठ से नवग्रह दोष समाप्त हो जाते है, भूत-प्रेत आदि की बाधाओं से मुक्ति मिलती है, नकारात्मक शक्तियों का विनाश हो जाता है,
मनुष्य की सभी मनोकामना सिद्ध हो जाती है, जाने अनजाने किये गए या हुए पापो का विनाश हो जाता है, विद्यार्थो को विद्या प्रदान करता है,
निःसंतान को संतान प्राप्ति के द्वार खुल जाते है, सरकारी कामो में सफलता प्राप्त होती है, किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं रहता,
सभी प्रकार के उपद्रव शांत हो जाते है, शत्रु के द्वारा किये हुए मारण, मोहन, उच्चाटन आदि क्रियाओ का नाश कर देने में समर्थ है यह उत्तम स्तोत्र,
सभी प्रकार के विघ्न शांत हो जाते है इस स्तोत्र पाठ से,दुःस्वप्न शांत हो जाते है, सामाजिक मान सन्मान देने में समर्थ है यह स्तोत्र,
राजनीतिक सफलता प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए |

इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करने से सब प्रकार के रोग तथा सब प्रकार के शत्रु और बन्ध्या दोष नष्ट हो जाते हैं । विशेष रूप से मुकदमादि में सफलता और राजकीय कार्यों में अपराजित रहने के लिये यह पाठ रामबाण है।

🌹।। अपराजिता स्तोत्र।।🌹
विनियोगः
🌹।।ॐ अस्या: वैष्णव्याः पराया: अजिताया: महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्कण्डेया ऋषयः गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहति छन्दांसि लक्ष्मी नृसिंहो देवता ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजं हुं शक्तिः सकलकामना सिद्ध्यर्थं अपराजित विद्यामन्त्र पाठे 🌹।।

विनियोगः |
इस पाठ के वामदेव, बृहस्पति, मार्कण्डेय ऋषि है, गायत्री अनुष्टुप बृहति छन्द है,
लक्ष्मी नरसिम्हा ( नृसिंह ) देवता है, क्लीं, श्रीं, ह्रीं, हुं शक्ति है,
और सकलकामना सिद्धि अर्थ के लिये इसका पाठ करने का विनियोग है |

🌹।।ॐ नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्वितं |
शुद्धस्फटिकसंकाशां चन्द्रकोटिनिभाननां || १ ||

शङ्खचक्रधरां देवीं वैष्णवीं अपराजितं |
बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीं || २ ||

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः || ३ ||

श्री मार्कण्डेय उवाच
शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम |
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीं अपराजितं || ४ ||

ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय, नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्त्रशीर्षायणे, क्षीरोदार्णवशायिने, शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुड़वाहनाय, अमोघाय अजाय अजिताय पीतवाससे,
ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रीव, मत्स्य,कूर्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम |
वरद वरद वरदो भव, नमोस्तुते, नमोस्तुते स्वाहा,
ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-कूष्माण्ड-सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्द्गृहान
उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांंश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विंध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शंखेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा।।

26/03/2024

★★★प्रणाम निषेध ★★★
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१_दूरस्थं जलमध्यस्थं धावन्तं धनगर्वितम् ।
क्रोधवन्तं मदोन्मत्तं नमस्कारोsपि वर्जयेत् ॥
दूरस्थित, जलके बीच, दौड़ते हुए, धनोन्मत्त, क्रोधयुक्त, नशे से पागल व्यक्ति को प्रणाम नहीं करना चाहिए ॥

२_ समित्पुष्पकुशाग्न्यम्बुमृदन्नाक्षतपाणिकः ।
जपं होमं च कुर्वाणो नाभिवाद्यो द्विजो भवेत् ॥
अर्थात् पूजाकी तैयारी करते हुए तथा पूजादि नित्यकर्म करते समय ब्राह्मण को प्रणाम करने का निषेध है । निवृत्ति के पश्चात् प्रणाम करना चाहिए ॥

३_अपने समवर्ण ज्ञाति एवं बान्धवों में ज्ञानवृद्ध तथा वयोवृद्ध द्वारा प्रणाम स्वीकार नहीं करना चाहिए, इससे अपनी हानि होती है ।

४- स्त्रियों के लिये साष्टाङ्ग प्रणाम वर्जित है । वे बैठकर ही प्रणाम करें ।
[जानुभ्यां च तथा पद्भ्यां पाणिभ्यामुरसा धिया ।
शिरसा वचसा दृष्ट्या प्रणामोsष्टाङ्ग ईरितः ॥
जानु, पैर, हाथ, वक्ष, शिर, वाणी, दृष्टि और बुद्धि से किया प्रणाम साष्टाङ्ग प्रणाम कहा जाता है ॥
परन्तु "वसुन्धरा न सहते कामिनीकुचमर्दनम्" सूत्र के अनुसार स्त्री द्वारा साष्टाङ्ग प्रणाम का निषेध है । अतः उसे बैठकर ही, परपुरुष को स्पर्श न करते हुए, प्रणाम करने का आदेश है ॥ ]

५- गुरुपत्नी तु युवती नाभिवाद्येह पादयोः ।
कुर्वीत वन्दनं भूम्यामसावहमिति चाब्रुवन् ॥
यदि गुरुपत्नी युवावस्था वाली हों तो उनके चरण छूकर प्रणाम नहीं करना चाहिए । 'मैं अमुक हूँ' ऐसा कहते हुए उनके सम्मुख पृथ्वी पर प्रणाम करना चाहिए ॥
[मातृष्वसा मातुलानी श्वश्रूश्चाथ पितृष्वसा ।
सम्पूज्या गुरुपत्नीव समास्ता गुरुभार्यया ॥
मौसी, मामी, सास और बुआ ये गुरुपत्नी के समान पूज्य हैं ॥ कूर्मपुराण एवं मनुस्मृति ॥]
यहाँ कालिदास भी कहते हैं 'प्रतिबध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः' अर्थात् पूज्यका असम्मान कल्याणकारी नहीं होता ॥

Kripa mere Thakur ji ki
05/10/2023

Kripa mere Thakur ji ki

गणपति बाप्पा मोरिया
25/09/2023

गणपति बाप्पा मोरिया

लालबाग के राजा की जय
25/09/2023

लालबाग के राजा की जय

16/07/2023

जय श्री राधे कृष्णा

रुद्राभिषेक का महत्त्व तथा लाभ
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भगवान शिव के रुद्राभिषेक से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है साथ ही ग्रह जनित दोषों और रोगों से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। रूद्रहृदयोपनिषद अनुसार शिव हैं – सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। भगवान शंकर सर्व कल्याणकारी देव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी पूजा,अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं।

भगवान शिव को शुक्लयजुर्वेद अत्यन्त प्रिय है कहा भी गया है वेदः शिवः शिवो वेदः। इसी कारण ऋषियों ने शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है यथा –

यजुर्मयो हृदयं देवो यजुर्भिः शत्रुद्रियैः।

पूजनीयो महारुद्रो सन्ततिश्रेयमिच्छता।।

शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है ।जाबालोपनिषद में याज्ञवल्क्य ने कहा – शतरुद्रियेणेति अर्थात शतरुद्रिय के सतत पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। परन्तु जो भक्त यजुर्वेदीय विधि-विधान से पूजा करने में असमर्थ हैं या इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान शिव के षडाक्षरी मंत्र– ॐ नम:शिवाय (Om Namah Shivaay ) का जप करते हुए रुद्राभिषेक का पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है।महाशिवरात्रि पर शिव-आराधना करने से महादेव शीघ्र ही प्रसन्न होते है। शिव भक्त इस दिन अवश्य ही शिवजी का अभिषेक करते हैं।

क्या है ? रुद्राभिषेक

अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान (Bath) करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।

रुद्राभिषेक क्यों करते हैं?

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।

रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?

प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार ––

एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।

रुद्राभिषेक से क्या क्या लाभ मिलता है ?

शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।

जानिए शिवजी की पूजा में क्या नहीं चढ़ाना चाहिएसंस्कृत श्लोक

जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै

दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।

मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।

पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।

बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।

जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।

घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।

तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।

प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।

केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।

शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।

श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!

सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!

पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।

जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।

पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।

महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।

कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।

अर्थात

1 जल से रुद्राभिषेक करने पर — वृष्टि होती है।

2 कुशा जल से अभिषेक करने पर - रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।

3 दही से अभिषेक करने पर — पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।

4 गन्ने के रस से अभिषेक करने पर — लक्ष्मी प्राप्ति

5 मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर — धन वृद्धि के लिए।

6 तीर्थ जल से अभिषेकक करने पर — मोक्ष की प्राप्ति होती है।

7 इत्र मिले जल से अभिषेक करने से — बीमारी नष्ट होती है ।

8 दूध् से अभिषेककरने से — पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं

9 पूर्णगंगाजल से अभिषेक करने से — ज्वर ठीक हो जाता है!

10 दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से — सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू।

11 घी से अभिषेक करने से — वंश विस्तार होती है।

12 सरसों के तेल से अभिषेक करने से — रोग तथा शत्रु का नाश होता है।

13 शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से —- पाप क्षय हेतू।

इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व रूप सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद सेसमृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैं।

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