
22/05/2025
हर रोज़ की लड़ाई से थक चुका हूँ, पर कोई नहीं जानता। मुस्कान ओढ़े ज़िंदा हूँ, लेकिन भीतर सब कुछ टूट चुका है। सपनों को रोज़ मारता हूँ ताकि घर की ज़रूरतें पूरी कर सकूं। उम्मीदें थीं, मगर वक़्त ने उन्हें भी रौंद डाला। अपनों से दूर हो गया, क्योंकि दर्द बांटने से वो भी डर जाते हैं। अब न आंसू बहते हैं, न दिल में कोई सुकून बचा है। भीड़ में हूं, पर अकेला हूं। जीत की चाह में खुद को खो बैठा हूं। सच कहूं, **मैं हारा हुआ इंसान हूं... बस ज़िंदा हूं।** 😭😭😭