10/09/2025
वार्ता :— यह राजा नल का चरित्र ब्रहदस ऋषि महाराजा युधिष्ठर को सुना रहे थे। युधिष्ठर ने कहा कि महाराज हमारे को नल-दमयन्ती का चरित्र खोलकर सुनाने का कष्ट करो। अब ऋषि जी सारी कथा सुनाते हैं।
समझ ना सकते जगत के मन पै, अज्ञान रूपी मल होग्या,
बेईमाने मैं मग्न रहैं सैं, गांठ-गांठ मैं छल होग्या ।। टेक ।।
भाई धोरै माँ जाया भाई, चाहता बैठणा पास नहीं,
मात—पिता गुरू शिष्य नै कहैं, मेरे चरण का दास नहीं,
बीर और मर्द कमाकै ल्यादें, पेट भरण की आस नहीं,
मित्र बणकै दगा कमाज्यां, नौकर का विश्वास नहीं,
जब से गारत महाभारत मैं, अठारा अक्षोणी दल होग्या ।।1।।
नियम-धर्म तप-दान छूटगे, न्यूं भारत पै जाल पड़े,
इन्द्र भी कम वर्षा करते, जल बिन सूखे ताल पड़े,
बावन जनक हुऐ ब्रह्मज्ञानी, वेद धर्म के ख्याल पड़े,
राजा शील ध्वज के राज मैं भी, बारह वर्ष तक काल पड़े,
उस काल का कारण समझण खातिर, त्यार जनक का हल होग्या ।।2।।
शिक्षा-कल्प व्याकरण-ज्योतिष, निरूकत छन्द की जाण नहीं,
श्रुति-स्मृति महाभारत, समझे अठारह पुराण नहीं,
बिन सतगुरू उपनिषदों के, ज्ञान की पहचान नहीं,
पढ़े-लिखे बिन मात-पिता गुरू, छोटे-बड़े की काण नहीं,
सत-पत गोपत विधि भाग बिन, सब कर्तव्य निष्फल होग्या ।।3।।
दुमत-दांत दमयन्ती-दमन, राजा भीमसैन कै कुन्दरपुर मैं,
देवता ऋषि और पितृ प्रसन्न कर, आनन्द करते थे घर मैं,
ऋषियों द्वारा यज्ञ कराकै, चार औलाद मिली वर मैं,
लखमीचन्द धर्म के सेवक, कभी नहीं रहते डर मैं,
सतयुग मैं एक निषध देश म्य, वीरसैन कै नल होग्या ।।4।।