27/07/2025
जानिए क्यों चम्बा में “मिंजर–मेला” मनाया जाता है, और क्या है इसके पीछे का असल तथ्य ?! 🎥👇
मिंजर मेला हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्यौहार है, यह हर साल श्रावण महीने के दूसरे रविवार को शुरू होता है। "मिंजर" की उत्पत्ति हिंदी शब्द मंजरी से हुई है जिसका अर्थ है मक्के का फूल या मक्के की हरी कोंपलें, ये समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
यह मेला 935 ई. में चंबा के राजा द्वारा त्रिगर्त जिसे अब ( कांगड़ा) के नाम से जाना जाता है वहां के शासक पर विजय की स्मृति में शुरू हुआ था। मिंजर मेले का आयोजन राजा साहिल वर्मन द्वारा अपनी जीत के उपलक्ष्य में शुरू किया गया था । और तब से यह चंबा की संस्कृति और परंपरा का एक अभिन्न अंग बन गया है। इस मेले की मुख्य विशेषता यह है कि यह हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता का प्रतीक है, जहां हिंदू और मुस्लिम परिवार भी मिंजर (धान या मक्के की बालियां) बनाकर मंदिर में अर्पित करते हैं।
मिंजर मेला भगवान रघुवीर और लक्ष्मी नारायण को समर्पित है। यह मेला चंबा के ऐतिहासिक चौगान में मनाया जाता है। यह मेला भगवान रघुवीर की पूजा के साथ शुरू होता है, और फिर 200 से अधिक देवी-देवता पारंपरिक तरीके से चौगान में पहुंचते हैं।
यह मेला चंबा के "मिर्जा" परिवार द्वारा तैयार की गई मिंजर को भगवान रघुवीर को अर्पित करने के साथ शुरू होता है। मिंजर को रेशम, तिल्ला, डोरी और मोती से बनाया जाता है। इसके बाद, चंबा के ऐतिहासिक "चौगान" में मिंजर का ध्वज फहराया जाता है। मिंजर मेले की शोभा यात्रा में देवी-देवताओं को पालकी में पारंपरिक वाद्ययंत्रों और वेशभूषा के साथ चौगान में ले जाया जाता है।
मिंजर मेले के दौरान, मिंजर (मक्के के रेशम या धान की बालियों) को भगवान को अर्पित किया जाता है, और फिर एक सप्ताह बाद "रावी" नदी में प्रवाहित किया जाता है। मिंजर को एक शुभ प्रतीक माना जाता है और इसे नदी में प्रवाहित करने से पहले, एक नारियल, एक रुपया, एक मौसमी फल और मिंजर को लाल कपड़े में बांधकर, नदी में चढ़ाया जाता है। इसके बाद, पारंपरिक "कुंजरी-मल्हार" गाई जाती है और सभी लोग अपने मिंजरों को नदी में प्रवाहित करते हैं। इस समारोह के साथ मिंजर मेला समाप्त हो जाता है तथा देवी-देवताओं की प्रतिमाएं एवं शाही ध्वज को वापस अखण्ड चण्डी महल में लाया जाता है।
मिंजर मेले में, पारंपरिक नृत्य, संगीत, और लोक कलाओं का प्रदर्शन भी किया जाता है। मेले में पूरे सप्ताह सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल, सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन और व्यापारिक गतिविधियां होती हैं। इस मेले में स्थानीय लोगों के साथ-साथ देश भर से पर्यटक भी आते हैं, जो चंबा की जीवंत संस्कृति और परंपराओं का अनुभव करते हैं। इस अवसर पर प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों, बोर्डों तथा निगमों द्वारा विकासात्मक प्रदर्शनियां भी लगाई जाती है।
सन 2022 में इस मेले को "अंतर्राष्ट्रीय" स्तर का दर्जा मिला था।