29/06/2025
हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत का वाक़िया:
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लामी तारीख़ के दूसरे ख़लीफा थे और बहुत ही इन्साफ़-पसंद, अल्लाह से डरने वाले और उम्मत की भलाई चाहने वाले हाकिम थे।
📅 शहादत का समय:
• 26 ज़ुल-हिज्जा 23 हिजरी (مطابق 3 नवम्बर 644 ई.)
• वफ़ात: 1 मुहर्रम 24 हिजरी को ज़ख़्मों की वजह से इन्तिक़ाल हुआ
🗡️ हमला कैसे हुआ?
• एक फ़ारसी ग़ुलाम अबू लुलू फिरोज़ नाम का आदमी था, जो एक मज़दूर था और एक सहाबी के यहाँ काम करता था।
• उसने हज़रत उमर से कुछ माँग की थी (टैक्स में रियायत वगैरह), लेकिन जब उमर ने उसे इंकार किया तो वह नाराज़ हो गया।
• वह अपने अंदर ग़ुस्सा और बग़ावत पाले हुए था। उसने एक दोधारी ख़ंजर बनाया।
🕌 हमला मस्जिद-ए-नबवी में:
• फज्र की नमाज़ का वक़्त था। हज़रत उमर इमामत करवा रहे थे।
• जैसे ही उन्होंने “अल्लाहु अकबर” कहा, पीछे से अबू लुलू ने उन पर हमला किया और लगातार 6 वार किए।
• उनके जिस्म में गहरे ज़ख़्म हुए, खासतौर पर पेट और नाभि के नीचे
🔁 क्या हुआ उसके बाद?
• हज़रत उमर ज़ख़्मी होकर गिर पड़े। फिर हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ ने नमाज़ मुकम्मल करवाई।
• हमलावर ने बाहर निकलकर कई और लोगों को ज़ख़्मी किया और फिर खुदकुशी कर ली।
• हज़रत उमर को घर ले जाया गया और कई दिन तक इलाज हुआ लेकिन ज़ख़्म गहरे थे।
🛏️ आखिरी अल्फ़ाज़ और वसीयत:
• उन्होंने अपने बेटे हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर को भेजा कि “आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा” से पूछो, क्या मैं रसूलुल्लाह ﷺ और अबू बक्र के पास दफन हो सकता हूँ?
• हज़रत आइशा ने इजाज़त दे दी (बाद में खुद ने और जगह दफन होना पसंद किया ताकि हया बनी रहे)।
• उन्होंने कहा: “अगर मेरी खलाफ़त में कोई कमी रह गई हो तो ये मेरी जिम्मेदारी है, लेकिन मैंने भरपूर कोशिश की कि उम्मत को इंसाफ़ मिले।”
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