Subhash Kainthla

Subhash Kainthla ।।आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत।।

जेमिमा रोडरिग्स ने 338 रनों के विशाल स्कोर का पीछा करते हुए 127 नाबाद रनों की शानदार व ऐतिहासिक पारी खेली जिसकी बदौलत भा...
31/10/2025

जेमिमा रोडरिग्स ने 338 रनों के विशाल स्कोर का पीछा करते हुए 127 नाबाद रनों की शानदार व ऐतिहासिक पारी खेली जिसकी बदौलत भारत ने ऑस्ट्रेलिया को पांच विकेट से हरा कर महिला विश्व कप के फाइनल में प्रवेश किया 🇮🇳💥💥💥

28/10/2025
प्राणी-सृष्टि में ऐसा कोई जीव नहीं जो अपने भावों को छिपा सके; केवल मनुष्य ही ऐसा है जो भीतर से कुछ और बाहर से कुछ और दिख...
28/10/2025

प्राणी-सृष्टि में ऐसा कोई जीव नहीं जो अपने भावों को छिपा सके; केवल मनुष्य ही ऐसा है जो भीतर से कुछ और बाहर से कुछ और दिखता है। इसीलिए मनुष्य पशु से भी अधम हो सकता है।

मनुष्य का अधम या श्रेष्ठ होना जन्म से नहीं,
उसके आचरण से तय होता है।
यदि वह सत्य, दया और न्याय में स्थित है — तो देवतुल्य है;
और यदि छल, हिंसा और लोभ में है — तो पशु से भी नीचतर।

पश्वोऽपि भावमखिलं प्रदर्शयन्ति,
क्षणेन तं निहितभावसाक्षिणः स्युः।
मनुष्य एव द्विमुखः सदा विचित्रः,
हृदं विचन्य मुखतस्तदन्यदुच्चैः॥

क्यों जीव ईश्वर अनुरागी बनता है या भक्ति में सलंग्न होता है या क्यों प्रभु प्रेमी होने का प्रयास करता है...??भक्ति या अन...
21/10/2025

क्यों जीव ईश्वर अनुरागी बनता है या भक्ति में सलंग्न होता है या क्यों प्रभु प्रेमी होने का प्रयास करता है...??

भक्ति या अनुराग का आधार क्या है...??

1. भावनात्मक निर्भरता पर आधारित — इसे याचना भक्ति भी कह सकते हैं केवल मांगने कि इच्छा से की जाने वाली भक्ति, वर्तमान समय में जीव इसी भक्ति से भ्रमित है
इसमें जीव ईश्वर, गुरु या किसी प्रिय के प्रति इसीलिए अनुरक्त होता है क्योंकि उसे भीतर से भय, असुरक्षा या अकेलापन महसूस होता है।
इस स्थिति में उसकी भक्ति वास्तव में आश्रय की तलाश करती है, सत्य की नहीं।
ऐसे जीव में आत्मविश्वास कम और अन्धविश्वास व भय अधिक होता है।
इसलिए उसकी भक्ति “प्रार्थना” से अधिक “याचना” बन जाती है।

2. ज्ञान, अनुभूति और कर्म पर आधारित भक्ति —
जब व्यक्ति को यह अनुभव होता है कि “मैं ईश्वर से पृथक नहीं हूँ”, तब उसका अनुराग भय नहीं, बल्कि प्रेम से उत्पन्न होता है।
ऐसी भक्ति में आत्मविश्वास सर्वोच्च होता है, क्योंकि भक्त जानता है कि “मुझमें वही चेतना प्रवाहित है जो विश्व में है।”

गीता में यही कहा गया — “यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति”— जो मुझे सर्वत्र देखता है, उसके लिए भय का कोई स्थान नहीं।

जब भक्ति का आधार अंधविश्वास, सांसारिक विषय वस्तु, अज्ञान, असुरक्षा या याचना हो, तब वह भक्ति जीव को भीतर से डरपोक, कम आत्मविश्वासी और अन्धविश्वासी बनाती है।
लेकिन जब भक्ति का आधार कर्म, अनुभूति, प्रेम व समर्पण होता है तब वही जीव अत्यंत निडर और आत्मविश्वासी बन जाता है।

20/10/2025

दीपोत्सव की सभी को शुभकामनाएँ !
सभी सुखी और निरोगी रहें।
मन का अंधकार नष्ट हो,और दिव्य ज्योति हृदय में प्रसन्नता बनकर चमके।

19/10/2025

जितना व्यक्ति दूसरों के लिए समर्पित होकर काम करता है, लोग उतना ही उसे सामान्य या तुच्छ समझने लगते हैं — क्योंकि उनका दृष्टिकोण उस समर्पण को “कर्तव्य” मान लेता है, न कि “मूल्य”।

यत्समर्पणमेतेषां, तत् त एव न मन्यते।
अत्यर्थसेवा सेवकं, स्वभावेनैव लघ्नते॥

यत् समर्पणम् एतेषाम् — जब तुम दूसरों के लिए समर्पित होते हो,
तत् त एव न मन्यते — वे उसी को महत्व नहीं देते।
अत्यर्थ सेवा सेवकं — अत्यधिक सेवा करने वाला व्यक्ति,
स्वभावेन एव लघ्नते — स्वभावतः ही छोटा समझा जाने लगता है।

गरीब और दुर्बल का सत्य भी नहीं सुना जाता, परन्तु धनवान और बलवान का झूठ भी ढिंढोरा पीटता है।गरीबदुर्बलानां सत्यं न श्रूयत...
17/10/2025

गरीब और दुर्बल का सत्य भी नहीं सुना जाता, परन्तु धनवान और बलवान का झूठ भी ढिंढोरा पीटता है।

गरीबदुर्बलानां सत्यं न श्रूयते जनैः।
धनवान् बलवानां तु मिथ्यापि प्रतिधावति॥

उम्र के साथ याददाश्त क्यों कम होने लगती है...???एम्स के न्यूरोसर्जन डॉ. अरुण एल. नाइक के अनुसार, पैरों को मजबूत बनाए रखन...
16/10/2025

उम्र के साथ याददाश्त क्यों कम होने लगती है...???

एम्स के न्यूरोसर्जन डॉ. अरुण एल. नाइक के अनुसार, पैरों को मजबूत बनाए रखना मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

जब हम चलते हैं, तो दिमाग के कई हिस्से जैसे कि सेरिबैलम, स्पाइनल कॉर्ड और फ्रंटल लोब एक साथ काम करते हैं। पैरों के हिलने-डुलने से दिमाग में खून का प्रवाह बढ़ता है, जिससे उसे ऑक्सीजन और ग्लूकोज मिलता है, और विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं।

शारीरिक गतिविधि की कमी से पैरों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिसे सार्कोपेनिया कहते हैं। कमजोर मांसपेशियां संज्ञानात्मक गिरावट को तेज कर सकती हैं।
चलना ब्रेन-डिराइव्ड न्यूरोट्रॉफिक फैक्टर (BDNF) को भी बढ़ाता है, जो एक ऐसा रसायन है जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को बढ़ने और बेहतर तरीके से जुड़ने में मदद करता है।

Discover how strong legs are crucial for preventing dementia and improving brain health. Learn about the brain-leg connection and effective strategies to protect your cognitive function.

न तो घोड़े को, न हाथी को, न बाघ को और न किसी और को ही कभी बलि चढ़ाया जाता है।  यदि किसी को बलि चढ़ाया जाता है तो वह है बेचा...
16/10/2025

न तो घोड़े को, न हाथी को, न बाघ को और न किसी और को ही कभी बलि चढ़ाया जाता है। यदि किसी को बलि चढ़ाया जाता है तो वह है बेचारे अजापुत्र (बकरी के बच्चे) को। दुर्बल के लिए तो ईश्वर भी घातक सिद्ध हो सकते हैं...!

इसलिए जो समझते है कि हमारा धर्म, जाति, लिंग या रंग के आधार पर शोषण हो रहा है तो वह गलतफहमी में है प्रत्येक उस व्यक्ति का शोषण हो रहा है जो गरीब है कमज़ोर है....सबसे अधिक गरीब, कमज़ोर और असहाय का शोषण उसके अपने ही धर्म, जाति, लिंग व रंग के लोग ही करते हैं।

इसलिए रोना छोड़ो और स्वयं को उन्नत बनाओ विचारों से.. सुदृढ़ बनाओ शरीर से और विशेषत: धन से... भगवान, विधान और संविधान भी सबसे पहले इनकी ही सहायता करते है..।

Neither a tiger nor a horse or yet an elephant, the Gods want only the poor weak lamb sacrificed !

अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च ।
अजापुत्रं बलिं दद्यात् देवो दुर्बल घातकः॥

अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।एतं सामासिकं धर्मं चतुवर्ण्येषु भारत॥(मनुस्मृति 10.63)अहिंसा (किसी को कष्ट न देना...
15/10/2025

अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
एतं सामासिकं धर्मं चतुवर्ण्येषु भारत॥
(मनुस्मृति 10.63)

अहिंसा (किसी को कष्ट न देना),
सत्य (सत्य बोलना और आचरण करना),
अस्तेय (चोरी या अन्याय न करना),
शौच (शुद्धता — शरीर और मन की),
और इन्द्रियनिग्रह (इन्द्रियों पर संयम) —
ये पाँच बातें सभी मनुष्यों के लिए समान धर्म हैं।

भावार्थ: धर्म का सार केवल पूजा या कर्मकाण्ड नहीं, बल्कि व्यवहार में पवित्रता और संयम है।
मनु कहते हैं — “वर्ण, जाति, धर्म, या पद कुछ भी हो — यदि इन पाँच मूल गुणों का पालन नहीं,
तो कोई भी व्यक्ति सच्चा धर्मात्मा नहीं कहलाता।”

अहिंसा से करुणा आती है,
सत्य से विश्वास,
अस्तेय से न्याय,
शौच से मन की शांति,
और संयम से आत्मबल।

“धर्म बाहर से नहीं, भीतर से आरंभ होता है।
हर दिन इन पाँच गुणों में से एक का अभ्यास करो — जीवन स्वतः पवित्र होता चला जाएगा।”

सत्य बोलो, परंतु ऐसा सत्य जो प्रिय हो। कटु सत्य जो दु:ख पहुँचाए, न बोलो।प्रिय वचन बोलो, परंतु झूठ कभी न बोलो — यही सनातन...
14/10/2025

सत्य बोलो, परंतु ऐसा सत्य जो प्रिय हो। कटु सत्य जो दु:ख पहुँचाए, न बोलो।
प्रिय वचन बोलो, परंतु झूठ कभी न बोलो — यही सनातन धर्म है।

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः॥
(मनुस्मृति 4.138)

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