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टकरा गया वो मुझ से किताबें लिए हुएफिर मेरा  #दिल और उसकी  #किताबें बिखर गईंHe bumped into me, carrying books in his hand...
11/07/2025

टकरा गया वो मुझ से किताबें लिए हुए
फिर मेरा #दिल और उसकी #किताबें बिखर गईं

He bumped into me, carrying books in his hands,
And then — my and his — both scattered...

ये दोनों पुस्तकें आदिवासी संस्कृति, संघर्ष और जीवनशैली की सजीव झलक प्रस्तुत करती हैं।इनमें छिपी कहानियाँ केवल पढ़ने योग्...
01/07/2025

ये दोनों पुस्तकें आदिवासी संस्कृति, संघर्ष और जीवनशैली की सजीव झलक प्रस्तुत करती हैं।
इनमें छिपी कहानियाँ केवल पढ़ने योग्य नहीं, बल्कि अनुभव करने योग्य हैं।

“पुस्तकें केवल पृष्ठों का समुच्चय नहीं होतीं, वे समाज की स्मृतियों की थाती होती हैं। ‘थारू से गोंड़ तक’ हमारे उत्तर प्रद...
19/06/2025

“पुस्तकें केवल पृष्ठों का समुच्चय नहीं होतीं, वे समाज की स्मृतियों की थाती होती हैं। ‘थारू से गोंड़ तक’ हमारे उत्तर प्रदेश की उन असल आत्माओं की आवाज़ है, जिन्हें इतिहास की मुख्यधारा अक्सर भुला देती है। एक प्रकाशक के नाते मेरा यह कर्तव्य था कि इस जीवंत दस्तावेज़ को समाज के सामने लाया जाए। यह पुस्तक नहीं, एक पुकार है संस्कृति, जड़ों और आत्मसम्मान की। मैं गौरवान्वित हूँ कि पार्थ प्रकाशन इस कार्य का माध्यम बन सका।”

— डॉ. शोभा चौधरी

"लेखन मेरे लिए उत्तर प्रदेश की आदिवासी आत्मा से संवाद का एक माध्यम है।मैंने इन पन्नों में उन अनसुनी आवाज़ों, रीतियों और ...
19/06/2025

"लेखन मेरे लिए उत्तर प्रदेश की आदिवासी आत्मा से संवाद का एक माध्यम है।
मैंने इन पन्नों में उन अनसुनी आवाज़ों, रीतियों और प्रतिरोधों को शब्द दिए हैं
जो सदियों से जंगलों और घाटियों में गूंजते रहे हैं।
जब इस दस्तावेज़ को सम्मान मिलता है,
तो लगता है जैसे कोई बीज, जो चुपचाप मिट्टी में पड़ा था,
अब अंकुरित होकर अपना अस्तित्व कह रहा है।
यह सम्मान नहीं, एक समवेदना है—
उन लोगों के लिए, जिनकी कहानियाँ अब हमारी भी कहानी बन गई हैं।"

— डॉ. सौंयता पाण्डेय

"मैंने इस पुस्तक में केवल आदिवासी जीवन को नहीं लिखा,बल्कि उस जीवन की साँसों, संघर्षों और सपनों को समझने की कोशिश की है।य...
19/06/2025

"मैंने इस पुस्तक में केवल आदिवासी जीवन को नहीं लिखा,
बल्कि उस जीवन की साँसों, संघर्षों और सपनों को समझने की कोशिश की है।
ये शब्द नहीं हैं—ये पगडंडियों पर चलती पीढ़ियों की पदचाप हैं।
यह लेखन एक दस्तावेज़ नहीं,
बल्कि स्मृति और संस्कृति के मध्य एक पुल है।
जब इस पुस्तक को पहचाना जाता है,
तो लगता है जैसे हम किसी खोए हुए इतिहास को फिर से सुन पा रहे हैं।
यह प्रयास नहीं,
एक नैतिक उत्तरदायित्व है—
उन स्वरों के प्रति, जिन्हें अक्सर इतिहास की चुप्पियों ने ढँक दिया था।"

— डॉ. आबिद रज़ा

"यह पुस्तक मेरे लिए एक शोध नहीं,बल्कि आत्मीय जुड़ाव की प्रक्रिया रही है।आदिवासी समाज के बीच रहकरमैंने उनकी कहानियाँ नहीं...
19/06/2025

"यह पुस्तक मेरे लिए एक शोध नहीं,
बल्कि आत्मीय जुड़ाव की प्रक्रिया रही है।
आदिवासी समाज के बीच रहकर
मैंने उनकी कहानियाँ नहीं, उनका धड़कता हुआ जीवन अनुभव किया है।
हर गीत, हर आभूषण, हर परंपरा में एक गहरी विरासत बोलती है—
जो हमें सिखाती है कि विकास केवल आंकड़ों से नहीं,
संवेदनाओं और संबंधों से होता है।
जब इस कार्य को सराहा जाता है,
तो लगता है जैसे उन अनकही गाथाओं को भी
पहली बार किसी ने सुना हो।
यह लेखन एक समर्पण है—
उन जड़ों के प्रति, जिनसे हमारी पहचान भी कहीं गहरे जुड़ी है।"

— डॉ. प्रतिमा

18/06/2025
अमृतकाल में भारत और मीडिया पुस्तक की संपादक डॉ. साधना श्रीवास्तवसहायक आचार्य – जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग, उत्तर प्रदे...
15/06/2025

अमृतकाल में भारत और मीडिया पुस्तक की संपादक डॉ. साधना श्रीवास्तव
सहायक आचार्य – जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग, उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज

डॉ. साधना श्रीवास्तव समकालीन मीडिया अध्ययन की एक प्रबुद्ध हस्ताक्षर हैं, जो अध्यापन, शोध और संपादन के क्षेत्र में अपनी रचनात्मक ऊर्जा से निरंतर सक्रिय हैं। आप प्रयागराज स्थित उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग में सहायक आचार्य के रूप में कार्यरत हैं। शिक्षा में उत्कृष्टता की प्रतीक, आपने स्नातकोत्तर स्तर पर स्वर्ण पदक अर्जित किया और एम.फिल उपाधि के माध्यम से अपने शोध कौशल को निखारा।

आपका अकादमिक और सृजनशील फलक अत्यंत व्यापक है—मीडिया नैतिकता, ग्रामीण पत्रकारिता, विकास संचार, बाल साहित्य, और कोविड-काल में जनसंचार की भूमिका जैसे विविध विषयों पर आपने गहन लेखन किया है। शिक्षण के पारंपरिक स्वरूप से परे जाकर आपने डिजिटल मंचों के माध्यम से ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है—आपके व्याख्यान ऑनलाइन माध्यमों पर सुगमता से उपलब्ध हैं।

संपादन के क्षेत्र में आपकी विशिष्ट पहचान ‘आत्मनिर्भर भारत और मीडिया’ पुस्तक से बनी, जिसे आपने न केवल विषयवस्तु के स्तर पर बल्कि दृष्टिकोण की बहुलता के साथ सशक्त रूप में प्रस्तुत किया। वर्तमान में आप “अमृतकाल में भारत और मीडिया” शीर्षक पुस्तक का संपादन कर रही हैं, जिसमें मीडिया की समकालीन चुनौतियों, संभावनाओं और राष्ट्रीय पुनर्रचना में उसकी भूमिका का बहुआयामी विश्लेषण किया गया है।

डॉ. श्रीवास्तव का कार्य महज़ शैक्षणिक नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना को उन्नत करने वाला है। वे उस परंपरा की वाहक हैं जहाँ ज्ञान का उद्देश्य केवल सूचना नहीं, बल्कि समाज के विचार-विन्यास में हस्तक्षेप करना होता है। आपके प्रयास नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणा, दिशा और संकल्प का स्रोत हैं।

Mindful Learning is now availableA thoughtful guide to understanding and addressing concentration challenges in childhoo...
15/06/2025

Mindful Learning is now available
A thoughtful guide to understanding and addressing concentration challenges in childhood

This work offers simple, mindful approaches for parents, teachers, and caregivers who want to nurture attention with compassion and care

Every child has the potential to focus, grow, and flourish
Let’s help them get there, one mindful step at a time

Now published. Read. Reflect. Share.

Mindful Learning is here! Is your child struggling to focus? You're not alone—and this powerful read might just be the a...
15/06/2025

Mindful Learning is here!
Is your child struggling to focus? You're not alone—and this powerful read might just be the answer.

“Mindful Learning: Addressing Concentration Challenges in Childhood” dives deep into the art of nurturing young minds with calm, care, and clarity.

Because every wandering mind deserves a gentle guide.
Perfect for parents, educators, and dreamers who believe in better beginnings.

Out now — Let’s raise minds that listen, learn, and thrive.

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