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यायावर मैं उड़ना चाहता हूँ, दौड़ना चाहता हूँ, गिरना भी चाहता हूँ बस रुकना नहीं चाहता.

13/06/2025

राष्ट्र का नया धर्म: झूठ
लेखक: एक सत्यवादी झूठ-प्रेमी

देश बदल रहा है, मित्रों! पहले जहाँ सत्य को धर्म कहा जाता था, अब झूठ को राष्ट्रीय धर्म की मान्यता मिल चुकी है — बिना किसी अध्यादेश, बिना किसी बहस, और बिना किसी संसद सत्र के।

झूठ अब पाप नहीं रहा, वह स्किल बन गया है। एक ऐसी soft skill, जो आपको नौकरी भी दिला सकती है, प्रेम भी, वोट भी, और सेल्फी के साथ सम्मान भी। — आप इस दुनिया में कुछ भी सिर्फ तब बन सकते हैं जब एक चीज़ आपको आती हो: झूठ बोलने की बेशर्मीपूर्ण कला।

अब देखिए, दिल्ली चुनावों के बाद यह पूरी तरह से प्रमाणित हो चुका है कि अगर आपको जनता से कुछ चाहिए — वोट, पैसा, या भरोसा — तो आप बस तारीख दे दीजिए: "20 तारीख को सबके खाते में ढाई हजार रुपया आ जाएगा।" अब कौन सी बीस तारीख साल तो बताया नहीं? देश की सोच अब स्प्रिचुअल हो चुकी है — मतलब, चीजें दिखती नहीं, महसूस की जाती हैं।

झूठ बोले कौवा कटा, लेकिन अब कोंवों को प्रमोशन मिलता है राजगद्दी मिलती है

झूठ के प्रकार
राजनीतिक झूठ:
"हम ढाई हजार हर माह की बीस तारीख को आपके खाते में देंगे।"
(बाद में खाते का मतलब भावनाओं का खाता निकलता है)

प्रेम संबंधी झूठ:
"मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ।"
(जबकि पीछे बैकअप प्लान भी एक्टिव है - वरना मेघालय ट्रिप भी की जा सकती है)

सोशल मीडिया झूठ:
"Feeling blessed in Manaali – "
(असल में साथ का लड़का मालदीव घूम रहा है तो दवाब में मनाली आ गया)

संस्कारी झूठ:
"यार मैं ये सब नहीं करती।"
(सीधी साधी बस चार लोगो के सामने)

इंटरव्यू में स्किल नहीं, स्क्रिप्ट चाहिए
अगर आप किसी इंटरव्यू में जा रहे हैं और आपसे पूछा गया कि "Python आती है?"
तो बस मुस्कुराइए और कहिए:
"Python क्या सर, मैंने तो अजगर को भी कोड करना सिखाया है।"
आजकल रिज्यूमे से ज्यादा कॉन्फिडेंस बिकता है। झूठ बोलिए, मन से, तन से, और बड़े सपनों से — बस आंखें न झपकाइए।

घर से निकलना है? झूठ का पासपोर्ट बनाइए---

अगर मनाली जाना है और मम्मी पूछें "इतनी ठंड में क्यों?" तो कहिए:
"सरकारी प्रदुषण डेटा कलेक्शन का प्रोजेक्ट है, हिमाचल में पहाड़ों की ऊंचाई मापनी है। धुंवे पर रिसर्च करनी हैं"
मम्मी तुरंत नया स्वेटर निकालेंगी, पापा ATM कार्ड पकड़ा देंगे — और आप 'कसोल' में ट्रैकिंग नहीं, ट्रिपिंग करते हुए इंस्टा स्टोरी अपलोड कर सकते हैं और आस पास धुंवा भी उड़ रहा होगा तो वो स्वीकार्य होगा।

उधार लो, झूठ से भरोसा खरीदो
पैसा चाहिए? कोई बात नहीं। चाय वाले से लेकर चांदी वाले तक, हर दुकान में जाकर कहिए:
"भाई बस तीन दिन की बात है, फिर डबल दूंगा, तेरे जैसे को तो मैं भूलता ही नहीं।"
और अगले दिन सिम कार्ड बदल लीजिए — या फिर नाम।
दुनिया इतनी बड़ी है, इतनी जनसँख्या है की एक आदमी नाराज हो भी गया तो पचास नए खड़े है . आप मस्त रहिये

क्योंकि झूठ अब रास्ट्रीय धर्म है

अगर कोई पकड़ ही ले तो?
कोई बोले की तुम्हारी नौकरी कब लगेगी बता दीजिये अगले महीने ही पोस्टिंग है आई ए एस की
बोलने में क्या जाता है , जनता की याददाश्त एक हफ्ते की होती है और अगर कोई याद दिलाये भी तो आपके पास बहानों की एक किताब होनी चाहिए
और अगर सामने वाले की यादाश्त महंगाई के इस जमाने में भी बिना बादाम खाए तेज है
तो आप सत्तापक्ष बन जाइए। कहिए:
"मुझे तो पोस्टिंग मिल गई थी लेकिन एक मित्र ने कहा कि ‘आईएएस बनकर तुम सरकारी मशीन बन जाओगे’, तो इसलिए मैं आत्ममंथन कर रहा हूँ किसी ने कहा भी है बनना है तो घुमक्कड़ बनो राहुल सान्क्र्तायन की तरह या फिर पकोड़ा तलों
लोग सहानुभूति देंगे, कुछ ताली भी बजायेंगे। एक आधे ने सवाल उठा भी दिया तो कह दीजिए:
"आप राहुल गांधी समर्थक लगते हैं, बार बार बेरोजगारी का सवाल उठा रहे हैं।"

निष्कर्ष (या कहिए – स्वर्णिम संदेश)
इस बदलते भारत में अब रामायण की जरूरत नहीं, अब "रामायण ऑफ़ रील्स" का दौर है। राम अगर आज होते तो शायद बोले होते – "झूठ बोलो लेकिन दृढ़ता से।" क्योंकि अब रावण भी कहता है, "जो दिखता है, वही बिकता है — और जो नहीं दिखता, वो झूठ है, और वही हमारा नया धर्म है।"
तो उठिए, जागिए — और झूठ बोलिए, क्योंकि सत्य तो अब आरआईपी मोड में है।
🙏
झूठ ही जीवन है, जीवन ही झूठ है — जय रास्ट्रीय धर्म!

कृपया गंभीरता से न लें (क्योंकि लेखक ने भी नहीं लिया है)
यह लेख झूठ पर आधारित है, और झूठ भी ऐसा कि झूठ खुद शरमा जाए। इसमें जो कुछ भी लिखा गया है, वह पूर्ण रूप से लेखक की कल्पना, कुंठा, और कटाक्ष-प्रेरित फैंटेसी का नतीजा है। इसका किसी जीवित व्यक्ति, मृत आत्मा, राजनीति, रिश्तेदारी या पड़ोसी के कुत्ते से भी कोई संबंध नहीं है।
अगर नाम "राम" आया है तो कृपया उसे अपना भगवान न मानिए — यह राम 'डेली डेली झूठ बोलने वाला रामलाल' हो सकता है। और अगर आपको लगे कि लेखक आपके नेता, अभिनेता, प्रेमी, या प्रोफेसर की बात कर रहा है — तो वह आपकी समस्या है, लेखक की नहीं।

कृपया इसे दिल पर न लें।
दिल की जगह इसे व्हाट्सएप स्टेटस पर रखें, या कहीं सँभाल कर रख लें —
क्योंकि समय कठिन है, और ह्यूमर की जरूरत हर युग से ज़्यादा अब है।
इससे किसी जीवित मृत व्यक्ति की भावनाए आहत न हो - वैसे मृत व्यक्ति की भावनाए आहत कैसे हो सकती है ये कोई ज्ञानवर्धन करे ..

नमस्कार आपका यायावर - सफ़ेद झूठ प्रेमी

#यायावर #यायावरी #झूठ_राष्ट्रीय_धर्म

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दीवारों पर मोहब्बत के फफोले – सड़कछाप युवाओं की कला क्रांति"कला अमर है" – ये वाक्य जिस किसी ने भी कहा, यक़ीनन उसने किले ...
06/06/2025

दीवारों पर मोहब्बत के फफोले – सड़कछाप युवाओं की कला क्रांति

"कला अमर है" – ये वाक्य जिस किसी ने भी कहा, यक़ीनन उसने किले मकबरों के पिछवाड़े या रेलवे प्लेटफॉर्म की दीवारें देख ली होंगी।

प्राचीन काल से ही मानव कला , चित्र बनाने , दीवार पर चिन्ह अंकित करने कलाकारी करने का इक्छुक रहा है गुफाओं में हाथ के छापे से लेकर जानवरों की आकृति ...उसे जब जैसे मौका मिला उसने कलाकारी दिखाई

अपने पूर्वजों की इसी परंपरा को आज का युवा भी उसी तल्लीनता, तत्परता और पूर्ण मनोयोग से निभा रहा है

यधपि आज का युवा इस कला में लोजिक को खो चुका है, वो सिर्फ और सिर्फ अपनी भावनाए व्यक्त करना चाहता है,
वो टॉयलेट में जाता है और लिखता है "पूजा I Love U ❤️" अब उससे पूछों.... पूजा क्या यहाँ इस आई लव यु को पढने आएगी कभी???
वो क्या करेगी मेल टॉयलेट में …?? और अगर वो यहाँ आ रही है तो भाई, तुझे सोच विचार की आवश्यकता है ..

ये तो कुछ भी नहीं …
मैं ताज महल देखने गया, वर्ष 2000 की बात होगी, ताजमहल के पिछले हिस्से में मैंने देखा प्रतिभाशाली युवा कलाकारों ने अपना नाम अपनी अपनी प्रेयसियों के नाम के साथ गणितीय इक्वेशन में लिखा हुआ था
जैसे दीपू + सोनम

और लगता है ये सांखियकी इक्वेशन गणितीय रूप में भी और रियल लाइफ में भी अधूरी ही थी न दीपू + सोनम का कोई रिजल्ट था , होना भी नहीं चाहिए था विवाह से पूर्व अन्यथा …वर वधु का स्वागत रहपटो के साथ होता ..

आज के युवाओं ने "राज + पूजा = 143" और "गुड्डू लव्स बबिता" से उसे एक नया आयाम दे दिया है।

सच कहें तो ये दीवारें अब प्रेमपत्र नहीं, प्रेमपत्रों का कब्रिस्तान हैं।
इन कलाकृतियों का सम्बन्ध सीधा युवा मन से होता है, क्या बनेगा, क्या लिखा जाएगा, ये युवा के प्रेम सम्बन्ध के पड़ाव पर निर्भर करता है

इश्क़ की पहली कूची: जब प्रेम अंकुरित होता है----

युवा जब एकतरफा प्रेम के पवित्र चरण में प्रवेश करता है,
तो सबसे पहले उसे दीवार दिखती है – और फिर प्रेमिका।
उसी दीवार पर, बिना किसी सरकारी टेंडर के,
वो गणितीय प्रेम-समिकरण अंकित करता है –
"दीपू + सोनम ”
यह समीकरण इतना गूढ़ होता है कि रामानुजम भी रिजाइन मार दे।

दूसरा चरण: दिल टूटा, ब्रश फूटा-----

प्रेम परिणय निवेदन के रिजेक्ट होने के पश्चात, मन के क्रोध का निस्तारण इन दीवारों पर किया जाता है इसके लिए कभी वो नारी जननांग के चित्र रेखांकित, कभी उन्हें शाब्दिक रूप में लिख लोगो को अपनी अशुद्ध वर्तनी ज्ञान से अवगत कराता है, अथवा उसको किसी रेड लाईट एरिया की वर्कर के रूप में परिभाषित करता है

जब सोनम किसी और की हो जाती है,
तो दीवार से लेकर कागजी मुद्रा उस युवक का कैनवस ऑफ रिवेंज बन जाती है।
अब इश्क के फूल नहीं, गालियाँ अंकित होती हैं –
"सोनम बेवफा है",
"प्रिया = $$% #@&",
"Call Rani @ 98######XX"

नोट:
यदि आपने भी कभी किसी दीवार पर किसी "रज्जो", "बबली" या "पिंकी" का नाम लिखा है,
तो कृपया अगली बार दीवार नहीं, डायरी चुनें –
और सबसे बेहतर, न लिखें!
क्योंकि प्रेम अगर दीवार पर लिखा जाए तो वो न इश्क़ रहता है, न इज़्ज़त।

सरेबाज़ार इश्क़ की नुमाइश हो रही है,
और दीवारें बेचारी बदनाम हो रही हैं।

#सड़कछापप्रेम #दीवारकला #मोहब्बतकीमारकर #प्रेममेंअविवेक
#स्वच्छप्रेमअभियान #लवचित्रकला

बलिया में एक अद्भुत चमत्कार हुआ है। नाचते-नाचते अचानक बेहोश हुई डांसर की ज़िंदगी बब्बन सिंह नामक बीजेपी नेता ने तुरंत CP...
15/05/2025

बलिया में एक अद्भुत चमत्कार हुआ है। नाचते-नाचते अचानक बेहोश हुई डांसर की ज़िंदगी बब्बन सिंह नामक बीजेपी नेता ने तुरंत CPR देकर बचा ली।
स्थानीय जनता तो गदगद है – कह रही है कि "बब्बन भइया तो नेता नहीं, जीवित भगवान हैं।"
अब देखिए, ये कोई साधारण घटना नहीं है। योगी जी को तो चाहिए कि तुरंत इन्हें मंत्री पद दे दिया जाए – स्वास्थ्य मंत्रालय भी चलेगा, संस्कृति मंत्रालय भी।
और भारत सरकार से हमारी विनम्र लेकिन तीखी अपील है –
"अब नहीं दिया तो कब दोगे?"
बब्बन जी को #भारत_रत्न से नवाजा जाए – इससे पहले कि उन्हें खुद CPR की ज़रूरत पड़ जाए!
देश ऐसे ही नायकों से चलता है – जो स्टेज पर गिरी नृत्यांगना में भी राष्ट्र सेवा देख लेते हैं।

मीम संस्कृति और मैंकल रात बैठे-बैठे यूं ही एक मीम (या मीमे — जो चाहे कहो) बना दिया।शेयर नहीं करना चाह रहा था , सोचा राजन...
11/05/2025

मीम संस्कृति और मैं

कल रात बैठे-बैठे यूं ही एक मीम (या मीमे — जो चाहे कहो) बना दिया।
शेयर नहीं करना चाह रहा था , सोचा राजनैतिक हो जाएगा, लोगो की भावना को ठेस लग जायेगी ऐसे भी कथित राष्ट्रवादी लोगो की भावना कुछ अधिक ही कच्ची हैं, फिर सोचा लगे तो लगे ..

इंटरनेट के आने के साथ ही मीम कल्चर की शुरुआत हुई।

काफी खोजबीन के बाद वो मीम मिल ही गया जिसे "पहला मीम" माना जाता है — आप इसे फोटो में देख सकते हैं।

हालांकि, इसे पहला मीम कहना भी थोड़ा संदिग्ध है, क्योंकि कॉमिक्स में ऐसे प्रयोग बहुत पहले से होते रहे हैं।

आपको बता दें, ‘मीम’ शब्द प्राचीन यूनानी शब्द ‘मीमेमा’ का संक्षिप्त रूप है,
जिसका अर्थ होता है — नकल करना या अनुकरण करना।
आज के दौर में मीम सोशल मीडिया पर किसी भी तस्वीर या लेख के ज़रिये
व्यंग्य और हास्य के माध्यम से विचार प्रस्तुत करने का एक लोकप्रिय तरीका बन चुका है।

मीम्स अक्सर मज़ेदार, चुभते हुए और व्यंग्यात्मक होते हैं,
और ये सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर जनता की प्रतिक्रिया का ज़रिया बनते जा रहे हैं।

जिस तरह दीवारों पर ग्राफिटी बनाने वालों को पहले बवाल समझा जाता था
और अब वे स्प्रे-कैन लिए कलाकार कहलाते हैं,
जिनकी कला अच्छी कीमतों पर बिकती है —
वैसे ही, वो दिन भी दूर नहीं जब मीमबाज़ भी
बंस्की, मक़बूल फ़िदा हुसैन,
या कम से कम R.K. Laxman की कतार में खड़े नज़र आएंगे।
सवाल बस इतना रहेगा —
क्या उनके हाथ में पेंटब्रश होगा या लैपटॉप?

ये सब अभी साइकलिंग से आते ही लिख रहा हूँ , कपडे उतार ही रहा था तो विचार आ गया तो ऐसे ही अर्धनग्न अवस्था में .. लिखने बैठ गया ..
"प्रेरणा का कोई टाइमटेबल नहीं होता, और विचारों को कपड़ों से कोई मतलब नहीं!"
बड़े बड़े लेखक टॉयलेट में बैठकर लिखा सोचा करते थे
कला को शर्म नहीं आती,
वो कभी भी, कहीं भी जन्म ले सकती है।
और जो लेखक "संध्या की एकांत छाया में" लिखने की बात करते हैं —
वो असल में सुबह-सुबह बाथरूम में ही सबसे ज़्यादा क्रिएटिव होते हैं।
तो जनाब, अगली बार जब कोई आपको अर्धनग्न देखकर बोले कि "थोड़ी तमीज़ रखो",
तो मुस्कुरा कर कहना —
"मैं विचारशील अवस्था में हूँ, वस्त्रों की ज़रूरत लेखक को नहीं होती है!"

04/03/2025

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27/10/2024
26/10/2024
सस्ती सी देशी साइकल पर दिख रहा ये व्यक्ति प्राइवेट जेट भी साइकल की तरह खरीद सकता है ..वैसे भी, किसी की कुल सम्पत्ति अगर ...
23/10/2024

सस्ती सी देशी साइकल पर दिख रहा ये व्यक्ति प्राइवेट जेट भी साइकल की तरह खरीद सकता है ..

वैसे भी, किसी की कुल सम्पत्ति अगर 18 हज़ार करोड़ रूपए की हो, तो 300 करोड़ रूपए के प्राइवेट जेट विमान खरीदने पर ऑडिटर भी एतराज नहीं करेगा । और जब पैसा अथाह हो तो फिर मुश्किल ही क्या है ?
यूँ भी, लक्ष्मी जब छप्पर फाड़कर धन बरसाती हैं, तो ऐसे फैसले किसी को खर्चीले नहीं लगते। शायद इसलिए एक खरबपति के लिए जेट विमान ख़रीदना ऐसा ही है जैसे किसी मैनजेर के लिए मारुती कार खरीदना।
लेकिन " जोहो कारपोरेशन " (Zoho Corporation ) के चेयरमैन, " श्रीधर वेम्बू " पर लक्ष्मी के साथ साथ सरस्वती भी मेहरबान थीं। इसलिए उनके इरादे औरों से बिलकुल अलग थे।
प्राइवेट जेट खरीदना तो दूर, उन्होंने अपनी कम्पनी बोर्ड के निदेशकों से कहा कि वे अब कैलिफ़ोर्निया (अमेरिका) से जोहो कारपोरेशन का मुख्यालय कहीं और ले जाना चाहते हैं।
श्रीधर के इस विचार से कम्पनी के अधिकारी हतप्रभ थे.. क्यूंकि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के लिए कैलिफ़ोर्निया के बे-एरिया से मुफीद जगह दुनिया में और कोई है ही नहीं। गूगल, एप्पल , फेसबुक, ट्विटर या सिस्को, सब के सब इसी इलाके में रचे बसे, फले फूले।
पर श्रीधर तो और भी बड़ा अप्रत्याशित फैसला लेने जा रहे थे।
वे कैलिफ़ोर्निया से शिफ्ट होकर सीएटल या हूस्टन नहीं जा रहे थे।वे अमेरिका से लगभग 13000 किलोमीटर दूर चेन्नई वापस आना चाहते थे।
उन्होंने बोर्ड मीटिंग में कहा कि अगर डैल, सिस्को, एप्पल या माइक्रोसॉफ्ट अपने दफ्तर और रिसर्च सेंटर भारत में स्थापित कर सकते हैं तो जोहो कारपोरेशन को स्वदेश लौटने पर परहेज़ क्यों है ?
श्रीधर के तर्क और प्रश्नो के आगे बोर्ड में मौन छा गया। फैसला हो चुका था। आई आई टी मद्रास के इंजीनियर श्रीधर वापस मद्रास जाने का संकल्प ले चुके थे।उन्होंने कम्पनी के नए मुख्यालय को तमिल नाडु के एक गाँव(जिला टेंकसी) में स्थापित करने के लिए 4 एकड़ जमीन पहले से खरीद ली थी।और एलान के मुताबिक, अक्टूबर 2019 , यानि ठीक एक साल पहले श्रीधर ने टेंकसी जिले के मथलामपराई गाँव में जोहो कारपोरेशन का ग्लोबल हेडक्वार्टर शुरू कर दिया। यही नहीं, 2.5 बिलियन डॉलर के जोहो कारपोरेशन ने पिछले ही वर्ष सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कारोबार में 3,410 करोड़ रूपए का रिकॉर्ड राजस्व प्राप्त करके टेक जगत में बहुतों को चौंका भी दिया।
स्वदेश क्यों लौटना चाहते थे श्रीधर ?
श्रीधर, अमेरिका की किसी एजेंसी या बैंक या स्टॉक एक्सचेंज के दबाव के कारण स्वदेश नहीं लौटे। उनपर प्रतिस्पर्धा का दबाव भी नहीं था। वे कोई नया व्यवसाय भी नहीं शुरू कर रहे थे। वे किसी नकारात्मक कारण से नहीं, एक सकारात्मक विचार लेकर वतन लौटे। उन्होंने कई वर्ष पहले संकल्प लिया था कि अगर जोहो ने बिज़नेस में कामयाबी पायी तो वे प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा स्वदेश में निवेश करेंगे। कम्पनी के मुनाफे को वे गाँव के बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने पर भी खर्च करेंगे। इसी इरादे से उन्होंने सबसे पहले मथलामपराई गाँव में बच्चों के लिए निशुल्क आधुनिक स्कूल खोले।कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के जानकार श्रीधर गाँव में ही जोहो विश्वविद्यालय भी बना रहे हैं जहाँ भविष्य के सॉफ्टवेयर इंजीनियर तैयार होंगे। फोर्ब्स मैगज़ीन में दिए एक इंटरव्यू में श्रीधर बताते हैं कि टेक्नोलॉजी को अगर ग्रामीण इलाकों से जोड़ा जाए तो गाँव से पलायन रोका जासकता है । " गाँव में प्रतिभा है, काम करने की इच्छा है...अगर आधुनिक शिक्षा से हम बच्चों को जोड़े तो एक बड़ा टैलेंट पूल हमे गाँव में ही मिल जायेगा। इसीलिए मैं भी बच्चों की क्लास में जाता हूँ , उन्हें पढ़ाता भी हूँ। मेरी कोशिश गाँव को सैटेलाइट से जोड़ने की है। हम न सिर्फ दूरियां मिटा रहे हैं, न सिर्फ पिछड़ापन दूर कर रहे हैं , बल्कि शहर से बेहतर डिलीवरी गाँव से देने जा रहे है....प्रोडक्ट चाहे सॉफ्टवेयर ही क्यों न हो , " श्रीधर बताते हैं।
तस्वीरें ज़ाहिर करती हैं कि श्रीधर बेहद सहज और सादगी पसंद इंसान हैं। वे लुंगी और बुशर्ट में ही अक्सर आपको दिखेंगे। गाँव और तहसील में आने जाने के लिए वे साईकिल पर ही चल निकलते हैं।उनकी बातचीत से, हाव भाव से, ये आभास नहीं होता कि श्रीधर एक खरबपति सॉफ्टवेयर उद्योगपति हैं जिन्होंने 9 हज़ार से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है जिसमे अधिकाँश इंजीनियर है। उनकी कम्पनी के ऑपरेशन अमेरिका से लेकर जापान और सिंगापुर तक फैले हैं जहाँ 9,300 टेक कर्मियों को रोजगार मिला है। श्रीधर का कहना है कि आने वाले वर्षों में वे करीब 8 हज़ार टेक रोजगार भारत के गाँवों में उपलब्ध कराएंगे और ग्लोबल सर्विस को देश के नॉन-अर्बन इलाकों में शिफ़्ट करेंगे। शिक्षा के साथ गाँवों में वे आधुनिक अस्पताल, सीवर सिस्टम, पेयजल, सिंचाई, बाजार और स्किल सेंटर स्थापित कर रहे हैं।
एक सवाल अब आपसे
क्या कारण है कि देश में श्रीधर जैसे हीरों की परख जनता नहीं कर पाती ? क्या कारण है कि हम असली नायकों को नज़रअंदाज़ करके छद्म नायकों को पूजते हैं ? श्रीधर चाहते तो आज कैलिफ़ोर्निया में निजी जेट विमान पर उड़ रहे होते, सेवन स्टार लक्ज़री विला में रहते, अपनी कमाई को विदेश में ही निवेश करते जाते ... आखिर उन्हें स्वदेश लौटने की ज़रुरत ही क्या थी? फिर भी उनके त्याग का देश संज्ञान नहीं लेता ?
क्या कीचड़ उछाल और घृणा-द्वेष से रंगे इस देश में अब श्रीधर जैसे लोग अप्रासंगिक हो रहे है ?
या हम लोग इतने निकृष्ट और निर्लज होते जा रहे हैं कि नर में नारायण की जगह नालायक ढूंढने लगे हैं ?
श्रीधर जैसे अनेक ध्रुव तारे आज देश को आलोकित कर रहे हैं पर इन तारों की चमक, समाज को चौंधियाती नहीं है। उनके कर्म, न्यूज़ चैनल की सुर्खियां को रौशन नहीं करते हैं।
और जिन्हे सुबह शाम, रौशन किया जा रहा है वे अँधेरे के सिवा आपको कुछ दे नहीं सकते।
मेरा आग्रह आपसे है
अगर बच्चों का भविष्य बदलना है
तो कुछ देर के लिए न्यूज़ चैनल बंद कीजिये
और
अपने आस पास
अपने गाँव देस में श्रीधर ढूंढिए।
साभार _पीयूष पांडे आज़ाद

https://youtube.com/shorts/N6RZB0oZ5oE
18/10/2024

https://youtube.com/shorts/N6RZB0oZ5oE

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है. यह 3050 मीटर की ऊंचाई पर क्रौंच पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. ....

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