13/06/2025
राष्ट्र का नया धर्म: झूठ
लेखक: एक सत्यवादी झूठ-प्रेमी
देश बदल रहा है, मित्रों! पहले जहाँ सत्य को धर्म कहा जाता था, अब झूठ को राष्ट्रीय धर्म की मान्यता मिल चुकी है — बिना किसी अध्यादेश, बिना किसी बहस, और बिना किसी संसद सत्र के।
झूठ अब पाप नहीं रहा, वह स्किल बन गया है। एक ऐसी soft skill, जो आपको नौकरी भी दिला सकती है, प्रेम भी, वोट भी, और सेल्फी के साथ सम्मान भी। — आप इस दुनिया में कुछ भी सिर्फ तब बन सकते हैं जब एक चीज़ आपको आती हो: झूठ बोलने की बेशर्मीपूर्ण कला।
अब देखिए, दिल्ली चुनावों के बाद यह पूरी तरह से प्रमाणित हो चुका है कि अगर आपको जनता से कुछ चाहिए — वोट, पैसा, या भरोसा — तो आप बस तारीख दे दीजिए: "20 तारीख को सबके खाते में ढाई हजार रुपया आ जाएगा।" अब कौन सी बीस तारीख साल तो बताया नहीं? देश की सोच अब स्प्रिचुअल हो चुकी है — मतलब, चीजें दिखती नहीं, महसूस की जाती हैं।
झूठ बोले कौवा कटा, लेकिन अब कोंवों को प्रमोशन मिलता है राजगद्दी मिलती है
झूठ के प्रकार
राजनीतिक झूठ:
"हम ढाई हजार हर माह की बीस तारीख को आपके खाते में देंगे।"
(बाद में खाते का मतलब भावनाओं का खाता निकलता है)
प्रेम संबंधी झूठ:
"मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ।"
(जबकि पीछे बैकअप प्लान भी एक्टिव है - वरना मेघालय ट्रिप भी की जा सकती है)
सोशल मीडिया झूठ:
"Feeling blessed in Manaali – "
(असल में साथ का लड़का मालदीव घूम रहा है तो दवाब में मनाली आ गया)
संस्कारी झूठ:
"यार मैं ये सब नहीं करती।"
(सीधी साधी बस चार लोगो के सामने)
इंटरव्यू में स्किल नहीं, स्क्रिप्ट चाहिए
अगर आप किसी इंटरव्यू में जा रहे हैं और आपसे पूछा गया कि "Python आती है?"
तो बस मुस्कुराइए और कहिए:
"Python क्या सर, मैंने तो अजगर को भी कोड करना सिखाया है।"
आजकल रिज्यूमे से ज्यादा कॉन्फिडेंस बिकता है। झूठ बोलिए, मन से, तन से, और बड़े सपनों से — बस आंखें न झपकाइए।
घर से निकलना है? झूठ का पासपोर्ट बनाइए---
अगर मनाली जाना है और मम्मी पूछें "इतनी ठंड में क्यों?" तो कहिए:
"सरकारी प्रदुषण डेटा कलेक्शन का प्रोजेक्ट है, हिमाचल में पहाड़ों की ऊंचाई मापनी है। धुंवे पर रिसर्च करनी हैं"
मम्मी तुरंत नया स्वेटर निकालेंगी, पापा ATM कार्ड पकड़ा देंगे — और आप 'कसोल' में ट्रैकिंग नहीं, ट्रिपिंग करते हुए इंस्टा स्टोरी अपलोड कर सकते हैं और आस पास धुंवा भी उड़ रहा होगा तो वो स्वीकार्य होगा।
उधार लो, झूठ से भरोसा खरीदो
पैसा चाहिए? कोई बात नहीं। चाय वाले से लेकर चांदी वाले तक, हर दुकान में जाकर कहिए:
"भाई बस तीन दिन की बात है, फिर डबल दूंगा, तेरे जैसे को तो मैं भूलता ही नहीं।"
और अगले दिन सिम कार्ड बदल लीजिए — या फिर नाम।
दुनिया इतनी बड़ी है, इतनी जनसँख्या है की एक आदमी नाराज हो भी गया तो पचास नए खड़े है . आप मस्त रहिये
क्योंकि झूठ अब रास्ट्रीय धर्म है
अगर कोई पकड़ ही ले तो?
कोई बोले की तुम्हारी नौकरी कब लगेगी बता दीजिये अगले महीने ही पोस्टिंग है आई ए एस की
बोलने में क्या जाता है , जनता की याददाश्त एक हफ्ते की होती है और अगर कोई याद दिलाये भी तो आपके पास बहानों की एक किताब होनी चाहिए
और अगर सामने वाले की यादाश्त महंगाई के इस जमाने में भी बिना बादाम खाए तेज है
तो आप सत्तापक्ष बन जाइए। कहिए:
"मुझे तो पोस्टिंग मिल गई थी लेकिन एक मित्र ने कहा कि ‘आईएएस बनकर तुम सरकारी मशीन बन जाओगे’, तो इसलिए मैं आत्ममंथन कर रहा हूँ किसी ने कहा भी है बनना है तो घुमक्कड़ बनो राहुल सान्क्र्तायन की तरह या फिर पकोड़ा तलों
लोग सहानुभूति देंगे, कुछ ताली भी बजायेंगे। एक आधे ने सवाल उठा भी दिया तो कह दीजिए:
"आप राहुल गांधी समर्थक लगते हैं, बार बार बेरोजगारी का सवाल उठा रहे हैं।"
निष्कर्ष (या कहिए – स्वर्णिम संदेश)
इस बदलते भारत में अब रामायण की जरूरत नहीं, अब "रामायण ऑफ़ रील्स" का दौर है। राम अगर आज होते तो शायद बोले होते – "झूठ बोलो लेकिन दृढ़ता से।" क्योंकि अब रावण भी कहता है, "जो दिखता है, वही बिकता है — और जो नहीं दिखता, वो झूठ है, और वही हमारा नया धर्म है।"
तो उठिए, जागिए — और झूठ बोलिए, क्योंकि सत्य तो अब आरआईपी मोड में है।
🙏
झूठ ही जीवन है, जीवन ही झूठ है — जय रास्ट्रीय धर्म!
कृपया गंभीरता से न लें (क्योंकि लेखक ने भी नहीं लिया है)
यह लेख झूठ पर आधारित है, और झूठ भी ऐसा कि झूठ खुद शरमा जाए। इसमें जो कुछ भी लिखा गया है, वह पूर्ण रूप से लेखक की कल्पना, कुंठा, और कटाक्ष-प्रेरित फैंटेसी का नतीजा है। इसका किसी जीवित व्यक्ति, मृत आत्मा, राजनीति, रिश्तेदारी या पड़ोसी के कुत्ते से भी कोई संबंध नहीं है।
अगर नाम "राम" आया है तो कृपया उसे अपना भगवान न मानिए — यह राम 'डेली डेली झूठ बोलने वाला रामलाल' हो सकता है। और अगर आपको लगे कि लेखक आपके नेता, अभिनेता, प्रेमी, या प्रोफेसर की बात कर रहा है — तो वह आपकी समस्या है, लेखक की नहीं।
कृपया इसे दिल पर न लें।
दिल की जगह इसे व्हाट्सएप स्टेटस पर रखें, या कहीं सँभाल कर रख लें —
क्योंकि समय कठिन है, और ह्यूमर की जरूरत हर युग से ज़्यादा अब है।
इससे किसी जीवित मृत व्यक्ति की भावनाए आहत न हो - वैसे मृत व्यक्ति की भावनाए आहत कैसे हो सकती है ये कोई ज्ञानवर्धन करे ..
नमस्कार आपका यायावर - सफ़ेद झूठ प्रेमी
#यायावर #यायावरी #झूठ_राष्ट्रीय_धर्म
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