
16/08/2025
श्री कृष्ण का जन्म भले ही आंसुओं की ध्वनि से हुआ, पर वे आंसु करुणा के नहीं, बल्कि शताब्दियों से व्याकुल हृदयों में आशा की पहली आहट थे। उनके रुदन ने देवकी वसुदेव की पीड़ा में संतोष का संचार किया, जैसे किसी तपस्वी को अंततः तप का फल मिल गया हो।
कृष्ण केवल जन्मे ही नहीं, वे जन्म से ही बांटना जानते थे। खुशियां, प्रेम, आश्वासन और मुक्तिदायिनी आस्था। नारायण जानते थे कि इस लोक में सबसे अधिक अपरिहार्य "सांत्वना" है। इसीलिए वे दुखों और कष्टों को हरने के लिए अवतरित हुए। कृष्ण का जन्म केवल देवकी और वसुदेव की पीड़ा को ही हरने के लिए नहीं हुआ था। वे नंद व यशोदा के लिए पुत्र बने, गोप गोपियों के लिए सखा, ग्वालबालों के लिए मार्गदर्शक, अर्जुन के लिए सारथी और संपूर्ण मानवता के लिए धर्म का आधार। उन्होंने सिखाया कि त्याग केवल व्रत नहीं, बल्कि जीवन की शैली है। उन्होंने बताया कि दूसरों की प्रसन्नता में प्रसन्न होना ही परम भक्ति है।
कृष्ण जिनके भी इष्ट हैं, उनके जीवन में कभी निराशा नहीं टिक सकती। क्योंकि कृष्ण केवल भगवान नहीं, जीवन के रस हैं, संतुलन हैं, उत्सव हैं। व्रज की गलियों से लेकर कुरुक्षेत्र के रण तक, कृष्ण ने बस यही सिखाया कि जीवन चाहे जैसा हो, उसे पूर्णता से जिया जाए। स्मरण रहे कि दीवार चाहे कितनी ही कठोर हो, आशा और आनंद का प्रकाश जन्म ले ही लेता है।
#बड़हिया_डाइजेस्ट की ओर से आप सभी साथियों सज्जनों गुणी व सुधीजनों को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की मंगलमय शुभकामनाएं...✍️
#बड़हिया