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14/06/2025

संयम हेतु मूलाधार चक्र-
इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के तेज की अभूतपूर्व वृद्धि होती है। वह ब्रह्मचर्य को सिद्ध कर डालता है ।
उसके भीतर वीरता, निर्भीकता और सतत् आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। चमत्कारिक या भौतिक
सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना आवश्यक भी है। यह लेख दो विद्वानों का मिश्रित रूप है।
मूलाधार चक्र की साधना से सौंन्दर्य प्राप्ति के साथ साथ तेजस्विता तो व्याप्त होती ही है ,परम शिवा सहस्रार चक्र तक जाने वाला सम्पूर्ण सिद्घियों का राजपथ का प्रारम्भिक द्घार भी खुलने लगता है।
मानव देह के गुह्मदेश से दो अगुंल ऊपर और लिड्गमूल से दो अंगुल नीचे चार अंगुल विस्तृत जो योनि मण्डल है, उसके ऊपर ही मूलाधार पध अवस्थित है,यही मानव शक्ति का आधार चक्र है। आम तौर पर यह शक्तियां नीचे की तऱफ अग्रसर रहती हैं। यह ऊर्जा पुरूषों में वीर्य और स्त्रियों में रज का रूप धारण करके लिंग व योनि प्रदेश की तरफ प्रवाहित होती है। यदि इसे अधोमुखी होने से रोक कर ऊर्ध्वमुखी कर दिया जाये तो यही शक्ति श्रेष्ठता प्रदान करने लगती है। मानव से देवत्व प्राप्त करने की प्रक्रिया यही से शुरू हो जाती है। देवों के देव महादेव तक पहुचनें का रास्ता खुलने लगता है। मोक्ष का द्धार मूलाधार चक्र से ही खुलता है।
यह चक्र रक्त वर्ण वाले चार दलों के कमल स्वरूप , रंग सोने के समान सुन्दर है। ये चारों मन के चार कार्य है। पहला स्थान शिव धर्म प्राण, स्नायु तंत्र है।
दूसरा शक्ति चामुंडा, तनाव मुक्ति।
तीसरा सूर्य, काम शक्ति है।
और
चौथा सौंदर्य वाणी।
सहस्राधार चक्र मोक्ष इस चक्र के अंदर त्रिकोण में कुछ और शक्तियां समाहित है। परन्तु विकारों तथा पाप ग्रस्त होने के कारण इस चक्र की ऊर्जा क्षीण हो जाती है। मंत्र और साधना द्घारा ही मुलाधार चक्र की शक्ति को जाग्रत करके कुंडलिनी शक्ति तक पहुंचा जाता है।
मुलाधार चक्र में मुख्य रूप से चार दलों के चार बीज होते हैं,
वं ,
शं,
षं,
सं।

इस पध् के अन्दर अष्ट शूल शोभित चतुष्कोण पृथ्वी मंडल होता है, जिसके एक ओर लं बीज विधमान होता है। इसके अन्दर पृथ्वी बीज के प्रतिपाद्य हाथी पर सवार चतुभूर्ज इन्द्र विराजित है। इन्द्र की गोद में शिशु रूपी ब्रम्हा जी हैं। ब्रह्मा की गोद में रक्तवर्ण , चर्तूभुजा और सांलकृता डाकिनी देवी शक्ति रूपा विराजमान है।

लं बीज के दक्षिण भाग में कामकला रूप लाल रंग का त्रिकोण मण्डल स्थित है, जिसके अन्दर तेजोमय क्लीं बीज स्थित है, इसी के अन्दर ठीक ब्रह्मानाडी के मुख पर स्वयंभुलिंग विद्यमान है। यह शिवलिंग लाल रंग का और हजार सुर्यों के समान तेजोमय होता है ,इसी शिवलिंग पर साढे तीन फेरे लगाये हुऐ कुण्डलिनी शक्ति विद्यमान है।

वं– पहले दल का बीज इसके द्घारा ही शरीर में रस- प्राण शक्ति वृद्घि तथा स्नायु तंत्र चैतन्य होता रहता है।

शं– रूप आत्मिक और मानसिक सोन्दर्य प्राप्त होता है तथा शरीर तनाव मुक्त होता है।

षं– मज्जा पुष्ट होती हैं तथा शरीरिक बल वृद्घि होती रहती है।

सं– सोन्दर्य वृद्घि, चुम्बकीय व्यक्तित्तत्व प्राप्त हेता है।

साधना के बाद मुलाधार चक्र जाग्रत अवस्था में आने पर, धीरे-धीरे इस चक्र की सुप्त शक्तियां स्पंदन करने लगती है, जैसे जैसे स्पन्दन में वृद्घि होती है यह अगले चक्र स्वाधिष्ठान की और अग्रसर होता है,उस चक्र पर स्थित शक्तियों का जागरण करता है। यही क्रम प्रत्येक चक्र के साथ चलता है।
शरीर के सातचक्र ही मनुष्य का जीवन है।
मूलाधार से सहस्रार तक -
[1] मूलाधार चक्र : बीज मंत्र : " लं

चक्र के देवता- भगवान गणेश
चक्र की देवी – डाकिनी जिसके चार हाँथ हैं, लाल आँखे हैं।
तत्व – पृथ्वी
रंग – गहरा लाल
बीज मंत्र – ‘ लं ‘
यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच 4 पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9 प्रतिशत लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।

चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है- यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।

अन्य चक्र संदर्भ भी देख ही लीजिए।

[2] स्वाधिष्ठान चक्र : बीज मंत्र : " वं "
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चक्र के देवता- भगवान विष्णु
वस्त्र चमकदार सुन्दर पिला रंग
चक्र की देवी- देवी राकनी ( वनस्पति की देवी ) नीले कमल की तरह
तत्व – जल
रंग – सिंदूरी, कला, सफ़ेद
बीज मंत्र – ‘ वं ‘
यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी 6 पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।

कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।

प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।

[3] मणिपुर चक्र : बीज मंत्र : " रं "
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देवता- रूद्र तीन आँखों वाले सरीर में विभूति सिंदूरी वर्ण
देवी- लाकिनी सब का उपकार करने वाली रंग काला वस्त्र पिले हैं देवी आभूषण से सजी अमृतपान के कारण आनंदमय हैं।
तत्व- अग्नि
रंग- पीला
बीज मंत्र- ‘ रं ‘
नाभि के मूल में स्थित यह शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।

कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।

प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।

[4] अनाहत चक्र : बीज मंत्र : " यं "
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देवता – ईश् श्री जगदम्बा ( शिव-शक्ति )
देवी- काकनी सर्वजन हितकारी देवी का रंग पीला है, तीन आँखे हैं चार हाँथ हैं।
रंग- हरा, नीला, चमकदार, किरमिजी
तत्व- वायु
बीज मंत्र- ‘ यं ‘
हृदयस्थल में स्थित द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।

कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।

प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

[5] विशुद्ध चक्र : बीज मंत्र : " हं "
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देवता – सदाशिव रंग सफेद, तीन आँखे, पञ्च मुख, दस भुजाएं
देवी – सकिनी वस्त्र पिले चन्द्रमां के सागर से भी पवित्र तत्व
रंग – बैगनी
तत्व- आकाश
बीज मंत्र – ‘ हं ‘
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो 16 पंखुरियों वाला है। सामान्य तौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।

कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर 16 कलाओं और 16 विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

[6] आज्ञाचक्र : बीज मंत्र : ह और क्ष
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आत्मा और परमात्मा ( स्व और ईश्वर )
रंग – सफेद
बीज मंत्र – ‘ ॐ ‘
तत्व – मन का तत्व ( अनुपद तत्व )
भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।

कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति सिद्धपुरुष बन जाता है।

[7] सहस्रार चक्र : बीज मंत्र : " ॐ "
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भगवान – शंकर
रंग – बैंगनी
बीज मंत्र – ' ॐ '
तत्व – सर्व तत्व ( आत्म तत्व )
सहस्रार = हजार , असंख्य, अनंत
सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।

कैसे जाग्रत करें : मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।

प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।

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गणपति साधना का महत्व;-

1- साधना के जरिए ईश्वर की कृपा प्राप्ति और साक्षात्कार के मुमुक्षुओं के लिए गणेश उपासना नितान्त अनिवार्य है। इसके बगैर न तो जीवन में और न ही साधना में कोई सफल हो सकता है। समस्त मांगलिक कार्यों के उद्घाटक एवं ऋद्धि-सिद्धि के अधिष्ठाता भगवान गणेश का महत्व वैदिक एवं पौराणिक काल से सर्वोपरि रहा है।भारतीय संस्कृति में गणेश ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सर्वप्रथम पूजे जाते हैं। उन्हें ‘गणपति-गणनायक’ की पदवी प्राप्त है। ‘ग’ का अर्थ है- जीवात्मा, ‘ण’ का अर्थ है- मुक्तिदशा में ले जाना तथा ‘पति’ का अर्थ है- आदि और अंत से रहित परमात्मदशा में लीन होने तक की कृपा करने वाले देव।

2- 'रुद्रयामल तंत्र' में साधना-मार्ग पर बढ़ने वाले साधकों के निमित्त महागणपति साधना नितांत आवश्यक मानी गई है। महागणपति की साधना इष्ट सिद्धि, विघ्ननाश एवं द्रव्य प्राप्ति के लिए अत्यंत उपयोगी कही गई है। शास्त्रों में गणपति का सूक्ष्म रूप ‘ओंकार’ है तथा स्वास्तिक चिन्ह को गणपति का प्रतीक माना जाता है अर्थात स्वास्तिक उनका प्रतिरूप है। चूंकि ‘ग’ बीजाक्षर है, अतः यह समूचे स्वास्तिक चिन्ह का संक्षिप्त रूप है। इस प्रकार गणेश जी की मूर्ति अथवा चित्र तथा स्वस्तिक अथवा ‘ग’ बीज- किसी की भी पूजा की जाए, वह गणपति की ही पूजा होगी और उसका पूर्ण फल प्राप्त होगा।

3- गणपति साधना के तीन माध्यम हैं- मूर्ति (प्रतिमा या चित्र), यंत्र और मंत्र।श्रीमहागणपति मन्त्र में गणपति का ” गं ” बीज है और ” ग्लौं ” बीज भी है । गं बीज गणपति तत्व जागृत करता है और ग्लौं बीज …भूमि-वराह का कारक होने से वो जागतिक विश्व विस्तार का प्रतीक है।गणपति साधना

अत्यंत महत्वपूर्ण है।ये एकमेव ऐसी श्रेष्ठ साधना है जो आपको भौतिक कर्मो से मुक्ति देने में सक्षम है क्योंकि बाकी कोई देवता कर्म नष्ट नही करते ।

साधक को आगे की साधना के पथ पर आरोहण करने के लिए , साधक के जो कुलदोष पितृदोष है ,गणपति उसका निवारण करते हैं।जिससे कुल-पितरो के आशीर्वाद मिलते हैं; बिना इनके आशीर्वाद कोई साधना आगे नही बढ़ती हैं ।

4- श्री महागणपति साधना में बहुत सारे साधको को प्रथमतः शरीर के हड्डियों के सन्धियों , जोड़ो में सामान्य दर्द होता हैं ,आलस्य निद्रा भी आनी शुरू होती हैं , एक जड़त्व आना शुरू होता है ,अतः साधना में ये लक्षण शुरू होना आवश्यक हैं।क्योंकि , मनुष्य के शरीर की संधि जोड़ो में ही कुल-पितृदोष की नकारात्मक ऊर्जा समायी रहती हैं ;जिसको वो खींचना शुरू करते हैं।बहुत कम साधको को इसमे हवा में तैरने जैसे अनुभव आते हैं;या चैतन्यता का अनुभव होता हैं ।

5- श्री महागणपति को तीन नेत्र है ,ये त्रैलोक्य ज्ञान आधिष्ठता रूप में दिखते हैं ,जैसे दसमहाविद्या और शिव।हात में अनार है , ये अनार अनेकों ब्रम्हांडो को अपने अंदर दाने दाने की तरह लेकर अपनी प्रतिष्ठा दिखाता है।मस्तक पर जो चन्द्रचूड़ामनी है वो 16 कलाओ युक्त है।दोनों कनपटियों से झरने वाले मद जल को पीने वाले भुंगो को वो अपने लंबे कान हिलाये ,दूर कर रहे हैं ।सूंड में अमृतकलश है , जो आपको मनचाहा वरदान तथा अमरत्व देने योग्य है।ये सब चिन्ह श्रीमहागणपति की उच्चतम श्रेष्ठता दिखाते है।

6- गणेशजी की कृपा प्राप्ति के लिए इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह गणेशजी के किसी भी छोटे से मंत्र या स्तोत्र का अधिक से अधिक जप करे तथा मूलाधार चक्र में गणेशजी के विराजमान होने का स्मरण हमेशा बनाए रखे। इससे कुछ ही दिन में गणेशजी की कृपा का स्वतः अनुभव होने लगेगा।गणेश प्रतिमाओं का दर्शन विभिन्न मुद्राओं में होता है लेकिन प्रमुख तौर पर वाम एवं दक्षिण सूण्ड वाले गणेश से आमजन परिचित हैं। इनमें सात्विक और सामान्य उपासना की दृष्टि से वाम सूण्ड वाले गणेश और तामसिक एवं असाधारण साधनाओं के लिए दांयी सूण्ड वाले गणेश की पूजा का विधान रहा है।

7- तत्काल सिद्धि प्राप्ति के लिए श्वेतार्क गणपति की साधना भी लाभप्रद है। ऐसी मान्यता है कि रवि पुष्य नक्षत्रा में सफेद आक की जड़ से बनी गणेश प्रतिमा सद्य फलदायी है।देश में गणेश उपासना के कई-कई रंग देखे जा सकते हैं। यहां की प्राचीन एवं चमत्कारिक गणेश प्रतिमाएं व मन्दिर दूर-दूर तक गणेश उपासना की प्राचीन धाराओं का बोध कराते रहे हैं।

● उच्छिष्ट गणपति साधना करने में अत्यन्त सरल, शीघ्र फल को प्रदान करने वाला, अन्न और धन की वृद्धि के लिए, वशीकरण को प्रदान करने वाला भगवान गणेश जी का ये दिव्य तांत्रिक साधना है । इसकी साधना करते हुए मुँह को जूठा रखा जाता है एवं सुबह दातुन भी करना वर्जित है ।

उच्छिष्ट गणपति साधना को जीवन की पूर्ण साधना कहा है। मात्र इस एक साधना से जीवन में वह सब कुछ प्राप्त हो जाता है, जो अभीष्ट लक्ष्य होता है। अनेक इच्छाएं और मनोरथ पूरे होते हैं। इससे समस्त कर्जों की समाप्ति और दरिद्रता का निवारण,निरंतर आर्थिक-व्यापारिक उन्नति,लक्ष्मी प्राप्ति,रोजगार प्राप्ति,भगवान गणपति के प्रत्यक्ष दर्शनों की संभावना भी है। यह साधना प्रयोग किसी भी बुधवार को रात्री मे संपन्न किया जा सकता है।

साधक निम्न सामग्री को पहले से ही तैयार कर लें, जिसमें जल पात्र, केसर, कुंकुम, चावल, पुष्प, माला, नारियल, दूध,गुड़ से बना खीर, घी का दीपक, धूप-अगरबत्ती, मोदक आदि हैं। इनके अलावा उच्छिष्ट गणपति यंत्र और मूंगे की माला की आवश्यकता होती ही है।

सर्वप्रथम साधक, स्नान कर,लाल वस्त्र पहन कर,आसन भी लाल रंग का हो, पूर्व/उत्तर की ओर मुख कर के बैठ जाए और सामने उच्छिष्ट गणपति सिद्धि यंत्र को एक थाली में, कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर, स्थापित कर ले और फिर हाथ जोड़ कर भगवान गणपति का ध्यान करें।

विनियोग :

ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोलऋषि:, विराट छन्द : उच्छिष्टगणपति देवता सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग: ।

ध्यान मंत्र:

सिंदुर वर्ण संकाश योग पट समन्वितं लम्बोदर महाकायं मुखं करि करोपमं अणिमादि गुणयुक्ते अष्ट बाहुत्रिलोचनं विग्मा विद्यते लिंगे मोक्ष कमाम पूजयेत।

ध्यान मंत्र बोलने के बाद अपना कोइ भी एक इच्छा बोलकर यंत्र पर एक लाल रंग का पुष्प अर्पित करे।

द्वादशाक्षर मन्त्र :

।। ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।।

om hreeng gang hasti pishaachi likhe swaha

मंत्र का नित्य 21 माला जाप 11 दिनो तक मूंगे की माला से करना है

अंत में अनार का बलि प्रदान करें।

बलि मंत्र:-

।। ॐ गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणेशाय महायक्षायायं बलि: ।।

अंत में शुद्ध घृत से भगवान गणपति की आरती संपन्न करें और प्रसाद वितरित करें। इस प्रकार से साधक की मनोवांछित कामनाएं निश्चय ही पूर्ण हो जाती हैं और कई बार तो यह प्रयोग संपन्न होते ही साधक को अनुकूल फल प्राप्त हो जाता है।
कलियुग मे यह साधना शीघ्र फलदायी है

07/06/2025

√•जिसके भाग्य में अपने बनाये घर में नहीं रहना है, वह कैसे अपने घर में रहेगा ? जिसके भाग्य में दोषयुक्त वास्तु है, उसे दोषयुक्त घर मिलेगा । वास्तुविद् दोषयुक्त घर में रहता है। वास्तु से अनभिज्ञ निर्दोष घर में रहता है। यह सब भाग्य अथवा चतुर्थ भाव (सुख) का खेल है। इसे जान कर जो शान्त रहता है, वह ज्ञानी है। उसे मेरा नमस्कार।

√•कहा जाता है शिव ने विवाहोपरान्त पत्नी पार्वती के लिये विश्वकर्मा से कह कर सुन्दर वास्तु का निर्माण लंका द्वीप पर करवाया। गृहप्रवेश के लिये उन्होंने एक ब्राह्मण पुरोहित रावण का चयन किया। रावण को शिव का यह घर बहुत अच्छा लगा। गृह प्रवेश का कर्मकाण्ड होने के पश्चात शिव ने उससे दक्षिणा मांगने को कहा। रावण ने दक्षिणा में उनका यह घर ही माँग लिया। शिव ने यह घर दे दिया। पुनः सभार्या वे कैलाश पर जाकर हिमगुफा में रहने लगे। शिव प्रकृतिपुत्र हैं। वह इन्हें सदैव अपनी गोद में रखेगी, कृत्रिम वास्तु में नहीं। यही दशा विष्णु जी की है। वे अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ अनन्त सर्प के फण की छाया में उसी की देह पर लेटते हैं। उन्हें एकान्त मिलता नहीं। इसलिये लक्ष्मी से उनका सहवास कभी होता नहीं। अतएव वे निःसंतान हैं। रहने के लिये घर नहीं और रखे हैं दो पलियाँ । कहते हैं...

"श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च द्वे पल्यौ।"
(यजु ३१/ २२ )

√•विष्णु को दो पत्नियाँ हैं। न चारपाई है, न ओढ़ना है, न बिछौना है, न भूमि है। रहते हैं, समुद्र में। सर्प की शय्या है, उसके फन की छत है। लक्ष्मी जी से पैर दबवाते हैं, श्री को अपने वक्ष से चिपकाये रहते हैं। बहुत ठीठ हैं। गरुण पर बैठ कर आकाश में घूमते हैं। जब बच्चा पैदा करने की इच्छा होती है तो अवतार ग्रहण करते हैं। उचित भी यही है। देवियाँ गर्भ धारण नहीं करतीं पुत्रवान् होने के लिये भूमि पर आना पड़ता है। यहाँ घर मिलता है। विष्णु जी राम बन कर अयोध्या में आते हैं। लक्ष्मी को सीता बनाते हैं। वही विष्णु कृष्ण बन कर मथुरा में आते हैं लक्ष्मी जी रुक्मिणी बनती हैं। राम के रूप में विष्णु मर्यादित हैं, कृष्ण के रूप में अमर्यादित। हम इन के दोनों स्वरूपों को सम्मान देते हैं।

√•शिव जी निगृही होकर दो पत्नियों के स्वामी हैं-गंगा च पार्वती च जैसे विष्णु श्री को अपनी छाती से चिपकाये रहते हैं, वैसे ही शिव जी भी गंगा को अपने सिर पर जटा में छिपाये रखते हैं। गंगा उन्हें शीतलता देती है, शान्त रखती है। पार्वती को वे अपने बायें पार्श्व में रखते हैं शिवजी का वाहन बैल है। इस दिव्य वृष पर बैठ कर शिव जी आकाश में विचरते हैं। यह वृष सपक्ष है, इसलिये उड़ता है। शिव जी सन्तानवान् हैं। इसलिये उन्हें सन्तान सुख के लिये धरती पर अवतार नहीं लेना पड़ता उनके ६ मुख और १२ आँखों वाला एक पुत्र है, जिसे स्कन्द कहते हैं। यह देवताओं का सेनापति है। यह शिव और पार्वती के संसर्ग से उत्पन्न हुआ है, किन्तु पार्वती ने इसे अपने गर्भ में नहीं रखा। यह अग्नि के गर्भ में सदैव रहता है। ६ कृत्तिकाएँ (दाइया) इसकी माता (पालन कर्त्री) हैं। इसलिये इसे कार्तिकेय कहते हैं। ६ अतुओं एवं १२ मासों वाला संवत्सर (काल) ही कार्तिकेय है। यह हमारे लिये पूज्य है।

√• शिव जी का स्वेद (पसीना) श्री है। विष्णु के चरण की धोवन (जल) गंगा है। श्री को विष्णु का वक्षस्थल रहने के लिये मिला है। गंगा को शिव का शिर आवास हेतु प्राप्त है। धरती पर नर्मदा नदी श्री है तथा गंगा नदी ब्रह्म द्रव (विष्णु की चरण धोवन) है। हम इन दोनों नदियों को पूजते (अति सम्मान देते) हैं। शिव ने ताण्डव नृत्य किया। उससे जो पसीने की बूंदें गिरी, वे श्री हैं। विष्णु ने बलि के राज्य को लेने के लिये भू से ब्रह्म लोक तक जो अपना पैर फैलाया तो ब्रह्मा जी ने उनका पैर धोकर अपने कमण्डल में रख लिया। यही गंगा है। पसीना कौन पियेगा ? चरण को धोवन कौन पिये गा ? भक्त गण इन्हें पीते हैं। श्री युक्त होने से विष्णु को श्रीधर कहा जाता है। अपनी जटा में गंगा को रखने से शिव को गंगाधर नाम से जाना जाता है। शिव के अनन्य भक्त ही उनके पुत्र है। विष्णु के अनन्य सेवक उनको सन्तान हैं। भक्त का घर ही शिव का निवास है। सेवक का निवास ही विष्णु का घर है। देवता सर्वव्यापक होता है। नाना कथनोपकथनों से यही सिद्ध होता है कि शिव और विष्णु एक ही हैं। तत्वतः सभी एक हैं, सब में अभेद है। किन्तु व्यवहार में नानात्व है। इसी से संसार है जो सबको घर देता है, उसके पास घर नहीं होता है। जो सब को पुत्र देता है, उसके पुत्र नहीं होता। जो सबको धन देता है वह निर्धन होता है। जो सबको जन्म (देह) देता है, वह अजन्मा (विदेह) होता है। इस सत्य को जो जानता है, वह इन वस्तुओं के अभाव से कभी क्षुब्ध नहीं होता। ऐसी मति वाले को मेरा नमस्कार।

√• प्रत्येक घर सीमित होता है उसकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई या विस्तार निश्चित होता है इसलिये उस घर में रहने वाले मनुष्य भी अपने संसाधनों से सीमित होते हैं। मनुष्य की आयु सीमित है, परिवार सीमित है, शक्ति सीमित है, इन्दियाँ सीमित हैं, बुद्धि सीमित है, किन्तु मनुष्य को इच्छाएँ सीमित नहीं हैं। इस कारण उसके सुखों एवं दुःखों को सीमा भी निश्चित नहीं है। मनुष्य का शरीर सीमित है। इसमें रहने वाला मन सीमित नहीं है। असीमित मन की इच्छाएँ कैसे सीमित रह सकती हैं ? जिसने अपने मन को सीमित कर लिया, उसकी इच्छाएँ भी सौमित हो जाती हैं। इससे उसके सुखों एवं दुखों का पारिसीमन हो जाता है। प्रत्येक सुख अपने पीछे एक दुःख रखता है। दुःख को क्षीण करने के लिये सुख को क्षोण करना होता है। इसके लिये तप एवं आचरण की मर्यादा है। प्रत्येक गृहस्थ को इस मर्यादा में रहना चाहिये। मर्यादा पुरुषोत्तम राम गृहस्थधर्म के आदर्श हैं। जीवन में रामलीला का महत्व है, कृष्ण लीला का नहीं। घर में रहते हुए सन्तानों की उत्पत्ति होती है, वंश वृद्धि होती है। घर में रह कर उत्पन्न सन्तानों का पालन पोषण रक्षण किया जाता है। घर में वास करते हुए व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त करता है। इस प्रकार घर उत्पादक पालक एवं संहारक देवता है। इसलिये यह स्थूल ब्रह्म (सृष्टिकर्ता) स्थूल विष्णु पालनकर्ता) तथा स्थूल शिव (संहर्ता) है। ऐसे घर को मेरा नमस्कार।

√•घर समस्त देवतओं का आश्रय है। घर के पूर्वीभाग में इन्द्र अपनी शक्ति शची के साथ निवास करते हैं। घर के आग्नेय भाग में अग्निदेवता अपनी शक्ति स्वाहा के साथ वर्तमान होते हैं। घर के दक्षिण भाग मे यम देव अपनी शक्ति ज्वाला के साथ विराजमान होते हैं। घर के नैर्ऋत्य भाग में निर्भूति देव अपनी शक्ति कृत्या के साथ शोभायमान होते हैं। घर के पश्चिम भाग में वरुण देवता अपनी शक्ति ज्येष्ठा के संग राजते हैं। घर के वायव्य भाग में वायु देवता अपनी शक्ति गति के साथ विद्यमान होते हैं। घर के उत्तरी भाग में वित्तपति कुबेर अपनी शक्ति निधि के साथ रमण करते हैं। घर के ईशान भाग में दक्षिणामूर्ति शिव अपनी शक्ति गौरी के संग क्रीडारत रहते हैं। घर के मध्य भाग में प्रजापति ब्रह्मा अपनी शक्ति वाणी के संग नित्य विहार करते हैं। घर के नीचे के भूभाग में जगद्धारक भगवान अनन्त अपनी शाक्ति मूला के साथ प्रतिष्ठित होते हैं। घर के ऊपर अच्छादन भाग में भगवान विष्णु अपनी शक्ति लक्ष्मी से संयुक्त होकर योगनिद्रा में प्रतिष्ठित रहते है। घर के अन्तराकाश में मन बुद्धि एवं इन्द्रियों द्वारा होने वाली समस्त क्रियाओं के अवलोकन कर्ता भगवान् चित्रगुप्त अपनी शक्ति प्रज्ञा के साथ नित्य वर्तते हैं। अन्य सभी देवगण इन्हीं द्वादश देवों के सायुज्य को प्राप्त कर घर के कोने-कोने को आवृत किये रहते हैं। ऐसे सर्वदेवमय घर को मेरा नमस्कार।

√• घरमें रह कर हम जो कुछ भी करते हैं, वह सब इन देवताओं को प्राप्त होता है। वे देवता हमारे पुण्यापुण्य कर्मों को ग्रहण कर उन्हें पचाते हैं। कालान्तर में वे उनका विस्तार कर हमें फल के रूप में प्रदान करते हैं। हम इन फलों के षड्सों का आस्वादन करते हुए अपने भीतर नाना प्रकार के भावों को प्राप्त कर सुख वा दुःख का अनुभव करते हैं। जैसे उर्वर भूमि में बीज बो कर हम कालान्तर में उससे अधिक बीज पाते हैं, वैसे ही हम घर (शरीर) में रहते हुए एक पुण्य वा पाप कर के अनेक पुण्य वा पाप के भागी होते हैं। क्योंकि एको बहुधाभि जायते एक ही अनेक रूपों में प्रकट होता है। अतएव घर में रहते हुए हमें महाजनो येन गतः स पन्थाः अर्थात् महापुरुषों द्वारा आचरित मार्ग का अनुसरण करना चाहिये। गृह को नमस्कार गृह के देवता को नमस्कार गृहाधिदेव को नमस्कार।
#त्रिस्कन्धज्योतिर्विद्

18/03/2025

#शान_से_सीनियर

“मुझे एक्टिव रहना पसंद है और मेरा मानना है कि अगर आप के पास कोई हॉबी या हुनर हो, तो उसे इस्तेमाल करना ही चाहिए। एक बार आप शुरुआत कर लेते हैं, तो फिर उम्र कोई मायने नहीं रखती।”

मुंबई में अपने बेटे तुषार और बहु प्रीति के साथ रहनेवाली कोकिला पारेख कभी एक सामान्य गृहिणी और माँ की तरह घर का काम देखती थीं। उनके घर में आया कोई भी मेहमान उनके स्पेशल मसाले से बनी चाय पिए बिना वापस नहीं जाता, और जाते-जाते थोड़ा सा मसाला अपने साथ भी पैक करके ले जाता।

लॉकडाउन के समय जब कोई कोकिलाबेन के घर नहीं आ सकता था, और ना वह कहीं आ-जा पा रही थीं; तब उनके पास काफी खाली समय था। इसका उपयोग करने के लिए, उन्होंने अपने चाय मसाले को बिज़नेस में बदलने के बारे में सोचा।

कोकिला ने अक्टूबर 2020 में अपने परिवार की मदद से एक छोटे से चाय मसाला बिज़नेस की शुरुआत की और इस तरह 79 की उम्र में जीवन की एक नई पारी की शुरुआत भी कर दी। उन्होंने अपने और अपने बेटे तुषार के नाम को मिलाकर इसका नाम ‘KT चाय मसाला’ रखा।

जिस समय, उन्होंने इस चाय मसाला को बेचना शुरू किया था, उस वक्त हर घर में कोरोना के डर से लोग काढ़ा बनाकर पी रहे थे। ऐसे में कोकिला को लगा कि उनका मसाला लोगों की इम्युनिटी बढ़ाने का काम भी करेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही। देखते ही देखते उनका मसाला देश भर में बिकने लगा।

आज कोकिला हर दिन 500 से ज्यादा चाय मसाला के पैकेट्स बेच रही हैं, जो 50 ग्राम, 100 ग्राम और 250 ग्राम के पैकेट्स में आते हैं और इनकी कीमत 125 रुपये से लेकर 625 रुपये तक है।

उन्होंने अपने इस चाय मसाला बिज़नेस में भी सिर्फ उन महिलाओं को काम दिया है, जो काफी गरीब परिवार से आती हैं।

आज 80+ की उम्र में अपने हुनर और सोच के कारण वह एक सफल बिज़नेसवुमन हैं।

14/03/2025

**"जो लोग राजाओं को ताज पहनाते हैं, वे खुद राजा नहीं दिखते; सावधान रहें!!"**
एक गरीब आदमी ने 40 साल की उम्र में एक किताब लिखी और उसे अपने जन्मदिन पर लॉन्च करने का फैसला किया। उसके पास लॉन्चिंग के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उसने अपने समुदाय के एक करोड़पति से मदद मांगने का फैसला किया।
वह करोड़पति के घर गया और बातचीत के बाद उसने अपनी समस्या बताई। करोड़पति ने उसे एक कागज और कलम निकालने को कहा और कहा, "मैं तुम्हें एक परीक्षा दूंगा। अगर तुम पास हो गए, तो मैं तुम्हें पैसे दूंगा और अगर फेल हो गए, तो भी मैं तुम्हें पैसे दूंगा।"
फिर उसने उस आदमी से 10 लोगों के नाम लिखने को कहा जो उसकी किताब के लॉन्च पर 10 हज़ार रुपये दे सकते हैं। हैरानी की बात यह थी कि वह आदमी 3 नाम भी नहीं लिख पाया।
अब, एक गिलास पानी पीजिए और मैं आपको कुछ बताता हूँ...
**केवल प्रतिभा और कौशल होना ही काफी नहीं है। आपको मूल्यवान रिश्ते बनाने की शक्ति को समझना होगा।**
एक बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा था, *"आपका नेटवर्क सीधे आपकी नेट वर्थ के समानुपाती होता है।"*
**रिश्ते एक मुद्रा हैं।**
रिश्ते आय का एक स्रोत हैं। जीवन में हर चीज़ रिश्तों के आधार पर ही आगे बढ़ती है।
देखिए, *इस जीवन में कौन आपको पसंद करता है, यह मायने रखता है।*
लोगों को लोगों के माध्यम से ही ऊपर उठाया जाता है।
*हम में से कई लोग प्रतिभाशाली हैं, लेकिन हमारे पास एक ऐसा व्यक्ति नहीं है* जो राजा को बता सके कि एक यूसुफ है जो सपनों का अर्थ बता सकता है।
*इस जीवन में आप किसे जानते हैं, यह बहुत मायने रखता है।* यह मत कहिए कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पड़ता है।
कुछ ऊंचाइयाँ और अवसर आप कभी हासिल नहीं कर पाएंगे, अगर आप *मूल्यवान रिश्ते बनाए रखने की शक्ति* को नहीं समझेंगे।
जब वे कहते हैं, *कभी-कभी मुड़कर अपने पड़ोसी को नमस्ते कहें*, तो आपको पता भी नहीं होता कि आप किससे बात कर रहे हैं।
वह किसी कंपनी का CEO हो सकता है। लेकिन कभी-कभी, *हम लोगों को उनके बाहरी रूप के आधार पर नीचा समझते हैं और गलत निर्णय लेते हैं।*
इस बुद्धिमत्ता को समझें जो मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
जिस व्यक्ति के साथ आप बैठते हैं, या जो सहकर्मी आपको काम पर नीची नज़र से देखते हैं, वे ही आपको आपके भाग्य सहायक तक ले जा सकते हैं, क्योंकि आपको पता नहीं है कि वे किसे जानते हैं।
कभी-कभी, सिर्फ एक सिफारिश आपकी कहानी बदल सकती है।
*जीवन में किसी को भी नीचा न समझें।* आपको एक दिन उनकी जरूरत पड़ सकती है।
कभी-कभी *जो लोग राजाओं को ताज पहनाते हैं, वे खुद राजा नहीं दिखते* और शायद कभी राजा नहीं बनें, लेकिन वे आपको ताज पहनाने में मदद कर सकते हैं।
फिर से,
रिश्तों के दरवाजे को धीरे से बंद करें; हो सकता है कि आपको कल इसकी आवश्यकता पड़े।
कृपया हर छोटे व्यक्ति को महत्व दें, क्योंकि हो सकता है कि वही व्यक्ति आपको ताज पहनाए!
*किसी भी समूह या वातावरण में आपकी पूर्ण भागीदारी भविष्य में उस समूह की आवश्यकता पड़ने पर बहुत कुछ कहेगी।*
**चलो यह न भूलें:
हर कोई एक प्लस है!!**
तरोताजा रहें ✌️
---
यह संदेश हमें याद दिलाता है कि जीवन में रिश्ते और नेटवर्किंग का कितना महत्व है। छोटे-बड़े हर व्यक्ति को महत्व देना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी वही लोग हमारे जीवन में बड़े बदलाव ला सकते हैं।

14/02/2025

शादी को मारने वाले कारण... 👇

1. आलस्य शादी को मारता है।

2. संदेह शादी को मारता है।

3. विश्वास की कमी शादी को मारती है।

4. आपसी सम्मान की कमी शादी को मारती है।

5. नफरत, कड़वाहट, द्वेष, और गुस्सा शादी को मारते हैं।

6. बेवजह की बहसें शादी को मारती हैं।

7. अपने साथी से राज छिपाना शादी को मारता है।

8. विश्वासघात (आर्थिक, मानसिक, भावनात्मक, भौतिक आदि) शादी को मारता है।

9. खराब संवाद शादी को मारता है।

10. झूठ शादी को मारते हैं; हर पहलू में अपने साथी के साथ ईमानदार रहें।

11. अपने साथी के मुकाबले माता-पिता/परिवार को प्राथमिकता देना शादी को मारता है।

12. अंतरंगता की कमी या आनंदहीनता शादी को मारती है।

13. ज़्यादा नखरे शादी को मारते हैं।

14. ज्यादा बात करना और असावधानी से बोलना शादी को मारता है।

15. अपने साथी के साथ कम समय बिताना शादी को मारता है।

16. अत्यधिक स्वतंत्र सोच शादी को मारती है।

17. पार्टी करना, पैसे, आवेगपूर्ण खरीदारी और वित्तीय अनुशासनहीनता शादी को मारते हैं।

18. अपने साथी की कमियों को माता-पिता या भाई-बहनों के सामने लाना शादी को मारता है।

19. आध्यात्मिक अभ्यासों को नज़रअंदाज करना और एक साथ प्रार्थना न करना सिर्फ शादी को नहीं, बल्कि जीवन को भी नुकसान पहुंचाता है।

20. सुधार और फटकार को नकारना शादी को मारता है।

21. हमेशा उदास चेहरा रखना और मूडी रहना शादी को मारता है।

22. अत्यधिक नारीवादी विचार शादी को मारते हैं।

23. पुरुषवादी सोच शादी को मारती है।

24. असंयमित गुस्सा और क्रोध शादी को मारते हैं।

25. शादी में अपनी भूमिका और जिम्मेदारी को न समझना, जैसा कि भगवान ने निर्धारित किया है, शादी को मारता है।

26. अपने साथी की आध्यात्मिक, भावनात्मक और शारीरिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज करना शादी को मारता है।

27. अपने साथी की सुरक्षा को खतरे में डालना शादी पर नकारात्मक असर डालता है।

28. भगवान के वचन का ज्ञान और पालन न करना शादी को मारता है।

01/12/2024

एलन मस्क: वो इंसान जिसने असंभव को संभव कर दिखाया

एलन मस्क, एक ऐसा नाम जो कल्पना से परे सोचता है और उसे हकीकत में बदल देता है। बचपन में जिन्हें लोग "Daydreamer" कहते थे, वो आज दुनिया के सबसे बड़े इनोवेटर्स और करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। उनकी कहानी संघर्ष, मेहनत, और जुनून का एक ऐसा मेल है, जो हर किसी को अपनी ओर खींचता है।

कौन हैं एलन मस्क?
28 जून 1971 को दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में जन्मे एलन मस्क बचपन से ही विज्ञान और टेक्नोलॉजी में दिलचस्पी रखते थे। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने एक वीडियो गेम "ब्लास्टार" बनाया और इसे 500 डॉलर में बेच दिया। स्कूल में वे अक्सर बुलींग का शिकार हुए, लेकिन उनका फोकस कभी नहीं टूटा।

जब उनसे पूछा गया कि वे इतने बड़े सपने कैसे देखते हैं, तो उनका जवाब था, "अगर आपको बदलाव चाहिए, तो आपको उसकी शुरुआत खुद करनी होगी।"

उनकी अद्भुत सफलताएँ

1. पेपल (PayPal):
1999 में, उन्होंने X. com की शुरुआत की, जो आज के ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम का आधार बना। बाद में, यह PayPal बन गया और eBay ने इसे 1.5 बिलियन डॉलर में खरीद लिया।

2. स्पेसएक्स (SpaceX):
जब लोगों ने कहा कि प्राइवेट कंपनी के जरिए अंतरिक्ष में जाना असंभव है, तो एलन मस्क ने स्पेसएक्स की स्थापना की।

-2008:पहला सफल रॉकेट लॉन्च।

- 2012:उनका रॉकेट ड्रैगन, अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन तक पहुंचा।

-2020:स्पेसएक्स ने नासा के एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में भेजा, जो पहली बार किसी प्राइवेट कंपनी ने किया।

उनका सपना है मंगल ग्रह पर इंसानी बस्ती बसाना।

3. टेस्ला (Tesla):
गाड़ियों का भविष्य टेस्ला की वजह से बदला। उन्होंने इलेक्ट्रिक कार को न सिर्फ पॉपुलर बनाया बल्कि इसे लक्ज़री और स्टाइलिश भी बना दिया। टेस्ला की "Model S" और "Model 3" ने दुनियाभर में EV क्रांति ला दी।

4. न्यूरालिंक और बोरिंग कंपनी:
- न्यूरालिंक:इंसानी दिमाग को कंप्यूटर से जोड़ने की टेक्नोलॉजी। यह बीमारियों के इलाज और भविष्य में सुपर-इंटेलिजेंट बनने की दिशा में एक कदम है।
- बोरिंग कंपनी:शहरों में ट्रैफिक की समस्या खत्म करने के लिए अंडरग्राउंड हाई-स्पीड ट्रांसपोर्ट सिस्टम।

एलन मस्क: एक विज़नरी सोच के मालिक

एलन मस्क का कहना है:

"अगर आप इतिहास में देखेंगे, तो वे लोग जिन्होंने दुनिया बदली, वे वही थे जो असंभव के पीछे भागे।"

उनकी सोच उन्हें दूसरों से अलग बनाती है। चाहे अंतरिक्ष में बस्ती बसाना हो, पर्यावरण को बचाने के लिए इलेक्ट्रिक कार बनाना हो, या दिमाग को कंप्यूटर से जोड़ना—मस्क ने हर बार साबित किया कि उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं।

मस्क के दिलचस्प पहलू

-काम का तरीका:एलन दिन में 8-10घंटे काम करते हैं। वे कहते हैं,

"अगर आप दूसरों से दोगुना काम करते हैं, तो आप आधे समय में उनका दोगुना हासिल कर लेंगे।"

- मजाकिया अंदाज:ट्विटर पर उनकी मीम्स और पोस्ट हमेशा चर्चा का विषय रहती हैं।

-जोखिम उठाने की हिम्मत: उन्होंने टेस्ला और स्पेसएक्स पर अपनी पूरी संपत्ति दांव पर लगा दी थी, लेकिन उनका भरोसा और मेहनत रंग लाई।

निष्कर्ष: हर सपना पूरा हो सकता है

एलन मस्क की कहानी हमें सिखाती है कि अगर आप सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए जी-जान लगा देते हैं, तो आप नामुमकिन को मुमकिन बना सकते हैं। उनकी जिंदगी का हर पन्ना एक प्रेरणा है, जो हमें भी हमारे लक्ष्य तक पहुंचने की ताकत देता है।

"आप असफल हो सकते हैं। लेकिन अगर आप कोशिश नहीं करेंगे, तो आप कभी नहीं जान पाएंगे कि आप क्या कर सकते हैं।”- एलन मस्क

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