21/05/2025
बहुत ही अद्भुत टीवी प्रजेंटर और जर्नलिस्ट हैं राबिया शबनम् जी Rafia Shabnam je। उनके शो Talk to Shabnum का मेहमान बनने का मौका मिला। मीडिया, राजनीति और मौजूदा हालात पर बहुत ही सार्थक चर्चा हुई। सुनिये इस खास पोडकास्ट को और जानिए मेरे बारे में, भविष्य की योजनाओं के बारे में और मौजूदा हालात के बारे में।
शुक्रिया – धन्यवाद टीम टॉक टू शबनम्।
Podcast India
Dainik Bhaskar Upja Press Club Bareilly
/ .PawanSaxena
https://youtu.be/q-whaXgelhM?si=QjQFYvWGaCgXMMGl
मीडिया और राजनीति पर खुलकर बोले जाने माने पत्रकार डा.पवन सक्सेना
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सत्ता किसी की हो... सवाल उसे डराते हैं .................................
चतुराई भरी बेइमानी कर रहा है आज का मीडिया
जनता को नागरिक से प्रजा बनाने की कोशिश, लोग खुद समझें – जिम्मेदार बनें ...........................
चुनाव लड़ने के फैसले के लिए सही टाइमिंग जरूरी
मेरे हिसाब से एक विधायक को संवेदनशील होना चाहिए
बरेली। जाने माने पत्रकार डा. पवन सक्सेना का जानी मानी टीवी प्रजेंटर राफिया शबनम ने इंटरव्यू किया। इंटरव्यू उऩके बहुचर्चित शो – टॉक टू शबनम के लिए किया गया है। इस शो में पवन सक्सेना ने अपनी जीवन यात्रा, अपने बिजनेस, अपनी मीडिया की जर्नी को खुलकर बताया। साथ ही राजनीति और भविष्य की योजनाओं पर भी खुलकर बात की। मीडिया की अंदर की दुनिया के भी धागे खोले गए। इस इंटरव्यू की ट्रांस स्क्रिप्ट कुछ इस प्रकार है।
- आपका बहुत लम्बा चौड़ा इंट्रोडेक्शन है। आपने क्या – क्या किया है, हम आप से ही जानना चाहते हैं।
जी जर्नलिज्म में मेरी जर्नी शुरु हुई साल, 93 के आसपास से। पहले एक सांध्य दैनिक में काम किया। फिर अमर उजाला चला गया। अमर उजाला में दस साल काम किया फिर दैनिक जागरण में दस ग्यारह साल। कुछ वक्त नव भारत टाइम्स में काम किया। अब दैनिक भास्कर के साथ हूं। हमारा अखबार लखनऊ से प्रिंट होता है। कई बड़े मीडिया हाउस के साथ फ्री लांस काम भी किया है। बीच में छोड़ दिया और बिजनेस भी संभाला।
- आपने कई किताबों को भी लिखा है।
जॉब के साथ साथ मैने सबसे पहले अपने विषय की पढ़ाई पूरी की। मेरा मानना है कि कम्पलीटनेस होनी चाहिए। लकीली मुझे अमर उजाला जैसा गौरवशाली संस्थान मिला। जहां चैयरमेन आदरणीय राजुल माहेश्वरी जी ने मेरी पढ़ाई के कुछ पार्ट को स्पांसर भी किया। फिर मैने एमजे, एमफिल व पीएचडी की। पीएचडी दैनिक जागरण छोड़ने के बाद की। कुछ किताबे लिखीं जो मीडिया एथिक्स व सिटीजन जर्नलिज्म जैसे विषयों पर आधारित हैं।
- आप एक सफल बिजनेसमैन हैं। ऐसा कैसे कर पाते हैं, एकसाथ मीडिया भी, व्यापार भी राजनीति भी।
एक पेड़ को देखिये, जब नेचर यानी कुदरत बीज को जमीन में रौपती है तब वह पूरी ताकत से आसमान छूने के लिए निकल पड़ता है। हम इंसान अपने पेड़ को बड़ा नहीं करते। मेरी कोशिश रहती है कि मल्टीपिल और मल्टी डाइमेंशनल वर्किंग को किया जाये। मीडिया में जब आया था सोचा था सब ऐसे ही चलेगा मगर नहीं हुआ। जल्द समझ आया व्यापार भी जरूरी है। मेरी बिजनेस बैकग्राउंड नहीं है। फिर भी जमाया। कोशिश की मीडिया पूरी तरह से छोड़ दूं, बाहर जाऊं। मगर नहीं हो सका। मेरा पहला प्यार, फर्स्ट लव तो मीडिया ही है।
- आपको कई एवार्ड भी मिले।
स्टेट्समैन देश का बड़ा अखबार है। वर्ष 2002 या तीन की बात है। उन्होंने कोलकाता में बुलाया एक बहुत बड़े समारोह में नार्दन इंडिया में बेस्ट होने का एवार्ड दिया तब मैं अमर उजाला में था। हौसला बढ़ता है। स्टेट्समैन ने भारत में जर्नलिज्म की परंपरा को काफी कंट्रीब्यूट किया है।
- तीस साल का आपका कैरियर है, तब और आज के मीडिया में क्या फर्क है।
उतना ही, जितना जमीन और आसमान का। जब शुरु किया तब यह स्कूल आफ थाट था। अमर उजाला में ट्रेनिंग सख्त होती थी मगर माहौल में कोजीनेस नहीं था। स्वतंत्रता थी। धीरे धीरे जर्नलिस्ट इंफ्ल्यूऐंसर बनता चला गया। मीडिया कंपनियों को भी आज शायद जर्नलिस्ट की जरूरत नहीं है।
- क्या मीडिया पतन की और है।
देखिये, वैसे तो कभी मीडिया का कोई स्वर्ण काल नहीं रहा है। हम जहां तक पहुंचे थे, अब ढलान पर महसूस होते हैं। मगर कुछ उम्मीदे भी हैं – जैसे आप या आप जैसे हमारे सैकड़ों और दूसरे भाई बहन। जो आल्टरनेटिव मीडिया दे रहे हैं। अगर आपके अंदर कंटेट की ताकत है तब टेक्नोलाजी आपको सहारा देने के लिए तैयार है आपको किसी कंपनी पर डिपेंड होने की जरूरत नहीं है।
- कहते हैं, आज का मीडिया गोदी मीडिया है। अगर यह गोदी मीडिया है, तब किसकी गोदी में है।
आपके सवाल में ही जवाब छिपा है। आपके बहुत सारे चाहने वाले दर्शकों को जवाब मालूम है। मीडिया समाज में होने वाले परिवर्तनों का गवाह होता है। हमेशा उसका इस्तेमाल हुआ है। लेकिन कई बार यह गोदी में बैठ भी जाता है और गोदी से उतर भी जाता है, लेकिन,.... यह शेर की सवारी है... जो जितनी कर ले।
- देश की सरकार चुनने में क्या मीडिया का महत्व है।
देश की सरकार जो चुनते हैं, उनके यानी जनता के मन को बनाने में मीडिया का रोल है। नरेटिव यानी धारणा का निर्माण करना। एक डिजाइन को समझिए – एक तरफ आईक्यू घटा दें दूसरी तरफ मतलब की बातें मन पर चिपका दें। कुछ ऐसे भी काम होता है।
- आपने कहा आईक्यू घटा दें, इसका क्या मतलब है।
हम सेंटर भी खड़े होकर सभी विचारों को समझें फिर अपनी पसंद के विचार के साथ जाने का फैसला करें। एक तरीका। दूसरा – हम किसी दूसरे विचार की हवा भी आपके पास से ना गुजरने दें तब जो दिखेगा वही आपको सच लगेगा। बात को थोड़ा और इनहेंस करता हूं – वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इनडेक्स में हम 180 देशों की सूची में 151 नम्बर पर आये हैं। आप समझ सकते हैं। कुछ अपवाद छोड़ दें तब हम इनोवेशन नहीं कर पाते, क्योंकि खुश नही हैं, आजादी महसूस नहीं होती। यह सब चीजें आपस में बारीकी से जुड़ी हैं। कह सकते हैं हम डिजीटल इंडिया हैं मगर हम वास्तव में डिजीटल यूजर इंडिया हैं।
- आपने कहा हम डिजीटल इंडिया नहीं, डिजीटल यूजर इंडिया हैं
हम 64 – 65 परसेंट युवाओँ का देश है। ईश्वर की बहुत कृपा है हम पर। एक देश के रूप में बहुत एनर्जी है हमारे पास। मगर यह किस दिशा में जाये। यह समझना जरूरी है। हर बात में सरकार को दोष देना भी ठीक नहीं, समाज को भी जागना होगा।
- क्या किसी शख्सियत को बनाने बिगाड़ने में मीडिया का रोल होता है।
जी हैं, है। कैमिस्ट्री में एक कैटिलिस्ट होता है – उत्प्रेरक। दो रसायन के बीच क्रिया को बढ़ाता व घटाता है। मीडिया वही उत्प्रेरक है। वह बना भी सकता है बिगाड़ भी सकता है।
- सुशांत सिंह या आर्यन खान जैसे मामलों में मीडिया ट्रायल हुआ। क्या यह ठीक था।
एक डिजाइन को समझिए। हमने देश की जनता को एक दो महीने तक मुख्य मुद्दों से दूर रखा। उत्तेजना पैदा की। राजनीति का एक फार्मूला होता है – समझाओ नहीं भड़काओ। यहां चतुराई भरी बेइमानी हुई है।
- क्या मीडिया मुख्य मुद्दों को दबा रहा है। आज जो फिल्मे बन रही हैं, जैसे केरला स्टोरी, छावा या और ....लोग सिनेमाघर में ही लड़ने लगते हैं।
देखिये, मीडिया का एक बड़ा हिस्से इसे प्रोडेक्ट मानता है। वह वही बनायेगा जिसकी डिमांड है। यही फिल्मों के साथ भी है। उलझाने वाला तो उलझायेगा। यह जनता की जिम्मेदारी है वह समझे। हम फ्यूचरिस्टिक यानी भविष्य की बात नहीं करते। इतिहास का बोझ बहुत है। जर्मनी से सीखिए। वर्ल्ड वार किया, करोड़ो मारे। आज जर्मनी में कोई हिटलर या नाजी का नाम नहीं लेता। आगे बढ़ गए। समय काल परिस्थियों में हुए फैसलों को छोड़कर आगे बढ़ना होगा। तभी हम एक महान देश का निर्माण कर सकेंगे।
- लोगों ने सारे काम नेताओँ पर छोड़ दिए हैं।
जिम्मेदारी लोगों की भी है। मैं नहीं कहता आंदोलन करिए। अपने विधायक को एक चिट्ठी ही लिख दीजिए। किसी सरकारी स्कूल की पढ़ाई या सरकारी अस्पताल की दवाई की चिंता कर लीजिए। नहीं तो आप बड़ी मुश्किल से प्रजा से नागरिक बने हैं, दोबारा नागरिक से प्रजा बन जायेंगे।
- आपने देश के बड़े बड़े नेताओं से इंटरव्यू किये, कैसा अनुभव रहा।
90 के दशक के बाद के देश के जितने भी देश के बड़े लीडर्स हुए हैं, मुझे सौभाग्य मिला मैं उनसे बात कर पाया, कवर कर सका। बहुत लोग ऐसे थे, जो बाकई में बड़े हैं। व्यक्तित्व सरल। आन रिकार्ड आफ रिकार्ड खूब बात होती थी। मैने अटल जी, आडवानी जी, मुलायम सिंह यादव जी, मायावती जी, राजनाथ सिंह जी, जार्ज साहब और ना जाने कितनी प्रमुख हस्तियों को कवर किया। इंटरव्यू किये।
- आपने अटल जी का जिक्र किया। उनके दौर की राजनीति और आज का फर्क क्या है।
वह मध्यमार्ग पर चलने का दौर था। जो महात्मा बुद्ध हमें समझा गए। अभी का दौर मध्य मार्ग का नहीं है या तो आप दोस्त हैं या फिर दुश्मन।
- फिर यह तो खराब है
नहीं, खराब नहीं है, इसमें से भी रास्ते निकलते हैं।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आपके अंदर की हिम्मत से आती है। सत्ता किसी की हो, सत्ता को सवाल पसंद नहीं होते। सत्ता सवाल से घबराती है। यह आपको सोचना है कि आपके अंदर के सवाल जिंदा हैं या मर गए हैं। एक बहुत लोकप्रिय वाक्य है कि डरा हुआ पत्रकार मरे हुए नागरिकों का निर्माण करता है।
- मीडिया के अंदर क्या चलता है।
सब कुछ चलता है। जातिवाद चलता है, घनघोर, क्षेत्रवाद चलता है। अपने पराये चलते हैं। कुछ लोग मुझे माफ करेंगे मगर यह सच्चाई है। हालांकि अपवाद भी होते हैं, उसकी एक विंडो हमेशा खुली रहती है मगर ज्यादातर चमकते चेहरे फैसले मैरिट पर नहीं करते – अपने पराये पर करते हैं। डिसीजन मेकर्स को मैरिट भी देखनी चाहिए।
- 2022 में आप राजनीति में गए, टिकट मांगा। कैसा लगा।
राजनीति में आने के लिए नहीं, मित्रों, शुभचिंतको की इच्छा थी, इसलिए उस रास्ते पर आगे बढ़े। मीडिया भी एक तरीके से पालिटिक्स का ही एक पार्ट होती है। परदे के पीछे या परदे के आगे... तो सोचा आगे आया जाये। अच्छा अनुभव हुआ – सीखने को मिला। कुछ जो दोस्त थे दुश्मन हो गये। कुछ, जो दूर से दुश्मन लगते थे पता चला दोस्त हो गए। कुछ वक्त बाद खुद को रोक लिया। हालांकि मित्रों, शुभचिंतकों की इच्छा इसमें आगे बढ़ने की है।
- आप 2027 में चुनाव लड़ेंगे, किस पार्टी से।
(हंसते हुए), यह सब डिसाइड करनेका अभी वक्त नहीं है, मेरा मानना है पालिटिक्स में टाइमिंग का बहुत महत्व है, अगर बाल आने से पहले बल्ला उठा दोगे तो आउट हो जाओगे। देखेंगे, जैसी सभी चाहने, प्यार करने वालों की इच्छा होगी।
- आपको एमएलए बनना है, आप एमएलए बनकर क्या करना चाहते हैं।
इस सवाल को थोड़ी दूसरी तरह से लेता हूं, एक एमएलए को क्या करना चाहिए, रोल माडल कैसा हो। मेरा मानना है कि सड़क पर सड़क और नाली पर नाली विकास नही है, प्रोसेस है। हालांकि यह भी जरूरी है मगर एक विधायक को अपने क्षेत्र की खुशहाली समृद्धि के लिए काम करना चाहिए। मुझे लगता है मैं पर कैपिटा इनकम पर काम हो। अगर क्षेत्र में चार साढ़े चार लाख वोटर है और करीब एक लाख घर हैं तब यह मानिए कि हर घर तक समृद्धि और खुशहाली का आना बेहद जरूरी है। नेताओं को जनता के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। महसूस करने वाला। रिश्ता बनाने वाला। ऐसा मुझे लगता है।
- आपको बेहतर भविष्य की बहुत बहुत शुभकामनायें।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
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