14/07/2025
कानूनी नोटिस का जवाबदिनांक: 14 जुलाई 2025
प्रति: श्री बी.एम. शर्मा, अधिवक्ता
विषय: श्रीमती कल्पना अग्रवाल की ओर से भेजे गए कानूनी नोटिस का जवाब महोदय, मैं, सरदार चरणजीत सिंह, स्वामी, मुद्रक, प्रकाशक, और संपादक, दैनिक रुस्तम-ए-हिंद हिंदी समाचार पत्र, आपके द्वारा मेरी मुवक्किल श्रीमती कल्पना अग्रवाल की ओर से भेजे गए कानूनी नोटिस के जवाब में निम्नलिखित बिंदु प्रस्तुत करता हूँ: नोटिस में लगाए गए आरोपों का खंडन:
आपके नोटिस में मेरे और अन्य नोटिस प्राप्तकर्ताओं पर 13.03.2004 को प्रकाशित लेख के माध्यम से श्रीमती कल्पना अग्रवाल की मानहानि करने का आरोप लगाया गया है। मैं स्पष्ट रूप से इन आरोपों का खंडन करता हूँ। उक्त लेख दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन की प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर प्रकाशित किया गया था, जो एक विश्वसनीय और जिम्मेदार संगठन है। हमारा उद्देश्य समाज को सत्य और जनहित की जानकारी देना था, न कि किसी की मानहानि करना।
मुकदमे का रद्द होना:
आपके नोटिस में उल्लेखित तीस हजारी कोर्ट में चल रहे मुकदमे को माननीय न्यायालय ने श्रीमती कल्पना अग्रवाल की अनुशासनहीनता के कारण रद्द कर दिया था। इससे स्पष्ट होता है कि आपकी मुवक्किल का आचरण न्यायालय में भी संदिग्ध और अनुचित रहा है। इसके बावजूद, हमने आपकी मुवक्किल से किसी भी प्रकार का मुआवजा नहीं माँगा, जो हमारी निष्पक्षता और नैतिकता को दर्शाता है।
श्रीमती कल्पना अग्रवाल के आचरण पर प्रश्न:
यह सर्वविदित है कि श्रीमती कल्पना अग्रवाल लंबे समय से अनधिकृत रूप से चिकित्सा व्यवसाय में संलग्न रही हैं, जो दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन द्वारा ब्लैकलिस्ट किए जाने से भी प्रमाणित होता है।
स्वर्गीय डॉ. अहलूवालिया के अनुसार, श्रीमती कल्पना अग्रवाल ने अपने एक अवैध सहयोगी के साथ मिलकर उनके सरिता विहार स्थित फ्लैट पर कब्जा करने का प्रयास किया था।
श्रीमती अग्रवाल के अनुचित व्यवहार के कारण उनकी सास का निधन हो गया, और उनके पति और बच्चा भी उनके व्यवहार से त्रस्त हैं।
श्रीमती अग्रवाल ने दिल्ली उच्च न्यायालय में भी हमारे खिलाफ मुकदमा दायर किया था, जहाँ माननीय न्यायालय ने हमें बाइज्जत बरी किया। इसके बावजूद, हमने कोई मुआवजा नहीं माँगा।
वकालत का अनधिकृत उपयोग:
यह समझ से परे है कि श्रीमती कल्पना अग्रवाल ने किस प्रकार वकालत का लाइसेंस प्राप्त किया। उनकी गतिविधियाँ और आचरण स्पष्ट रूप से संदिग्ध हैं, और वह वकालत के पेशे का भी दुरुपयोग कर रही हैं। उनकी ओर से बार-बार ब्लैकमेल करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जो उनके चरित्र और इरादों को उजागर करता है।
हमारी स्थिति और कर्तव्य:
हमारा समाचार पत्र, रुस्तम-ए-हिंद, समाज को सत्य और जनहित की जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमने जो भी खबर प्रकाशित की, वह पूरी तरह से दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन की प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित थी और समाज के भले के लिए थी। हमारा उद्देश्य जनता को जागरूक करना और अनैतिक गतिविधियों को उजागर करना है, न कि किसी को नुकसान पहुँचाना।
मुआवजे की माँग:
आपकी मुवक्किल ने वर्षों से मुझे और मेरे सहयोगियों को परेशान किया है, जिसके कारण मेरा समय, धन और प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुँचा है। मैंने आपकी मुवक्किल से किसी भी प्रकार का मुआवजा नहीं माँगा, परंतु उनके निरंतर ब्लैकमेल और अनुचित व्यवहार के कारण, मैं अब मजबूरन माँग करता हूँ कि श्रीमती कल्पना अग्रवाल मुझे कम से कम पाँच करोड़ रुपये का मुआवजा दें। साथ ही, उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी माँगनी होगी। यदि यह माँग पूरी नहीं की गई, तो मैं कानूनी कार्रवाई करने और उनके सभी अनैतिक और अवैध कार्यों को उजागर करने के लिए बाध्य होऊँगा।
न्यायालय और बार एसोसिएशन से अपील:
मैं माननीय तीस हजारी कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार, तीस हजारी बार एसोसिएशन, और दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन से अपील करता हूँ कि जिस प्रकार दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन ने श्रीमती कल्पना अग्रवाल को अनधिकृत चिकित्सा कार्यों के लिए ब्लैकलिस्ट किया था, उसी प्रकार उनके वकालत लाइसेंस पर भी प्रतिबंध लगाया जाए। उनकी गतिविधियाँ वकालत के पेशे की गरिमा को ठेस पहुँचाती हैं और समाज के लिए हानिकारक हैं।
आपके लिए सलाह:
मैं आपसे, एक सम्मानित अधिवक्ता के रूप में, अनुरोध करता हूँ कि आप अपनी मुवक्किल के अनैतिक और ब्लैकमेल करने वाले व्यवहार से सावधान रहें। यह संभावना है कि वह भविष्य में आपको भी परेशान कर सकती हैं। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप इस आधारहीन नोटिस को वापस लें और बिना साक्ष्यों के आधार पर की जा रही वकालत से बचें।
कानूनी कार्रवाई की चेतावनी:
यदि श्रीमती कल्पना अग्रवाल द्वारा मुझसे सार्वजनिक माफी नहीं माँगी जाती और पाँच करोड़ रुपये का मुआवजा नहीं दिया जाता, तो मैं कानूनी कार्रवाई करने और उनके सभी अवैध कार्यों को उजागर करने के लिए बाध्य होऊँगा। मैं उनके वकालत लाइसेंस को रद्द करवाने और उनके कुकृत्यों को समाज के सामने लाने के लिए हर संभव प्रयास करूँगा। साथ ही, मैं माननीय तीस हजारी कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार से उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की सिफारिश करूँगा।
आपके नोटिस में माँगे गए 21,000/- रुपये के नोटिस शुल्क को मैं पूरी तरह से अस्वीकार करता हूँ, क्योंकि यह नोटिस पूरी तरह से निराधार और दुर्भावनापूर्ण है। सह धन्यवाद,
सरदार चरणजीत सिंह
स्वामी, मुद्रक, प्रकाशक, और संपादक
दैनिक रुस्तम-ए-हिंद हिंदी समाचार पत्र नोट: इस जवाब की प्रति मेरे कार्यालय में भविष्य के संदर्भ और कार्रवाई के लिए रखी गई है।🫵🙏