21/11/2025
*ब्याव सगाई v/s मौल मोलाई*
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नुगरी व्हैगी नोकरी, पाका मिलगा पाट।
टाट धरे नहिं टोकरी, टाबर बाराबाट।।
छाण्यां मिले न छोकरी, ऊडीकै उमराव ।
ठाला रो कीकर हुवै, बिना नोकरी ब्याव ।।
ऐमे बी ए मौकळा, खर ज्यूँ धक्का खाय।
प्राइवेट में बापड़ा, जूण बितावण जाय ।।
टीका ताणीं टसकता, ठाकर व्है गा ठूँठ।
अकल बिना बण आंधळा, फिरै ऊभाणाँ ऊँट।।
नैड़ा निज आवै नहीं, साख साखिणां सैण ।
फगत नौकरी कारणें, बाळक बणगा डैण ।।
पै'ली परणाया नहीं, लागो टीके लाय।
अब आटा साटा करे, दूजो नहीं उपाय।।
पक्का कोनी टापरा, छपर झूंपड़ा छान।
वर सरकारी वास्ते, कुबदी काढै कान ।।
जमीं बेचस्यां बाप की, करस्यां कर्जो खूब।
लख सरकारी ल्यावस्यां, बाई के महबूब।।
छोरा बैठ्या छांटवा, उड़ी कुँवारा नींद ।
बाबुल ल्यावै राज को बाई तांणी बींद।।
दारू पीवै दपटवां, औगण घणां अनेक।
देख्यो थाणादार है, वर सरकारी ऐक।।
नौ सौ लेवे नकल का, पटवारी में पास।
मूंजी देख्या मास्टर, खुद ही खोदे घास।।
टीको देस्यां ठाकरां, तुरत ताकड़ी तौल।
बेगो आप बताय द्यो,(इण)बाछड़िया रो मौल।।
चैन अँगूठी चाव सूँ, सोनो देसी सेर।
ब्याव कर्यां पछ बीनणीं, देसी थानैं ज्हैर।।
करां मुकदमो द्हेज रो, बेगी हुवै न बेल।
सगा सगी नैं साहिबा, जबर करावां जेल।।
बेटो खोसाँ बाप सूँ, माँ को खोसाँ मान।
मौल जँवाई ले लियो, करके कन्यादान ।।
प्यारा मानो पावणाँ, सासू आळौ साख।
राजी थानैं राखस्यूँ, नीतर तीन तलाक।।
बेटी रहसी फ्लेट में, करे न कोई काज।।
बेगा थारा बाप सूँ , न्यारा होवो राज।
सगपण करणो समझ कर, बराबरी में सार।
देखा-देखी जगत में, प्रीतम पड़े न पार ।।
साख सगाई व्है सजन , नेम धर्म को नीर।
सांचा सगपण मं हुवै , सौ पीढ़ी रो सीर।।
अरज आप सूं ईहगां, गरज करे घनश्याम।
सज्जन नें देवो सुता, ताकव आप तमाम ।।
विगत सुणाई वारता, लिख दूहा इक्कीस।
देखी जैड़ी मांड दी, रैणव करो न रीस।।
*घनश्याम सिंह किनियां कृत*
*चारणवास हुडील*