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राउंड टेबल इंडिया एक जागरूक आंबेडकर युग के लिए

~ लेकिन बहुजन समाज बनाने की शुरुआत कैसे हो? समाज जागरूक कैसे हो? न धन है और न ही लोग. उन्होंने कहा- मैं पढ़े-लिखे लोगों क...
09/10/2025

~ लेकिन बहुजन समाज बनाने की शुरुआत कैसे हो? समाज जागरूक कैसे हो? न धन है और न ही लोग. उन्होंने कहा- मैं पढ़े-लिखे लोगों को तैयार करूंगा और उनके पैसे से हम गरीब बहुजनों तक पहुंचेंगे. 1973 में यूं अनऔपचारिक रूप से बामसेफ का गठन हुआ. पांच वर्ष में वह हर जगह गए. लोगों को मिशन से जोड़ा. जब आन्दोलन चलाने लायक लोग और धन इकठ्ठा हो गया तो 1978 में बामसेफ की औपचारिक घोषणा की. लेकिन तब तक कांग्रेस उनके पीछे लग चुकी थी. उनके गुंडे बामसेफ के कार्यकर्ताओं को काम नहीं करने देते थे. इसका जवाब उन्हें उसी भाषा में देने के लिए एक रेडिकल ग्रुप की ज़रुरत पड़ी. साथियों के साथ सलाह-मशवरा हुआ तो 6 दिसम्बर 1981 को डी.एस.4 का गठन हुआ. इस ग्रुप में कोई भी सरकारी कर्मचारी शामिल नहीं था बल्कि अधिकतर उनके रिश्तेदार थे.
कांशी राम जी एक स्वस्थ दिमाग वाले बहुजन के प्रतीक हैं. महाराष्ट्र से मायूस होने के बाद जब उन्होंने उत्तर प्रदेश को अपनी कर्मभूमि बनाया तब वह अपने समाज को जागृत करने के लिए तीन तस्वीरें लेकर जाते थे- एक बाबा साहेब की, दूसरी जोतिबा फुले की और तीसरी शाहू जी महाराज की. लोगों में चर्चा होती थी कि- कोई बाबू आया है महाराष्ट्र से, तीन बाबाओं को लेकर, और वह पेन के उदहारण से समाज का हाल बताता है. ~

0 0 Read Time:23 Minute, 23 Second गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) एक बार कांशी राम साहेब कार में अपने सहयोगियों के साथ कहीं जा रहे थे. उनकी तबियत जरा ...

~ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने जो बुद्ध का धम्म प्रस्तुत किया है, वह इसी व्यवहारिकता को ध्यान में रखकर किया है। इसका अर्थ यह...
28/09/2025

~ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने जो बुद्ध का धम्म प्रस्तुत किया है, वह इसी व्यवहारिकता को ध्यान में रखकर किया है। इसका अर्थ यह कतई नहीं कि तथागत बुद्ध का दृष्टिकोण सामाजिक व्यवहार पर ज़ोर नहीं देता। सच तो यह है कि बुद्ध की सम्पूर्ण शिक्षा सामाजिक दृष्टिकोण पर ही आधारित है, अन्यथा वे 45 वर्षों तक लोगों के बीच जाकर धम्म का प्रचार नहीं करते। अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि बाबासाहेब द्वारा बताया गया बुद्ध का धम्म ही वास्तविक है, जिसे ‘नवयान’ कहा जा रहा है—वस्तुतः यह नवयान ही बुद्धयान है। लेखक ने इसी बात को बड़ी गहराई से स्पष्ट और सरल व्याख्या करते हुए समझाया है।

विद्वान लेखक रत्नेश ने इस ग्रंथ में बुद्ध की शिक्षाओं में प्रक्षिप्त अनेक विरोधाभासों को दूर करते हुए ‘नवयान’ को ही बुद्ध की सही शिक्षा प्रमाणित करने का सफल प्रयास किया है। अनीश्वरवाद, अनात्मवाद, पुनर्भव और अनित्यता नवयान के अनिवार्य तत्व हैं—इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती, किंतु लेखक ने इन विषयों को समझने के लिए मानसिक स्वतंत्रता को अत्यंत आवश्यक माना है। ~

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:10 Minute, 58 Second भिक्खुनी विजया मैत्रीय (Bhikkhuni Vijaya Maitriya) किताब का शीर्षक: नवयान दर्शन : बुद्ध की शिक...

~ इस जड़ जमाए जातिगत वर्चस्व के बीच, दिल्ली विश्वविद्यालय में आंबेडकर छात्र संघ (एएसए) के बैनर तले स्वतंत्र आंबेडकरवादी ...
17/09/2025

~ इस जड़ जमाए जातिगत वर्चस्व के बीच, दिल्ली विश्वविद्यालय में आंबेडकर छात्र संघ (एएसए) के बैनर तले स्वतंत्र आंबेडकरवादी राजनीति का उदय एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। एएसए दलित-बहुजन पहचान और आंबेडकरवादी आदर्शों पर आधारित एक स्वायत्त संगठन के रूप में चुनाव लड़कर एक नया अध्याय लिख रहा है।

जैसा कि एएसए-डीयू के कुलदीप, दिव्या, सिद्धार्थ और शैलेंद्र जैसे नेताओं ने कहा, यह आंदोलन ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े छात्रों के लिए एक ऐसा मंच तैयार करने के बारे में है जहाँ वे खुद को प्रतीकात्मक रूप से नहीं, बल्कि राजनीतिक एजेंडे को आकार देने वाले नेताओं के रूप में पूरी तरह से प्रस्तुत कर सकें। इतिहास विभाग से एएसए के एक नेता अनुमन्य सरोज ने इस बात पर ज़ोर दिया कि “एएसए, दिल्ली विश्वविद्यालय में एकमात्र स्वतंत्र बहुजन संगठन होने के नाते, बहुजन छात्रों के लिए एक मज़बूत और स्वायत्त नेतृत्वकारी मंच प्रदान करता है। यह एक ऐसा मंच तैयार करता है जहाँ वे निर्णय ले सकते हैं, बहुजन आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, जिससे वे अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को एक अधिक लोकतांत्रिक और समावेशी परिसर के व्यापक संघर्ष से जोड़ सकते हैं।” ~ Singh Boddh (President, Ambedkar Students' Association, Delhi University

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:13 Minute, 49 Second आशुतोष सिंह बोद्ध (विद्रोही)/ Ashutosh Singh Boddh (Vidrohi) हर साल, छात्र संघ चुनावों के आते ही, .....

~इस नवउदारवादी युग में, एक ब्राह्मण परिवार में, प्रतिष्ठा और सम्मान व्यक्ति के व्यवसाय से जुड़े होते थे, और सम्मान जातिग...
07/09/2025

~इस नवउदारवादी युग में, एक ब्राह्मण परिवार में, प्रतिष्ठा और सम्मान व्यक्ति के व्यवसाय से जुड़े होते थे, और सम्मान जातिगत स्थिति से। मेरे पिता अपनी मानसिक बीमारी का पता चलने से पहले एक सरकारी कर्मचारी थे। मनोरोग दवाओं की भारी खुराक के कारण उनका काम और पदोन्नति पर बुरा असर पड़ा। किसी व्यक्ति की कामकाजी हेसियत उसके अपने कर्तव्य निभाने और परिवार की देखभाल करने के व्यक्तिगत गुणों से जुड़ी होती है। उसमें वे असफल रहे क्योंकि कार्यालय की संरचना एक स्वस्थ शरीर वाले व्यक्ति पर आधारित थी, जिसे कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या न हो। सिज़ोफ्रेनिया उनकी पहचान से गहराई से जुड़ गया। एक विशेषता जिसने उन्हें सुरक्षित रखा, वह थी ब्राह्मण पुरुष होने की उनकी जातिगत स्थिति।~ Ankita Chatterjee

1 0 Read Time:12 Minute, 35 Second अंकिता चैटर्जी (Ankita Chatterjee) मेरे पिताजी जी एक मानसिक रोग से पीड़ित थे जिसके बारे में मैं अपनी युवावस्था मे...

~ अब कोई पूछ सकता है कि जाति और संसाधन गणना के संयोजन से क्या लाभ होगा? तो यह वंचित समूहों की पहचान, विशेषाधिकारों का वि...
30/05/2025

~ अब कोई पूछ सकता है कि जाति और संसाधन गणना के संयोजन से क्या लाभ होगा? तो यह वंचित समूहों की पहचान, विशेषाधिकारों का विश्लेषण, नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन और सामाजिक एकता को बढ़ावा में सहायक हो सकता है. इससे यह स्पष्ट होगा कि कौन सी जातियां संसाधनों से वंचित हैं, जिससे लक्षित कल्याणकारी योजनाएं बनाई जा सकेंगी। उदाहरण के लिए, बिहार की 2023 की गणना से पता चला कि अति पिछड़ा वर्ग (Economically Backward Class) की आर्थिक स्थिति सबसे कमजोर थी, जिसके आधार पर सरकार ने विशेष योजनाएं शुरू की है । यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन सी जातियां संसाधनों पर अधिक नियंत्रण रखती हैं। ~ Achchhelal Prajapati

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:14 Minute, 24 Second अच्छेलाल प्रजापति (Achchhelal Prajapati) भारत में जाति सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचन.....

~ महात्मा ज्योतिराव फुले आधुनिक युग में शोषित बहुजन समाज के सशक्तिकरण के पहले क्रांतिकारी विचारक थे। उन्होंने ब्राह्मणवा...
28/05/2025

~ महात्मा ज्योतिराव फुले आधुनिक युग में शोषित बहुजन समाज के सशक्तिकरण के पहले क्रांतिकारी विचारक थे। उन्होंने ब्राह्मणवादी सत्ता संरचना के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक-सांस्कृतिक वर्चस्व को सीधे चुनौती दी। ‘गुलामगिरी’, ‘शेतकऱ्याचा आसूड’ जैसी उनकी किताबों ने शोषण की व्यवस्था की जड़ें उजागर कीं। “सत्यशोधक समाज” की स्थापना कर उन्होंने एकेश्वरवादी सार्वजनिक सत्यधर्म की नींव रखी, जिसने हिंदू ब्राह्मणी धर्म की सत्तासंरचना को जोरदार झटका दिया। छत्रपती शिवाजी महाराज की समाधि की खोज और “शिवाजी जयंती मनाने की शुरुआत” जैसे कार्यों से उन्होंने बहुजन समाज को ऐतिहासिक प्रेरणा देने का प्रयास किया। सावित्रीबाई फुले के साथ उन्होंने स्त्री शिक्षा और दलित-बहुजन उत्थान के लिए अथक संघर्ष किया। लेकिन ‘फुले’ फिल्म इस क्रांतिकारी विरासत को धुंधला करती है और फुले की एक अलग ही छवि प्रगट करती है। ~Yogesh Bhagwatkar

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:22 Minute, 46 Second दोस्तों, ‘फुले’ फिल्म इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। कई लोग इस फिल्म की ता...

~ मगर दलित समाज इतना भोला है कि जहाँ किसी फिल्म में उसका जिक्र हुआ वह पूरा संवेदना से भर उठता है। इस बात से अंजान कि फिल...
05/05/2025

~ मगर दलित समाज इतना भोला है कि जहाँ किसी फिल्म में उसका जिक्र हुआ वह पूरा संवेदना से भर उठता है। इस बात से अंजान कि फिल्म बनाने वाला व्यक्ति किस प्रोपेगेंडा या उद्देश्य पूर्ति के लिए फिल्म बना रहा है। इसी तरह का जुनून दलितों में ‘आर्टिकल 15’ फिल्म के लिए मिला था। फिल्म एक दलित लड़की के साथ गैंगरेप और हत्या पर आधारित थी। फिल्म में दलित किरदारों को बेबस, असहाय और मजबूर सांचे में ढालकर दिखाया गया था जैसा कि बॉलीवुड अक्सर करता आया है। वे या तो इनायत की भीख माँगते नज़र आते हैं या उच्च-जाति से आए नायक का आभार जताते हुए।~

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:7 Minute, 32 Second आजकल दलित-बहुजन लोगों में ‘फुले’ मूवी को देखने की बड़ी होड़ है। सवर्णों और अं...

~ इस वर्गीकरण के फैसले के पक्ष में जहाँ अधिकतर वाल्मीकि जाति के लोग समर्थन में दिखे, वहीं अधिकतर चमार जाति के लोगों ने इ...
17/03/2025

~ इस वर्गीकरण के फैसले के पक्ष में जहाँ अधिकतर वाल्मीकि जाति के लोग समर्थन में दिखे, वहीं अधिकतर चमार जाति के लोगों ने इसका विरोध किया। इस फैंसले के आने के बाद भारत बंद भी किया गया और दोनों जातियों की तरफ से हिंसा की जाने की भी बातें करी जाने लगीं। सोशल मीडिया के माध्यम से दोनों जातियाँ एक दूसरे को नीचा दिखाने लगीं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पक्ष या विपक्ष में होना एक अलग विषय है जिसपर बहस हो सकती है, लेकिन यह इस लेख का उद्देश्य नहीं है। यहाँ उद्देश्य वाल्मीकि समाज के उन दावों को जाँचना है जो कहते हैं कि कांशीराम जी ने वाल्मीकि समाज के साथ सौतेला व्यवहार किया। इस विषय पर लिखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जो दलित-आदिवासी-पिछड़ा आंदोलन या बहुजन आंदोलन भारत देश में असमानता पर आधारित मनुवादी विचारधारा के ख़िलाफ़ खड़ा है इस तरह के वाद-प्रतिवाद से अपरिपक्व मालूम पड़ता है। लोग अपने असली मकसद से भटके प्रतीत होते हैं और लड़ाई की धार भी कुंद होती है। समता-समानता के लिये लड़ने वाले महापुरुषों का आंदोलन आगे बढ़ने की जगह पीछे जाता हुआ नज़र आता है।~ Mandhothiya

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:37 Minute, 30 Second अमन मंडोथिया (Aman Mandhothiya) वाल्मीकि समाज के कुछ लोगों की ओर से कुछ ऐसी भी बातें निक.....

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