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राउंड टेबल इंडिया एक जागरूक आंबेडकर युग के लिए

~ अब कोई पूछ सकता है कि जाति और संसाधन गणना के संयोजन से क्या लाभ होगा? तो यह वंचित समूहों की पहचान, विशेषाधिकारों का वि...
30/05/2025

~ अब कोई पूछ सकता है कि जाति और संसाधन गणना के संयोजन से क्या लाभ होगा? तो यह वंचित समूहों की पहचान, विशेषाधिकारों का विश्लेषण, नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन और सामाजिक एकता को बढ़ावा में सहायक हो सकता है. इससे यह स्पष्ट होगा कि कौन सी जातियां संसाधनों से वंचित हैं, जिससे लक्षित कल्याणकारी योजनाएं बनाई जा सकेंगी। उदाहरण के लिए, बिहार की 2023 की गणना से पता चला कि अति पिछड़ा वर्ग (Economically Backward Class) की आर्थिक स्थिति सबसे कमजोर थी, जिसके आधार पर सरकार ने विशेष योजनाएं शुरू की है । यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन सी जातियां संसाधनों पर अधिक नियंत्रण रखती हैं। ~ Achchhelal Prajapati

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:14 Minute, 24 Second अच्छेलाल प्रजापति (Achchhelal Prajapati) भारत में जाति सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचन.....

~ महात्मा ज्योतिराव फुले आधुनिक युग में शोषित बहुजन समाज के सशक्तिकरण के पहले क्रांतिकारी विचारक थे। उन्होंने ब्राह्मणवा...
28/05/2025

~ महात्मा ज्योतिराव फुले आधुनिक युग में शोषित बहुजन समाज के सशक्तिकरण के पहले क्रांतिकारी विचारक थे। उन्होंने ब्राह्मणवादी सत्ता संरचना के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक-सांस्कृतिक वर्चस्व को सीधे चुनौती दी। ‘गुलामगिरी’, ‘शेतकऱ्याचा आसूड’ जैसी उनकी किताबों ने शोषण की व्यवस्था की जड़ें उजागर कीं। “सत्यशोधक समाज” की स्थापना कर उन्होंने एकेश्वरवादी सार्वजनिक सत्यधर्म की नींव रखी, जिसने हिंदू ब्राह्मणी धर्म की सत्तासंरचना को जोरदार झटका दिया। छत्रपती शिवाजी महाराज की समाधि की खोज और “शिवाजी जयंती मनाने की शुरुआत” जैसे कार्यों से उन्होंने बहुजन समाज को ऐतिहासिक प्रेरणा देने का प्रयास किया। सावित्रीबाई फुले के साथ उन्होंने स्त्री शिक्षा और दलित-बहुजन उत्थान के लिए अथक संघर्ष किया। लेकिन ‘फुले’ फिल्म इस क्रांतिकारी विरासत को धुंधला करती है और फुले की एक अलग ही छवि प्रगट करती है। ~Yogesh Bhagwatkar

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:22 Minute, 46 Second दोस्तों, ‘फुले’ फिल्म इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। कई लोग इस फिल्म की ता...

~ मगर दलित समाज इतना भोला है कि जहाँ किसी फिल्म में उसका जिक्र हुआ वह पूरा संवेदना से भर उठता है। इस बात से अंजान कि फिल...
05/05/2025

~ मगर दलित समाज इतना भोला है कि जहाँ किसी फिल्म में उसका जिक्र हुआ वह पूरा संवेदना से भर उठता है। इस बात से अंजान कि फिल्म बनाने वाला व्यक्ति किस प्रोपेगेंडा या उद्देश्य पूर्ति के लिए फिल्म बना रहा है। इसी तरह का जुनून दलितों में ‘आर्टिकल 15’ फिल्म के लिए मिला था। फिल्म एक दलित लड़की के साथ गैंगरेप और हत्या पर आधारित थी। फिल्म में दलित किरदारों को बेबस, असहाय और मजबूर सांचे में ढालकर दिखाया गया था जैसा कि बॉलीवुड अक्सर करता आया है। वे या तो इनायत की भीख माँगते नज़र आते हैं या उच्च-जाति से आए नायक का आभार जताते हुए।~

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:7 Minute, 32 Second आजकल दलित-बहुजन लोगों में ‘फुले’ मूवी को देखने की बड़ी होड़ है। सवर्णों और अं...

~ इस वर्गीकरण के फैसले के पक्ष में जहाँ अधिकतर वाल्मीकि जाति के लोग समर्थन में दिखे, वहीं अधिकतर चमार जाति के लोगों ने इ...
17/03/2025

~ इस वर्गीकरण के फैसले के पक्ष में जहाँ अधिकतर वाल्मीकि जाति के लोग समर्थन में दिखे, वहीं अधिकतर चमार जाति के लोगों ने इसका विरोध किया। इस फैंसले के आने के बाद भारत बंद भी किया गया और दोनों जातियों की तरफ से हिंसा की जाने की भी बातें करी जाने लगीं। सोशल मीडिया के माध्यम से दोनों जातियाँ एक दूसरे को नीचा दिखाने लगीं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पक्ष या विपक्ष में होना एक अलग विषय है जिसपर बहस हो सकती है, लेकिन यह इस लेख का उद्देश्य नहीं है। यहाँ उद्देश्य वाल्मीकि समाज के उन दावों को जाँचना है जो कहते हैं कि कांशीराम जी ने वाल्मीकि समाज के साथ सौतेला व्यवहार किया। इस विषय पर लिखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जो दलित-आदिवासी-पिछड़ा आंदोलन या बहुजन आंदोलन भारत देश में असमानता पर आधारित मनुवादी विचारधारा के ख़िलाफ़ खड़ा है इस तरह के वाद-प्रतिवाद से अपरिपक्व मालूम पड़ता है। लोग अपने असली मकसद से भटके प्रतीत होते हैं और लड़ाई की धार भी कुंद होती है। समता-समानता के लिये लड़ने वाले महापुरुषों का आंदोलन आगे बढ़ने की जगह पीछे जाता हुआ नज़र आता है।~ Mandhothiya

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:37 Minute, 30 Second अमन मंडोथिया (Aman Mandhothiya) वाल्मीकि समाज के कुछ लोगों की ओर से कुछ ऐसी भी बातें निक.....

Please sign the petition~ दीक्षाभूमि वह स्थल जहाँ 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के ...
29/06/2024

Please sign the petition
~ दीक्षाभूमि वह स्थल जहाँ 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. हालात यही रहे तो यहाँ धम्मचक्र पवत्तन दिवस पर आने वाले जनसमूह का प्रवेश हमेशा के लिये प्रतिबंधित हो जाएगा.

कारण यह है कि इस स्थल पर महाराष्ट्र सरकार के आदेशानुसार पिछले कुछ महीनों से इस परिसर की ज़मीन खोद कर वाहनों के लिये तीन मंज़िली पार्किंग का निर्माण शुरु हो गया है. अब तक इतनी ज्यादा मिट्टी खोदी जा चुकी है कि उसका ढेर दीक्षाभूमि के स्तूप की बराबरी कर चुका है.

इस भीषण खुदाई से नागपुर के आम्बेडकरवादियों में रोष है और उन्होने अपने प्रयास से इस खुदाई और निर्माण कार्य को रुकवाने में सफलता हासिल की है. किंतु अब तक महाराष्ट्र सरकार या महानगर पालिका नागपुर ने इसे रोकने के लिये कोई आदेश जारी नहीं किया है. ~

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:2 Minute, 48 Second मिनल शेंडे (Minal Shende) दीक्षाभूमि वह स्थल, जहाँ 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आम्बेड....

~ मुझे कभी समझ नहीं आया कि ‘उन’ जैसी होना एक सबसे बड़ी समझदारी था या नादानी! कभी लगता रहा एक मात्र वही हैं जो विश्व में ...
13/06/2024

~ मुझे कभी समझ नहीं आया कि ‘उन’ जैसी होना एक सबसे बड़ी समझदारी था या नादानी! कभी लगता रहा एक मात्र वही हैं जो विश्व में विजेता रहीं। सबका ध्यान खींचा। उन्होंने ही जीवन को नितांत जिया। वे मेरी तरह जीने को सदा टालती नहीं रहीं, किसी उम्र के परे, सफलता के परे, मौसमो के परे। उनके मुँह से ये शब्द नहीं निकले होंगे, कि बस एक बार ये काम बन जाए, फिर जिएंगे। वैसी ही ज़िन्दगी जैसी बचपन में सोची थी या जैसी आजकल जीते हैं, सब।

उन्होंने ग्रीष्म में बरसात का, बरसात में फिर पतझड़ का, पतझड़ में फिर शरद और फिर शरद में बसंत का, इंतज़ार करने की प्रवृत्ति नहीं रखी- उन्होंने सब मौसम बनाए। बिहु1 और सरहुल2 के त्योहार। फिर भी ना जाने क्यूँ मेरे मन में उन लड़कियों की प्रतिमाओं को लेकर एक टीस-सी थी।

मुझे कभी भी उन लड़कियों की श्रेणि में आना पसंद नहीं आया। अब इसके पीछे का सही-सही कारण तो मैं भी नहीं कह सकती। शायद ये वो कुछ शिक्षक/दोस्त और शुभचिंतक रहे जिन्होंने मेरे भीतर की प्रतिभा को परखा था और सचेत किया मुझे उन लड़कियों के झुण्ड में जाने से। मुझे अक्सर दिखाया गया कि वो लड़कियाँ किसी गहरे कूएँ के तले में रहती हैं। ~ Rachna Gautam

1 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:9 Minute, 33 Second रचना गौतम (Rachna Gautam) मैं इन दिनों अक्सर एक सोच में पड़ जाती हूँ कि मैं कभी ‘उन’ लड़....

~ On October 13, 1935, on the occasion of a Depressed Classes conference held at Yeola, Babasaheb Ambedkar shocked every...
30/05/2024

~ On October 13, 1935, on the occasion of a Depressed Classes conference held at Yeola, Babasaheb Ambedkar shocked everyone with his announcement. He declared that he would convert from Hinduism. “I was born in Hinduism,” he said, “but I will not die as a Hindu.” In 1936, Ambedkar organized a conference called Mumbai Ilakha Mahar Parishad (Mumbai Province Mahar Conference). Ambedkar reiterated his decision to convert from Hinduism and explained to his followers why he did want to do so. The address was later published as Mukti Kon Pathe (What Path to Salvation?). ~
https://www.roundtableindia.co.in/religion-ethics-and-kinship-on-dr-b-r-ambedkars-path-to-conversion/

thanks, abdul najeeb.

Abdul Najeeb Noorul Ameen The American philosopher Abi Doukhan makes an interesting observation in her book on the philosophy of Emmanuel Levinas. She states that the word ethics is derived from the Greek word ethos. The ethos pertains to the customs and principles of a society. The concept of the e...

~ अशोक ने साकेत में 200 फीट बड़ा स्तूप बनवाया जो एक लंबी कालावधि तक सुरक्षित रहा था। इसका वर्णन ज़ुएनज़ांग (ह्वेनसांग) ने ...
22/01/2024

~ अशोक ने साकेत में 200 फीट बड़ा स्तूप बनवाया जो एक लंबी कालावधि तक सुरक्षित रहा था। इसका वर्णन ज़ुएनज़ांग (ह्वेनसांग) ने किया था। उन्होंने एक और मठ को भी देखा था जिसकी पहचान कनिंघम द्वारा कालकादर्मा या पूर्ववद्र्मा के रूप में की गई है। ये मठ आज मणि पर्वत के मलबे के नीचे दब कर खो गए हैं। लेकिन क्या यह स्वाभाविक रूप से हुआ? बिल्कुल नहीं! हालांकि इस बारे में कनिंघम को ब्राहम्णों ने बताया कि यह पहाड़ यहाँ वानर राजा सुग्रीव की गलती का परिणाम है। उसने गलती से मणि पर्वत को इस स्थान पर गिरा दिया था। यह वह पर्वत है जिसका उपयोग वानरों ने राम की सहायता के लिए किया था। लेकिन सच्चाई यह है कि यह जानकारी इस स्थल राम को मिथक से जोड़ने का एक कुत्सित ब्राह्मणवादी प्रयास मात्र है। इस कल्पित कहानी का दूसरा पक्ष कनिंघम को साधारण स्थानीय लोगों से मिला। जिन्होंने उन्हें बताया कि यह टीला रामकोट के मंदिर का निर्माण करते वक्त घर लौटते हुए मजदूरों द्वारा हर शाम को इस स्थान पर अपनी टोकरियाँ खाली करने के कारण से हुआ। यही कारण है कि आज भी इस स्थान को ‘झोवा झार’ या ‘ओरा झार’ कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘टोकरी खाली करना’। यानी राम के मंदिर को बनाते वक्त ज़मीन की खुदाई के मलबे से इस बौद्ध स्तूप को ढक दिया गया। इसमें तनिक भी संदेह नहीं होना चाहिए कि यह जानबूझकर किया गया था ताकि बौद्ध स्थल इस मलबे में हमेशा के लिये ढंक जाए। कनिंघम को बाद में पता चला कि किसी बौद्ध स्थल को ढांकने का यह पहला प्रयास नहीं है बल्कि ठीक यही हरकत बनारस, निमसार और अन्य बौद्ध स्थलों को टीले के नीचे ढांक कर पहले ही की जा चुकी थी।~ Ratnesh Katulkar

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:32 Minute, 25 Second डा. रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) 90 के दशक में भारत दो ऐसे आंदोलन हुए जिन्होंने देश ....

~ बुद्ध के जीवन में ऐसी अवस्था उनके  बुद्धत्व की प्राप्ति के कुछ दिनों बाद ही हुई. इसका कारण था कि उन्हें जिस ज्ञान की प...
23/11/2023

~ बुद्ध के जीवन में ऐसी अवस्था उनके बुद्धत्व की प्राप्ति के कुछ दिनों बाद ही हुई. इसका कारण था कि उन्हें जिस ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उससे सारा मानव समाज अनजान था.

यह इतना अनोखा अनुभव था, इसे किसे बताया जाये, कि वह इसे पूरी तरह समझ सके? बुद्ध की यह चिंता थी. उन्हें ऐसा भी लग रहा था कि इस ज्ञान को साधारण इंसान के द्वारा समझ पाना एक टेढ़ी खीर है. क्योंकि एक आम व्यक्ति से लेकर बुद्धिजीवी जिन मिथकों में अपना जीवन बिता देते हैं जो ईश्वर, आत्मा, पुनर्जन्म, कर्मकांड, पुरोहितगिरी, तप, व्रत-उपवास और कर्मकाण्ड से भरा होता है, वे इन्हें ही सत्य और शाश्वत मानते हैं.

लेकिन धम्म में इन मान्यताओं का रत्ति भर भी स्थान नहीं है. और तो और जो किसी भी मुसीबत या चुनौती के पीछे हमेशा दोष किसी बाहरी ताकत पर ही मढ़ने की इन्सानी फितरत है, उसकी धम्म में कोई जगह नहीं. बुद्ध ने जिस सत्य को खोजा उसमें अधिकांश परेशानियों और गलतियों के पीछे कोई बाहरी ताकत नहीं बल्कि खुद इनको झेलने वाला व्यक्ति ही जिम्मेदार है. उनकी यह खोज थी कि किसी सहारे को मत ढूँढो बल्कि अपना द्वीप खुद बनाओ या अपना दीपक खुद बनों. ~ Ratnesh Katulkar

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:26 Minute, 17 Second बुद्ध के प्रथम उपदेश की पृष्ठभूमि डा. रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) ‘टू बी और नॉट ट....

~ सिलहट के महिमल नेताओं ने 1930 के दशक में हिंदू मछुआरों के साथ मिलकर ‘असम-बंगाल मछुआरा सम्मेलन’ नाम से एक संगठन बनाया। ...
22/10/2023

~ सिलहट के महिमल नेताओं ने 1930 के दशक में हिंदू मछुआरों के साथ मिलकर ‘असम-बंगाल मछुआरा सम्मेलन’ नाम से एक संगठन बनाया। सम्मेलन ने अपनी पहली बैठक की और प्रस्तावित किया कि तत्कालीन यूपी सरकार ने ‘मोमेन’ को पिछड़े वर्ग में शामिल करने का निर्णय लिया। इसलिए असम के पिछड़े मुसलमानों को भी वही दर्जा दिया जाना चाहिए। महिमल बुद्धिजीवियों और उलेमाओं ने शुरू से ही धर्मनिरपेक्ष राजनीति को बढ़ावा दिया और स्वदेशी के रूप में अपनी पहचान का दावा करते हुए मुस्लिम लीग के दो-राष्ट्र सिद्धांत का जोरदार विरोध किया। महिमल जाति से एक उम्मीदवार अफ़ज़ उद्दीन ने लीग उम्मीदवार दीवान अब्दुल बैस्ट चौधरी के खिलाफ असम विधानसभा चुनाव लड़ा और दुर्भाग्य से थोड़े अंतर से हार गए।

सिलहट जनमत संग्रह के दौरान स्थिति को सांप्रदायिक बनाने के लिए मुस्लिम लीग के गंभीर उकसावे के बावजूद महिमल समुदाय ने भारत के पक्ष में मतदान किया। हुसैन अहमद मदनी सिलहट में बहुत प्रभावशाली थे। लेकिन हजारों उलेमाओं ने पाकिस्तान के पक्ष में प्रचार किया। अंत में सिलहट का एक हिस्सा जिसे वर्तमान में करीमगंज कहा जाता है, असम के भारतीय क्षेत्र में विलय हो गया। सजातीय विवाह की सख्त प्रथा के कारण मुसलमानों में अंतरजातीय विवाह नहीं होता था। अत: महिमल जाति के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रह समाप्त नहीं हो सका।~ डॉ. ओही उद्दीन अहमद

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:16 Minute, 36 Second डॉ. ओही उद्दीन अहमद (Ohi Uddin Ahmad) एक अंतर्देशीय मुस्लिम मछली पकड़ने वाली जाति जो मु....

~ पूरा विश्व इस बात को समझता है कि कोइतूर प्रकृति प्रेमी होते हैं। वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं और प्रकृति को अपने परिवार ...
07/08/2023

~ पूरा विश्व इस बात को समझता है कि कोइतूर प्रकृति प्रेमी होते हैं। वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं और प्रकृति को अपने परिवार का ही एक अंग समझते हैं। सच कहें तो प्रकृति ही उनके देवी-देवता और भगवान होते हैं। वे प्रकृति पूजक होते हैं और वे सपने में भी प्रकृति के विरुद्धु कोई कार्य नहीं करते हैं लेकिन आज के शहरीकरण और विकास की अंधी दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है और जल-जंगल-ज़मीन को प्रदूषित किया जा रहा है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। नदियों पर बाँध बनाये जा रहे हैं। विकास और औद्योगिकीकरण के नाम पर कोइतूरों की ज़मीनों का अधिकरण करके उन्हें विस्थापित किया जा रहा है।

आज पूरी दुनिया प्रकृति के साथ किए गये खिलवाड़ के कारण पैदा हुई परिस्थियों जैसे बाढ़, जंगली आग, उच्च तापमान, समुद्रतल का बढ़ना, सूखा इत्यादि का सामना कर रही है। पूरी मानवता के लिए ख़तरा मुँह बायें खड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में पूरी दुनिया कोइतूर युवाओं की तरफ़ देख रही है। ~ Dr.Surya Bali 'Suraj Dhurvey'

0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:43 Minute, 0 Second प्रोफ़ेसर (डॉ) सूर्या बाली ”सूरज धुर्वे” (Professor (Dr.) Surya Bali “Suraj Dhurve”) विगत एक दशक से भार...

~ हिंदी के साहित्यिक या आम समाज में प्रचलित टेक्स्ट और उसके इस तरह के आपत्तिजनक कॉन्टेक्स्ट वाली की भाषाई अभिव्यक्तियों ...
19/06/2023

~ हिंदी के साहित्यिक या आम समाज में प्रचलित टेक्स्ट और उसके इस तरह के आपत्तिजनक कॉन्टेक्स्ट वाली की भाषाई अभिव्यक्तियों से मंगलेश डबराल जैसे प्रगतिशील साहित्यकारों को क्यों महसूस नहीं हुआ होगा कि ये भाषा मर चुकी है, असल में हिदी साहित्य संसार में नियामक और नियंत्रक की मुख्य भूमिका वाला अपर कास्ट प्रगतिशील मानस समाज में मौजूद जातीय और लैंगिक गालियों अभिव्यक्तियों वर्चस्व को स्वाभाविक मान कर चलता है और टेक्स्ट की यही अनदेखी की गई स्वाभाविकता जब साम्प्रदायिक रूप ले लेती है तो वो इस तरह ज़ाहिर परिदृश्य उन्हें फासीवाद का स्पष्ट रूप लगने लगता है ।

ये उनकी दृष्टि की सीमा है जो एक गहन ऐतिहासिक समस्या को तात्कालिकता में समेट देना चाहती है।~ thank you Mohan Mukt

2 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:59 Minute, 30 Second मोहन मुक्त (Mohan Mukt) कुछेक दिन पहले फेसबुक पर एक पोस्ट देखी जिसमें ‘मुस्लिम अस्म....

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