29/05/2025
*किताब : मध्यकालीन भारत के मुस्लिम शासकों की धार्मिक उदारता पर सैयद सबाहुद्दीन अब्दुर्रहमान जी द्वारा लिखित लेख में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।*
किमत 1500₹
इस विषय पर कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:
* #धार्मिक सहिष्णुता:
* यह कहना कि मध्यकालीन भारत में मुस्लिम शासन केवल अन्याय और अत्याचार का काल था, एक सरलीकरण होगा। कई मुस्लिम शासकों ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई, और विभिन्न धर्मों के लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे।
* #अकबर जैसे शासकों ने ' #दीन-ए-इलाही' जैसे धार्मिक समन्वय के प्रयास किए, और हिंदुओं को प्रशासन में उच्च पदों पर नियुक्त किया।
* कला और संस्कृति का विकास:
* मुस्लिम शासकों ने भारतीय कला और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
* #मुगल काल में #वास्तुकला, #चित्रकला, और संगीत का अभूतपूर्व विकास हुआ, जिसके उदाहरण ताजमहल, लाल किला, और अन्य स्मारक हैं।
* आर्थिक योगदान:
* #मुस्लिम #शासकों ने #भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी योगदान दिया।
* उन्होंने व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया, और कृषि और सिंचाई के विकास पर ध्यान केंद्रित किया।
* सांस्कृतिक समन्वय:
* #मध्यकालीन भारत में, #हिंदू और #मुस्लिम संस्कृतियों का एकीकरण हुआ, जिससे एक नई मिश्रित संस्कृति का उदय हुआ।
* @सूफीवाद और भक्ति आंदोलन ने धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा दिया।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मध्यकालीन भारत का इतिहास जटिल है, और इसमें धार्मिक संघर्ष और असहिष्णुता के उदाहरण भी मिलते हैं। हालांकि, यह भी सच है कि कई मुस्लिम शासकों ने धार्मिक उदारता और सांस्कृतिक समन्वय को बढ़ावा दिया।
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