27/08/2025
पाकिस्तान से चार साल बाद लौटे भारतीय नागरिक सूरजपाल की कहानी ने भारत-पाक रिश्तों की तल्ख हकीकत को किया बेनकाब
उन्नाव/नई दिल्ली:
उन्नाव के सुलतानखेड़ा गांव में बुधवार की शाम एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसने न केवल आंखें नम कर दीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच तल्ख रिश्तों और मानवीय संवेदनाओं की गहराई को भी उजागर कर दिया। मानसिक रूप से अस्वस्थ भारतीय नागरिक सूरजपाल की चार साल बाद पाकिस्तान की लाहौर जेल से घर वापसी ने जहां एक परिवार को पुनर्जीवित कर दिया, वहीं भारत-पाक के आपसी संबंधों पर भी गंभीर सवाल खड़े किए।
🌐 सीमा के पार भटका मासूम इंसान और सियासी लकीरें
45 वर्षीय सूरजपाल 2020 में मानसिक असंतुलन के चलते घर से निकल गए थे। कानपुर में इलाज करा रहे सूरजपाल पहले भी कई बार घर छोड़कर जा चुके थे, लेकिन नवंबर 2020 के बाद वह लापता हो गए। परिवार ने हर संभावित ठिकाने पर तलाश की, पर कोई सुराग नहीं मिला।
तीन साल बाद पाकिस्तान दूतावास से भारत को सूचना मिली कि सूरजपाल *लाहौर की जेल में बंद हैं, क्योंकि वह बिना पासपोर्ट और वीजा के सीमा पार कर गए थे। यह सूचना जितनी चौंकाने वाली थी, उतनी ही दर्दनाक भी।
🕊️ रिश्तों की तल्खी में पिसती इंसानियत
भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते दशकों से तनावपूर्ण हैं। चाहे कूटनीतिक बयानबाज़ी हो या सीमा पर गोलीबारी—दोनों देशों के बीच विश्वास की खाई गहरी होती जा रही है। इसी तल्खी का शिकार हुआ एक मासूम भारतीय नागरिक, जो बीमारी और भटकाव की हालत में सीमाएं पार कर गया।
मानवता की दुहाई देने वाले इन दोनों देशों के बीच ऐसे हजारों मामले हैं, जिनमें लोग गलती से सीमा पार चले जाते हैं और फिर सालों तक जेलों में सड़ते रहते हैं। सूरजपाल की रिहाई एक मिसाल ज़रूर है, लेकिन ये भी सवाल उठाती है कि क्यों ऐसी प्रक्रियाएं इतनी धीमी हैं और इंसानी जिंदगी को इतना कमतर क्यों आंका जाता है?
🏛️ कूटनीतिक पहल और प्रशासन की भूमिका
इस मामले में भारतीय दूतावास, विदेश मंत्रालय और जिला प्रशासन की तत्परता काबिले तारीफ रही। पाकिस्तान दूतावास द्वारा भारतीय उच्चायोग को सूचना देने के बाद सभी ज़रूरी दस्तावेज़ और प्रमाण जुटाए गए। पुलिस और राजस्व विभाग की जांच से पुष्टि हुई कि सूरजपाल मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं और कई बार घर से गायब हो जाते थे।
इस जानकारी के आधार पर लंबी कानूनी प्रक्रिया पूरी की गई और अंततः सूरजपाल की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की गई।
👨👩👦 इमोशनल रीयूनियन—गले मिलकर रो पड़े मां-बेटा
बुधवार को जैसे ही सूरजपाल उन्नाव के लोक नगर क्रॉसिंग पर दिखे, वहां मौजूद चचेरे भाइयों ने उन्हें पहचान लिया और घर लेकर आए। घर पहुंचते ही पत्नी सुरजा देवी और बेटे पिंटू ने उन्हें गले लगा लिया। पूरे मोहल्ले में भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा।
पत्नी सुरजा देवी का संघर्ष भी कम नहीं रहा। वह वाघा बॉर्डर तक गई थीं अपने पति की तलाश में। उन्होंने कहा—
“मैंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी थी। मुझे भरोसा था कि मेरा पति एक दिन जरूर लौटेगा। ये मेरा विश्वास और मेरी दुआओं की जीत है।”
🔍 मानसिक बीमारी और संवेदनहीन सिस्टम
सूरजपाल आज भी पूरी तरह ठीक नहीं हैं। वह बात करते-करते विषय बदल देते हैं, पूरी यात्रा याद नहीं कर पाते। यह साफ है कि वे खुद नहीं जानते कि कैसे और कब पाकिस्तान पहुंचे। मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को चार साल तक जेल में रखना मानवीय संवेदनाओं की अनदेखी है।
🧭 क्या सबक मिलेगा इस कहानी से?
भारत और पाकिस्तान को इस घटना से सीख लेनी चाहिए। मानसिक रोगियों, बच्चों और गलती से सीमा पार कर चुके लोगों के लिए *एक अलग मानवीय समझौता या त्वरित प्रक्रिया होनी चाहिए*। राजनीतिक तनाव का खामियाजा आम नागरिक क्यों भुगतें?
🔚 निष्कर्ष
सूरजपाल की घर वापसी भले ही एक ‘हैप्पी एंडिंग’ जैसी लगे, लेकिन इसके पीछे छिपे चार सालों के अंधेरे ने एक परिवार को तोड़ा, उन्हें सामाजिक और मानसिक रूप से झकझोर दिया। यह घटना हमें याद दिलाती है कि देशों की सीमाएं इंसानियत से बड़ी नहीं होनी चाहिए।
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